समाज तेजी से बदल रहा है, सिंगल मदर, सिंगल फादर, बगैर मां का पिता, बगैर पिता की मां. …और अब बैंड, बाजा और बारात के साथ समलैंगिक शादी. पिछले दिनों गे कपल यानी पुरुष समलैंगिक जोड़े ने कानून को ठेंगा दिखाते हुए हैदराबाद में धूमधाम से शादी रचाई. इस में खास बात यह रही कि शादी में उन के मातापिता समेत रिश्तेदार, यारदोस्त भी शामिल हुए.

दिल्ली का रहने वाला 34 वर्षीय अभय डांगे अपने प्रिय साथी सुप्रियो चक्रवर्ती (31) के साथ वर्चुअल डेटिंग कर ऊब चुका था. उसे कैफे में बैठ कर साथसाथ कौफी पिए कई महीने बीत गए थे.

फरवरी 2021 में जब सुप्रियो दिल्ली आया था, तभी अभय उस के साथ कनाट प्लेस के कैफे में पूरे एक साल के बाद कौफी पी थी और घंटों ढेर सारी बातें की थी. पुरानी यादों को ताजा किया था. भविष्य की कुछ योजनाएं भी बनाई थीं.

वे अकसर कौफीहाउस जाते थे और खूब बातें करते थे. दोनों जितने खानेपीने के शौकीन थे, उतने ही पहननेओढ़ने के भी थे. डिजाइनर मगर भड़कीले और कपल की मैचिंग जैसे  कपड़े की जम कर खरीदारी करते थे.

इस के लिए हौजखास, खान मार्केट, आईएनए या एमजी रोड के फैशनेबल शोरूम से ले कर जनपथ मार्केट तक में छान मारते थे. एकएक चीज एकदूसरे की पसंद के ही खरीदते थे. वे उसे आपस में गिफ्ट भी कर दिया करते थे. मौल मल्टीप्लेक्स जाने के अलावा शाम के समय 2-2 पैग लगाने का भी समय निकाल लेते थे. दोनों का एकदूसरे के प्रति समर्पित भाव किसी प्रेमी युगल की तरह ही था.

फरवरी में सुप्रियो जल्द ही वापस हैदराबाद लौट गया था. क्योंकि वह जिस होटल में काम करता था, उसे लौकडाउन खत्म होने के बाद खोले जाने के लिए मैनेजमेंट मीटिंग में शामिल होना था. अभय को साथसाथ 2 पैग लेने का मलाल बना रहा.

उन के दिल में साथसाथ बैठ कर किसी रोमांटिक फिल्म देखने की कसक भी बनी रही. आखिर वे कर भी क्या सकते थे. कोरोना की दूसरी लहर तेजी से पांव पसारने लगी थी.

यह संयोग ही था कि दोनों अप्रैल के महीने में कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गए थे. अभय दिल्ली में था और सुप्रियो हैदराबाद में क्वारंटीन लाइफ के दिन काटने को मजबूर था. ठीक होने के बाद उन्होंने कोविड की वैक्सीन लगवा ली थी.

बात अक्तूबर 2021 की है. मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाला अभय किचन में था. रात के 9 बजने वाले थे. नाइट शिफ्ट में काम करने के लिए उस ने लैपटौप खोल लिया था. तभी उस के एप्पल घड़ी में सुप्रियो चक्रवर्ती के काल का सिग्नल मिला.

वीडियो काल थी. वह झट से भाग कर ड्राइंगरूम जा कर लैपटौप उठा लाया. किचन में गैस स्टोव के बर्नर के बगल में रख घड़ी से ही काल रिसीव कर ली. चंद सेकेंड में लैपटौप की स्क्रीन पर सुप्रियो का मुसकराता हुआ चेहरा सामने था.

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वह बोल पड़ा, ‘‘हाय! हाय मेरी जान!! कैसा है तू?’’ सुप्रियो अभय को जान कह कर ही बुलाता था.

‘‘देख रहा है न, काफी बना रहा हूं वह भी तुम्हारी यादों में,’’ अभय मुसकराता हुआ बोला.

‘‘मेरी यादों में… क्या मतलब?’’ सुप्रियो बोला.

‘‘यह देख एक मग तेरा और दूसरा मेरा है. दोनों में कौफी डालूंगा और बारीबारी से सिप करता रहूंगा. तुझे याद भी करता रहूंगा.’’ अभय उदासी भरे लहजे में बोला.

