किस तरह मध्य प्रदेश के एक शहर जबलपुर का दर्शनशास्त्र का प्राध्यापक अपनी भोगविलास की सांसारिक अभिलाषाओं को पूरा करने के लिए अपने ज्ञान व तर्कशक्ति के बल पर शब्दों का ऐसा चक्रव्यूह रचने में कामयाब रहा जिस में दुनियाभर के धुरंधर विद्वान भी बिना फंसे नहीं रह सके और किस तरह लोग उस के एक इशारे पर लाखों डौलर लुटाने के लिए तैयार हो जाते थे. किस तरह मामूली चप्पल, घड़ी व सूती पोशाक पहनने वाला व्यक्ति, हीरे जड़ी स्विस घडि़यां, महंगी राजसी पोशाक और महंगे गुच्ची चश्मे लगा कर दुनिया की सब से कीमती कार रौल्स रौयस में घूमने लगा. किस तरह प्राध्यापक से आचार्य रजनीश, फिर भगवान रजनीश और आखिर में ओशो नाम धारण करने वाला यह ढोंगी, लालची व कामुक इंसान भारत से ले कर अमेरिका तक में करोड़ोंअरबों रुपए की संपत्ति खड़ी करने में कामयाब रहा.

इस की एक ऐसी अजीबोगरीब दास्तान है जिस में किसी सस्ते सैक्स उपन्यासों जैसा रस तो है ही, साथ ही धर्म का घिनौना स्वरूप भी देखने को मिलता है. पूरी दास्तान का दिलचस्प विवरण रजनीश की एक पूर्व प्रेमिका आनंद शीला ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘डौंट किल हिम’ में पेश किया है.

शीला ने खुद यह स्वीकार किया है कि उस की दिलचस्पी रजनीश के आध्यात्मिक ज्ञान में नहीं थी, वह तो उन से प्यार करने लगी थी. रजनीश से अपनी पहली मुलाकात का विवरण इस गुजराती महिला ने कुछ इन शब्दों में दिया है :

‘‘मुंबई में हम अपने जिस चचेरे भाई के यहां ठहरा करते थे उस के सामने के ही बंगले में रजनीश रह रहे थे. सो, मेरी उन से मिलने की इच्छा जल्दी ही पूरी हो गई. यह मुलाकात मेरे जीवन की एक नई शुरुआत में बदल गई. उन की सचिव योग लक्ष्मी ने हमारा स्वागत किया. कुछ क्षण बाद ही मैं अपने पिता के साथ रजनीश के कमरे में जा पहुंची. उन्होंने मुसकराते हुए अपने हाथ फैला कर मेरा स्वागत किया. मैं आनंदविभोर हो कर सीधे उन के आलिंगन में समा गई थी, कुछ क्षण बाद उन्होंने अपना आलिंगन ढीला कर दिया, लेकिन मेरा हाथ फिर भी पकड़े रखा. मैं ने पूरे आत्मसमर्पण के भाव से अपना सिर उन की गोद में रखा हुआ था और अचानक मुझे लगा कि मैं उन के बिना एक पल भी नहीं रह सकती.’’

रजनीश ने शीला को अगले दिन दोपहर के ढाई बजे फिर मिलने के लिए बुलाया. शीला दूसरी मुलाकात के लिए बहुत बेचैन और उस ने बड़ी मुश्किल से रात बिस्तर पर करवटें बदलते हुए काटी. दूसरी मुलाकात में शीला ने रजनीश को बताया कि उस के लिए रात काटना मुश्किल हो गया था. इस पर रजनीश का उत्तर था, ‘‘शीला, यह बिलकुल सीधी बात है, तुम मेरे से प्यार करने लगी हो और मैं भी तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

यह शायद रजनीश का शीला जैसी अल्हड़ जवान लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसाने का एक हथकंडा था, जो वे अपने पास आने वाली हरेक जवान लड़की पर आजमाते रहे होंगे. और इस प्रकार रजनीश के प्रेम में पागल शीला सबकुछ छोड़छाड़ कर रजनीश की शिष्या बन गई थी. भगवा वस्त्र, गले में रजनीश के फोटो वाला लौकेट और रजनीश द्वारा दिया गया उस का नया नाम, ‘मां आनंद शीला’.

