राफ्टिंग के रोमांचक खेल के जानलेवा पहलू को दरकिनार करने वाले यह भूल जाते हैं कि यह खेल सरकारी सुस्ती और बदइंतजामियों के चलते अब तक कइयों की जान ले चुका है.

सुबह का वक्त था. अखबार पढ़तेपढ़ते मेरी नजर एक खबर पर जा कर ठहर गई. खबर थी कि 4 छात्रों की मौत ऋषिकेश में गंगा नदी में डूबने से हो गई. वे नदी की डरावनी लहरों के बीच ‘रिवर राफ्टिंग’ करने के लिए गए थे. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन की मौत का न कोई जिम्मेदार था और न ही उन के शव ही बरामद हुए थे. मरने वाले छात्रों में विशाल, निश्चिंत, पंकज व प्रशांत शामिल थे. सभी हरियाणा प्रांत के रहने वाले थे. उन में से एक इंजीनियरिंग कालेज का छात्र था. मृतकों समेत 7 छात्रों का दल उत्तराखंड राज्य की पर्यटक नगरी ऋषिकेश घूमने के लिए गया था कि तभी 12 अप्रैल को यह हादसा घटित हो गया.

यह कोई पहला हादसा नहीं था. इस से पहले भी इस तरह के कई हादसे हो चुके हैं. हादसों की हकीकत व बेवजह जाती जान के पीछे की सचाई को जड़ से परखने की जिज्ञासा मुझे ऋषिकेश खींच कर ले गई. पता चला कि चारों छात्र पढ़ाई में होनहार थे. वे बीटेक की शिक्षा हासिल कर रहे थे. सामाजिक ढांचे व देश के भविष्य की बुनियाद ऐसे ही युवाओं के कंधों पर टिकी होती है.

मृतक छात्रों ने कलकल बहती गंगा नदी की उफनती लहरों के बीच दोस्तों के साथ रोमांचकारी राफ्टिंग करने का आनंद उठाया. बाद में डूबने से बचाने वाली लाइफ जैकेट को उतार कर नीम बीच के नजदीक 21 वर्षीय विशाल स्नान के लिए गंगा में उतर गया, तभी वह तेज बहाव की चपेट में आ कर बहने लगा तो उस ने शोर मचाया. साथी को डूबता देख कर उस के अन्य दोस्तों ने गंगा के तेज बहाव व गहराई का अंदाजा लगाए बिना उसे बचाने के लिए नदी में छलांग लगा दी. कुछ ही मिनटों में वे चारों डूब गए, और कहां गए यह उस वक्त किसी को पता नहीं लग पाया.

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