‘‘मैं समझ सकता हूं तेरी भावना को. क्या करूं मैं भी तुझे कुछ कम मिस नहीं कर रहा हूं मेरी जान.’’ सुप्रियो ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘क्या यार, ऐसे कब तक चलेगा? कोई तो उपाय होगा. अब और दूरी सही नहीं जाती है. दिल रोता है…’’ अभय भावुक होने लगा था.

‘‘अरे देख, दूध उबलने वाला है. बस, थोड़े समय की बात है मैं ने मां को कोलकाता से बुलाया है. उन के आते ही बैंड बाजा और बारात की तैयारी शुरू कर दूंगा,’’ सुप्रियो बोला.

‘‘तू सच कह रहा है. ये ले तेरे नाम की कौफी डाल रहा हूं.’’

अभय ने कहते हुए कौफी का बड़ा मग निकाला, जिस पर सुप्रियो की तसवीर छपी हुई थी. उस ने एक हाथ में मग उठाया और दूसरे हाथ में लैपटौप ले कर ड्राइंगरूम में चला आया. फिर कौफी सिप करते हुए सुप्रियो से बातें करने लगा. उस की बातें तब तक चलती रहीं, जब तक कि अभय के औफिस से काल नहीं आ गई.

बढ़ रही थी गे कपल की बेचैनी

पंजाबी अभय डांग और बंगाली सुप्रियो चक्रवर्ती साल 2012 में एकदूसरे के करीब आए थे. उन की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी. सुप्रियो के मुताबिक, अभय के साथ उस की पहली डेट 7 घंटे से अधिक चली थी. तब वे कौफी होम में मिले थे.

इस बारे में सुप्रियो का कहना है कि तब हमारी पहली डेट कौफी पीने से शुरू हो कर अभय के बाल कटवाने के लिए सैलून जाने तक चली थी. कह सकते हैं कि हमारी पहली डेट काफी अच्छी रही थी और इस के बाद हम लोग काफी बार मिलते रहे.

सुप्रियो को अभय क्यों अच्छा लगा, यह कहने में वह थोड़ा शरमाता है. जबकि वह बातें करने में काफी मुंहफट और बातूनी भी है.

वह अभय के बारे में बताता है, ‘‘मैं ने जब पहली बार अभय को देखा था, तब उस के स्वभाव और हावभाव के चलते उस की तरफ अट्रैक्ट हो गया. उस के प्रति मेरा अटै्रक्शन दिनप्रतिदिन बढ़ता ही चला गया. वह (अभय) काफी शांत स्वभाव का है, जबकि मैं तुरंत कुछ भी बोल पड़ने वाला इंसान हूं.

‘‘हमारा मिलनाजुलना बना रहा. करीबकरीब नियमित मिलते थे. बातें करते थे. उन में कुछ काम की प्रोफैशनल बातें होती थीं तो कुछ घरपरिवार की भी बातें रहती थीं. हम ने एकदूसरे के कल्चर की बातें भी कीं, रीतिरिवाज पर चर्चा की.

‘‘शादीब्याह से ले कर कानून और सरकार की उपेक्षा की समस्या पर भी गंभीर हुए. किंतु सब से अहम बात यह थी कि अभय ने कभी भी किसी गर्लफ्रैंड की बात नहीं की. और न ही उस ने कभी मुझ से मेरे किसी लड़की से दोस्ती के बारे में पूछताछ की.

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‘‘एक बार जंतर मंतर पर एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) सुमदाय के प्रदर्शन में शामिल होने का मौका मिला. उस के बाद हमें पूरी तरह से एहसास हो गया कि मैं और अभय गे हैं. हम समलैंगिक प्रभाव से ग्रसित हैं.’’

यह सुप्रियो और अभय दोनों के लिए एक समस्या की तरह थी. दोनों अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि के थे, प्रोफैशनल नौकरीपेशा थे. वे अपने पैरेंट्स को यह बताने से काफी झिझक भी रहे थे. एक तरफ समाज, परिवार से ले कर कानून तक से किसी भी किस्म के सहयोग की उम्मीद नहीं थी, जबकि दूसरी ओर वे एकदूजे के बगैर रह नहीं सकते थे.

उन के बीच की केमिस्ट्री काफी डेवलप हो चुकी थी. इसी ऊहापोह में करीब डेढ़ साल कोरोना के चलते निकल गए. इस दौरान दोनों काफी अवसाद से घिर गए थे.