रजनीश के निकट पहुंचने के बाद शीला ने महसूस किया कि सैक्स के प्रति उन की किसी तरह की कोई वर्जना नहीं थी. इतना ही नहीं वे एक कुशल व्यापारी भी थे और आदमी की मूलभूत कमजोरियों का लाभ उठाना जानते थे. वे जल्दी ही मुंबई छोड़ कर पूना जा पहुंचे जहां उन्होंने अपने विदेशी शिष्यों के पैसे से कुछ ही समय में एक भव्य आश्रम खड़ा कर लिया. वे अपनी सभी योजनाओं के महत्त्व, उन के बाजार और उन की मांग से वाकिफ थे. पूना आश्रम कुछ इस तरह चलता था कि वहां आने वाले हरेक व्यक्ति को आश्रम की हरेक गतिविधि में भाग लेने के लिए एक निर्धारित फीस देनी पड़ती थी, यहां तक कि उन का प्रवचन सुनने के लिए भी टिकट खरीदना पड़ता था.

उन्होंने विदेशी मनोचिकित्सक को बुला कर थैरेपी के अलगअलग कोर्स शुरू कर दिए थे. हर व्यक्ति अपनी इच्छा या जरूरत के मुताबिक कोई भी कोर्स चुन सकता था. भारत के लिए इस तरह के कोर्स एक नई बात थी. इन कोर्स में सब से लोकप्रिय कोर्स था सामूहिक सैक्स वाला, जिस में लोग चीखनेचिल्लाने के अलावा सामूहिक रूप से यौन क्रीड़ा में लिप्त हो जाते थे.

इस कोर्स का केवल एक ही नियम था कि बिना एकदूसरे की सहमति के यौन क्रीड़ा में लिप्त नहीं हुआ जा सकता. कई बार इस कोर्स में भाग लेने वाले व्यक्ति चीखतेचिल्लाते थे और अकसर यौन क्रीड़ाएं हिंसक रूप धारण कर लेती थीं. सैक्स को रजनीश अनेक दुखों का कारण मानते थे और अपने शिष्यों के मन से सैक्स संबंधी सभी वर्जनाएं समाप्त कर के उन्हें खुली छूट दे देते थे.

आश्रम में सैक्स से जुड़ी सारी नैतिक मान्यताओं को खंडित कर दिया गया था और हरेक आश्रमवासी को किसी भी स्त्री के साथ सोने की खुली छूट थी बशर्ते वह स्त्री भी उस पुरुष के साथ सोने के लिए तैयार हो. यह एक तरह का हिप्पियों जैसा कल्चर था, जिस में सैक्स के साथसाथ मादक पदार्थों का सेवन भी जुड़ गया था. लेकिन, आश्रम में किसी लड़की का गर्भवती होना ठीक नहीं माना जाता था. अगर कोई स्त्री गर्भवती हो जाती थी तो रजनीश उसे गर्भपात करवाने की सलाह देते थे.

खुले यौनाचार का नतीजा यह हुआ कि 70 से 80 प्रतिशत आश्रमवासी यौन रोगों से पीडि़त हो गए, जिस के कारण बाद में कंडोम के इस्तेमाल पर बल दिया जाने लगा. अब रजनीश दुनियाभर में सैक्स गुरु के रूप में मशहूर हो गए थे और पूरी दुनिया से लोग कुछ समय के लिए अपने मानसिक तनाव दूर करने व एक व्यस्त जिंदगी से कुछ दिनों की नजात पाने के लिए रजनीश के पूना स्थित आश्रम में आने लगे थे. अब आश्रम में पैसे की कोई कमी नहीं रही थी और आसपास के सारे बंगले महंगे दामों पर खरीद कर उन्हें भी आश्रम में ही शामिल कर लिया गया था. इस के बावजूद आश्रम में रजनीश के शिष्यों की भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि इन तथाकथित संन्यासियों को बारीबारी से अलगअलग पारियों में सुलाना पड़ता था.

