25 मार्च, 2017 की बात है. राजस्थान के जोधपुर जिले में बिलाड़ा उपखंड के गांव हरियाढाणा में सड़क चौड़ी की जा रही थी. इस काम में कुछ पेड़ बीच में आ रहे थे, जिन्हें हटाया जाना जरूरी था. वे पेड़ काफी पुराने थे, जो ललिता के खेत की मेड़ के पास थे. उन पुराने पेड़ों को ललिता किसी भी सूरत में बचाना चाहती थी. वहां गांव के तमाम लोग खड़े थे, जो ललिता की जिद का विरोध कर रहे थे. ललिता के भाई विद्याधर और किशन तथा बहन सुमन भी वहां थी. ये सभी ललिता का साथ दे रहे थे.

उसी समय रहस्यमय परिस्थितियों में ललिता के शरीर से आग की लपटें उठने लगीं. उस के शरीर पर आग पैट्रोल डाल कर लगाई गई थी. आग की लपटें उठते ही कुछ लोग वहां से भाग गए तो कुछ तमाशबीन बने नजारा देखते रहे. कुछ तो अपने फोन से उस की वीडियो बनाने लगे थे. ललिता के भाई और बहन मदद के लिए चिल्लाते रहे, लेकिन किसी का भी दिल नहीं पसीजा.

घर वालों ने किसी तहर ललिता के शरीर की आग बुझाई. तब तक वह काफी झुलस चुकी थी. उसे कोरूंदा के सरकारी अस्पताल ले जाया गया. पर हालत सीरियस होने की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद उसे जोधपुर के महात्मा गांधी चिकित्सालय के लिए रैफर कर दिया गया. वहां के डाक्टर उसे बचाने में जुट गए. पर काफी कोशिश के बाद भी वे उसे बचा नहीं सके. अगले दिन ललिता की मौत हो गई. पुलिस उस का बयान भी नहीं ले सकी.

ललिता के भाई विद्याधर ने पुलिस को बताया कि उस की बहन ललिता सड़क बनने के दौरान पेड़ काटने का विरोध कर रही थी. तभी गांव के सरपंच रणवीर सिंह चांपावत, पटवारी ओमप्रकाश, भैंरूबख्श, बाबू चौकीदार, सुरेश चौकीदार, मदन सिंह, हिम्मत सिंह आदि के साथ आए और जेसीबी से पेड़ उखाड़ने लगे.

इस पर उस के भाई किशन, बहन ललिता और सुमन ने विरोध किया तो वे मारपीट करने लगे. उसी बीच बाबू चौकीदार ने श्रवण सिंह से कहा कि पैट्रोल ला, आज सारी समस्या ही खत्म कर देते हैं. जब श्रवण पैट्रोल ले कर आया तो किशन, ललिता और सुमन जान बचाने के लिए भागने लगे लेकिन सरपंच और उस के आदमियों ने उन्हें पकड़ लिया.

बाबू चौकीदार ने ललिता को पकड़ कर नीचे गिरा दिया. किशन और सुमन उसे बचाने लगे तो हिम्मत सिंह, मदन सिंह और भैंरूबख्श ने दोनों को पकड लिया. इस के बाद बाबू चौकीदार, श्रवण सिंह, सुरेश आदि ने ललिता पर पैट्रोल डाल कर जला दिया और भाग गए. विद्याधर की तहरीर पर पुलिस ने 26 मार्च को उक्त लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 147, 149, 323 व 447 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. इस के अलावा पुलिस ने ललिता के शव को मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करवाने के बाद परिजनों को सौंप दिया.

ललिता की मौत पर गांव के कुछ लोगों में आक्रोश था. गांव की शांति व्यवस्था भंग न हो जाए, इस के लिए तनाव को देखते हुए एसपी ने बिलाड़ा, पीपाड़, भोलागढ़ सहित कई थानों की पुलिस को गांव में तैनात कर दिया. 27 मार्च को पुलिस व्यवस्था के बीच ललिता का अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया, जहां वह जली थी.

पूरा गांव पुलिस छावनी बन चुका था. उसी दिन पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) हरेंद्र कुमार महावर के नेतृत्व में 6 पुलिस टीमें गठित की गईं. इन टीमों ने घटनास्थल के आसपास के 10 किलोमीटर के इलाके में तफ्तीश की. विधि विज्ञान प्रयोगशाला की टीम ने मौके से वह बोतल जब्त की, जिस में पैट्रोल लाया गया था. इस के अलावा टीम ने अन्य सबूत भी जुटाए. पुलिस ने पूछताछ के लिए कुछ लोगों को हिरासत में लिया. इस में जेसीबी का चालक भी शामिल था.

