बीते साल 9 और 10 सितंबर, 2023 को 18वें G20 शिखर सम्मेलन का आयोजन भारत में हुआ. यह पहली बार था जब भारत ने G20 देशों के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की. हर साल एक नए देश को अपनी बारी आने पर मेजबानी करने का मौका मिलता है. विश्व को एक परिवार बताने वाली मेजबान सरकार देश के अंदर बांटो और राज करो की नीति पर चलती है, यह बात भी दुनिया की निगाहों से छुपी हुई नहीं थी. लिहाजा मोदी सरकार द्वारा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का राग अलापना हास्यास्पद ही था.
अबकी साल 22 अक्टूबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने रूस के कजान शहर गए. गोदी मीडिया में इसकी खूब चर्चा हुई. प्रधानमंत्री मोदी के रूस में हुए भव्य आदरसत्कार का भी खूब गुणगान हुआ. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनकी फोटो भी खूब वायरल हुई. इस साल ब्रिक्स समिट में मूल सदस्यों के साथ ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हुए हैं.
दरअसल दुनिया में अनेक देशों ने मिल कर अपने अपने कुछ खेमे बना रखे हैं एक जैसी राय रखने वाले देशों के यह खेमे एक दूसरे के साथ निवेश, व्यापार, रक्षा,हथियार सप्लाई आदि में सहयोग करने की बात कहते हैं. इन संगठनों के बारे में कहा जाता है कि अनेक देशों की इस एकजुटता से बहुत सारे छोटे देशों को ताकत मिलती है. बड़े और ताकतवर देशों की गलत हरकतों के खिलाफ यह एकजुटता बड़ा काम भी कर जाती है. पर सत्य इसके विपरीत ही खड़ा दिखता है. इन बड़े बड़े देशों की एकजुटता के बावजूद सीरिया की हालत बदतर हो गयी. अफगानिस्तान रूढ़िवादी कट्टर तालिबान के कब्जे में आ गया. रूस और यूक्रेन युद्ध एक लम्बे समय से जारी है. दोनों देशों में तबाही मची हुई है. लाखों की संख्या में दोनों ही देशों में आम नागरिक बेघर, बदहवास घूम रहा है. भव्य इमारतें जमींदोज हो रही हैं, लाखों लोग मारे जा चुके हैं. दोनों देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है. यही हालत इजरायल और फिलिस्तीन की है. अब ईरान पर भी बमबारी हो रही है. सब मरे कटे जा रहे हैं. ड्रोन बमों के धमाकों से धरती थर्रा रही है. मगर बड़े बड़े देशों की खेमेबाजी जारी है. संगठनों के बड़े बड़े आयोजन हो रहे हैं, भाषणबाजियां हो रही हैं, सर्वसम्मति बन रही है, मेजें थपथपा कर एक दूसरे को शाबाशी दी जा रही है.
आखिर ये ब्रिक्स, यूएन, जी 20, आसियान, सार्क, नाटो जैसे संगठन क्या हैं? यह संगठन क्यों बनाये गए? किन देशों ने बनाये और अनेक देशों में इनके सम्मेलन क्यों आयोजित होते हैं? क्या इस प्रकार के आयोजन इन देशों की जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाते हैं? उनकी प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाते हैं? उन्हें गरीबी और भुखमरी से निकालते हैं? बेरोजगारी को कम करते हैं? इन तमाम सवालों के जवाब भारत के परिपेक्ष्य में तो ‘न’ ही हैं. बीते दस सालों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये-दिन किसी ना किस सम्मेलन-आयोजन के न्योते पर रहते हैं, लेकिन उनकी इन यात्राओं से देश की जनता को रत्ती भर भी फायदा नहीं है.
सरकार भले कहती रहे कि हम दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी बनने जा रहे हैं, विश्वगुरु बनने जा रहे हैं. मगर सच्चाई यह है कि टॉप-10 जीडीपी वाले देश में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय भारत की है. 90% भारतीय हर महीने 20 हजार रुपये से भी कम कमाते हैं. 80 करोड़ लोगों को सरकार खुद हर महीने 5 किलो मुफ्त अनाज बांट रही है. यानी सरकार भी यह मानती है कि देश की 80 करोड़ आबादी इतनी गरीब है कि वह अपने लिए दो वक्त का भोजन नहीं जुटा सकती.
टोटल जीडीपी कैलकुलेट करने के मौजूदा तरीकों से भले ही हम तीसरी और चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था के टैग का जश्न मना लें, लेकिन सही मायने में यह ग्रोथ का पैमाना नहीं हो सकता है. भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र 2.14 लाख रुपये है. दुनिया में छोटा सा कतर सबसे अमीर देश है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 1,24,930 डॉलर यानी 96 लाख रुपए से ज्यादा है. जर्मनी और कनाडा की प्रति व्यक्ति आय भारत से 20 गुना ज्यादा है. यूके की 18 गुना ज्यादा है, फ्रांस की प्रति व्यक्ति आय भारत से 17 गुना ज्यादा है. जापान और इटली की औसतन प्रति व्यक्ति आय 14 गुना अधिक है. भारत जिस चीन को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है, उसकी भी प्रति व्यक्ति आय भारत से 5 गुना ज्यादा और ब्राजील की 4 गुना ज्यादा है. चीन और ब्राजील ब्रिक्स के प्रथम सदस्यों में भारत और रूस के साथ के हैं.
अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय भारत से 31 गुना ज्यादा है. अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के चौथाई तक पहुंचने में ही भारत को कम से कम 75 साल लगेंगे. वहीं चीन इस स्थिति में दस साल में ही पहुंच जाएगा. अगर 2047 तक भारत विकसित देशों के श्रेणी में आना चाहता है तो उसके लिए प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाकर 13000 डॉलर के ऊपर ले जाना होगा.
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक आज भारत की 10 फीसदी आबादी का राष्ट्र की 77 फीसदी संपत्ति पर कब्जा है. राज्यों के बीच भी प्रति व्यक्ति आय में बहुत अधिक फर्क है. गोवा के लोग ज्यादा कमा रहे हैं और यूपी-बिहार के बहुत कम. इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में आर्थिक असमानता की खाई कितनी बड़ी हो चुकी है.
भारत में भुखमरी की स्थिति बहुत गंभीर है. वर्ष 2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 27.3 अंक के साथ भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है, जो भूख की ‘गंभीर’ श्रेणी कहलाती है. भुखमरी के मामले में भारत, अपने पड़ोसी देशों – पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भी गिरा हुआ है. विश्व स्तर पर बड़े बड़े संगठनों का सदस्य होने के बावजूद भारत की जनता में खुशहाली के लक्षण ढूंढने से भी नहीं मिलते हैं. अलबत्ता फौरन टूर पर जाते हुए प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर ख़ुशी टपकती जरूर दिखाई देती है.
हाँ, इतने वर्षों में हमने एक उपलब्धि जरूर हासिल की है. वह यह कि हम दुनियाभर में कम पगार पर मजदूर भेजने वाले देश के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं. भारत के हिंदू मुस्लिम नागरिकों की बहुत बड़ी संख्या मुस्लिम देशों में मजदूरी करती है. भारत युद्धग्रस्त देशों में अपने मजदूर और कारीगर बड़ी संख्या में भेज रहा है. मोदी कार्यकाल में दुनिया को यह संदेश जरूर गया है कि अगर सस्ता मजदूर चाहिए तो भारत उपलब्ध करवा देगा. शर्मनाक !
हालत यह है कि हमारे देश की आतंरिक हालत ऐसी जर्जर है कि उच्च आमदनी वाले दस फ़ीसदी अमीर भी अब इस देश में रहना नहीं चाहते हैं. बड़ी संख्या में अमीर तबका देश छोड़ कर विदेशों में बस रहा है. वे अपने बच्चों को विदेशी स्कूलों-यूनिवर्सिटियों में पढ़ाते हैं क्योंकि तमाम संगठनों का सदस्य होने के बाद भी भारत में शिक्षा व्यवस्था और रोजगार देने की क्षमता बदहाल है.
ऐसे में सवाल उठता है कि विश्व स्तर पर दर्जनों संगठनों का सदस्य बन कर हम क्यों अपना पैसा उनकी मेजबानी या मेहमाननवाजी पर उड़ा रहे हैं? हमारे प्रतिनिधि करोड़ों-अरबों रुपये विदेश यात्राओं पर क्यों फूंक रहे हैं जब आमजनता को उससे कुछ नहीं मिल रहा है?
उल्लेखनीय है कि आज दुनिया भर में 300 से ज्यादा अंतर-सरकारी संगठन (IGO) हैं. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) सबसे बड़ा और सबसे जाना पहचाना अंतर-सरकारी संगठन हैं. अंतर-सरकारी संगठन (IGO) शब्द का अर्थ संधि द्वारा निर्मित एक इकाई से है, जिसमें दो या दो से अधिक राष्ट्र शामिल होते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे सामान्य हित के मुद्दों पर सद्भावनापूर्वक काम करते हैं. आइये एक नज़र इस प्रकार के संगठनों के कामों और उनकी संख्या पर डालते हैं –
संयुक्त राष्ट्र (यूएन)
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करना, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना और राष्ट्रों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करने का केंद्र बनना है. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भविष्य के विश्व युद्धों को रोकने के उद्देश्य से की गई थी
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में विश्व बैंक समूह, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम, यूनेस्को और यूनिसेफ सहित कई विशेष एजेंसियां, फंड और कार्यक्रम भी शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र, इसके अधिकारियों और इसकी एजेंसियों ने कई नोबेल शांति पुरस्कार जीते हैं.
अपनी स्थापना के समय, संयुक्त राष्ट्र के 51 सदस्य देश थे परन्तु 2024 तक आते आते इसमें 193 देश हो गए हैं, जबकि 2 गैर-सदस्य ऑब्जर्वर देश – वेटिकन और फिलिस्तीन हैं.
