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द्यूतं केवलं राजसंनादति, यत्र न धूर्तता, तत्रैव संनादति।
अर्थात, जुआ केवल राजा के नियंत्रण में होना चाहिए, जहां कोई धोखाधड़ी न हो, केवल वही जुआ अनुमत है. सूत्र (3.20.14):
और
द्यूतपालः पणस्य दशमं भागं ददाति, अन्यथा दण्डः।
अर्थात, जुए का आयोजक (द्यूतपाल) दांव की राशि का दसवां हिस्सा (10 फीसदी) कर के रूप में देगा अन्यथा उसे दंडित किया जाएगा. सूत्र (3.20.15) और यह भी कि-
द्यूतं च पणस्तकं च संनादति, तद् द्यूताध्यक्षः संनादति। तस्य पंचभागं राजा हरति, शेषं द्यूतकरे ददातिI
अर्थात, जुआ और पणस्तक (सट्टेबाजी) को नियंत्रित किया जाए. द्यूताध्यक्ष (जुए का अधिकारी) इस की निगरानी करेगा. राजा को जीत की राशि का पांचवां हिस्सा (5 फीसदी) कर के रूप में मिलेगा और शेष राशि जुआ आयोजक (द्यूतकर) को दी जाएगी. (सूत्र 3.20.12-13)
ये सूत्र उस तथाकथित महान अर्थशास्त्री चाणक्य के अर्थशास्त्र के हैं जिस के नक़्शेकदम पर मौजूदा केंद्र सरकार चल रही है. समझने वाले समझ गए होंगे कि यहां इन का हवाला किसलिए दिया जा रहा है लेकिन उस से पहले बहुत थोड़े से में यह समझ लेना जरूरी है कि विष्णु गुप्त यानी चाणक्य घोर ब्राह्मणवादी था जिस ने अपने अर्थशास्त्र में जहां भी मुमकिन हो सका धार्मिक पाखंडों और ब्राह्मणवाद का जम कर महिमामंडन किया.
उस के मुताबिक, ब्राह्मण जन्मना पूजनीय है. उस का अपमान एक गंभीर अपराध है. ब्राह्मण पर कम से कम टैक्स राजा को लगाना चाहिए और राज्य में खुशहाली के लिए यज्ञ, हवन, अनुष्ठान वगैरह करते रहना चाहिए. साथ ही, राजा को चाहिए कि वह ब्राह्मणों को दानदक्षिणा देता रहे.
चाणक्य को मिनी या पोर्टेबल मनु न कहना उस के साथ ज्यादती होगी. वह वर्णव्यवस्था का भी हिमायती और वैदिक सिद्धांतों का समर्थक था. जुए और सट्टे के संबंध में जो सूत्र चाणक्य ने दिए, देश की मौजूदा भगवा सरकार उन्हें कब का अमली जामा पहना चुकी होती लेकिन आड़े वही संविधान और कानून आ गए जो उस से बीते 11 सालों से न निगले जा रहे हैं, न ही उगले जा रहे हैं. लेकिन जब उस की औनलाइन गेम्स से टैक्स वसूली की मंशा पूरी नहीं हुई तो उस ने इन्हें बंद करने के लिए कानून ही बना दिया.
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