मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 35 किलोमीटर दूर रायसेन जिले का एक कस्बा है, उदयपुरा. इस कस्बे की गिनती पिछड़े इलाकों में शुमार होती है. हालांकि आधुनिकता और नए गजेट्स उदयपुरा भी पहुंच चुके हैं, लेकिन वे चीजें इस कस्बे के पिछड़ेपन की पहचान मिटाने में नाकाम साबित हुई हैं.
उदयपुरा की राजनैतिक पहचान ठाकुर रामपाल सिंह हैं, जो इन दिनों राज्य के लोक निर्माण विभाग के मंत्री हैं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले जानते हैं कि जिन इनेगिने नेताओं से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के घरेलू संबंध हैं उन में से रामपाल सिंह भी हैं. विदिशा रायसेन संसदीय क्षेत्र से लगभग एक साथ राजनैतिक सफर शुरू करने वाले ये दोनों नेता एकदूसरे पर आंख बंद कर के विश्वास करते हैं. साल 2006 में विदिशा लोकसभा सीट से उपचुनाव की वजह से शिवराज सिंह चौहान की जिद ने रामपाल सिंह को ही उम्मीदवार बनाया गया था.
हालांकि रामपाल सिंह तब इतने बड़े और लोकप्रिय नेता नहीं थे, लेकिन उन्होंने भाजपा का परंपरागत गढ़ ढहने नहीं दिया था और भाजपा व शिवराज सिंह चौहान का भरोसा कायम रखा था. 2013 के विधानसभा चुनाव में वे रायसेन की ही सिलवानी सीट से जीते तो शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें कैबिनेट में शामिल किया था.
यह रामपाल सिंह की खूबी ही कही जाएगी कि कभी उन का नाम किसी विवाद में नहीं आया. वे आमतौर पर शांत रहने वाले नेता हैं. उन की पहुंच सीधे पार्टी आलाकमान तक है. भोपाल के शिवाजी नगर के लिंक रोड स्थित उन के सरकारी बंगले पर दूसरे मंत्रियों जितनी भीड़भाड़ नहीं दिखती. जो 2-4 लोग दिखते भी हैं वे उन के क्षेत्र उदयपुरा के भाजपा कार्यकर्ता या फिर मतदाता होते हैं.
रामपाल सिंह का पैतृक घर उदयपुरा के लक्ष्मी चौक मोहल्ले में है. वह पैतृक घर किसी चुनाव के वक्त या महत्त्वपूर्ण तीज त्यौहारों पर जा पाते हैं. जब भी वे उदयपुरा में होते हैं तो सभी से खासतौर पर अड़ोसियोंपड़ोसियों से मिल कर उन की कुशलक्षेम पूछते हैं. ऐसा सिर्फ नेतागिरि के लिए नहीं, बल्कि खुद के मिलनसार स्वभाव की वजह से होता है. शायद इसी विनम्रता के चलते उन की छवि अडि़यल और अक्खड़ ठाकुर की नहीं बन पाई.
रामपाल सिंह के घर के ठीक सामने एक किसान चंदनसिंह रघुवंशी का घर है. पड़ोसी होने के नाते दोनों में पारिवारिक संबंध थे. मंत्री बनने के बाद रामपाल सिंह का अधिकांश वक्त भोपाल में ही बीतता था, लिहाजा अपने क्षेत्र की बात तो दूर मोहल्ले और घर की जानकारियां भी उन्हें पहले की तरह नहीं रहती थीं.
उन्हें तो यह भी नहीं मालूम था कि उन के मंझले बेटे गिरजेश प्रताप सिंह ने चोरीछिपे चंदनसिंह की बेटी प्रीति से शादी कर ली है. 28 वर्षीय प्रीति खासी खूबसूरत थी और 10वीं क्लास से आगे नहीं पढ़ पाई थी. यही हाल गिरजेश का था, उस की भी पढ़ाईलिखाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. दसवीं के बाद उस ने भी पढ़ाई से नाता तोड़ लिया था.