उस समय का गुलाम भारत, संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक है. भारत, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों का समर्थन करता है. संयुक्त राष्ट्र में भारत के वर्तमान स्थायी प्रतिनिधि टी. एस. तिरुमूर्ति हैं. वे न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त हैं.
ब्रिक्स
ब्रिक्स पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक अंतरराष्ट्रीय समूह है. इसके घटक राष्ट्र ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका हैं. इन्हीं देशों के अंग्रेज़ी में नाम के प्रथमाक्षरों B, R, I, C व S से मिलकर इस समूह का यह नामकरण हुआ है. इसकी स्थापना 2009 में हुई. इस साल यानी 2024 में ब्रिक्स समिट में ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे चार नए देश इसमें शामिल हुए हैं.
मूलतः 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल किए जाने से पहले इसे “ब्रिक” के नाम से जाना जाता था. रूस को छोड़कर ब्रिक्स के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगीकृत देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है. ये राष्ट्र क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. एक अनुमान के अनुसार ये राष्ट्र संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार में 4 खरब अमेरिकी डॉलर का योगदान करते हैं. इन राष्ट्रों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 15 खरब अमेरिकी डॉलर का है. ब्रिक्स देशों का वैश्विक जीडीपी में 23% का योगदान है तथा यह संगठन विश्व व्यापार के लगभग 18% हिस्से में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसे R-5 के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इन पांचों देशों की मुद्रा का नाम ‘R’ से शुरू होता है.
ब्रिक्स (BRICS) संगठन पूरी दुनिया की जनसंख्या का 41% हिस्सेदारी रखता है. अर्थात आप यह भी कह सकते हैं कि पूरी दुनिया में जितनी भी जनसंख्या है उसका 41% सिर्फ ब्रिक्स देशों में है. विश्व व्यापार में ब्रिक्स देशों की साझेदारी 16% के करीब है. इस प्रकार वर्तमान समय में ब्रिक्स का विश्व में काफी महत्व है.
आज के समय में ब्रिक्स की इतनी ज्यादा चर्चा इसलिए भी है क्योंकि इससे जितने भी देश जुड़े हुए हैं कहा जा रहा है कि उनके क्षेत्रीय कार्यों में ब्रिक्स अपना महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है. ब्रिक्स का प्रथम शिखर सम्मेलन 16 जून 2009 में येकातेरिनबर्ग, रूस में हुआ था. सम्मेलन का मुख्य मुद्दा वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार और वित्तीय संस्थानों में सुधार का था. इसके बाद प्रत्येक वर्ष इन 5 देशों के सर्वोच्च नेताओं के द्वारा इस सम्मेलन को आयोजित किया जाता है. भारत ने भी 9 सितंबर 2021 को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी डिजिटल मोड में की थी.
ब्रिक्स संगठन के मुख्य तीन स्तंभ हैं – राजनीति और सुरक्षा, आर्थिक और वित्तीय संस्कृति और लोगों का आदान-प्रदान. अब तक ब्रिक्स देशों ने कई प्रतिस्पर्धी पहलों को लागू किया है, जैसे कि न्यू डेवलपमेंट बैंक, ब्रिक्स कंटिंजेंट रिजर्व अरेंजमेंट, ब्रिक्स पे, ब्रिक्स संयुक्त सांख्यिकीय प्रकाशन और ब्रिक्स बैसक रिजर्व मुद्रा आदि. ब्रिक्स के उद्देश्य हैं – सदस्य देशों में बच्चों की शिक्षा में सुधार करना, विकसित और विकासशील देशों के बीच में सामंजस्य बनाए रखना, आपसी देशों के अंदर राजनीतिक व्यवहार बना के रखना, दूसरे देशों के साथ आर्थिक मदद और सुरक्षा का व्यवहार बना कर रखना, देशों के अंदर विवादों का निपटारा करना एवं एक दूसरे देश की संस्कृति की रक्षा करना.
भारत को इससे कोई लाभ मिल रहा है कहना मुश्किल है क्योंकि इसमें दबदबा तो चीन और रूस का ही है. हम तो केवल 142 करोड़ की आबादी वाले देश होने के कारण यहां हैं. इस बार भी कोई ऐसा फैसला नहीं हुआ जिससे देश की जनता को कोई लाभ होता हो. ब्रिक्स देश भारतीयों को वीजा फ्री प्रवेश तक नहीं देते. एक दूसरे से सामान खरीदने पर कोई कस्टम ड्यूटी की छूट नहीं है. पांचों मूल देशों में वैचारिक स्वतन्त्रता न के बराबर है, भारत समेत. रूस भारत से मजदूरों को बुला रहा है पर उन्हें फिर यूक्रेन युद्ध में मोर्चे पर भेज रहा है. चीन भारत में अपना सामान बेच तो रहा है पर हमसे खरीद नहीं रहा. इतने सालों में भारत चीन सीमा विवाद भी पूरी तरह हल नहीं हुआ तो आखिर यह बैठकें किस काम की?
