“अरुण... देखना, हमारी बेटियां भी एक दिन हमारा नाम जरूर रोशन करेंगी, यह मेरा विश्वास है. अरुण... देखो, छुओ मेरे पेट को कि क्या तुम्हारे दिल में अपनी बच्ची के लिए दर्द नहीं हो रहा? फिर कैसे तुम इसे मरते देख सकते हो अरुण? प्लीज, अपना फैसला बदल दो. बेटियां तो आने वाला सुनहरा कल होती हैं. हमें ही देख लो न, हम 4 बहनें ही हैं, तो क्या हम अपने मांपापा का ध्यान नहीं रखते? रखते हैं न?बारीबारी से हम उन की ज़िम्मेदारी बड़ी सिद्दत से निभाते आए हैं. बेटियां बोझ नहीं होती हैं. अरुण, एक बार मेरी बात पर विचार कर के देखो, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है.”
लेकिन, अरुण लैपटौप शर्टडाउन करते हुए बोला कि वो अपनी मां की बात से बाहर नहीं जा सकता है, सो प्लीज, वही बातें बारबार दोहरा कर उस का मूड न खराब करे.
यह बात तो तय थी कि यह सब सुमित्रा के कहने पर ही हो रहा था. वही नहीं चाहती थी कि शिखा बेटी पैदा करे. वही चाह रही थी कि जितनी जल्दी हो, इस बच्चे को गिरवा दिया जाए. हां, माना कि अरुण को भी बेटे की चाह है, पर अपनी बच्ची को मारना उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था. अरुण ने आज तक अपनी मां की एक भी बात नहीं काटी, उन्होंने जो कहा, किया. यहां तक कि शिखा से शादी भी उस ने अपनी मां के कहने पर ही की थी, वरना तो उस की पसंद कोई और थी. तो आज वह अपनी मां के फैसले से अलग कैसे जा सकता था.