जिस समय ललिता के जीवित जलने की लोमहर्षक घटना घटी थी, उस समय जयपुर में विधानसभा का बजट सत्र चल रहा था. ललिता की मौत के मामले को खींवसर विधायक हनुमान बेनीवाल ने 27 मार्च को विधानसभा में पौइंट इनफौर्मेशन के तहत उठाया. उन्होंने इस घटना को बहुत गंभीर बताया.

इस पर गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने जवाब में कहा कि जब यह घटना घटी थी, उस दौरान पटवारी, सरपंच और गांव के अन्य लोग वहां मौजूद थे. इतने लोगों की मौजूदगी में ललिता स्वयं जली या उसे जलाया गया, यह जांच का विषय है.

ग्रामीणों ने बताया कि गांव हरियाढाणा से गोड़ावट तक 6 किलोमीटर लंबी कटाणी रोड बननी थी. इस के दोनों ओर सीमा पर लोगों ने अतिक्रमण कर पेड़ लगा रखे हैं. पेड़ों के बीच झाडि़यां लगने से मिट्टी की पाल (मेड़) बन गई. यह पाल इतनी बड़ी हो गई कि इस के पीछे चलने पर छोटा वाहन भी नजर नहीं आता है.

पिछले सालों में जो भी सरपंच चुने गए, उन्होंने विवाद के चलते ही वहां सड़क बनाने में रुचि नहीं दिखाई. मौजूदा सरपंच ने अतिक्रमण हटाने के लिए कलेक्टर से ले कर अन्य जगहों पर शिकायत की थी. इस के बाद राजस्व विभाग ने रणसी गांव के पटवारी पृथ्वीदान, खेजड़ला पटवारी हापूराम व हरियाढाणा पटवारी के नेतृत्व में अतिक्रमण चिन्हित करने के लिए आदेश दिए थे. यह सब होने के बाद ही यह 6 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का फैसला लिया था. इस में से केवल 2 किलोमीटर सड़क ही बन सकी थी कि यह जानलेवा घटना हो गई.

इस 6 किलोमीटर के रास्ते में आने वाले अधिकांश खेतों में रास्ता क्लीयर नहीं था. कुछ खेतों तक तो सड़क बना दी गई थी. 25 मार्च, 2017 को खसरा नंबर 948 के पास यह घटना हो गई. जेसीबी से खसरा नंबर 924 व 926 से अतिक्रमण हटाया जा रहा था, तब यह घटना हुई.

जहां पर यह रोड बनाई जाने वाली थी, वहां पर कब्जे इस कदर हैं कि लोगों ने पक्के गेट लगा रखे हैं. कुछ ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत ने उन गेट वालों को छेड़ा तक नहीं. जबकि इस से काफी दूर ललिता के परिवार के दोनों खसरों में वे सभी अतिक्रमण हटाने पहुंच गए.

विद्याधर का कहना था कि वे लोग हमारी जमीन सड़क में ज्यादा ले रहे थे. इस का मैं और बहन विरोध कर रहे थे. इन लोगों ने 22 मार्च को जेसीबी से उन के दूसरे खेत के पेड़ उखाड़ दिए थे. बरसों पहले की दीवार भी तोड़ दी थी. इस के बाद ये लोग 25 मार्च को फिर जेसीबी ला कर पेड़ उखाड़ने लगे. हम ने इसी का विरोध किया था.

ललिता की बहन सुमन का कहना था कि घटना के वक्त सरपंच, पटवारी सहित कई कर्मचारी वहां मौजूद थे, साथ ही अतिक्रमण का विवादास्पद मामला होने के कारण सौ से ज्यादा लोग उपस्थित थे, लेकिन किसी ने ललिता को बचाया नहीं. हम चिल्लाते रहे, लेकिन ललिता हमारी आंखों के सामने जल गई. अगर समय रहते आग बुझा देते तो उस की जान बच सकती थी.

घटना की सच्चाई जानने के लिए 28 मार्च को एसपी ने गांव में कैंप किया. जिलाधिकारी भी पूरे दिन गांव में रहे. दोनों ने घटना का क्राइम सीन क्रिएट किया तो देखा कि घटना के चश्मदीद, पीडि़त का परिवार और जेसीबी चलाने वाले कोशिश करते तो शायद ललिता को बचाया जा सकता था.

अधिकारियों ने क्राइम सीन क्रिएट करते हुए 3 बिंदुओं पर जांच की. पहला यह कि ललिता जली या जलाई गई थी. इस के तहत एसपी (देहात) हरेंद्र कुमार महावर ने पेड़ों के पास 2 जेसीबी खड़ी कीं. खेजड़ी के पेड़ के नीचे ग्रामीणों को बैठाया और खुद घटनास्थल पर रहे. जेसीबी चालकों के साथ डीएसपी भी बैठे. घटनास्थल से आवाज आते ही डीएसपी मौके की ओर भागे, जैसे ललिता का भाई विद्याधर दौड़ा था. वीडियो का एंगल भी देखा गया, जिस में ग्रामीण दूर खड़े दिख रहे हैं.

