आस्था के नाम पर मानव समाज ने इतिहास से ले कर अब तक कई बर्बरताएं देखी हैं. धर्म और आस्था के नाम पर कई युद्ध हुए हैं, कितने ही लोग मारेकाटे गए हैं. ये सब होते रहने व देखते रहने के बावजूद आज लोग इस मामले में अंधे बने हुए हैं. कैमिस्ट्री या फिजिक्स के किसी भी बड़े वैज्ञानिक की कोई किताब खरीद कर चौराहे पर जाइए और उस के पन्ने फाड़ना शुरू कीजिए, उस के चीथड़े कर डालिए, उस को रौंद दीजिए. इतने में भी मन न भरे तो उस के पन्ने जला दीजिए. इस पूरी घटना का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डालिए.
अगले दिन आप को न किसी वैज्ञानिक से धमकी मिलेगी, न कोई आप के खिलाफ रैली निकालेगा, न आप को सोशल मीडिया पर भद्दी गालियां दी जाएंगी और न ही आप पर किसी वैज्ञानिक संगठन द्वारा मुकदमा दर्ज कराया जाएगा. गौरतलब है कि सत्य किसी के पन्ने फाड़ने या जलाने से मिट नहीं जाता. सच को अपने प्रचार के लिए लीपापोती की जरूरत नहीं पड़ती. सत्य कभी खतरे में नहीं आता. सत्य को साबित करने के लिए आप को हिंसा का सहारा लेने की जरूरत नहीं होती.
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सत्य कभी संगठन बना कर हिंसा के सहारे किसी पर थोपा नहीं जाता. लानत है ऐसे धर्मों पर जो इंसान को इंसान न समझें. धर्म के प्रति हद से ज्यादा संवेदनशीलता भी व्यक्ति को इंसानियत के प्रति संवेदनहीन बना देती है. धार्मिक अंधता का शिकार व्यक्ति अकसर यह महसूस करता है कि मेरे धर्म या धर्मगुरु या धार्मिक ग्रंथों पर की गई छोटीमोटी टिप्पणी से मेरा धर्म खतरे में आ जाएगा, तो यह निरी मूर्खता है. ऐसा व्यक्ति खुद को धर्मरक्षक समझ कर अपने धर्म को बचाने के लिए इंसानियत का ही दुश्मन बन जाता है जोकि निकृष्टता की पराकाष्ठा है. देश और दुनिया में धर्म के नाम पर इंसानों को मारनेकाटने की घटनाएं रोज देखने व सुनने को मिलती हैं.