बीती 17 मार्च को सोशल मीडिया पर एक सनसनीखेज पोस्ट तेजी से वायरल हुई, जिस में लिखा था कि मंत्री रामपाल सिंह की बहू ने घर में फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली है. इस पोस्ट ने हर किसी को चौंकाया, जिस में लिखी इबारत का सार यह था कि सुबह तड़के 5 बजे रामपाल सिंह की बहू प्रीति रघुवंशी ने उदयपुरा स्थित अपने घर में फांसीं लगा कर जान दे दी है.
इस वायरल पोस्ट में प्रीति का एक फोटो भी संलग्न था, जिस में वह एक मंदिर के प्रांगण में रेलिंग से टिकी हुई दिखाई दे रही थी. सफेद गुलाबी रंग का सूट पहने प्रीति के चेहरे पर सौम्य मुसकराहट थी और वह फोटो में काफी खुश नजर आ रही थी.
जिस ने भी इस पोस्ट को देखा, पढ़ा उन में से हर किसी को पूरा किस्सा तो समझ नहीं आया, लेकिन इस पोस्ट को अधिकतर लोगों ने फारवर्ड किया. खुद रामपाल सिंह सहित उन के जानने वाले हैरान थे कि गिरजेश की तो अभी शादी ही नहीं हुई है, फिर प्रीति को क्यों उस की पत्नी बताया जा रहा है. जबकि पोस्ट में साफ तौर पर प्रीति को गिरजेश की पत्नी बताया गया था.
रामपाल सिंह के बेहद नजदीकी और रिश्तेदार ही यह जानते थे कि 2 दिन पहले ही गिरजेश की सगाई बुंदेलखंड इलाके के टीकमगढ़ जिले से 60 किलोमीटर दूर खरियापुर में एक किले में हुई, फिर प्रीति उस की पत्नी कैसे कहीं जा रही है.
17 मार्च की सुबह करीब 6 बजे प्रीति की मां रामाबाई जब उस के कमरे में पहुंची तो वहां का नजारा देख कर सन्न रह गईं. उन की लाडली बेटी फांसी के फंदे पर झूल रही थी. उन्होंने शोर मचाया तो वे घर के सारे सदस्य प्रीति के कमरे की तरफ दौड़े.
रामपाल सिंह के परिवार की तरह चंदन सिंह का परिवार भी संयुक्त है. सभी ने मिल कर आहिस्ता से प्रीति को नीचे उतारा और उस की नब्ज टटोली तो वह बंद हो चुकी थी. कुछ देर सोचविचार के बाद प्रीति को उदयपुरा के अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उस के मृत होने की पुष्टि कर दी.
सुबह 8 बजे से ले कर 10 बजे तक क्या हुआ, यह किसी को कुछ खास नहीं मालूम, लेकिन जो होने जा रहा था वह किसी हाहाकार से कम नहीं था. प्रीति की मौत की पुष्टि हो जाने के बाद एकाएक ही न केवल उदयपुरा, रायसेन और भोपाल बल्कि राज्यभर का पारा चढ़ते सूरज के साथ गरमा उठा था.
अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. इसी भीड़ के सामने प्रीति ने पिता ने यह रहस्योद्घाटन किया कि प्रीति की शादी पिछले साल 20 जून को मंत्री रामपाल सिंह के बेटे गिरजेश के साथ भोपाल के जवाहर चौक स्थित आर्य समाज मंदिर में हुई थी.
चंदन सिंह के इस रहस्योद्घाटन या स्वीकारोक्ति कुछ भी कह लें से मामले ने सियासी तूल भी पकड़ लिया. बवाल उस वक्त और मचा जब अपनी शिकायत उन्होंने उदयपुरा थाने में दर्ज कराई.
इस शिकायत से बहुत कुछ के साथ एक प्रेमकथा भी सामने आई. साथ ही सामने आई एक कस्बाई युवती की बेबसी की कहानी, जिस में उस के प्रेमी ने पहले उस के साथ चोरीछिपे शादी की और फिर मांबाप को दबाव में ले कर दूसरी जगह भी सगाई कर डाली. यानी प्यार में धोखा भी दिया.
प्रीति और गिरजेश बचपन से एकदूसरे को जानते थे. उन की यह पहचान जवानी आतेआते कब प्यार में बदल गई. उन्हें पता ही नहीं चला. एकदूसरे को दिल दे चुके थे और साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं.