जांच का दूसरा बिंदु यह था कि ललिता को जलाने का कारण क्या रहा? पुलिस ने ललिता के जलनेजलाने का विश्लेषण किया. इस के तहत आरोपियों की कौल डिटेल्स व लोकेशन की जानकारी ली गई. तीसरा बिंदु यह रखा गया था कि इस घटना के लिए जिम्मेदार कौनकौन लोग रहे?

पुलिस के लिए यह जिम्मेदारी तय करना चुनौती बन गया. यदि ललिता खुद जली थी, पैट्रोल की बोतल अपनी ढाणी से लाई थी तो जिम्मेदारी उस के परिवार की भी तय हो सकती थी. पर जो लोग दूर खड़े देख रहे थे, उन्होंने भी उसे बचाने का प्रयास नहीं किया तो जिम्मेदार वे लोग भी होंगे.

  सरपंच, पटवारी की जिम्मेदारी इस से तय की जानी थी कि उन्होंने रास्ता खोलने के लिए पूरे परिवार की सहमति क्यों नहीं ली? और विवाद था तो पुलिस को साथ क्यों नहीं रखा?

घटना के चश्मदीद ग्रामीणों ने बताया कि 3 खेतों के बीच ललिता की ढाणी है. जहां ललिता जली और जहां जेसीबी पेड़ उखाड़ रहे थे, उन दोनों के बीच 500 फुट का फासला था. उस से 100 फुट दूरी पर ही खेजड़ी के पेड़ की छांव में 50-60 लोग बैठे थे. इन में सरपंच, पटवारी भी शामिल थे.

अचानक ललिता का भाई विद्याधर चिल्लाया. उस की आवाज सुन कर लोग खड़े हो गए. तब उन्हें मेड़ के पार ललिता जलती हुई दिखाई दी. विद्याधर ललिता की तरफ दौड़ा. लोगों के बीच खड़े श्रवण ने कहा कि उसे बचाओ, लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ा. वह तारों की बाड़ कूद कर दौड़ा और मिट्टी डाल कर आग बुझाने की कोशिश की, मगर आग बुझी नहीं.

अपने पेड़ों को काटने से बचाने के लिए जान गंवाने वाली ललिता के मामले में माननीय उच्च न्यायालय के जज एवं हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष माननीय गोपालकृष्ण व्यास ने 28 मार्च को संज्ञान लिया. उन्होंने ललिता के परिवार के सदस्यों को विधिक सहायता दिलाने के लिए निर्देश भी दिए. विधिक सेवा प्राधिकरण की आकस्मिक बैठक आयोजित कर पीडि़त परिवार को ढाई लाख रुपए अंतरिम राहत के रूप में देने का फैसला लिया गया.

इस घटना को ले कर आरोपी सामने तो नहीं आए, लेकिन सरपंच रणवीर सिंह ने सोशल मीडिया पर वीडियो के माध्यम से बताया, ‘‘ललिता की जलने से हुई मौत के मामले में मुझ पर और पटवारी पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे निराधार हैं. ललिता घटनास्थल से बहुत दूर जली थी. घटना पर मैं ने ही बोरूंदा पुलिस को फोन किया था और ऐंबुलेंस भी बुलवाई थी.’’

मामले की जांच के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग के सदस्य आलोक रावत 29 मार्च को जोधपुर पहुंचे. पीडि़त परिवार से बात करने के अलावा उन्होंने पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से बात की.

29 मार्च को ही वन विभाग व सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने भी घटनास्थल का दौरा कर मौका रिपोर्ट बनाई. सार्वजनिक निर्माण विभाग पीपाड़ शहर के सहायक अभिंयता मदनलाल परिहार की टीम ने मौकामुआयना कर पुरानी पाइप लाइन की हौदियों को तोड़ने से हुए करीब सवा लाख रुपए के नुकसान का आकलन किया.

वहीं बिलाड़ा वन विभाग के अधिकारी हीराराम के साथ 4 सदस्यों की टीम ने भी निरीक्षण कर एक दरजन पेड़ काटने की रिपोर्ट तैयार की. बिलाड़ा के तहसीलदार और विकास अधिकारी ने निरीक्षण कर अलगअलग रिपोर्ट तैयार कीं.

एएसपी नरपत सिंह, बिलाड़ा के सीओ सेठाराम सहित अन्य थानों के पुलिस अधिकारी दिन भर जांच में जुटे रहे. पुलिस ने 2 दरजन से अधिक लोगों से पूछताछ की.

