दिव्या काकरान भारतीय कुश्ती में नया नाम नहीं है. 19 साल की दिव्या एशियन चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं. लेकिन राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में अभी तक गोल्ड नहीं जीत पाई थीं. अब उनका यह सपना भी पूरा हो गया है. खास बात यह है कि उनकी साधारण पृष्ठभूमि के कारण ही वह गोल्ड मेडल जीत सकीं.
मध्यप्रदेश के इंदौर में आयोजित राष्ट्रीय कुश्ती चैम्पियनशिप के दौरान यह बात सामने आई जब दिव्या ने 68 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड जीत कर बाहर की दौड़ लगा दी. यह नजारा कुछ कुछ फिल्मों जैसा था. जब दिव्या ने दौड़ लगाई तो किसी को समझ ही नहीं आया कि वह कहां जा रही हैं.
दिव्या भागते हुए सीधे बाहर लगे एक स्टाल में पहुंची जहां पहलवानों के कपड़े बिक रहे थे. अब तक किसी को भी समझ नहीं आया था कि वहां हो क्या रहा है. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता दिव्या ने अपना जीता हुआ मेडल पहलवानों के कपड़े बेचने वाले एक व्यक्ति के गले में डाल दिया. यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि दिव्या के पिता सूरज काकरान थे. ऐसा भावुक पल केवल फिल्मों में ही देखने को मिलता है, लेकिन वहां यह सबकुछ हकीकत में हो रहा था. अंदर बेटी कुश्ती का फाइनल मैच खेल रही थी और बाहर पिता पहलवानों के कपड़े बेच रहे थें.
इस घटना ने सभी का ध्यान दिव्या की साधारण पृष्ठभूमि पर खींच लिया, लेकिन उस वक्त माहौल जश्न का था. हो भी क्यों न, यह राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में जीता गया दिव्या का पहला गोल्ड मेडल जो था.
आपको बता दें कि दिव्या दिल्ली की रहने वाली हैं और 10 साल की उम्र से ही लड़कों के साथ पहलवानी में मुकाबला कर रही हैं. उनकी मां पहलवानों के लिए कपड़े सिलती हैं और उन कपड़ो को उनके पिता बेचते हैं. उनके घर के हालात सही नहीं है इसलिए दिव्या अपनी पहलवानी से घर की आजीविका में खासा योगदान देना चाहती हैं, जो हो नहीं पाता.
हालांकि पिता सूरज का कहना है कि अभी उनका गुजारा दिव्या की कमाई से ही चल पा रहा है, शायद यही वजह रही कि उसने इस चैम्पियनशिप में उत्तर प्रदेश की ओर से खेलने का फैसला किया, क्योंकि उत्तर प्रदेश में चैम्पियन पहलवानों को अच्छी ईनामी राशि दी जाती है.