केरल के सबरीमाला स्थित अयप्पा के मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगी पाबंदी सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी है. सदियों पुरानी इस प्रथा के लिए केरल में 1965 में बने हिंदू पूजा स्थल [प्रवेश के अधिकार] कानून के नियम 3[बी] को अदालत ने रद्द कर दिया. 5 जजों की संविधान पीठ में शामिल चार पुरुष जजों ने महिलाओं पर लगी पाबंदी को लैंगिक भेदभाव के आधार पर असंवैधानिक करार दिया. इस से पहले न्यायालय ने शिर्डी के निकट शनि शिंगणापुर मंदिर में स्त्रियों को प्रवेश की इजाजत दिलाई थी.

5 सदस्यीय पीठ ने 411 पेजों में 4 अलगअलग फैसले लिखे. पीठ ने अयप्पा मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया. 2006 में इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन ने याचिका दायर कर प्रतिबंध को खत्म करने की मांग की थी. इस के बाद मामला पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया था.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि शारीरिक वजहों से मंदिर आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नहीं है. यह पुरुष प्रधान सोच को दर्शाता है. उधर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि महिला को माहवारी के आधार पर प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है. यह मानवता के खिलाफ है.

करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में 10 से 50 साल तक और रजस्वला महिलाओं के प्रवेश की मनाही थी. इस के पीछे मंदिर प्रबंधन का कहना था कि मंदिर के देवता अयप्पन ब्रह्मचारी थे. केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार औरतों को प्रवेश दिलाए जाने के पक्ष में थी लेकिन त्रावणकोर का राज परिवार और देवासम बोर्ड इस के खिलाफ था.

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