अप्रैल 2021 में कोरोना पौजिटिव होने की स्थिति में उन्होंने खुद को असहाय महसूस किया था. इस कारण ही वह आजीवन साथ रहना चाहते थे. वह भी सामाजिक और पारिवारिक मान्यता के साथ.

अपने बारे में पहले अभय ने अपनी फैमिली को बताया कि वह एक गे है और उस का संबंध बंगाली युवक के साथ बना हुआ है. साथ ही उन्होंने साथ रहने की अनुमति भी मांगी थी. अभय के पैरेंट्स ने उस की मन:स्थिति को समझते हुए उस के रिलेशन को स्वीकार कर लिया था.

उस के बाद से ही अभय ने सुप्रियो पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था कि वे भी दूसरे समलैंगिकों की तरह शादी कर लें. इस पर सुप्रियो ने भी हामी भर दी थी, किंतु उस का कहना था कि वह चोरी से विवाह बंधन में नहीं बंधेंगे. मंदिर या गुरुद्वारे में वरमाला पहन कर फोटो नहीं खिचवाएंगे, बल्कि बैंडबाजे और बाराती के साथ विवाह की रिंग सेरेमनी, गीतसंगीत और दूसरी रस्मों का निर्वाह करते हुए धूमधड़ाके के साथ विवाह रचाएंगे.

बजा बैंड और हुई बधाइयों की बौछार

सुप्रियो के दिमाग और मन में अपने और अभय के रिश्ते को ले कर कसक बनी हुई थी, लेकिन वह अपनी फैमिली के सामने खुल कर बताने में शर्म महसूस कर रहा था. वह पैरेंट्स, बहन और रिश्तेदारों के मानसम्मान को भी बनाए रखना चाहता था और अभय के प्यार को हर हाल में पाना चाहता था.

कोरोना से उबरने के बाद उस ने मां को हैदराबाद बुलाया. उन से साफ शब्दों में कहा, ‘‘मैं समलैंगिक हूं और अभय मेरा पार्टनर है.’’

यह सुन कर उस की मां कुछ पल को रुकीं, फिर बोलीं, ‘‘तुम मेरे बेटे हो और मैं तुम से प्यार करती हूं.’’

इतना कह कर उन्होंने सुप्रियो को गले से लगा लिया. बस मां के ये शब्द सुनने के बाद सुप्रियो के दिल को शांति मिली. उस के बाद उस ने पापा और बहन को भी यह बात बताई. पापा और बहन ने भी कहा, ‘‘अगर तुम खुश हो तो हम खुश हैं, हमारे लिए बस यही मायने रखता है.’’

यहां तक तो सब कुछ सुप्रियो और अभय के पक्ष में था, लेकिन एक समस्या अभी भी थी कि अभय को सार्वजनिक तौर पर पति मानने पर वह कानून के जाल में न फंस जाए. दोनों जानते थे कि विवाह के लिए कानून का साथ कभी नहीं मिलने वाला है.

हालांकि 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को अपराध घोषित करने वाले कानून को तो रद्द कर दिया गया था, लेकिन देश में समलैंगिक विवाह को अभी तक मान्यता नहीं मिली थी.

अप्रैल, 2021 तक जब सुप्रियो और अभय दोनों कोविड पौजिटिव थे. तब अभय जल्द ही स्वस्थ हो गया था. उस ने हैदराबाद जा कर तेज बुखार में तपते सुप्रियो की काफी देखभाल की थी. उस समय उस ने अभय से बोल दिया कि वह उस से ही शादी करना चाहता है. इस पर अभय ने कहा था कि करना तो मैं भी चाहता हूं, लेकिन कैसे?

उस के बाद सुप्रियो ने एक तर्क दिया कि कानूनी कागजात कोई मायने नहीं रखते, हमारे साथ हमारा परिवार और उन का साथ है तो फिर शादी कर लेते हैं. परिवार की नजर में दंपति बन कर नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.

इस तरह से दोनों ने शादी करने का पूरा मन बना लिया और इस की तैयारियां शुरू कर दीं. शादी की तारीख दिसंबर के महीने में तय कर दी गई. बाकायदा कार्ड छपे. अतिथियों को आमंत्रित किया गया. बंगाली और पंजाबी शादी के रस्मोरिवाज की तैयारियां की गईं.

ऐसे समय में जब भारत में समलैंगिकता अवैध है, 18 दिसंबर को अभय और सुप्रियो की शादी के लिए एलजीबीटी समुदाय की सोफिया डेविड की देखरेख में विवाह संपन्न हुआ. उन की शादी में हर वो रस्म निभाई गई थी, जो सामान्य शादी में होती है.

