भले ही झारखंड की नई डोमिसाइल नीति पर राज्य कैबिनेट की मुहर लग गई है लेकिन विरोधी दलों द्वारा इसे आधाअधूरा बताए जाने के चलते गरीब जनता को अभी और इम्तिहान देने पड़ सकते हैं. लंबे इंतजार और कई हिंसक आंदोलनों के बाद झारखंड की डोमिसाइल नीति आखिरकार जमीन पर उतर आई. साल 2000 में बिहार से अलग हो कर झारखंड राज्य बनने के बाद से ले कर अब तक कई मुख्यमंत्री आए और गए, पर राज्य की डोमिसाइल नीति सभी के लिए मधुमक्खी का छत्ता ही साबित हुई. इस मसले को ले कर भड़की आग में बाबूलाल मरांडी की मुख्यमंत्री की कुरसी जल चुकी है. अब झारखंड की नई डोमिसाइल नीति पर राज्य कैबिनेट की मुहर लग गई है. हालांकि विरोधी दलों ने इसे आदिवासी विरोधी और आधाअधूरा बता कर नए सिरे से आंदोलन शुरू करने का बिगुल फूंक दिया है. इस से साफ है कि डोमिसाइल की आग में राज्य और उस की गरीब जनता को अभी और तपनापकना होगा.

नई डोमिसाइल नीति के तहत 30 साल से झारखंड में रहने वाले अब झारखंडी (स्थानीय) माने जाएंगे. पिछले कई सालों से डोमिसाइल (स्थानीयता) के झोलझाल को 7 अप्रैल को झारखंड कैबिनेट ने साफ कर दिया. डोमिसाइल नीति कहती है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित और मान्यताप्राप्त संस्थानों, निगमों में बहाल या काम कर रहे मुलाजिमों व पदाधिकारियों और उन के पति या पत्नियां एवं बच्चे स्थानीय माने जाएंगे.

झारखंड में काम कर रहे भारत सरकार के कर्मचारियों और अफसरों की पत्नी या पति एवं उन की संतानें झारखंड निवासी माने जाएंगे. राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों को स्थानीयता का विकल्प चुनने की सुविधा दी गई है. अगर वे झारखंड राज्य को चुनेंगे तो उन्हें और उन की संतानों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा. इस के बाद वे अपने पहले के गृहराज्य में स्थानीयता का लाभ नहीं ले सकेंगे. वहीं, झारखंड को नहीं चुनने की हालत में वे सिर्फ अपने गृहराज्य में स्थानीयता का लाभ ले सकेंगे.

बखेड़ा डोमिसाइल नीति का

भौगोलिक सीमा में निवास करने वाले वैसे सभी व्यक्ति, जिन का स्वयं या पूर्वज का नाम पिछले सर्वे खतियान में दर्ज हो एवं वैसे मूल निवासी जो भूमिहीन हों, उन के संबंध में उन की प्रचलित भाषा, संस्कृति और परंपरा के आधार पर ग्रामसभा द्वारा पहचान किए जाने पर उन्हें स्थानीय माना जाएगा. इस के साथ ही, वैसे लोग भी स्थानीय माने जाएंगे जो कारोबार और अन्य वजहों से पिछले 30 साल या उस से ज्यादा समय से झारखंड में रह रहे हों और अचल संपत्ति बना ली हो, ऐसे लोगों की पत्नियां, पति और संतानें स्थानीय माने जाएंगे. राज्य की डोमिसाइल नीति को ले कर 14 सालों से हंगामा और उपद्रव मचता रहा. इस के पहले की तमाम सरकारें इच्छाशक्ति की कमी और हंगामा, आंदोलन व विवाद से बचने के लिए इस मसले पर चुप्पी साधे हुए थीं. पिछली सरकारों के टालमटोल रवैए की वजह से झारखंड को कई बार स्थानीयता को ले कर उपजे आंदोलन की आग में झुलसना पड़ा. इस के लिए कई कमेटियां बनीं, कुछ ने रिपोर्ट्स सौंपी और कइयों की रिपोर्ट्स का आज भी इंतजार हो रहा है. रघुवर दास ने मुख्यमंत्री बनने के बाद ही स्थानीयता नीति को बनाने और लागू करने का ऐलान किया था. गौरतलब है कि राज्य में आदिवासियों की आबादी 26 फीसदी है और 74 फीसदी गैरआदिवासी हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा के विधायक नलिन सोरेन कहते हैं कि उन की पार्टी साल 1932 को आधार मान कर स्थानीय नीति बनाने की मांग करती रही है. नई डोमिसाइल नीति से आदिवासियों का हक मारा जाएगा. इस नीति में आदिवासियों की अनदेखी कर गैर आदिवासियों का ध्यान रखा गया है.

