बगदाद के खलीफा को कुश्ती करवाने का बड़ा शौक था. वह हर वर्ष कुश्ती प्रतियोगिता आयोजित करता था और जो पहलवान जीतता उसे कीमती भेंट दे कर सम्मानित करता था. उस के अपने दरबार में भी 5 नामी पहलवान थे. इस बार कुश्ती प्रतियोगिता के सभी मुकाबले जीतने वाले शाही पहलवान अली जुनैद को ले कर काफी चर्चा हो रही थी. निर्णायकों ने जब उसे सर्वश्रेष्ठ पहलवान घोषित किया, तो खलीफा की खुशी का ठिकाना न रहा, किंतु तभी जनता ने निर्णायकों पर पक्षपात का आरोप लगाया. यह सुन कर खलीफा के कान खड़े हो गए. उस ने खीज कर घोषणा करवा दी, ‘‘शाही पहलवान जुनैद सर्वश्रेष्ठ है. अगर किसी को शक है तो 5 दिन के भीतर उसे चुनौती दे तो प्रतियोगिता दोबारा होगी. पर ध्यान रहे, चुनौती देने वाला यदि हार गया तो उस का कत्ल करा दिया जाएगा और यदि जीत गया तो उसे स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली भेंट की जाएगी.’’ इस घोषणा से बगदाद शहर में तहलका मच गया. दूरदराज के इलाकों से आए पहलवान अपने खेमे उखाड़ कर वापस जाने लगे. बाकी खेमों में भी एकदम सन्नाटा छा गया.

जुनैद पहलवान दाएं पैर में जंजीर बांध कर शहर भर में घूमा, पर उस के पीछे घिसटती जंजीर को किसी ने नहीं दबाया. जुनैद पहलवान मस्ती में झूमता हुआ गलीगली घूम रहा था. उस के पीछे बच्चों के झुंड किलकारियां मारते, तालियां पीटते चल रहे थे. धूल उड़ रही थी. तभी एक घर के पास पहलवान ने ठिठक कर पीछे देखा. उस के पांव की जंजीर को दबाने वाला व्यक्ति निर्भय पीछे खड़ा मुसकरा रहा था. वह काफी कमजोर और वृद्ध था पर उस का साहस कमाल का था. उस ने पहलवान से बात की और उस के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा. पहलवान गंभीर हो गया. वह उस मरियल से आदमी की कही बात पर गंभीरता से सोचविचार कर रहा था.

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