शादी में मेहंदी से संगीत और हल्दी तक हर तरह की रस्में हुईं. दोनों ने अपनी पुरानी घडि़यां पहनी थीं और जीवन भर एकदूसरे को प्यार करने और साथ देने की कसमें खाईं. शादी में दोनों परिवारों से करीब 60 लोग शामिल हुए थे.

विवाह समारोह में अभय और सुप्रिया ने एक रंग की शेरवानी पहन रखी थी. विवाह संपन्न होने के बाद उन्होंने एकदूसरे को ‘आत्मसाथी’ कहा और आयोजन को प्रेरक और बदलाव लाने वाला कहा. दोनों के परिवार वालों और मेहमानों ने दोनों को आशीर्वाद दिया. खूब बलाइयां लीं. शादी के बाद अभय और सुप्रियो दोनों एक ही घर में रहने लगे हैं.

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इस तरह से यह तेलंगाना की पहली गे वेडिंग थी, जो निजी समारोह में संपन्न हुई. हालांकि भारत में समलैंगिक शादियों को कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है.

विवाह का कानूनी आधार

भारत ने 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को अपराध घोषित करने वाले औपनिवेशिक युग के कानून को रद्द कर दिया है, लेकिन समान विवाह की अनुमति देने वाला भी कोई कानून नहीं है.

हालांकि दुनिया के समलैंगिक अपने रिश्तों को कानूनी मान्यता देने को ले कर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं. भारत में भी लेस्बियन (स्त्री समलैंगिक), गे (पुरुष समलैंगिक), बाइसेक्सुअल और टी (ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोगों में इसे ले कर बेचैनी बरकरार है.

उन्हें न तो सामाजिक मान्यता मिल पा रही है और न ही कानूरी आधार बन पा रहा है. फिर भी कानून के विरुद्ध जा कर कइयों ने साथसाथ रहने और शादी रचाने की कोशिश की है. ऐसी कई शादियां कानूनन रोक दी गईं या फिर वे शर्म के मारे समाज की नजरों में ऐसा करने से बचते रहे.

साल 2019 में तमिलनाडु के एक पुरुष ने ट्रांसवीमन से शादी रचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट में अनुमति की याचिका दायर की थी. उसे निरस्त करते हुए शादी रोकने के आदेश भी जारी कर दिए गए थे.

इसी तरह से दिल्ली हाईकोर्ट में 2019 में ही हुआ था. कोर्ट ने हिंदू मैरेज ऐक्ट का हवाला देते हुए एक समलैंगिक विवाह को मना कर दिया था. यह विवाह लेस्बियन का था.

2020 में भी केरल के हाईकोर्ट में समलैंगिक जोड़े ने विवाह की अरजी दी थी, उन्हें भी मना कर दिया था. यही नहीं उन दिनों दिल्ली में ऐसे 8 मामले दर्ज किए गए थे, जिस में समलैंगिक विवाह के लिए अनुमति मांगी गई थी. ये याचिकाएं हिंदू और फारेर मैरेज ला के हवाले दी गई थीं.

इस का मतलब यह था कि समान लिंग वाले कानूनी रूप से अपनी शादी को पंजीकृत नहीं करवा सकते. फिर भी ऐसे जोड़े जश्न मनाने का एक तरीका खोजना चाहते थे.

ऐसे लोग चाहते हैं कि उन की शादी भारत में समान सैक्स संबंधों को मान्य हो, जिस से कोठरी में रहने वालों की मदद मिल सके और वे मानसिक तौर पर अवसाद में न आने पाएं. इस पर सुप्रियो और अभय का कहना है, ‘हम बिना किसी कोठरी वाली दुनिया में रहने की उम्मीद करते हैं.’

सुप्रियो खुशी से कहता है, ‘‘हमारे मातापिता शुरू में अधिक सहायक नहीं थे. हालांकि, उन्होंने भी इसे अस्वीकार नहीं किया था. हम ने खुद को आत्मनिरीक्षण करने और बेहतर निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त समय देने का फैसला किया.’’

समलैंगिकता कितनी गैरकानूनी

भारत में समलैंगिकता का एक पेचीदा इतिहास है और हिंदू धर्म के कुछ सब से प्राचीन ग्रंथ समलैंगिक यौन संबंधों को स्वीकार कर रहे हैं. लेकिन कई भारतीय समुदायों में समलैंगिक जोड़ों को भी सदियों से परेशान किया जाता रहा है, चाहे वे हिंदू, मुसलिम या ईसाई हों.