दिनबदिन अनुयायियों की बढ़ती भीड़ के कारण आश्रम में गंदगी बढ़ती जा रही थी और लोग बीमार पड़ने लगे थे. हालांकि आश्रम के भीतर ही गर्भपात व दूसरे इलाजों के लिए एक अस्पताल बना दिया गया था, लेकिन यह अस्पताल भी बीमारों की बढ़ती भीड़ के कारण छोटा पड़ने लगा था.

नौबत यहां तक आ पहुंची थी कि स्वयं रजनीश भी अकसर बीमार रहने लगे. दमा, मधुमेह, कमर का दर्द और रोज मिलने वाली मौत की धमकियों के कारण वे अब अपने कमरे तक ही सीमित रहने लगे थे. इन बीमारियों के कारण उन्हें अपने दैनिक प्रवचन बंद करने पड़े. उन के सभी करीबी शिष्य इस बात की कोशिश में पूरी तरह जुट गए कि किसी तरह उन्हें स्वस्थ रखा जा सके. परफ्यूम व सैंट की खुशबू से उन का दमा भड़क जाता था, इसलिए उन से मिलने वाले हरेक व्यक्ति पर कड़ी नजर रखी जाने लगी और अगर उन में से किसी ने परफ्यूम या सैंट लगाया होता था तो उसे रजनीश से मिलने की इजाजत नहीं दी जाती थी.

उक्त खुले यौनाचार के बारे में शीला ने अपनी पुस्तक में बड़ा दिलचस्प वर्णन किया है. उस ने जब एक संन्यासी से इस विषय में बात की तो उस ने बताया कि सुबह नाश्ते के बाद उसे एक लड़की भा गई थी, उस के बाद दोपहर के भोजन के बाद एक अन्य सुंदरी उस के पास चली आई, जबकि रात को वह एक तीसरी लड़की के साथ सोया था. इस पर शीला ने उस से व्यंग्य में कहा था, ‘तो हरेक खाने के बाद तुम्हें डैजर्ट (कुछ मीठा व्यंजन) खाने की आदत पड़ गई है.’

अब तक शीला रजनीश के कुछ गिनेचुने अंतरंग लोगों में शामिल हो गई थी और रजनीश ने आश्रम के संचालन की बहुत सारी जिम्मेदारियां भी उसे सौंप दी थीं. तभी ‘भगवान’ ने शीला के समक्ष अपना एक अनोखा कम्यून बनाने का सपना विस्तार से रखा, जिसे वे अमेरिका में स्थापित करना चाहते थे. शीला ने उत्तरपश्चिमी अमेरिका के औरेगौन नामक स्थान पर 65 हजार एकड़ में फैली एक निर्जन जगह खरीद कर उन के इस सपने को साकार कर दिखाया.

रजनीश शीला के इस काम से बहुत प्रभावित हुए थे और उसे इस कम्यून का सर्वेसर्वा बना दिया था. कम्यून के सभी कार्यक्रम ठीक ढंग से चलने लगे थे. रजनीश के सपने के आखिरी अध्याय की शुरुआत हो चुकी थी. रजनीश अकादमी और एक भव्य पुस्तकालय का काम भी शुरू हो चुका था. रजनीश के प्रवचनों की पुस्तकें यथासमय प्रकाशित होने लगी थीं, अलगअलग उत्सवों का आयोजन भी नियमित रूप से होने लगा था.