सभी रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने 31 मार्च को अपनी रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी. इस में खुलासा हुआ कि जो सड़क वहां बनाई जा रही थी, उस की स्वीकृति संबंधित विभाग से नहीं ली गई थी और न ही अतिक्रमण हटाने का कोई आदेश किसी अधिकारी ने दिया था. पटवारी और सरपंच जो सड़क बनाने के लिए वहां गए थे, उस की अनुमति नहीं दी गई थी. इस का मतलब तो यही हुआ कि यह सब सरपंच ही अपने प्रभाव से करा रहा था.

एसपी (देहात) हरेंद्र कुमार महावर ने एक सप्ताह की जांचपड़ताल के बाद पहली अप्रैल को आधिकारिक रूप से कहा कि ललिता ने आत्महत्या की थी, मगर उसे यह सब करने के लिए इन आरोपियों ने मजबूर किया था. आरोपियों ने उस के खेत की मेड़ तोड़ी व पेड़ काटे थे. पुलिस की जांच में सामने आया कि अपने खेत की मेड़ व पेड़ बचाने के लिए जिंदा जली ललिता सरपंच व उस के दबंगों के आगे लाचार हो गई थी. कटाण का रास्ता निकालने के लिए उस का ही खेत टारगेट किया गया था और घटना से 3 दिनों पहले इन्हीं दबंगों ने रात 10 बजे उस की आधी मेड़ तोड़ दी थी.

मेड़ तोड़ने के बाद पूरा परिवार गांव के हर जिम्मेदार और प्रतिष्ठित आदमी से मिला, मगर किसी ने मदद नहीं की. बल्कि 25 मार्च को सरपंच व पटवारी खेत की बची मेड़ तोड़ने और पेड़ों को उखाड़ने के लिए जेसीबी ले कर पहुंच गए. चारों ओर से हताश हो कर ललिता ने पैट्रोल से भरी पूरी बोतल अपने ऊपर उड़ेल कर आग लगा ली थी. पुलिस ने जांच में सभी आरोपियों को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का दोषी माना.

पुलिस ने 4 आरोपियों मदन सिंह, रतन सिंह, जीवन सिंह और गजेंद्र सिंह को पहली अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया. अपनी जांच में पुलिस ने यह भी पाया कि ललिता ने पैसा खर्च कर के वन विभाग से मेड़बंदी करवा रखी थी. उस दिन जेसीबी से पूरी मेड़ तोड़ दी जाती तो इस परिवार को करीब 15 लाख रुपए का नुकसान होता, जिस की क्षतिपूर्ति इस परिवार के लिए मुश्किल थी. इसलिए जब रात में दबंगों ने कहर ढाया तो 2 दिनों तक पूरा परिवार रोता रहा.

मेड़ टूटने की खबर पा कर ललिता की मां की हालत खराब हो गई थी. तब उस का भाई मां को जोधपुर में मामा के घर छोड़ आया. भाई को भी दबंगों ने मजबूर कर रखा था और धमका कर उसे अतिक्रमण हटाने के दौरान वहां खड़ा रखा.

यह बरसों पुराना विवाद था, मगर सरपंच रणवीर सिंह की जिद थी कि इसे अभी हटाना है. उस ने ललिता के खेत की जमीन ज्यादा अतिक्रमित मानी, दूसरों की बहुत कम. दूसरे खातेदारों की थोड़ी जमीन ली और उन की दीवार, मेड़ और पेड़ नहीं हटाए. सड़क बनाने के लिए विधिक प्रशासनिक मंजूरी भी नहीं ली गई थी.

दोषियों की गिरफ्तारी की मांग को ले कर एक अप्रैल को राजस्थान ब्राह्मण महासभा ने जोधपुर में कैंडल मार्च निकाला. इतना ही नहीं, 3 अप्रैल को ग्रामीणों के साथ ब्राह्मण समाज के लोगों ने जोधपुर जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया और दधीचि पार्क पर धरना दे कर जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा.

ज्ञापन में मांग की गई कि पेड़ों की रक्षा के लिए जली ललिता को शहीद का दर्जा दिलाया जाए और पीडि़त परिवार को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाए. लोगों ने मांगें पूरी नहीं होने तक धरना देने व अनशन करने की चेतावनी दी.

दूसरी ओर पटवार संघ की ओर से जिलाधिकारी को ज्ञापन दे कर मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की गई. संघ के अध्यक्ष के.पी. सिंह व महासंघ जिलाध्यक्ष शंभू सिंह मेड़तिया ने कहा कि पटवारी को दोषी ठहराया गया तो संघ आंदोलन करेगा. इस पर जिलाधिकारी ने कहा कि रेवेन्यू मामले की जांच मानाराम पटेल करेंगे और कहा कि यदि पुलिस जांच में पटवारी दोषी पाया जाता है तो उस में वह कोई मदद नहीं करेंगे.

कथा लिखे जाने तक कुल 7 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका था, जबकि नामजद सरपंच और पटवारी सहित कुछ अन्य आरोपी फरार थे.

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