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को 10 साल तक की जेल की सजा देने वाले कानून को रद्द करने के फैसले को समलैंगिक अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक जीत के रूप में देखा गया. इस पर एक न्यायाधीश ने कहा था कि यह बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगा. लेकिन इस प्रगति के बावजूद समलैंगिक विवाह अवैध बना हुआ है और कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं का सरकार ने विरोध किया है.

फिर भी, पिछले एक दशक में, विशेष रूप से बड़े शहरों में, समलैंगिकता ने गहन रूढि़वादी भारत में स्वीकृति की एक डिग्री प्राप्त की है.

भारत में अब खुले तौर पर समलैंगिक हस्तियां हैं और कुछ हाईप्रोफाइल बौलीवुड फिल्में समलैंगिक मुद्दों से निपटती हैं, लेकिन 2018 में ऐतिहासिक फैसले के बावजूद कई समलैंगिक लोगों को अभी भी भारी कलंक, अलगाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है कि देश में कितने अन्य समलैंगिक विवाह समारोह आयोजित किए गए हैं.

जिन दिनों अभय और सुप्रियो विवाह बंधन में बंध रहे थे, उन्हीं दिनों महाराष्ट्र के नागपुर में 2 महिलाओं की रिंग सेरेमनी हुई थी. उस में करीब 150 मेहमान शामिल हुए थे और जम कर नाचगाना हुआ था. मेहमानों ने बगैर किसी झिझक और आशंका के खूब मौजमस्ती की थी.

सिर्फ वरमाला पहन कर की शादी

सुप्रियो और अभय की तरह निकेश ऊषा पुष्करण और सोनू एमएस भी कोच्चि, केरल के रहने वाले समलैंगिक पार्टनर हैं. दोनों ने जुलाई 2018 में शादी (गे वेडिंग) की थी. वह भी चुपकेचुपके, क्योंकि उन्हें जानने वाले उन के रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे.

लिहाजा, नई कमीज और परंपरागत धोती में तैयार हो कर दोनों जब त्रिशुर गुरुवयूर मंदिर शादी के लिए पहुंचे, तब उन के साथ सिर्फ चंद दोस्त ही थे. उन्हीं की मौजूदगी में उन्होंने एकदूसरे को अंगूठियां पहनाईं.

फिर चुपचाप मंदिर से बाहर निकल कर पार्किंग स्थल पर एकदूसरे के गले में मालाएं डालीं और घर रवाना हो गए. मातापिता को भी दोनों ने बाद में ही अपनी शादी के बारे में बताया.

फेसबुक पर शादी की तसवीर डाली तो उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं. तब तक अदालत ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी दरजा दिया नहीं था. इसलिए निकेश और सोनू के पास पुलिस की सुरक्षा भी नहीं थी. इस सब के कारण उन्हें करीब एक साल तक अपना रिश्ता और शादी बाहर वालों से छिपा कर रखना पड़ा.

काफी कुछ इसी तरह के हालात का सामना कोलकाता के सुचंद्र दास और श्री मुखर्जी को करना पड़ा. साल 2015 में उन्होंने अपने दोस्त के अपार्टमेंट में परंपरागत बंगाली रीतिरिवाज के साथ शादी की थी, क्योंकि वे कोई शादी हाल बुक नहीं कर सके थे. डर था कि वहां किसी तरह का बखेड़ा न खड़ा हो जाए.

इस पर दास कहते हैं, ‘हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां आज भी इस तरह के रिश्ते को स्वीकार नहीं किया जाता. जबकि समझने की जरूरत है कि इस तरह का संग भी साथ होता है. रिश्ते होते हैं और शादियां भी.’

हालांकि दास और मुखर्जी की की तुलना में निकेश और सोनू को कुछ कम मुश्किलें आईं. उन्हें तुलनात्मक रूप से दोस्त, यार, परिचितों का समर्थन भी ज्यादा मिला.

यही वजह थी कि सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डंग जब शादी की तैयारियां कर रहे थे, तो वह भी डरे हुए थे. उन के दोस्त और सहयोगी भी आशंकित थे, लेकिन जैसा कि चक्रवर्ती कहते हैं, ‘हैदराबाद चूंकि तरक्कीपसंद शहर है, तो हमारी ज्यादातर आशंकाएं गलत ही साबित हुईं.’

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