रजनीश दुनियाभर में सब से ज्यादा विवादास्पद व विलक्षण व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आ चुके थे. इन सब के साथ ही यूरोप में फैले रजनीश के विभिन्न केंद्र भी बहुत सुचारु रूप से चल रहे थे और आएदिन आमदनी के नएनए स्रोत खुलते जा रहे थे. लेकिन रजनीश अब उदास रहने लगे थे. वे अपने जीवन में एक नए रोमांच की तलाश में थे और इसीलिए एक दिन उन्होंने शीला को अपने पास बुला कर आदेश दिया कि वह

30 दिन के भीतर उन के व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए 30 नई रौल्स रौयस कारें खरीद ले. दुनियाभर के सामने अपनेआप को भगवान स्थापित करने वाला तथाकथित आध्यात्मिक व्यक्ति अचानक एक ऐसे नन्हे बालक में तबदील हो गया था जिसे अपने मनोरंजन के लिए हर दिन एक नए खिलौने की तलाश होती थी.

इन 30 महंगी कारों को खरीदने के लिए तब 40 लाख डौलर की जरूरत थी और इतना नकद पैसा कम्यून के पास नहीं था. तब तक करोड़ों डौलर उस बयाबान में रजनीश का स्वप्नलोक बनाने में खर्च हो चुके थे. इस के अलावा कम्यून के रोजमर्रा का खर्च चलाने के लिए भी हर महीने एक बड़ी रकम की जरूरत पड़ती थी. लेकिन इन सब समस्याओं के बावजूद रजनीश को नाराज नहीं किया जा सकता था, इसलिए शीला ने किसी तरह कुछ नई जुगाड़ें बैठा कर उन के लिए इन कारों का बंदोबस्त कर दिया था.

एक दिन भारी बारिश के कारण कम्यून के पास स्थित बांध टूट गया था और चारों तरफ बाढ़ जैसी परिस्थितियां बन गई थीं. इस बाढ़ ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया था, मानो वह पूरे कम्यून को ही निगल जाएगी. उस दिन रजनीश बहुत बुरे मूड में थे. उन का विवेक से झगड़ा हो गया था.

विवेक लंदन की वह औरत थी जो रजनीश के साथ इस तरह से रहती थी मानो वह उन की पत्नी ही हो. अकसर रजनीश दूसरी औरतों के साथ भी शारीरिक संबंध स्थापित करते थे और विवेक उस दिन उन के इसी व्यवहार के कारण भड़क गई थी. वह उन से झगड़ते समय उन्हें धमकी देती रहती थी कि वह उन्हें छोड़ कर चली जाएगी और सारी दुनिया को उन की सचाई बता कर उन्हें बरबाद कर देगी.

इस से पहले 1978 में पूना में भी वह किसी बात पर रजनीश से नाराज हो चुकी थी और अपनी स्त्रीसुलभ जलन के कारण उस ने उन से बदला लेने के लिए एक योजना बनाई थी. उस दिन वह बिना किसी कंडोम के उन के साथ सो गई और इस की वजह से वह गर्भवती हो गई. यह एक धर्मगुरु के लिए बहुत ही खतरनाक स्थिति थी, जो दुनिया की आंखों में रजनीश की प्रतिष्ठा को हमेशा के लिए धूल में मिला सकती थी. रजनीश को जब विवेक के गर्भवती होने की बात पता चली तो उन्होंने किसी तरह उस का गर्भपात करवा कर अपनेआप को इस स्थिति से बाहर निकाल लिया था.

उस भीषण बाढ़ वाले दिन कम्यून में भी किसी दूसरी औरत को ले कर रजनीश और विवेक का झगड़ा काफी बढ़ चुका था, इसलिए उन्होंने रेडियो पर संदेश भेज कर शीला को तुरंत अपने पास आने का आदेश दे डाला, क्योंकि वही उन्हें इस स्थिति से बाहर निकाल सकती थी. बाढ़ के कारण घोड़े के अलावा रजनीश के पास पहुंचने का और कोई साधन नहीं था.