चूंकि गांव में खुलेआम मिलनाजुलना जोखिम वाली बात थी, इसलिए दोनों अकसर धार्मिक आयोजनों में मिलते थे और वहां भक्तों की आंखों में धूल झोंक कर प्यार भरी बातें करते रहते थे. गांव देहातों में प्रेमीप्रेमिकाओं के मिलने को लिए मौल, पार्क या कौफी हाउस तो होते नहीं, इसलिए उन्हें खेत खलिहान या बाग बगीचे में जगह ढूंढनी होती है.
धार्मिक या शादी ब्याह जैसे सामूहिक आयोजन भी उन की आंखों की प्यास बुझाने का जरिया बन जाते हैं. प्रीति और गिरजेश का भी यही हाल था.
इस बात का अहसास गिरजेश को भी था और प्रीति को भी कि घर वाले आसानी से नहीं मानेंगे. लेकिन दोनों ही प्रीत में पूरी तरह डूब चुके थे. इसलिए उन की स्थिति असमंजस भरी थी. प्यारप्यार में गिरजेश तो प्रीति से शादी करने का वादा कर चुका था. प्रीति का भी यही हाल था, वह गिरजेश को अपना सब कुछ मान चुकी थी.
गिरजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि दिल की बात मांबाप से कर सके. लेकिन उस में प्रीति से चोरीछिपे शादी करने का साहस न जाने कहां से आ गया था. जून के दूसरे हफ्ते में दोनों योजना बना कर भोपाल आए. गिरजेश का तो भोपाल आनाजाना लगा रहता था, लेकिन प्रीति इलाज के बहाने अपने भाई को साथ ले आई थी.
14 जून को दोनों नेहरू नगर स्थित आर्य समाज मंदिर गए. वहां उन्होंने मंदिर के प्रभारी प्रमोद वर्मा से शादी करने के लिए जानकारी ली कि क्याक्या औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी और कौनकौन से कागज लगेंगे.
प्रमोद वर्मा के लिए यह हैरानी की बात नहीं थी, क्योंकि रोज कोई न कोई युगल आ कर ऐसी जानकारी हासिल करता था. बाद में उन में से कई शादी के लिए आते थे और भी शादी के ख्वाहिशमंद जोड़ों को बता दिया जाता था कि उन के फोटो, शपथ पत्र और आयु संबंधी प्रमाण पत्र के अलावा 2 गवाहों की जरूरत पड़ेगी.
यह जानकारी ले कर प्रीति और गिरजेश लौट आए और फिर 20 जून को जरूरी कागजात ले कर वहां पहुंच गए. दोनों के साथ नजदीकी रिश्तेदार या दोस्त भी थे. 20 जून की दोपहर को आर्य समाज पद्धति से दोनों की शादी हो गई और उन्हें शादी का प्रमाण पत्र भी जारी हो गया. इस से प्रीति और गिरजेश ने सुकून की सांस ली कि बिना किसी अड़ंगे के शादी संपन्न हो गई.
जुदा होते वक्त दोनों ने भविष्य के बारे में कुछ जरूरी बातें कीं और वापस अपने घर लौट गए. आर्य समाज मंदिर में गिरजेश ने अपना भोपाल का पता लिखवाया था.
चोरीछिपे शादी तो कर ली पर दोनों को बाद की दुश्वारियों का अंदाजा नहीं था. अलबत्ता यह बात दोनों जानते थे कि ठाकुर सनातनी उसूलों के चलते औलाद की बलि तो चढ़ा सकते हैं पर उसूलों से कोई समझौता नहीं कर सकते.
बहरहाल शादी के 8 महीने तक दोनों अलगअलग रह कर एकदूसरे की जुदाई में तड़पते रहे. लेकिन गिरजेश की हिम्मत अपने मंत्री पिता को सच बताने की नहीं हुई. उलट इस के प्रीति के घर वालों को दूसरे दिन ही मंदिर में शादी की बात पता चल गई थी. लेकिन वे चुप थे, क्योंकि गिरजेश ने प्रीति से वादा किया हुआ था कि वह जल्द ही घर वालों को मना लेगा और उसे ससम्मान बहू की तरह घर ले जाएगा.
