निर्देशक सुभाष घई की 1986 में प्रदर्शित फिल्म ‘कर्मा’ के हिट होने की वजहों में एक यह अहम थी कि यह फिल्म राष्ट्रद्रोह और देशभक्ति जैसे संवेदनशील विषय पर बनी थी. यह हिंदी फिल्मों का वह दौर था जिस में मनोज कुमार छाप राष्ट्रभक्ति वाली फिल्मों मसलन ‘उपकार’, ‘पूरब पश्चिम’ और ‘क्रांति’ को लोग भूल  चले थे जिन में हिंदू धर्म और उस की परंपराओं का हद से ज्यादा प्रचार देशप्रेम की आड़ में किया गया था. कर्मा में देखा जाए तो केंद्रीय पात्र खलनायक डाक्टर डेंग नाम का शख्स ही था जो भारत को तोड़ने के लिए हथियारों और भटके युवकों का सहारा लेता रहता है. डाक्टर डेंग की चर्चित भूमिका को कला फिल्म ‘सारांश’ से अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवा चुके अनुपम खेर ने निभाया था. फिल्म में उन के सामने दिलीप कुमार और नसीरुद्दीन शाह जैसे मंझे व सधे अभिनेता थे.

तब फिल्म समीक्षकों ने गलत नहीं माना था कि अनुपम खेर ने एक बार फिर अच्छा काम किया है. आज भी फिल्म समीक्षक गलत नहीं मान रहे हैं कि हालिया प्रदर्शित फिल्म ‘ए बुद्धा इन ट्रैफिक जाम’ में भी उन्होंने स्वाभाविक अभिनय किया है. ‘ए बुद्धा इन ट्रैफिक जाम’ को ले कर अनुपम खेर की उत्सुकता और बेसब्री बेवजह नहीं थे. एक वर्गविशेष के लिए बनाई गई इस फिल्म में वे एक प्रोफैसर रंजन बटकी की भूमिका में हैं जिस का चहेता छात्र विक्रम पंडित वामपंथियों से प्रभावित है. अकसर उस की चर्चा नक्सलवाद पर प्रोफैसर बटकी से होती रहती है.

विक्रम मूलतया उन युवाओं में से एक है जो धर्म और राजनीति को सारे फसादों की जड़ मानता है. गौरतलब है कि यह भूमिका अरुणोदय सिंह ने निभाई है जो गए कल के दिग्गज कांगे्रसी नेता अर्जुन सिंह का पोता और मध्य प्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह का बेटा है. नक्सलवाद को गलत ठहराती इस फिल्म की स्क्रीनिंग जानबूझ कर देशभर के शैक्षणिक संस्थानों में की गई लेकिन बीती 6 मई को जब फिल्म के डायरैक्टर विवेक अग्निहोत्री पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी पहुंचे तो लैफ्ट समर्थक छात्रों ने उन्हें खदेड़ दिया. एबीवीपी और उन के बीच जम कर हाथापाई और हिंसा हुई. इस विरोध पर तिलमिलाए विवेक अग्निहोत्री ने ‘ए बुद्धा...’ का विरोध करने वालों को ही नक्सली करार दे दिया. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने तो जादवपुर विश्वविद्यालय की छात्राओं को बेहया कहते उन्हें पुरुषों का संग चाहने को बेचैन रहने वाली कह कर जता दिया कि दरअसल धर्म, उस की भाषा और मानसिकता क्या हैं.

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