आज जहां सबकुछ वैज्ञानिक और हाईटैक है वहां गरीबों और पिछड़ों से कहा जाता है कि मानसिक रोग कुछ नहीं, यह देवीदेवताओं का प्रकोप है जो जादूटोने से दूर होता है. यह तो बीमारों को और बीमार कर देता है. मानसिक रोगों से जुड़ी भ्रांतियों का समाधान यहां पेश है.
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को बचाने के लिए न केवल सेना से सहायता मांगी गई, विपक्षी दलों को तोड़ने की कोशिश हुई, बल्कि टोनेटोटके भी अपनाए गए. इमरान खान की तीसरी बीवी बुशरा खान के लिए कहा जाता है कि उन्होंने काले जादू का इस्तेमाल किया. मुरगे लड़ाए गए, जिन्न बुलाए गए. इमरान खान अकसर पाकिस्तान के पंजाब स्टेट के पाकपट्टन गांव में फरीद की दरगाह पर काले बुरके में ढकी बुशरा और खुद सफेद चादर ओढ़ कर जाया करते थे. अफसोस कुछ काम न आया और सरकार चली गई. विपक्षी दल
2 वोट ज्यादा ले गए और कौन्फिडैंस मोशन पास हो गया. जब इमरान खान जैसे इंटरनैशनल प्लेबौय टोनेटोटके के मरीज बन सकते हैं तो आम लोगों का क्या कहना.
उस दिन रामगोपाल वर्मा के घर के बाहर रौनक थी. लगभग 2 लाख रुपए खर्च कर के उन्होंने अपने घर में एक विशाल अनुष्ठान करवाया था. उन के प्रधान पारिवारिक तांत्रिक ओझा ने उन्हें इस की सलाह दी थी. बात ही कुछ ऐसी थी. उन का बड़ा पुत्र कई महीनों से विचित्र सी हरकतें जो कर रहा था. कभी वह बहुत उत्तेजित हो कर घरवालों को अनापशनाप बकने लगता, कभी राजनीति व साहित्य पर बेकार की बहस करता तो कभीकभी घंटों सिर झुकाए कमरे में शांत और अनमना सा बैठा रहता.
इस कर्मकांड को समाप्त हुए अभी सप्ताह भी नहीं बीता था कि बाबू रामगोपालजी के घर से फिर चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. रामगोपाल वर्मा हैरान और अवाक थे कि इतनी पूजापाठ, अनुष्ठान किए पर फिर भी यह हादसा? एक पड़ोसी ने उन्हें सलाह दी कि एक बार डाक्टर को दिखाओ.
तुरंत डाक्टर से संपर्क किया गया, जहां पता चला कि वह मानसिक रोग की चपेट में है. लगभग एक माह तक चले मनोचिकित्सक के इलाज से रामगोपाल वर्मा के घर में खुशियां लौट रही थीं.
तनावपूर्ण व भागदौड़भरी जीवनशैली के चलते न केवल लोगों का शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है बल्कि वेबकूफी के चलते लोगों में मानसिक रोगों के लक्षण नजर आने लगते हैं, पर वे इस बारे में खुल कर बात नहीं करते और डाक्टर के पास जाने से कतराते हैं. वे रामगोपाल की तरह तांत्रिकओझाओं के फेर में पड़ जाते हैं जिस से रोग बढ़ जाता है व गंभीर परिणाम झेलने पड़ते हैं.
जबकि विज्ञान ने लगभग हर दरवाजे पर दस्तक दे दी है. मानसिक रोगों को अंधविश्वास के घेरे में ही देखा जाता है. हमारे देश में तो लोग मानसिक रोगों को देवीदेवाओं का प्रकोप, जादूटोने का असर या शरीर में किसी आत्मा के प्रवेश को मानते हैं और इस रोग को भगवा राजनीति ने और बल दिया है. इसी कारण रोगी के रिश्तेदार उसे योग्य डाक्टर के पास ले जाने के बजाय झाड़फूंक, तांत्रिक या टोनेटोटके वालों के पास ले जाते हैं, जहां वास्तव में तन, मन और धन की बरबादी होती है. ये मिथ्या धारणाएं लोगों के मानसपटल से उतरनी जरूरी हैं.
