धर्म चाहे भगवा आवरण में हो या दाढ़ी टोपी में, फादर/पादरी लबादे में हो या निवस्त्र, काम सबका लोगों को अकर्मण्य, तर्कहीन व अंधभक्त बनाना और जरूरत पड़े तो मौत के अंधेरे दलदल में धकेलना ही रहा है.

अंडमान के सेंटिनल द्वीप में मारे गए अमेरिकी टूरिस्ट जौन ऐलन चाऊ की हत्या के लिए हम भले ही उस द्वीप में रह रहे आदिवासियों को जिम्मेदार ठहरा लें, लेकिन असली हत्यारा धर्म ही था. क्योंकि ऐलन चाऊ का मकसद आदिवासियों के बीच ईसाई धर्म का प्रचार करना था.

न वह धर्म प्रचारकों की हांक में आकर अमेरिका से यहां आता और न ही असमय मारा जाता. वह टूरिस्ट की शक्ल में ईसाई धर्म का प्रोपोगैंडा कर रहा था और इसका नतीजा उसे अपनी जान देकर चुकाना पड़ा.

धर्म की नाहक घुसपैठ

ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जिस अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से 50 किलोमीटर दूर स्थित जिस प्रतिबंधित नौर्थ सेंटिनल द्वीप में हुई, वहां के आदिवासी समूह से टूरिस्टों को किसी भी तरह का संपर्क साफ मना था. बावजूद इसके ऐलन सिर्फ धर्म के वशीभूत होकर अपनी जान जोखिम में डालकर उस प्रतिबंधित इलाके में घुसा और अपने एकांत में गुजर बसर कर रहे आदिवासियों को ईसाई धर्म का पाठ पढ़ाने लगा. उनसे इस धर्म को अपनाने के लिए आग्रह भी करने लगा.

लेकिन आदिवासियों को यह सब नागवार गुजरा और उन्होंने तीर मारकर उनकी हत्या कर दी. बताते हैं कि चाऊ इस से पहले भी कई बार इस द्वीप पर घुसने की नाकाम कोशिश कर चुके थे लेकिन 16 नवंबर को जब वह इस प्रतिबंधित क्षेत्र में घुसे तो यह उनकी आखिरी घुसपैठ साबित हुई.

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