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एक ही शहर में रहते हुए उन दोनों बहनों के बीच इतना बड़ा फासला यों ही नहीं आ खड़ा हुआ था. उन दो बहनों के बीच की दूरी ऐसे ही नहीं बढ़ गई थी, इस के पीछे का कारण साधना का अभिमानी स्वभाव था और साधना का यह अभिमानी स्वभाव एक दिन सारी हदें पार कर देगा. सानविका ने यह कभी सोचा भी नहीं था.

साधना को अपने रूपरंग का इतना अधिक घमंड था कि उस के आगे उस ने सानविका को कभी कुछ समझा ही नहीं.

सानविका और साधना दोनों जुड़वां बहनें हैं, दोनों के जन्म में तो वैसे सिर्फ कुछ मिनटों का अंतर है और यह अंतर भी कुछ ज्यादा बड़ा नहीं सिर्फ पंद्रह मिनट का, और इसी चंद मिनटों के अंतर ने साधना को सानविका की बड़ी बहन का खिताब दिला दिया और साथ ही रंगरूप में सानविका से श्रेष्ठ भी बना दिया. और फिर रंगरूप के इसी एक अंतर ने साधना को दादी और उस के पापा की चहेती भी बना दिया.

साधना दादी और पापा दोनों की लाड़ली बन बैठी. वे सभी साधना को हाथोंहाथ लिए रहते और मासूम सानविका का बालमन कभी यह भेद समझ ही नहीं पाता कि आखिर क्यों उसे दीदी जितना प्यार नहीं मिलता…? क्यों जिस गलती पर साधना दीदी से कोई कुछ भी नहीं कहता, उसी गलती पर उसे सजा दे दी जाती है? और फिर ऐसे में सानविका के लिए उसकी मां का आंचल ही एक अकेला सहारा होता, जिस में छिप कर सिसकते हुए अपने बालमस्तिष्क पर जोर दे कर इस रहस्य को सुलझाने की वह नाकाम सी कोशिश करती रहती.

सानविका वह हर कोशिश करती, जिस से दादी या फिर उस के पापा उसे साधना दीदी की तरह प्यार करे, परंतु फिर भी वह उन सभी का प्यार पाने में असफल रहती, जबकि उस की साधना दीदी की एक मुसकान पर दादी उसे अपने गोद में उठा लेती और फिर उस के गोलमटोल गालों पर चुंबन की झड़ी लगा देती और ऐसे समय सानविका दूर खड़ी रह कर इस उम्मीद से उन्हें देखती रहती कि शायद अब दादी उसे भी गोद में बिठा कर उस पर वैसे ही प्यार बरसाएं, लेकिन यह सब उस के हिस्से कभी नहीं आता और उस के पास रह जाता सिर्फ एक उम्मीद और कुछ नहीं, और तब सानविका घंटों आईने के सामने खड़ी रह कर साधना की तरह मुसकराने की प्रैक्टिस करती रहती, लेकिन बदले में दनदनाता हुआ एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दिया जाता. यह कहते हुए कि ”जब देखो आईने के सामने खड़ी हो कर ऊलजलूल हरकतें करती रहती है.” उस के पसंदनापसंद की भी किसी को परवाह नहीं थी, उस की दादी अकसर हाथ नचाते हुए कहा करती, ”चाहे कोई भी रंग के कपड़े पहनाओ इसे, दिखेगी तो काली ही…, अच्छे कपड़े पहन कर कौन सी इस की खूबसूरती में चारचांद लगने वाले हैं,” अपनी दादी के इस जटिल कथन का तात्पर्य वह समझ नहीं पाती और तब दादी के चेहरे को बस चुपचाप देखती रह जाती, पर यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाती, “आखिर उस में और दीदी में ऐसा कौन सा अंतर है, जिस के कारण सब दीदी को ही प्यार करते हैं?”

लेकिन कुदरत ने उसे भले ही रंगरूप साधना से बेहतर नहीं दिए थे, परंतु उस की बुद्धि से साधना का कहीं कोई मुकाबला नहीं था. पढ़ाई में साधना से वह दस कदम आगे ही रहती और यही एक बात साधना के मन में उस के प्रति ईर्ष्या का कारण बन गई.

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