मानसिक रोग भी शारीरिक रोगों की ही भांति होते हैं. इन का इलाज भी डाक्टरों द्वारा भी संभव है, पर जब पूरा समाज यह मानने लगे कि मंत्रों में बड़ा दम है और हवनयज्ञ से चुनाव जीते जा सकते हैं तो मानसिक रोगों से बचने के लिए टोनेटोटके क्यों न बिकें. गूगल पर टोनेटोटके के उपायों की जानकारी भी भरी है और विज्ञापन भी भरे हैं. इमरान खान जैसे बेवकूफ हर गली में भरे हैं.
व्रतकथा नाम से चलाए जा रहे एक बयान में अभी दिसंबर 2021 में लिखा गया कि मानसिक तनाव दूर करने के लिए अचूक मंत्र है, ‘ओम अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम् भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि.’ सलाह दी गई कि इस मंत्र का जाप करने से काफी लाभ होगा. इसी साइट पर कपूर से दुश्मन को बीमार करने के टोटके भी बनाए गए हैं. यह भी सलाह दी गई है कि टोटके करने से पहले तांत्रिक को साथ रखें. अब तांत्रिक मुफ्त में तो नहीं आएगा. इस सारे प्रचार का उद्देश्य होता है कि आप मानसिक रोगी को डाक्टर के पास नहीं किसी ओझा के पास ले जाएं जो आप के या रिश्तेदारों के संकट दूर करे.
इस फरेब में कम पड़ें, कम पैसे वाले लोग ज्यादा फंसते हैं जिन्हें डाक्टरों के पास जाने में डर लगता है कि कहीं वे लूट न लें.
समाधान
यह सरासर गलत है. किन्हीं कारणों (आनुवांशिक, पारिवारिक कलह, असफलता, निराशा या अन्य) से मस्तिष्क में भौतिक या रासायनिक परिवर्तन होते हैं जो कालांतर में मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली में व्यवधान डाल कर उसे रोगग्रस्त बना देते हैं.
बिलकुल निराधार. मानसिक रोगों को एक चिकित्सक (मनोचिकित्सक) ही समझ सकता है, कोई अन्य नहीं. झाड़फूंक, मंत्र, टोनेटोटके वाले, ओझा आदि हमारी धार्मिक भावनाओं तथा सामाजिक मान्यताओं का गलत लाभ उठाते हुए हमें गुमराह करते हैं.
बिलकुल गलत. एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाले रोग को ‘संक्रामक रोग’ कहते हैं और कोई भी मानसिक रोग संक्रामक रोग नहीं होता.
यह सोचना गलत है. यह चिकित्सा विधि कुछ ही रोगियों को दी जाती है, जैसे उन्माद या फिर अवसाद के रोगी या फिर आत्महत्या का विचार रखने वाले रोगी आदि. यह बहुत ही प्रभावी व सुरक्षित उपचार विधि है. इस से याद्दाश्त पर कुप्रभाव नहीं पड़ता.
मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि रोगों में भी तो रोगी को उम्रभर दवाइयां लेनी पड़ती हैं. फिर भी सारी उम्र दवा लेने का सिलसिला कुछ प्रतिशत रोगियों में ही होता है, प्रत्येक में नहीं.
अधिकतर ओषधियां ‘सुस्ती’ का एहसास करवाती हैं जो अवसाद, उन्माद, चिंता से घिरे रोगी के लिए अनिवार्य भी होती हैं. इसलिए यह सही नहीं है कि ये दवाइयां आप को हमेशा के लिए नींद की आगोश में ले लेंगी.
कुछ मानसिक रोग आनुवंशिक जरूर होते हैं मगर उन्हें भी उचित पारिवारिक वातावरण प्रदान कर के टाला जा सकता है. इसलिए यह शंका भी शतप्रतिशत ठीक नहीं है.
बिलकुल नहीं. मनोरोगी की सोच व विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन आता है जिन की वजह से वह अजीब बातें या हरकतें करता है. इस बात में कोई संशय नहीं कि उस की बुद्धि का स्तर वही रहता है जो रोग से पूर्व था.
नहीं, यह उचित नहीं है. शादी के बाद व्यक्ति पर अतिरिक्त जिम्मेदारियां बढ़ती हैं. ऐसे में यदि व्यक्ति मानसिक रोगी हो तो वीभत्स परिणाम सामने आते हैं.
जिस प्रकार संतुलित आहार स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ है उसी तरह संतुलित व्यवहार इन रोगियों में उचित व श्रेष्ठ है.