कपड़े तहियाते हुए आरती के हाथ थम गए. उस की आंखें नेपथ्य में जा टंगीं. मन में तरहतरह के विचार उमड़नेघुमड़ने लगे. उसे लगा कि वह एक स्वप्नलोक में विचर रही है. उसे अभी भी विश्वास न हो रहा था कि पूरे 10 साल बाद उस का प्रेमी मिहिर फिर उस की जिंदगी में आया था और उस ने उस की दुनिया में हलचल मचा दी थी. वह बैंक में अपने केबिन में सिर झुकाए काम में लगी थी कि मिहिर उस के सामने आ खड़ा हुआ. ‘‘अरे तुम?’’ वह अचकचाई. उस चिरपरिचित चेहरे को देख कर उस का दिल जोरों से धड़क उठा.
‘‘चकरा गईं न मुझे देख कर,’’ मिहिर मुसकराया.
‘‘हां, तुम तो विदेश चले गए थे न?’’ उस ने अपने चेहरे का भाव छिपाते हुए पूछा,
‘‘इस तरह अचानक कैसे चले आए?’’
‘‘बस यों ही चला आया. अपने देश की मिट्टी की महक खींच लाई. तुम अपनी सुनाओ, कैसी गुजर रही है हालांकि मुझे यह पूछने की जरूरत नहीं है. देख ही रहा हूं कि तुम मैनेजर की कुरसी पर विराजमान हो. इस का मतलब है कि तुम्हारी तरक्की हो गई है. लेकिन लगता है कि तुम्हारे निजी जीवन में कोई खास बदलाव नहीं आया है. तुम वैसी ही हो जैसी तुम्हें छोड़ कर गया था.’’
‘‘हां, मेरे जीवन में अब क्या नया घटने वाला है? जिंदगी एक ढर्रे से लग गई है. सब दिन एकसमान, न कोई उतार, न चढ़ाव,’’ उस ने सपाट स्वर में कहा.
‘‘यह रास्ता तुम्हारा खुद का अपनाया हुआ है,’’ मिहिर ने उलाहना दिया, ‘‘मैं ने तो तुम्हें शादी का औफर दिया था. तुम्हीं न मानीं.’’
आरती कुछ न बोली.
‘‘अच्छा यह बताओ, लंच के लिए चलोगी? तुम से मिले अरसा हो गया. मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं.’’
वे दोनों काफी देर तक रेस्तरां में बैठे रहे. बातों के दौरान मिहिर ने कहा, ‘‘आरती, मेरा भाई अमेरिका में रहता है. उस ने मुझे वहां बुलवा लिया. शुरू में काफी संघर्ष करना पड़ा पर अब मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है. मुझे वहां की नागरिकता भी मिल गई है. मैं ने वहां अपना घर खरीद लिया है. केवल गृहिणी यानी पत्नी की कमी है. मैं ने अभी तक शादी नहीं की है. मैं अभी भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं. तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. इतने दिन तुम्हारी याद के सहारे जिया. अब मैं चाहता हूं कि हम दोनों विवाहबंधन में बंध जाएं. बोलो, क्या कहती हो?’’
‘‘अब मैं क्या बोलूं?’’ वह सिर झुकाए बोली.
‘‘वाह, तुम नहीं तो तुम्हारी जिंदगी के अहम फैसले क्या कोई और लेगा? आरती, तुम्हारा भी जवाब नहीं. तुम्हें कब अक्ल आएगी. मैं और तुम बालिग हैं, अपनी मरजी के मालिक. हमें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक है.’’
‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो,’’ उस ने कहा.
‘‘हरगिज नहीं,’’ मिहिर ने दृढ़ता से कहा, ‘‘सोचविचार में तुम ने अपनी आधी जिंदगी गंवा दी. अब मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा. तुम्हें फैसला अभी, इसी वक्त लेना होगा. अभी नहीं तो कभी नहीं.’’