दुखी और गुस्साए चंदन सिंह उदयपुरा के अस्पताल में 17 मार्च को बेटी की लाश के पास खड़े हो कर यही आरोप लगा रहे थे, पर उन के निशाने पर गिरजेश नहीं बल्कि रामपाल सिंह थे. जाहिर है कि वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि रामपाल सिंह को अपने बेटे की चोरीछिपे की गई शादी की खबर नहीं होगी.
चंदन सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि शादी के बाद गिरजेश प्रीति को यह कह कर मायके छोड़ गया था कि वह जल्द ही अपने मांबाप को राजी कर लेगा. प्रीति को उस ने तब तक खामोश रहने के लिए कहा था. रामपाल सिंह ने गिरजेश की सगाई कहीं और तय कर दी तो प्रीति मानसिक तौर पर परेशान हो उठी थी. खुदकुशी के एक दिन पहले उस ने फोन कर पति से बात भी की थी.
चंदन सिंह के मुताबिक शादी से नाखुश मंत्री रामपाल सिंह और उन का पूरा परिवार प्रीति को प्रताडि़त कर रहा था और उन से भी यह कहा जा रहा था कि वे कुछ ले दे कर प्रीति की शादी कहीं और कर दें. रामपाल सिंह ने ही प्रीति की जिंदगी बरबाद की है.
इस बयान के साथ ही प्रीति का लिखा सुसाइड नोट भी सामने आया जो लाल स्याही से लिखा गया था. सुसाइड नोट की भाषा से ही पता चल रहा था कि प्रीति जिंदगी के कितने बड़े इम्तहान और कशमकश से गुजर रही थी और आत्महत्या के सिवाय उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.
हादसे की रात गिरजेश प्रीति के घर के सामने वाले मकान में ही था, सुबह होने के पहले ही वह गायब हुआ था. इस के बाद प्रीति ने गिरजेश को उस का दिया हुआ मोबाइल फोन और 25 तोले सोने के गहने वापस लौटा दिए थे.
अपने सुसाइड नोट में प्रीति ने बारबार अपनी बड़ी गलती के लिए मांबाप से माफी मांगी थी और चंदन सिंह से आग्रह किया था कि वे मम्मी से न लड़ें और न ही चाचा को कुछ कहें.
प्रीति गिरजेश को किस हद तक चाहती थी, इस का अंदाजा उस के सुसाइड नोट से लगता है क्योंकि उस ने कहीं और उस का जिक्र नहीं किया था. तय है इसलिए कि वह गिरजेश की मजबूरी या बेवफाई कुछ भी कह लें समझ गई थी. वह चाहती तो गिरजेश की बेवफाई को अपनी मौत का जिम्मेदार ठहरा सकती थी.
चंदन सिंह की शिकायत के बाद भी पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया तो राज्य का रघुवंशी समाज आक्रोशित हो उठा. मध्य प्रदेश में गुना, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद, बैतूल, नरसिंहपुर, जबलपुर और छिंदवाड़ा जिलों में रघुवंशी बहुतायत में हैं. प्रीति की मौत की खबर सुन कर लोग उदयपुरा पहुंचने लगे थे.
अब मोहब्बत पर सियासत होने लगी थी. भोपाल में कांग्रेसियों ने धरने प्रदर्शन शुरू कर दिए थे. कांग्रेसियों ने शिवराज सिंह मंत्रीमंडल के एक बेदाग छवि वाले मंत्री को घेरने का सुनहरा मौका हाथ से जाने नहीं दिया.
18 मार्च को बड़ी दिक्कत उस वक्त खड़ी हो गई, जब चंदन सिंह रघुवंशी और उन के परिजन इस जिद पर अड़ गए कि रामपाल सिंह प्रीति का शव लें और गिरजेश पति की जिम्मेदारी निभाते उस का अंतिम संस्कार करे. एफआईआर दर्ज न किए जाने पर रघुवंशी समाज ने भी आंदोलन की चेतावनी दे डाली थी और जगहजगह रामपाल सिंह के पुतले भी फूंके जा रहे थे.