जी-20
साल 1999 में जब एशिया में आर्थिक संकट आया था, तब तमाम देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों ने मिलकर एक फोरम बनाने की सोची, जहाँ पर ग्लोबल इकनॉमिक और फाइनेंशियल मुद्दों पर चर्चा की जा सके. जी 20 की स्थापना सितम्बर 1999 में कई विश्व आर्थिक संकटों के जवाब में की गई थी. ग्रुप ऑफ़ ट्वेंटी (G20) में 19 देश और दो क्षेत्रीय निकाय शामिल हैं. वर्ष 2008 से यह वर्ष में कम से कम एक बार आयोजित होती है, जिसमें प्रत्येक सदस्य के सरकार या राज्य के प्रमुख, वित्त मंत्री या विदेश मंत्री और अन्य उच्च रैंकिंग वाले अधिकारी शामिल होते हैं. इनके अलावा अन्य देशों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों को भी शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है. जी 20 की पहली बैठक साल 2008 में अमेरिका के वाशिंगटन में हुई. अब तक इसकी कुल 17 बैठकें हो चुकी हैं. 2023 में इसकी 18वीं बैठक की मेजबानी भारत ने की थी.
वैसे तो इस ग्रुप का फोकस अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करना रहा है, लेकिन वक़्त के साथ इसका दायरा बढ़ता रहा. इसमें टिकाऊ विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार विरोधी जैसे मुद्दे भी जुड़ते चले गए.
यह आर्थिक रूप से ताकतवर देशों का एक ग्रुप है. इसलिए यहां लिए गए फ़ैसलों से इंटरनेशनल ट्रेड काफ़ी हद तक प्रभावित हो सकता है. इसकी हर बैठक के अंत में जी 20 देशों के साझा बयान पर आम सहमति भी बनाई जाती है. इससे भारत को सीधा कोई लाभ नहीं मिला है, यह भी सिर्फ राष्ट्राध्यक्षों के मिलने का क्लब बन गया है.
नाटो
नाटो का मतलब है उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन. इसकी शुरुआत 12 देशों के बीच एक गठबंधन के रूप में हुई थी, जिसका उद्देश्य सामूहिक रूप से दुनिया भर में सुरक्षा प्रदान करना और शांति बनाए रखना था. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन की स्थापना 1949 में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के विरुद्ध सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए नाटो की स्थापना की गई थी. नाटो पहला शांति कालीन सैन्य गठबंधन था जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका ने पश्चिमी गोलार्ध के बाहर प्रवेश किया था.
रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने. क्यों? आखिर रूस को क्या एतराज है? दरअसल रूस और यूक्रेन में लम्बे समय से जंग छिड़ी हुई है. अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बनता है तो पश्चिमी ताकतें रूस के खिलाफ जंग लड़ने में यूक्रेन की मदद करेंगी. इसलिए रूस लगातार इस कोशिश में है कि यूक्रेन नाटो का सदस्य ना बनने पाए. नाटो के 32 वर्तमान सदस्य देश हैं और एक पर हमला सब पर संधि के अनुसार माना जाता है. नाटो के तीन सदस्य परमाणु हथियार वाले देश हैं : फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका. रूस को सबसे ज्यादा ख़तरा अमेरिका से है.
नाटो का गठन 4 अप्रैल 1949 को यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 12 देशों द्वारा किया गया था. तब से, विस्तार के 10 दौर (1952, 1955, 1982, 1999, 2004, 2009, 2017, 2020, 2023 और 2024) के माध्यम से 20 और देश नाटो में शामिल हो चुके हैं. आज नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 32 देशों का एक राजनीतिक और सैन्य गठबंधन है. नाटो यानी उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन का मुख्य उद्देश्य, राजनीतिक और सैन्य तरीकों से मित्र देशों की सुरक्षा और आजादी की रक्षा करना है. व्लादिमीर पुतिन का रूस इस संगठन से बहुत डरता है वरना वह कब का यूक्रेन सहित कई देशों पर कब्जा कर चुका होता.
आसियान
आसियान की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में हुई थी. आसियान के सदस्य देशों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम शामिल हैं, जो शुरू में साम्यवाद के प्रसार के खिलाफ एकजुट हुए थे. पिछले कुछ वर्षों में, आसियान ने आर्थिक, सुरक्षा और सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियों का समाधान करते हुए क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ाने का प्रयास किया है.
आसियान का पहला उद्देश्य सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को कायम रखने का है. इसके साथ ही इसकी कोशिश होती है कि झगड़ों का शांतिपूर्ण निपटारा हो. इस संगठन का सेक्रेटरी जनरल, आसियान द्वारा पारित किए प्रस्तावों को लागू करवाने और कार्य में सहयोग प्रदान करने का काम करता है. आसियान और भारत सिर्फ सामरिक सहयोगी ही नहीं है बल्कि उन्होनें आपसी व्यापार को भी बढ़ाया है. भारत पूर्ण सदस्य बन जाता तो कस्टम ड्यूटी में बहुत छूट मिलती जो अब सीमित ही है. यह एक प्रभावी संगठन है.
