मेले को देखने के दौरान एक मजेदार वाक्य दिखा. दो दोस्त टहलते हुए एक एक बुक स्टाल देख रहे थे. एक बुक स्टाल पर ‘लखनऊ के साहित्यकार’ नामक से किताब दिखी. मजाकिया लहजें में उस ने अपने दोस्त से कहा,"अरे लखनऊ में साहित्यकार भी हैं." मजाक से हट कर इस बातचीत को देखें तो साफ लगता है कि लोगों ने किताबों को पढना बंद कर दिया है तो उन की सोच और समझ का दायरा भी सिमटता जा रहा है. लखनऊ हमेशा से ही साहित्य से जुड़ा रहा है. एक से एक साहित्यकार यहां रहे हैं.

वैसे लखनऊ का यह रिवर फ्रंट नए लड़के लड़कियों के लिए टहलने की पसंदीदा जगह है. बुक फेयर के दौरान भी वे यहां किताबों को खरीदने के बहाने आते हैं. मेले में ज्यादातर नौवल, बच्चों की बुक्स, मोटिवेशनल बुक्स, साहित्य की किताबें, जीवनी और महापुरूषों से संबंधित किताबें मौजूद थी. राधा स्वामी न्यास और वेद को ले कर दो अलग स्टाल दिखे. स्कूली बच्चों को यहां बुक फेयर दिखाने के लिए स्कूल वाले ले कर आते हैं. नैशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित होने के कारण सामान्य बुक स्टाल नहीं दिखाई दे रहे थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और संविधान निर्माता डाक्टर भीमराव अंबेडकर पर लिखी किताबें भी मौजूद थी. जिन में लोग रुचि दिखा रहे थे.

22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक लखनऊ के ही बलरामपुर मैदान पर राष्ट्रीय पुस्तक मेला लगा था,जिस में 100 से ज्यादा बुक स्टाल लगे थे. इन के बुक स्टाल बड़े और किताबों की संख्या भी अधिक थी. यहां दलित साहित्य और धार्मिक साहित्य के साथ ही साथ हर तरह की किताबें थी. पूरे मेले में 1 करोड़ से अधिक की मूल्य की किताबों की बिक्री हुई थी.

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