जब शीला रजनीश के पास पहुंची तो उन्होंने उस से कहा कि वे विवेक से तंग आ चुके हैं और उस से छुटकारा पाना चाहते हैं. उन्होंने शीला को आदेश देते हुए कहा, ‘‘इस का लंदन का टिकट कटवा कर इसे तुरंत यहां से रवाना कर दो. अब मैं इसे एक मिनट के लिए भी बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

शीला यह कह कर वापस अपने निवास पर लौट आई कि वह जल्दी से जल्दी उन के आदेश का पालन करेगी, लेकिन अपने निवास पर पहुंचते ही उसे रजनीश का यह संदेश मिला कि विवेक ने अपने दुर्व्यवहार के लिए माफी मांग ली है और वे उसे एक मौका और देना चाहते हैं.

शीला ने अपनी पुस्तक में इस किस्से का वर्णन करते हुए लिखा है : ‘‘इस हादसे से मुझे कई सीख मिलीं. पहली तो यह कि रजनीश भी सामान्य लोगों जैसी भावनाओं व कमजोरियों वाले व्यक्ति हैं और दूसरी यह कि एक तथाकथित ब्रह्मज्ञानी पुरुष भी सैक्स के बिना नहीं रह सकता.’’

शीला और रजनीश का साथ ज्यादा दिनों तक नहीं रह सका. एक दिन वह रजनीश को छोड़ कर स्विट्जरलैंड चली गई और उस के जाते ही कम्यून न सिर्फ विवादों में घिरता गया, बल्कि धीरेधीरे उस का अस्तित्व ही समाप्त हो गया. रजनीश ने शीला पर आरोप लगाया कि वह कम्यून के साढ़े 5 करोड़ डौलर ले कर भाग गई थी, इस के विपरीत शीला का कहना था कि कम्यून तो कर्जे में दबा हुआ था और उस के पास इतना पैसा कभी रहा ही नहीं.

शीला के अनुसार, वह रजनीश के पागलपन की मांगें पूरी करतेकरते तंग आ गई थी और इसीलिए उसे व उस के कई निकट साथियों को कम्यून छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. लेकिन कम्यून छोड़ने से ही शीला को इस मामले से मुक्ति नहीं मिली. उस पर व आश्रम के अन्य लोगों पर अपने विरोधियों को जहर दे कर मारने, अमेरिका का वीजा हासिल करने के इरादे से रजनीश के दुनियाभर के अनुयायियों की फर्जी शादी का षड्यंत्र रचने जैसे कई आरोप लगाए गए. इतना ही नहीं, औरेगौन के सभी स्थानीय लोग सैक्स व ड्रग्स का केंद्र बने रजनीश के कम्यून के घोर विरोधी बन गए और वे उसे तुरंत बंद करने की मांग करने लगे.

उक्त सभी मामलों में शीला, रजनीश व उस के अन्य कई अनुयायियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हो गया. शीला ने आखिरकार उस इलाके के सलाद पार्लर के खाने में जहर मिलाने, रजनीश के व्यक्तिगत डाक्टर व औरेगौन के एक जज की हत्या का प्रयास करने के आरोपों को स्वीकार कर लिया. इस के फलस्वरूप उसे 30 महीने की जेल काटनी पड़ी.

शीला का अपने बचाव में कहना है कि अमेरिका में मुकदमा लड़ने के लिए 20 लाख डौलर की जरूरत थी, जो उस के पास नहीं थे. इस के अलावा कम्यून के सभी लोग रजनीश के कहने पर उस के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार हो गए थे, जिस की वजह से उसे सजा मिलनी निश्चित थी. ऐसे में उस के सामने अपराध स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा ही नहीं था.