सार्क
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है. इसकी स्थापना 1985 में हुई थी और इसका मुख्यालय काठमांडू, नेपाल में है. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) दक्षिण एशिया के आठ देशों से मिलकर बना एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका लक्ष्य आर्थिक विकास और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना है.
सार्क के आठ सदस्य देश हैं – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका. भारत ने विभिन्न सार्क पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया है जिसका उद्देश्य अंतर-क्षेत्रीय व्यापार, संपर्क और लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करना रहा है. पूर्व में ब्रिटिश कोलोनी रहे ये देश आपस में झगड़ने के अलावा कुछ नहीं करते और सार्क निरर्थक सा हो गया है. भारत पाकिस्तान की दोस्ती तो अब कल्पना से परे है.
एशियाई-अफ्रीकी कानूनी परामर्शदात्री संगठन (AALCO)
एएएलसीओ की स्थापना 15 नवंबर 1956 में प्रसिद्ध “बांडुंग” सम्मेलन के परिणामस्वरूप हुई थी, जिसके बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन का विकास हुआ. यह एशिया और अफ्रीका का प्रतिनिधित्व करने वाला एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है और 1980 में इसे संयुक्त राष्ट्र में स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा मिला था. इसके संस्थापक सदस्य भारत, इंडोनेशिया, इराक, जापान, म्यांमार, श्रीलंका, मिस्र और सीरियाई अरब गणराज्य हैं. एएएलसीसी का मुख्यालय नई दिल्ली में है.
राष्ट्रों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण मंच है: इसके उद्देश्यों में अंतरराष्ट्रीय कानून के क्षेत्र में सहयोग और समान चिंता के कानूनी मामलों में एशियाई-अफ्रीकी सहयोग के लिए एक मंच के रूप में कार्य करना शामिल है. संगठन कानूनी निहितार्थों के साथ समान चिंता के मामलों पर सूचना और विचारों के आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहित करता है और उन्हें संयुक्त राष्ट्र, अन्य संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के समक्ष प्रस्तुत करता है. क्या इस संगठन के सामने कभी भारत की न्याय व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता, जल्दी न्याय प्रदान करने की जरूरत, न्यायविदों की संख्या बढ़ाए जाने के सम्बन्ध में विचार-विमर्श हुआ? क्या इस संगठन का सक्रिय सदस्य होने और नई दिल्ली में इसके आयोजनों के बावजूद हमारी न्याय व्यवस्था में कोई सुधार हुआ या आम नागरिक को न्याय मिलने में आसानी हुई? कभी नहीं. फिर ऐसे संगठनों का औचित्य क्या है?
साठ वर्ष से अधिक समय पहले जब एएएलसीओ की स्थापना की गई थी, तब कौन सोच सकता था कि भविष्य में इसकी भूमिका एक ऐसे मंच के रूप में होगी, जहां वन्यजीवों की अंतर-महाद्वीपीय तस्करी पर भी बात होगी. इस संगठन की बैठकों और कार्यक्रमों में अफ्रीका और एशिया के बीच संबंधों को और मजबूत करने एवं वन्यजीव अपराध से निपटने की दिशा में विचार विमर्श होता है. बावजूद इसके भारत के जंगलों में वन्य जीवों की हत्या, जिसमें हाथी, गेंडे, बाघ और शेर निरंतर ख़त्म होते गए, शिकारियों द्वारा इसकदर मारे गए कि अब तो यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं,
एडीबी – एशियाई विकास बैंक
एडीबी की परिकल्पना 1960 के दशक के प्रारंभ में एक ऐसे वित्तीय संस्थान के रूप में की गई थी, जिसका चरित्र एशियाई होगा और जो विश्व के सबसे गरीब क्षेत्रों में आर्थिक विकास और सहयोग को बढ़ावा देगा. एशियाई विकास बैंक (एडीबी) एक बहुपक्षीय विकास वित्तपोषण संस्था है जो एशिया और प्रशांत क्षेत्र में गरीबी को कम करने के लिए समर्पित है.
एशियाई विकास बैंक ( एडीबी ) 19 दिसंबर 1966 को स्थापित किया गया, जिसका मुख्यालय 6 एडीबी एवेन्यू, मंडलुयोंग, मेट्रो मनीला 1550, फिलीपींस में है. ताकेशी वतनबे एडीबी के पहले अध्यक्ष थे. 1960 के दशक के दौरान एडीबी ने अपनी अधिकांश सहायता सदस्य देशों के खाद्य उत्पादन और ग्रामीण विकास पर केंद्रित की.
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) विकासशील सदस्य देशों में ऐसी परियोजनाओं का समर्थन करता है जो आर्थिक और विकास संबंधी प्रभाव पैदा करती हैं, तथा इन्हें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संचालन, परामर्श सेवाओं और ज्ञान समर्थन के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है.
एडीबी का उद्देश्य विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए ऋण और तकनीकी सहायता प्रदान करके लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है. इसके प्रतिनिधि कार्यालय पूरे विश्व में हैं. बैंक में लगभग 2,400 कर्मचारी हैं, जो इसके 67 प्रतिनिधि देशों में से 55 देशों से हैं और आधे से भी अधिक कर्मचारी फिलीपींस के रहने वाले हैं.
