सोहराबुद्दीन शेख फेक एनकाउंटर मामले में मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने अब तक 16 आरोपियों को बरी किया है. बरी किए गए आरोपियों में भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं. इनमें गुजरात पुलिस के पूर्व उपमहानिरीक्षक डीजी वंजारा, राजस्थान पुलिस के पूर्व अधीक्षक दिनेश मीणा और गुजरात पुलिस के एंटी-टेररिज्म स्क्वॉड के पूर्व अधीक्षक राजकुमार पांडियन का नाम शामिल है. नवंबर 2017 में मामले का ट्रायल शुरू होने के बाद से अब तक 90 गवाह पलट चुके हैं. इस साल 21 सितंबर को कोर्ट ने एक प्रमुख गवाह- रिटायर्ड पुलिस अधिकारी वीएल सोलंकी को गवाही देने के लिए बुलाया है. सोलंकी वह शख्स हैं जिनकी जांच की वजह से उपरोक्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई थी. सोलंकी सोहराबुद्दीन मामले के जांच अधिकारी थे. उन्होंने मामले की शुरुआती जांच की थी जिससे यह बात स्थापित हुई थी कि सोहराबुद्दीन की मौत फेक एनकाउंटर में हुई थी.

सोलंकी की इस जांच के आधार पर गुजरात पुलिस ने मामले में 2007 की जनवरी में पहली चार्जशीट दाखिल की. इसके तीन साल बाद, सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने एक याचिका डाली जिसके बाद सर्वोच्च अदालत ने मामले की जांच को सीबीआई के हवाले कर दिया. रुबाबुद्दीन ने चार्जशीट दाखिल किए जाने के छह दिन बाद अपनी पिटीशन डाली थी. साल 2010 की जुलाई में सीबीआई ने एक चार्जशीट दाखिल की. इसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अलावा उस वक्त के गुजरात के गृहमंत्री और फिलहाल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर भी आरोप लगाए गए. 2014 की दिसंबर में शाह को भी इस मामले से बरी कर दिया गया.

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