झारखंड सरकार ने 22 सितंबर, 2001 को बिहार के नियम को अंगीकार किया था. संकल्प संख्या-5, विविध-09/2001, दिनांक – 22 सितंबर, 2001 द्वारा बिहार के श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग के सर्कुलर 3/स्थानीय नीति 5044/81806, दिनांक-3 मार्च, 1982 को आधार बनाया गया. इसी आधार पर खतियान (पिछला सर्वे रिकौर्ड औफ राइट्स) को स्थानीयता का आधार माना गया है. साल 2000 में बिहार से अलग हो कर नया झारखंड राज्य बनने के बाद भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया था. साल 2003 में सूबे में डोमिसाइल नीति को ले कर मचे बखेड़े के बाद उन्हें हटा कर अर्जुन मुंडा को सरकार की कमान सौंपी गई थी.

नेताओं की सियासत

नया झारखंड राज्य बनने के बाद से अब तक 10 बार मुख्यमंत्रियों की अदलाबदली हुई पर हर किसी ने डोमिसाइल नीति पर टालमटोल रवैया ही अपनाया. सूबे के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी नवंबर 2000 से मार्च 2003 तक मुख्यमंत्री रहे. अर्जुन मुंडा 4 बार मुख्यमंत्री बने और कुल 7 साल 10 महीने राज किया. शिबू सोरेन भी 3 बार मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठे पर एक साल भी मुख्यमंत्री के रूप में काम नहीं कर सके. निर्दलीय मधु कोड़ा सब से ज्यादा 3 साल (18 सितंबर, 2005 से 27 अगस्त, 2008) तक मुख्यमंत्री की गद्दी पर काबिज रहे. 13 जुलाई, 2014 से 14 दिसंबर, 2014 तक हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री की कुरसी पर रहे. 29 दिसंबर, 2014 को रघुवर दास झारखंड के मुख्यमंत्री बने और झारखंड को पहली बार गैरआदिवासी मुख्यमंत्री के साथ पूरी बहुमत वाली सरकार मिली.

रघुवर दास ने मुख्यमंत्री की कुरसी संभालते ही राज्य की डोमिसाइल नीति को जल्द से जल्द बनाने का भरोसा दिलाया था. सरकार ने 30 सालों से झारखंड में रहने वालों को राज्य का नागरिक करार दिया है, पर इसे ले कर विरोधी दलों ने अभी से ही विरोध का झंडा उठा लिया है. बोकारो के भाजपा विधायक विरंची नारायण नई डोमिसाइल नीति का विरोध करने वालों पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि विरोधी दल नहीं चाहते हैं कि राज्य में अमनचैन का माहौल बने. वे केवल अपनी राजनीति चमकाने के लिए ही विरोध कर रहे हैं जबकि सचाई यह है कि डोमिसाइल नीति लागू होने से पिछले 13-14 सालों से चल रहा राज्य में अस्थिरता का माहौल खत्म होगा  नेताओं की बयानबाजी और सियासत को देखसुन कर यही लग रहा है कि डोमिसाइल नीति को ले कर डेढ़ दशक पहले भड़की आग फिलहाल ठंडी नहीं हुई है.

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