दूसरी तमाम जातियों की तरह रघुवंशी जाति का भी अपना गौरवशाली इतिहास और अतीत है, जो इच्छावाकु से शुरू हो कर राम के बेटों लवकुश पर खत्म होता है. रघुवंशी समुदाय बड़े गर्व से खुद को राजा रघु और राम का वंशज बताता है.
यहां असल विवाद यही था जिसे हर कोई समझा कि असल लड़ाई जाति और ठसक की थी. रामपाल सिंह क्षत्रिय राजपूत हैं. हालांकि रसूख और हैसियत में रघुवंशी किसी से कम नहीं बैठते, जिन के बारे में इतिहास में यह दिलचस्प बात दर्ज है कि रघुवंशी जमींदार होते थे और वे खुद खेती नहीं करते थे, बल्कि करवाते थे.
अतीत के कई विवाद और जातिगत पूर्वाग्रह व किस्से कहानियां साकार हो रहे थे. रघुवंशी समुदाय ने जब साफ कह दिया कि मृतका प्रीति को रामपाल बहू मानें तभी उस का अंतिम संस्कार होगा तो अब बारी रामपाल सिंह की भी थी. वे या तो सर झुका कर इस मांग को मान लें या फिर अड़ कर भाजपा और शिवराज सिंह के लिए सिरदर्द खड़ा करें.
जब उन से इस बारे में सवाल किया गया तो वे साफ तौर पर बोले कि बेटे ने शादी कर ली है, यह उन्हें नहीं पता. गिरजेश सामने क्यों नहीं आ रहा, इस सवाल पर रामपाल सिंह का जवाब बड़ा मासूमियत भरा था कि उन की उस से बातचीत हुई है और वह साफ कह रहा है कि उसे फंसाया जा रहा है.
रामपाल सिंह ने अपने बचाव में यह भी कहा कि विपक्ष उन्हें और उन के परिवार को जानबूझ कर इस मामले में घसीट रहा है. यह बयान कितना खोखला है चालाकी भरा था, यह जल्द ही उजागर भी हो गया.
राज्य में माहौल गर्मा उठा था और 18 मार्च को ही उदयपुरा कस्बा पुलिस छावनी में तब्दील हो गया. किसी अनहोनी की आशंका से कोई इनकार नहीं कर रहा था.
कांग्रेस के ताबड़तोड़ हमलों से घबराए भाजपाई सब कुछ जानतेसमझते हुए भी रामपाल सिंह के बचाव को अपना धर्म या अधर्म जो भी समझ लें, निभा रहे थे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहते पल्ला झाड़ लिया था कि प्रीति रघुवंशी की मौत की जांच चल रही है और जल्द ही सभी तथ्य सामने आ जाएंगे.
गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने भी रामपाल सिंह का बचाव करते हुए कहा कि सुसाइड नोट में पीडि़ता ने किसी का भी नाम नहीं लिखा है. जांच चल रही है और जांच के बाद दोषियों पर काररवाई की जाएगी.
इधर उदयपुरा के अस्पताल जहां प्रीति का शव रखा हुआ था में भी खासा बवाल मचा हुआ था. इस दिन प्रीति के परिवार वालों ने 3 प्रार्थना पत्र प्रशासन को दिए. इन प्रार्थनापत्रों में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी की मांग के अलावा रामपाल सिंह से सुरक्षा की मांग की गई थी कि अगर भविष्य में उन को कुछ हुआ तो उस का जिम्मेदार रामपाल सिंह को माना जाए.
रायसेन की कलेक्टर और एसपी पूरी कोशिश कर रही थीं कि जैसे भी हो प्रीति का अंतिम संस्कार हो जाए. पर यह आसान काम नहीं था, क्योंकि रघुवंशी समाज रामपाल सिंह को मंत्री पद से हटाने की मांग करने लगा था. इधर भोपाल में भी कांग्रेसियों की तरफ से बयानबाजी जारी थी. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का आरोप था कि पूरी सरकार रामपाल सिंह और उन के बेटे को बचाने में लगी हुई है, जबकि प्रथम दृष्टया प्रीति की मौत के जिम्मेदार ये दोनों ही हैं.
