सजा सुनाए जाने के बाद दिनेश को अहमदाबाद की साबरमती जेल भेज दिया गया था. एक दिन केतन की दुकान पर चाय पीते हुए करसन ने अपने दिल की कही, ‘‘यार कान्हा, एक बार हमें अहमदाबाद चल कर दिनेश से मिलना चाहिए. मेरी आत्मा कहती है कि दिनेश इस तरह का घटिया काम नहीं कर सकता.’’
‘‘छोड़ न यार करसन, उस की कोई बात मुझ से मत कर. अब मैं उस कलमुंहे का मुंह भी नहीं देखना चाहता. अब तो उसे दोस्त कहने में भी शरम आती है.’’ कान्हा ने दुखी मन से कहा.
‘‘ऐसा मत कह यार कान्हा. बुरा ही सही, पर दिनेश हमारा बहुत अच्छा दोस्त है. दोस्ती की खातिर बस एक बार चल कर मिल लेते हैं. फिर दोबारा उस से मिलने के लिए कभी नहीं कहूंगा. एक बार मिलने से मेरी आत्मा को थोड़ा संतोष मिल जाएगा.’’ करसन ने कान्हा से दिनेश से मिलने की सिफारिश करते हुए कहा.
‘‘तू इतना कह रहा है तो चलो एक बार मिल आते हैं. पर इस मिलने से कोई फायदा नहीं है. ऐसे आदमी से क्या मिलना, जो इस तरह का घिनौना काम करे. मेरे खयाल से उस से मिल कर तकलीफ ही होगी.’’ कान्हा ने कहा.
‘‘कुछ भी हो, मैं एक बार उस से मिलना चाहता हूं.’’ करसन ने कहा.
अगले दिन दोनों दोस्त दिनेश से मिलने के लिए अहमदाबाद जा पहुंचे. जेल में मिलने की जो प्रकिया होती है, उसे पूरी कर दोनों दिनेश से मिलने जेल के अंदर पहुंचे.
अपने जिगरी दोस्त की हालत देख कर कान्हा और करसन की आंखों में आंसू आ गए. दाहिने हाथ की हथेली से आंसू साफ करते हुए भर्राई आवाज में कान्हा ने कहा, ‘‘यह सब क्या है दिनेश?’’
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