रजनीश को भी अपराधी मानते हुए अदालत ने 4 लाख डौलर के जुर्माने व 10 साल की जेल की सजा सुनाई. बाद में उन्हें अमेरिका से निर्वासित कर दिया गया. रजनीश ने अमेरिका से अपने निजी हवाई जहाज में बैठ कर कई देशों में प्रवेश करने की कोशिश की लेकिन कोई भी देश उन्हें अपने यहां रखने के लिए तैयार नहीं हुआ. आखिर उन्हें मजबूर हो कर पुणे स्थित अपने आश्रम में ही लौटना पड़ा. भारत लौटने के कुछ समय बाद ही 1990 में उन का देहांत हो गया.

क्रिस्टोफर काल्डर, जो किसी समय रजनीश के पक्के भक्त थे, आज उन के सब से कट्टर विरोधी बन गए हैं. उन का कहना है, ‘‘आप अपनेआप से ही पूछिए कि आखिर रजनीश क्या चाहते थे और उन्हें क्या मिलता था? इस का एक ही उत्तर है, वे हमेशा अपने भक्तों से करोड़ों डौलर वसूल करने की फिराक में रहते थे. इस के अलावा उन की अन्य आवश्यकताओं में सर्वोच्च सत्ता, सुंदर लड़कियों का हरम व ड्रग्स की निरंतर सप्लाई शामिल है, रजनीश अपने चारों ओर दैविक रहस्यों का आडंबर खड़ा कर के अपने असीमित ज्ञान के बल पर लोगों को बेवकूफ बना रहे थे और किसी माफिया बौस की तरह की जिंदगी जी रहे थे. वे सीधे आप की आंखों में देख कर बिना पलक झपकाए किसी असत्य को सत्य साबित करने की क्षमता रखते थे और शायद इसी वजह से वे आर्थिक रूप से एक सफल गुरु बन सके.’’

काल्डर की ही तरह पश्चिमी आस्ट्रेलिया की जेन स्टौर्क 9 साल तक रजनीश की शिष्या रही और इस दौरान वह अपना नाम व पोशाक बदल कर मां शांति भद्र बन गई. वह रजनीश के पीछे इतनी पागल थी कि वह उन्हें खुश करने के लिए उन के कहने पर किसी की हत्या समेत कुछ भी कर सकती थी. अपनी नई पुस्तक ‘ब्रेकिंग द स्पैल’ में उस ने अपने रजनीश के साथ बिताए इन सालों का पूरा विवरण दिया है. उस ने लिखा है कि किस प्रकार वह इस कल्ट द्वारा निगल ली गई थी और जब उसे रजनीश के डाक्टर की हत्या की कोशिश करने के जुर्म में लंबी जेल की सजा सुनाई गई, तभी उस का यह मोह भंग हुआ.

जेन स्टौर्क ने गौर किया कि आश्रम के 87 प्रतिशत तथाकथित संन्यासी यौन रोगों से पीडि़त थे और जिन औरतों को गर्भ ठहर जाता था उन का रजनीश तुरंत गर्भपात करवा देते थे.

अमेरिका में अपना कम्यून बनाने के बाद रजनीश ने अपार संपत्ति एकत्र कर ली थी, जिसे उन्होंने सोने की घडि़यों, आभूषणों व 90 रौल्स रौयस पर बिना कुछ सोचेसमझे बरबाद कर दिया. जेन के शब्दों में, ‘‘रजनीश ने अमेरिका पहुंच कर वहां के तौरतरीके अपना लिए थे और वे संन्यासी से एक स्टार शोमैन में तबदील हो गए थे.’’

1985 में जब जेन की बेटी काइली का बलात्कार किया गया तो शुरू में उस ने सोचा कि लोग शायद रजनीश को बदनाम करने के लिए इस तरह की बातें कर रहे हैं, लेकिन फिर आखिरकार उसे हकीकत को स्वीकार करना पड़ा और एक दिन वह भी शीला की तरह कम्यून से भाग कर जरमनी चली गई. कम्यून छोड़ने के बाद उसे भी शीला की ही तरह गिरफ्तार कर लिया गया और आखिर हत्या करने की कोशिश के अपराध में जेल भेज दिया गया.

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