रायसेन की कलेक्टर भावना वालिंबे निष्पक्ष जांच की बात करती रहीं तो एसपी किरणलता केरकेड़ा ने साफ तौर पर कहा कि मामले में अभी आरोपों के प्रमाण नहीं आए हैं, जांच जारी है.
रायसेन से भोपाल के आर्य समाज मंदिर गई पुलिस टीम को मंदिर संचालक प्रमोद वर्मा ने प्रीति और गिरजेश की शादी का प्रमाणपत्र सौंपा, जिस की प्रति भी वायरल हुई तो लोगों के दिल से यह शक जाता रहा कि इन दोनों की शादी वास्तव में हुई थी भी या नहीं.
दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता करने वालों के साथसाथ भड़काने वालों की फौज भी इकट्ठा हो गई थी. एक पक्ष के लोगों की राय यह थी कि बगैर एफआईआर दर्ज हुए अंतिम संस्कार हुआ तो सारा मामला बेदम हो जाएगा.
मामला चूंकि ठाकुर रामपाल सिंह का था, इसलिए प्रशासन एफआईआर दर्ज करने की हिम्मत या हिमाकत नहीं कर पा रहा था. अब तक जो हुआ था, उस में गिरजेश की बुजदिली और रामपाल सिंह की चालाकी साफ दिखाई दे रही थी. इस पर यह दोहा सटीक बैठ रहा था कि समरथ को नहीं दोष गुसाईं.
प्रीति अगर जिंदा होती तो जरूर ये नजारे देख और चर्चे सुन कर शर्म से मर जाती. राजनैतिक उठापटक के बीच कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के दफ्तरों में बतियाते कार्यकर्ता अपनाअपना हिसाबकिताब पेश कर रहे थे कि जिस सिलवानी विधानसभा से रामपाल सिंह जीतते रहे हैं, उस में रघुवंशी मतदाताओं की तादाद 40 हजार से ज्यादा है.
ऐसे में अब भाजपा उन्हें सिलवानी तो क्या विदिशा रायसेन की किसी भी विधानसभा सीट से नहीं उतार सकती, क्योंकि हर जगह रघुवंशी वोट खासी तादाद में हैं, जो अब उन्हें नहीं मिलेंगे.
प्रीति के बौखलाए परिजनों ने उत्तेजना और आक्रोश में रामपाल सिंह के खिलाफ कुछ सच्चे और कुछ झूठे आरोप लगा दिए थे, पर इस के बाद क्या होगा यह सोच कर वे घबरा भी उठे थे.
अपना दबाव बढ़ाने की गरज से ये लोग दाह संस्कार से मना कर रहे थे, लेकिन स्थिति उस वक्त और अप्रिय हो उठी जब प्रीति के भाइयों ने उस का शव नैशनल हाइवे पर रख कर चक्का जाम करने की धौंस दे डाली.
बात में और दम लाने के लिए प्रीति के चाचा जयसिंह ने खुलासा किया कि प्रीति और गिरजेश की शादी में प्रीति का छोटा भाई नीरज भी मौजूद था. उस ने शादी के फोटो खींचने की कोशिश की थी, लेकिन गिरजेश के साथियों ने उसे फोटो नहीं खींचने दिए थे. शादी का प्रमाणपत्र भी प्रीति को नहीं दिया गया था, इसलिए फरवरी में वे लोग प्रमाणपत्र लेने गए थे.
प्रीति की मां रामाबाई ने नया रहस्योद्घाटन यह किया कि उन्हें शादी की जानकारी 21 जून को ही हो गई थी. कुछ दिन बाद दोनों परिवारों की मीटिंग भी हुई थी, जिस में गिरजेश की मां शशिप्रभा ने दोटूक कहा था कि वे प्रीति को अपनी बहू नहीं मानेंगी और जरूरत पड़ी तो गिरजेश को गोली मार देंगी.
इन सब बातों के बीच अंतिम संस्कार खटाई में पड़ता नजर आया तो समाज के कुछ बुजुर्ग आगे आए और सभी को समझाया. फलस्वरूप प्रीति के घर वाले क्रियाकर्म करने के लिए तैयार हुए. सूरज ढलने के कुछ देर पहले प्रीति को मुखाग्नि उस के भाई ने दी. प्रीति को बाकायदा दुलहन की तरह सजा कर, सुहागन की तरह दुनिया से विदा किया गया.
