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शिखा आज तनमन दोनों से कमजोर महसूस कर रही थी. दुख तो उसे इस बात का हो रहा था कि एक मां हो कर भी वह अपनी बच्ची को बचा नहीं पा रही है. और सब से ज्यादा दुख उसे इस बात का हो रहा है कि एक बाप हो कर भी कैसे अरुण अपनी ही बेटी को मारने के लिए तत्पर है. क्या जरा भी मोह नहीं है उसे अपनी इस अजन्मी बच्ची से? यही अगर बेटा होता तो इस घर के लोगों की खुशियों का ठिकाना नहीं होता. लेकिन, बेटी जान कर कैसे इन सब के मुंह सूज गए. जल्द से जल्द ये लोग इस बच्ची से छुटकारा पाना चाहते हैं. कैसा समाज है ये, जहां बेटे का स्वागत तो होता है, पर बेटियों का नहीं. लेकिन, अगर बेटी ही नहीं रहेगी, फिर बहू कहां से आएगी? यह क्यों नहीं समझते लोग? अपने पेट पर हाथ फिराते हुए शिखा फफक कर रो पड़ी. वह अपनी अजन्मी बच्ची को मारना नहीं चाहती थी, बल्कि उसे जन्म देना चाहती थी. लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी अजन्मी बच्ची को इन हत्यारों से बचाए.

शिखा का मन करता कभी यहां से कहीं दूर भाग जाए, ताकि उस की बच्ची को कोई मार न सके. जो बच्चा अभी इस दुनिया में आया भी नहीं है, उसे उस की मां की कोख में ही मारने की तैयारी करने वाला कोई और नहीं, बल्कि इस के पापा और दादी हैं. लेकिन, एक मां हो कर कैसे शिखा अपनी ही बच्ची को मरते देख सकती थी?

शिखा अपनी 3 बेटियों के साथ बहुत खुश थी. लेकिन सुमित्रा को ही एक पोता चाहिए था, जिस के लिए उसे चौथी बार मां बनने के लिए मजबूर किया गया. शिखा तो सोनोग्राफी करवाना ही नहीं चाहती थी. लेकिन, सुमित्रा के आगे उस की एक न चली. सुमित्रा चाहती थी कि जांच में अगर लड़की निकलीbतो उसे खराब करवा देंगे, क्योंकि और लड़की नहीं चाहिए थी उसे इस घर में. लड़कियों को पालना घाटे के सौदे की तरह देखती थी सुमित्रा. उस की नजर में तो बेटा ही वंश कहलाता है और बेटा ही अपने मातापिता को मोक्ष दिलाता है.

हमेशा वह शिखा को कड़वी गोलियां पिलाती रहती, यह कह कर कि बड़ी बहू ने बेटे के रूप में उसे 2-2 रत्न दिए. लेकिन, इस करमजली ने सिर्फ बेटी ही पैदा की है. उसे अपने बेटे अरुण के वंश की चिंता हो चली थी. कैसे भी कर के वह शिखा से एक बेटा चाहती थी. लेकिन, सुमित्रा को नहीं पता कि बेटा या बेटी होना अपने हाथ की बात नहीं है. और एक मां के लिए तो बेटा और बेटी दोनों अपनी ही संतान होती है. लेकिन पता नहीं सुमित्रा को यह बात समझ क्यों नहीं आती थी.

आएदिन सुमित्रा यह बोल कर शिखा को ताना मारती कि 3-3 बेटियां पैदा कर के नातेरिश्तेदारों में उस ने उस की नाक कटवा दी. जब कोई कहता कि छोटी बहू तो एक बेटा तक पैदा नहीं कर पाई, तो सुमित्रा का कलेजा जल उठता था. पोते के लिए आएदिन वह कोई न कोई कर्मकांड कराती ही रहती थीं और जिस में उस के हजारों रुपए स्वाहा हो जाते थे. मगर सुमित्रा को इस बात का कोई गम न था. उसे तो बस कैसे भी कर के एक पोता चाहिए था. इस के लिए वह कई पोतियों का बलिदान करने को भी तैयार थी. जूही के समय जांच कर डाक्टर ने बताया था कि शिखा के पेट में लड़का है. लेकिन पैदा हो गई लड़की, तो डाक्टर पर से भी सुमित्रा का विश्वास उठ गया. इसलिए इस बार उस ने कोई अच्छे डाक्टर से जांच करवाने की ठानी थी, ताकि फिर कोई भूल न हो सके.

लेकिन शिखा को डर था कि जांच में अगर कहीं लड़की निकली, तो ये लोग उस के बच्चे की कब्र उस की मां की कोख में ही बना देंगे. इसलिए वह जांच करवाने से टालमटोल कर रही थी. मगर टालमटोल कर के भी क्या हो गया? जांच तो करवानी ही पड़ती और शिखा को जिस बात का डर था, वही हुआ. बेटी का नाम सुनते ही सुमित्रा के कलेजे पर सांप लोट गया. अरुण का भी एकदम से मुंह लटक गया.

सुमित्रा तो उसी वक्त यह बच्चा गिरवा देना चाहती थी. मगर, डाक्टर ने मना कर दिया कि वह यह सब काम नहीं करता. अब रूल इतना कड़ा बन गया है कि पता चलने पर डाक्टर की डिगरी तो जब्त होती ही है, जेल की भी हवा खानी पड़ती है. लेकिन चोरीछिपे कहींकहीं अब लिंग परीक्षण तो होता ही है.

इधर, अरुण ऐसे किसी डाक्टर की खोज में था, जो इस मुसीबत से छुटकारा दिला सके और उधर शिखा यह सोच कर बस रोती रहती कि कैसे भी कर के अरुण और सुमित्रा इस बच्चे को न मारें, विचार बदल लें अपना.

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