एडीबी विश्व के पूंजी बाजारों में बांड जारी करके अपना वित्तपोषण प्राप्त करता है. यह सदस्य देशों के योगदान, ऋण परिचालन से अर्जित आय और ऋणों के पुनर्भुगतान पर भी निर्भर करता है. एडीबी अपनी ‘रणनीति 2030’ के तहत एशिया और प्रशांत क्षेत्र की बदलती जरूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की ओर अग्रसर है. रणनीति 2030 के तहत, एडीबी समृद्ध, समावेशी, लचीले और टिकाऊ एशिया और प्रशांत क्षेत्र को हासिल करने के लिए अपने दृष्टिकोण का विस्तार कर रहा है, साथ ही अत्यधिक गरीबी को खत्म करने के अपने प्रयासों को जारी रखे है. हाल ही में एडीबी ने उत्तराखंड, भारत में जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए 200 मिलियन डॉलर के ऋण को मंजूरी दी है. इसके अलावा भी कई परियोजनाओं, बिजली आपूर्ति और तटीय सुरक्षा के लिए मोदी सरकार ने एडीबी से ऋण लिया है.
एएफडीबी – अफ्रीकी विकास बैंक (गैर-क्षेत्रीय सदस्य)
अफ़्रीकी विकास बैंक समूह (एएफडीबी), जिसे फ्रेंच में बीएडी के रूप में भी जाना जाता है, एक बहुपक्षीय विकास वित्त संस्थान है, जिसका मुख्यालय सितंबर 2014 से अबिदजान, आइवरी कोस्ट में स्थापित है. एएफडीबी अफ्रीकी सरकारों और क्षेत्रीय सदस्य देशों (आरएमसी) में निवेश करने वाली निजी कंपनियों के लिए एक वित्तीय प्रदाता है. अफ़्रीकी विकास बैंक की स्थापना 1964 में अफ़्रीकी एकता संगठन द्वारा की गई थी. अफ़्रीकी विकास बैंक में तीन संस्थाएं शामिल हैं – अफ़्रीकी विकास बैंक, अफ़्रीकी विकास कोष और नाइजीरिया ट्रस्ट फंड.
शुरू में केवल अफ्रीकी देश ही बैंक में शामिल हो पाए थे, लेकिन 1982 में इसने गैर-अफ्रीकी देशों को भी प्रवेश की अनुमति दे दी. एएफडीबी के अनुसार, गैर-क्षेत्रीय सदस्यों को शामिल करने से कम ब्याज वाले ऋण, अतिरिक्त बैंकिंग विशेषज्ञता और क्षेत्र के बाहर के बाजारों तक पहुँच के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान करने में मदद मिली.
अफ्रीकी विकास बैंक का मिशन, क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान देने वाली परियोजनाओं और कार्यक्रमों में सार्वजनिक और निजी पूंजी के निवेश को बढ़ावा देकर, गरीबी से लड़ना और महाद्वीप पर जीवन की स्थिति में सुधार लाना है.
31 दिसंबर 2023 तक, अफ्रीकी विकास बैंक की अधिकृत पूंजी 81 सदस्य देशों द्वारा खरीदी गई है, जिसमें 54 स्वतंत्र अफ्रीकी देश और 27 गैर-अफ्रीकी देश शामिल हैं. बैंक की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 250 मिलियन यूनिट्स ऑफ अकाउंट (यूए) थी.
भारत और अफ्रीकी विकास बैंक समूह के बीच साझेदारी 40 वर्षों से अधिक समय से है. भारत 1982 में अफ्रीकी विकास निधि का सदस्य बना और 1983 में अफ्रीकी विकास बैंक का सदस्य बना. भारत के पास बैंक के 14,813 शेयर हैं, जो कुल शेयरों का केवल 0.224% है. मई 2017 में, बैंक ने जयपुर, भारत में अपनी 52वीं वार्षिक बैठक आयोजित की गई.
इन चर्चित संगठनों के अलावा भी दर्जनों ऐसे संगठन हैं जो विश्व भर में गरीबी, शिक्षा, कुपोषण, बेरोजगारी, वित्त, व्यापार, रक्षा, सुरक्षा, हथियार, शान्ति जैसे मुद्दों पर काम कर रहे हैं. (देखें बॉक्स) विश्व में कुल 195 देश हैं, जो किसी ना किसी खेमे से जुड़े हैं. अनेक देश अनेक खेमों से जुड़े हैं. बावजूद इसके ना दुनिया से भूख, गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी दूर हो रही है, ना लड़ाईयां थम रही हैं. दशकों से धरती बम धमाकों से थर्रा रही है. निर्दोष लोगों के खून से मिट्टी लाल हो रही है.
