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देर रात को फेसबुक खोलते ही रितु चैटिंग करने लगती. जैसे वह पहले से ही इंटरनैट पर बैठ कर विनोद का इंतजार कर रही हो. उस से चैटिंग करने में विनोद को भी बड़ा मजा मिलने लगा था. रितु से बातें कर के विनोद की दिनभर की थकान मिट जाती थी. स्कूल में बच्चों को पढ़ातेपढ़ाते थका हुआ उस का दिमाग व जिस्म रितु से चैटिंग कर तरोताजा हो जाता था.

पत्नी मायके चली गई थी, इसलिए घर में विनोद का अकेलापन कचोटता रहता था. ऐसी हालत में रितु से चैटिंग करना अच्छा लगता था. विनोद से चैटिंग करते हुए रितु एक हफ्ते में ही उस से घुलमिल सी गई थी. वह भी उस से चैटिंग करने के लिए बेताब रहने लगा था.

आज विनोद उस से चैटिंग कर ही रहा था कि उस का मोबाइल फोन घनघना उठा, ‘‘हैलो... कौन?’’ उधर से एक मीठी आवाज आई, ‘हैलो...विनोदजी, मैं रितु बोल रही हूं... अरे वही रितु, जिस से आप चैटिंग कर रहे हो.’

‘‘अरे...अरे, रितु आप. आप को मेरा नंबर कहां से मिल गया?’’ ‘‘लगन सच्ची हो और दिल में प्यार हो तो सबकुछ मिल जाता है.’’

फेसबुक पर चैटिंग करते समय विनोद कभीकभी अपना मोबाइल नंबर भी डाल देता था. शायद उस को वहीं से मिल गया हो. यह सोच कर वह चुप हो गया था. अब विनोद चैटिंग बंद कर उस से बातें करने लगा, ‘‘आप रहती कहां हैं?’’

‘वाराणसी में.’ ‘‘वाराणसी में कहां रहती हैं?’’

‘सिगरा.’ ‘‘करती क्या हैं?’’

‘एक नर्सिंग होम में नर्स हूं.’ ‘‘आप की शादी हो गई है कि नहीं?’’

‘हो गई है...और आप की?’ ‘‘हो तो मेरी भी गई है, पर...’’

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