बीते साल 9 और 10 सितंबर, 2023 को 18वें G20 शिखर सम्मेलन का आयोजन भारत में हुआ. यह पहली बार था जब भारत ने G20 देशों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की. हर साल एक नए देश को अपनी बारी आने पर मेजबानी करने का मौका मिलता है. विश्व को एक परिवार बताने वाली मेजबान सरकार देश के अंदर बांटो और राज करो की नीति पर चलती है, यह बात भी दुनिया की निगाहों से छुपी हुई नहीं थी. लिहाजा मोदी सरकार द्वारा 'वसुधैव कुटुंबकम' का राग अलापना हास्यास्पद ही था.
अबकी साल 22 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने रूस के कजान शहर गए. गोदी मीडिया में इसकी खूब चर्चा हुई. प्रधानमंत्री मोदी के रूस में हुए भव्य आदरसत्कार का भी खूब गुणगान हुआ. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनकी फोटो भी खूब वायरल हुई. इस साल ब्रिक्स समिट में मूल सदस्यों के साथ ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हुए हैं.
दरअसल दुनिया में अनेक देशों ने मिल कर अपने अपने कुछ खेमे बना रखे हैं एक जैसी राय रखने वाले देशों के यह खेमे एक दूसरे के साथ निवेश, व्यापार, रक्षा,हथियार सप्लाई आदि में सहयोग करने की बात कहते हैं. इन संगठनों के बारे में कहा जाता है कि अनेक देशों की इस एकजुटता से बहुत सारे छोटे देशों को ताकत मिलती है. बड़े और ताकतवर देशों की गलत हरकतों के खिलाफ यह एकजुटता बड़ा काम भी कर जाती है. पर सत्य इसके विपरीत ही खड़ा दिखता है. इन बड़े बड़े देशों की एकजुटता के बावजूद सीरिया की हालत बदतर हो गयी. अफगानिस्तान रूढ़िवादी कट्टर तालिबान के कब्जे में आ गया. रूस और यूक्रेन युद्ध एक लम्बे समय से जारी है. दोनों देशों में तबाही मची हुई है. लाखों की संख्या में दोनों ही देशों में आम नागरिक बेघर, बदहवास घूम रहा है. भव्य इमारतें जमींदोज हो रही हैं, लाखों लोग मारे जा चुके हैं. दोनों देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है. यही हालत इजरायल और फिलिस्तीन की है. अब ईरान पर भी बमबारी हो रही है. सब मरे कटे जा रहे हैं. ड्रोन बमों के धमाकों से धरती थर्रा रही है. मगर बड़े बड़े देशों की खेमेबाजी जारी है. संगठनों के बड़े बड़े आयोजन हो रहे हैं, भाषणबाजियां हो रही हैं, सर्वसम्मति बन रही है, मेजें थपथपा कर एक दूसरे को शाबाशी दी जा रही है.