अन्य देशों के मुकाबले भारत की स्थिति ज्यादा खराब है. 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के बच्चों में कमजोरी की दर 18.7 प्रतिशत है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. यह अति कुपोषण को दर्शाती है. वहीं, भारत में अल्पपोषण की दर 16.6 प्रतिशत और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.1 प्रतिशत है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 से 24 वर्ष उम्र की महिलाओं में एनीमिया यानी खून की कमी 58.1 प्रतिशत है.
भारत में महिलाओं के साथ होने वाले अपराध का ग्राफ भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है. भारत में एक दिन में औसतन 87 रेप की घटनाएं होती हैं. राजधानी दिल्ली में एक दिन में 5.6 रेप के मामले सामने आते हैं. (स्रोत दिल्ली पुलिस)
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सालों के मुकाबले रेप के मामलों में 13.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. राजस्थान (6342), मध्यप्रदेश (2947), उत्तर प्रदेश (2845) के बाद दिल्ली (1252) में रेप की घटनाएं सबसे ज्यादा हैं. सामाजिक कलंक, प्रतिशोध के डर और कानूनी व्यवस्था में विश्वास की कमी के कारण बहुतेरे अपराध रिपोर्ट नहीं किए जाते. इसके अलावा, घरेलू हिंसा, उत्पीड़न और तस्करी महिला सुरक्षा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है.
शान्ति के लिए भले दुनियाभर के राष्ट्र प्रतिबद्ध हों, भले उन्होंने शान्ति के लिए बड़े बड़े संगठन बना रखे हों, भले इन संगठनों के बड़ी बड़ी बैठकें, सेमिनार और आयोजन विभिन्न देशों में लगातार हो रहे हो, मगर धरती अशांत है और मानव जीवन हर देश में असुरक्षित है. इस अशांति के मूल में है धर्म. प्राचीन काल से जितनी भी लड़ाईयां या जंग होती आईं या आज जितने भी देशों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ है उसके मूल में धर्म ही है. हर धर्म खुद को दूसरे से श्रेष्ठ मान कर दूसरे को ख़त्म करने पर उतारू है. यानी एक धर्म के लोग दूसरे धर्म को मानने वाले लोगों को मार देना चाहते हैं. ऐसी है धर्म की शिक्षा.
धर्म ने सिर्फ हिंसा को पैदा किया. धर्म ने सबसे बड़ा नुकसान औरतों का किया है. धर्म ने औरत को आदमी के अंगूठे के नीचे दबा कर रखा और उसके विकास को प्रतिबंधित किया. धर्म ने सारे कर्मकांडों का बोझ औरत के सिर पर रख कर उसे ढोने के लिए मजबूर किया. धर्म ने औरत को बच्चा जनने वाली मशीन और सेवा करने वाली नौकरानी से अधिक हैसियत नहीं दी. उसे आर्थिक, मानसिक, शारीरिक रूप से पुरुष पर निर्भर बनाये रखा. धर्म के कारण ही भारत सहित तमाम देशों की अधिकांश औरतें नारकीय जीवन जीने के लिए बाध्य हैं.
धर्म ने मनुष्य और मनुष्य के बीच खाई पैदा की. धर्म ने ऊंच नीच जैसे भेद पैदा किये. धर्म ने कर्बला की जंग में इंसानी लहू से जमीन तर की और धर्म ने ही महाभारत करवाई. आज धर्म रूस-यूक्रेन और इजरायल-फिलिस्तीन के बीच इंसानों को काट रहा है. धर्म के खिलाफ आज तक विश्व के किसी देश ने कोई संगठन खड़ा करने की हिम्मत नहीं की क्योंकि धर्म की आड़ में ही सारे कुकर्मों को अंजाम दिया जा सकता है. इन संगठनों में मौजूद तमाम देश समय समय पर इसी धर्म का सहारा लेकर विनाश का तांडव करते हैं. धर्म का नाम लेकर दूसरे की जमीन पर कब्जा किया जाता है. धर्म का नाम लेकर अपना वर्चस्व बढ़ाया जाता है. धर्म का नाम लेकर दुनिया का बाप बना जा सकता है. इसलिए तमाम समस्याओं की जड़ इस धर्म पर कुठाराघात करने के लिए कोई तैयार नहीं है.
खेमेबाजी, और बस खेमेबाजी
एजी – ऑस्ट्रेलिया समूह
– 1985 में स्थापित
– कुल 48 सदस्य देश
– भारत जनवरी 2018 में इस समूह में शामिल हुआ
– इसकी पहली बैठक सितंबर 1989 में ब्रुसेल्स, बेल्जियम में हुई थी
बिम्सटेक
– जून 1997 को स्थापित
– भारत 6 अन्य देशों के साथ इसका संस्थापक सदस्य है
– मुख्यालय ढाका, बांग्लादेश में है
बीआईएस – अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक
– मई 1930 को स्थापित
– भारतीय रिज़र्व बैंक 60 अन्य देशों के कुल केंद्रीय बैंकों में से एक सदस्य है
– मुख्यालय बासेल, स्विट्जरलैंड में
CoN – राष्ट्रमंडल राष्ट्र
– 11 दिसंबर 1931 को स्थापित
– भारत 53 अन्य देशों के साथ इसका सदस्य है
– मुख्यालय लंदन, यूके में है
सर्न – यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन
– 1954 में स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा में
– भारत सर्न का सहयोगी सदस्य है
सीपी – कोलम्बो योजना
– 1950 में स्थापित
– मुख्यालय कोलंबो, श्रीलंका में है
– भारत कम्युनिस्ट पार्टी का संस्थापक सदस्य है.