आरती के मन में उथलपुथल मच गई. जी में आया कि वह तुरंत अपनेआप को मिहिर की बांहों में डाल दे और उस से कहे, मैं तुम्हारी हूं, तुम जो चाहे करो, मुझे मंजूर है. इस के सिवा उस के पास और कोई चारा भी तो न था. वह अपनी एकाकी गतिहीन जिंदगी से बहुत उकता गई थी. अब तक मांबाप का साया सिर पर था पर आगे की सोच कर वह मन ही मन कांप जाती थी. उसे एक सहारे की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह मिहिर का हाथ थाम लेगी. यह निर्णय लेते ही उस के सिर से एक भारी बोझ उतर गया. उस के मन में हिलोरें उठने लगीं.
‘‘ठीक है,’’ वह बोली.
उसे वह दिन याद आया जब मिहिर से पहली बार मिली थी. पहली नजर में ही वह उस की ओर आकर्षित हो गई थी. वह बड़ा हंसोड़ और जिंदादिल था. धीरेधीरे उन में नजदीकियां बढ़ती गईं और एक दिन मिहिर ने विवाह का प्रस्ताव किया. आरती के मन में रस की फुहार फूट निकली. वह भविष्य के सुनहरे सपनों में खो गई. लेकिन उस के मातापिता को उस का प्रेमप्रसंग रास न आया. उन्होंने मिहिर का जम कर विरोध किया. उन्हें मिहिर में खामियां ही खामियां नजर आईं. वह पिछड़ी जाति का था और गरीब घर से था. उन्होंने आरती को समझाने की कोशिश की कि मिहिर उस के लायक नहीं है और वह उस से शादी कर के बहुत पछताएगी. जब उन्होंने देखा कि आरती पर उन की बातों का कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपना आखिरी दांव चलाया, ‘ठीक है, यदि तू अपनी मनमरजी करने पर तुली है तो यही सही. तू जाने, तेरा काम जाने. लेकिन इस के बाद हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म. हम मरते दम तक तेरा मुंह न देखेंगे.’ आरती बहुत रोईधोई पर पिता की बात मानो पत्थर की लकीर थी. और मां ने भी पिता की हां में हां मिलाई.
आरती के मन में भय का संचार हुआ. उस में इतनी हिम्मत न थी कि वह मांबाप से बगावत कर के, समाज की अवहेलना कर के मिहिर से शादी रचाती. वह उधेड़बुन करती रही, सोच में डूबी रही, आगापीछा सोचती रही. दिन बीतते गए और एक दिन मिहिर उस से नाराज हो कर, उस से नाता तोड़ कर उस की दुनिया से दूर चला गया. आरती के मातापिता ने उस के लिए और लड़के तलाश किए पर आरती ने सब को नकार दिया. वह तो मिहिर से लौ लगाए थी. यादों में खोई आरती को मिहिर की आवाज ने झिंझोड़ा, ‘‘मैं कल शाम को तुम्हारे घर आऊंगा. हम अपने भावी जीवन के बारे में बात करेंगे और मैं तुम्हारे मातापिता से भी मिल लूंगा. पिछली बार उन्होंने हमारी शादी में अड़ंगा लगाया था. आशा है इस बार उन्हें कोई आपत्ति न होगी.’’
‘‘नहीं, और होगी भी तो अब मैं उन की सुनने वाली नहीं हूं,’’ वह जरा हिचकिचाई और बोली, ‘‘केवल एक समस्या है.’’
‘‘वह क्या?’’
‘‘रघु की समस्या.’’
‘‘यह रघु कौन है? क्या वह मेरा रकीब है?’’
‘‘हटो भी,’’ आरती हंस पड़ी, ‘‘रघु मेरा भतीजा है. मेरे बड़े भाई का बेटा. कुल 12 साल का है.’’
‘‘तो उस के साथ क्या प्रौब्लम है?’’
‘‘तुम कल घर आ रहे हो न. वहीं पर बातें होंगी.’’