अब तक ये बातें बहुत आम हो चुकी थीं कि प्रीति और गिरजेश का प्रेमप्रसंग बीते 6 सालों से चल रहा था और उदयपुरा का बच्चाबच्चा जानता था कि दोनों शादी कर चुके हैं. लेकिन जाने क्यों बेटे की शादी की खबर दुनिया भर की खबर रखने वाले रामपाल सिंह को नहीं थी.
अब तक रामपाल सिंह की खासी छीछालेदर हो चुकी थी. व्यक्तिगत के बजाए हर कोई राजनैतिक नफानुकसान देखने और आंकने लगा था. कांग्रेस ने जगहजगह घेराव कर विधानसभा में हल्ला किया और विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का ऐलान कर डाला, क्योंकि वे सदन में इस मामले पर बहस की इजाजत नहीं दे रहे थे.
एक बार दूसरे दिन फिर से पाला बदलते रामपाल सिंह ने चौंका देने वाला यह बयान दे डाला कि वे प्रीति को बहू का दर्जा देने को तैयार हैं, क्योंकि बेटे गिरजेश ने उस से शादी की थी.
इतना ही नहीं पत्नी के अंतिम संस्कार तक घर में दुबके बैठे गिरजेश को उन्होंने प्रीति की खारी उठाने भी भेज दिया. खारी का कार्यक्रम मुखाग्नि के तीसरे दिन होता है. कुछ लोग इसे तीजा भी कहते हैं. यह और बात है कि गिरजेश के साथ करीब 60 लोगों की फौज थी.
प्रीति के अंतिम संस्कार के बाद उस का यह डर सच साबित हुआ कि उस की मौत के बाद उस के घर वालों को परेशान किया जा सकता है. चंदन सिंह एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश करते रहे और पुलिस जांच की बात कहते उन्हें टालती रही. अब नेता तो नेता आम लोग भी शिवराज सिंह को कोसने लगे कि वे बडे़ फख्र से खुद को मामा तो कहलवाते हैं, लेकिन प्रीति नाम की भांजी को इंसाफ नहीं दिला पा रहे हैं.
23 मार्च को जब चंदन सिंह को बयान देने के लिए पुलिस ने भोपाल बुलाया तो उन से ऐसेऐसे बेतुके सवाल पूछे गए कि उन की तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. प्रीति मांग भरती थी या नहीं, मंगलसूत्र और दूसरे सुहाग चिन्ह पहनती थी या नहीं, जैसे सवालों से जाहिर हो गया कि सत्ता पक्ष अब अपनी पर उतारू हो आया है.
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस ने गिरजेश या किसी और के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की थी. चंदनसिंह का परिवार हैरानपरेशान और घबराया हुआ था और उदयपुरा में खुद को असुरक्षित बता रहा था. लेकिन उन की सुनवाई कहीं नहीं हो रही थी. कांग्रेसी पहले की तरहतरह से रामपाल सिंह और शिवराज सिंह चौहान पर हमलावर थे. राज्य में लड़कियां सुरक्षित कैसे हैं, इन नारों को तरहतरह से उछाला जा रहा था.
प्रीति की प्र्रेमकथा का अंत दुखद हुआ, लेकिन विवाद का नहीं जो इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा होगा और इस का असर भाजपा सरकार की छवि पर पड़ना अभी से तय नजर आ रहा है.
चोरीछिपे शादी करने का अंजाम अकसर खतरनाक साबित होता है और हर बार प्रेमी अपने वादे पर खरा उतरे यह जरूरी नहीं. प्रीति की मौत से ये बातें साबित हो रहीं हैं कि जो प्रेमी की बेवफाई पति की बुजदिली और ठाकुरों की ठसक का शिकार हुई.
देखा जाए तो इस मामले का बड़ा गुनहगार गिरजेश है, जिसे मंत्री पुत्र होने का फायदा मिला. प्रीति ने गिरजेश पर विश्वास किया था और एवज में विश्वासघात मिला तो उस ने मौत को गले लगा लिया.