ईएएस – पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन
– 1950 में स्थापित
– मुख्यालय कोलंबो, श्रीलंका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
एफएओ – संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन
– 16 अक्टूबर 1945 को स्थापित
– मुख्यालय रोम, इटली में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
जी-15 – 15 का समूह
– सितंबर 1989 में स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
जी-77 – 77 का समूह
– 15 जून 1964 को स्थापित
– मुख्यालय न्यूयॉर्क में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईएईए – अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी
– 1957 में स्थापित
– मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईबीआरडी – अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (विश्व बैंक)
– 1944 में स्थापित
– मुख्यालय वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईसीएओ – अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन
– 1944 में स्थापित
– मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है
– भारत एक निर्वाचित सदस्य है.
आईसीसी – अंतर्राष्ट्रीय चैंबर ऑफ कॉमर्स
– 1919 में स्थापित
– मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में
– भारत इसका सदस्य है.
आईडीए – अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ
– 26 सितम्बर 1950 को स्थापित
– मुख्यालय वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईईए – अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी
– नवंबर 1974 में स्थापित
– मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में
– भारत इसका सहयोगी सदस्य है.
आईएफएडी – कृषि विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष
– दिसंबर 1977 में स्थापित
– मुख्यालय रोम, इटली में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईएफसी – अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम
– जुलाई 1956 में स्थापित
– मुख्यालय वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईएलओ – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
– 1919 में स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईएमएफ – अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
– दिसंबर 1945 में स्थापित
– मुख्यालय वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है
आईएमओ – अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन
– मार्च 1948 में स्थापित
– मुख्यालय लंदन, यूके में है
– भारत एक निर्वाचित सदस्य है
आईएमएसओ – अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल सैटेलाइट संगठन
– 1999 में स्थापित
– मुख्यालय लंदन, यूके में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है
इंटरपोल – अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन
– 1923 में स्थापित
– मुख्यालय ल्योन, फ्रांस में है
– भारत 1949 से इसका सदस्य है
आईओसी – अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति
– जून 1894 में स्थापित
– मुख्यालय लॉज़ेन, स्विट्जरलैंड में स्थित है
– भारत इसका सदस्य है।
आईपीईईसी – ऊर्जा दक्षता सहयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी
– 2009 में स्थापित
– मुख्यालय पेरिस, फ्रांस में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
आईएसओ – अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन
– फरवरी 1947 में स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा, स्विटजरलैंड में
– भारत इसका सदस्य है।
ITSO – अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार उपग्रह संगठन
– 1964 में स्थापित
– मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में
– भारत इसका सदस्य है.
आईटीयू – अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ
– 17 मई 1864 को स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में
– भारत इसका सक्रिय सदस्य है।
आईटीयूसी – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ परिसंघ
– नवंबर 2006 में स्थापित
– मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में
– भारत इसका सदस्य है.
एमटीसीआर मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था
– अप्रैल 1987 में स्थापित
– जापान में मुख्यालय
– भारत जून 2016 से इसका सक्रिय सदस्य है
एनएएम – गुटनिरपेक्ष आंदोलन
– 1961 में स्थापित
– मुख्यालय जकार्ता, इंडोनेशिया में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
ओपीसीडब्ल्यू – रासायनिक हथियार निषेध संगठन
– अप्रैल 1997 में स्थापित
– मुख्यालय हेग, नीदरलैंड में है
– भारत इसका सक्रिय सदस्य है.
पीसीए – स्थायी मध्यस्थता न्यायालय
– 1899 में स्थापित
– मुख्यालय हेग, नीदरलैंड में है
– भारत एक पार्टी है
पीआईएफ – प्रशांत द्वीप फोरम (भागीदार)
– 1971 में स्थापित
– मुख्यालय सुवा, फिजी में
– भारत एक साझेदार है
एसएसीईपी – दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम
– 1982 में स्थापित
– मुख्यालय कोलंबो, श्रीलंका में है
– भारत इसका सक्रिय सदस्य है.
एससीओ – शंघाई सहयोग संगठन (सदस्य)
– अप्रैल 1996 में स्थापित
– मुख्यालय बीजिंग, चीन में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
यूएनएड्स – एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम
– जुलाई 1994 में स्थापित
– मुख्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
यूनेस्को – संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन
– नवंबर 1946 में स्थापित
– मुख्यालय लंदन, ब्रिटेन में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.
डब्ल्यूएचओ विश्व स्वास्थ्य संगठन
– अप्रैल 1948 में स्थापित
– मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में
– भारत इसका संस्थापक सदस्य है.