मंगलोर के एमनेशिया नामक पब/कैफे में लड़कियों पर ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ राम के नाम पर बनाई गई सेना के उपद्रवियों के हमले के बाद जो बहस छिड़ी है, वह खुद एक भ्रम का शिकार है : यदि लड़कियों पर हमले की निंदा हो रही है तो दूसरी ओर ‘भारतीय संस्कृति’ की प्रशंसा.

पब कल्चर भी चर्चा का, कहना चाहिए किचकिच का, विषय है, क्योंकि वहां लड़कालड़की बराबरी का व्यवहार करते हैं, मादक द्रव्य का भी चाहें तो बराबरी से सेवन कर सकते हैं और एकदूसरे से छू जाने व एकदूसरे का हाथ पकड़ने आदि से भी परहेज नहीं करते.

यहां एक बात बिलकुल शुरू में ही स्पष्ट हो जानी चाहिए और वह यह कि हम 2 परस्पर विरोधी व्यवस्थाओं में जी रहे हैं. एक ओर तथाकथित भारतीय संस्कृति है, तो दूसरी ओर भारतीय संविधान है.

श्रीराम सेना के सदस्यों की निंदा करते हुए कई लोग यह कहते हैं कि उस स्वयंभू सेना को यही नहीं मालूम कि भारतीय संस्कृति है क्या. ये उस के रक्षक बनने के योग्य तो तब बनेंगे जब पहले उस के असली स्वरूप से परिचित हों.

भारतीय संस्कृति एक अपरिभाषित चीज है. अत: जिसे जो बात सिद्ध करनी होती है, वह उसी को भारतीय संस्कृति से जोड़ कर उस का रक्षक बन जाता है. श्रीराम सेना वाले लड़कियों पर हमले को भारतीय संस्कृति के विपरीत कदम कह रहे हैं.

भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के बाद इस निर्णय पर आसानी से पहुंचा जा सकता है कि इस में स्त्री की स्वतंत्रता की घोर निंदा की गई है. अत: पब पर हमला करने वाले यद्यपि सभ्यता व संविधान की दृष्टि से चाहे खलनायक हैं, ‘भारतीय संस्कृति’ की दृष्टि से वे महानायक नहीं तो नायक अवश्य हैं.

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