मी टू अभियान के ताजा मामले में लेखक चेतन भगत पर गाज गिरी है. एक महिला ने चेतन भगत के साथ हुई ऐसी चैट के स्क्रीनशौट सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए, जिसमें चेतन उस महिला से अंतरंग बातें करते हुए नजर आ रहे हैं. स्क्रीनशौट के वायरल होते ही लोगों के गुस्से से बचने के लिए चेतन ने सोशल मीडिया पर एक सफाईनामा जारी किया.  उन्होंने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखा. उन्होंने स्क्रीनशौट को सच बताते हुए अपनी गलतियों को स्वीकार किया और अपनी पत्नी समेत उस महिला से भी माफी मांगी.

उन्होंने ये भी लिखा है कि उन के और उस महिला के बीच कुछ भी शारीरिक या आपत्तिजनक नहीं था.  न ही कोई अश्लील फोटो या शब्दों के आदानप्रदान हुए. उन्होंने उस महिला का नंबर भी डिलीट कर दिया था और बरसों से उनकी कोई मुलाकात नहीं हुई है.

मी टू अभियान के तहत महिलाओं का इस तरह अपने खिलाफ हो रहे यौन शोषण का खुलासा करना और पूरी दुनिया के आगे प्रतिष्ठित पुरुषों पर आरोप लगा कर अपनी अपनी कहानियां सुनाना एक अच्छी पहल है. महिलाओं को हौसला मिल रहा है कि वे अपना दर्द बांटे और समाज की आंखें खोलें.

पर सोचने वाली बात यह भी है कि क्या वास्तव में यह एक सकारात्मक पहल है?
क्या सचमुच शिकायत कर रही सभी महिलाएं सच बोल रही हैं?

हर मसले के दो पहलू होते हैं.  यदि कोई महिला किसी पुरुष पर यौन शोषण के आरोप लगा रही है तो ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी. यदि 90% महिलाएं सच बोल रही हैं तो हो सकता है कि 10% महिलाएं किसी पुरुष को जानबूझकर बदनाम कर अपना बदला ले रही हों या किसी पुराने विवाद का गुस्सा निकाल रही हों. या फिर इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं द्वारा पहले भी लोगों की संवेदनाओं और सहानुभूतिओं का बेजा इस्तेमाल किया गया है.

महिलाओं के हित में बने कानून जैसे धारा 498 ए आदि का उपयोग कर पुरुषों को बेवजह पूरे परिवार के साथ जेल भिजवाने का मसला हो या हनीट्रैप के मामलों में पुरुषों को फंसा कर रुपए उगाहने का षड्यंत्र.  कई बार यह  भी देखा गया है कि स्त्रीपुरुष दोनों रजामंदी से रिश्ते बनाते हैं मगर बाद में स्त्री इस बात से मुकर जाती है कि मामला आपसी सहमति का था. वह पुरुष पर बलात्कार का आरोप लगाकर उसे जलील करती नजर आती है.

कुछ महिलाएं ऐसी भी हो सकती हैं जो किसी भी तरह अपनी पब्लिसिटी चाहती हैं या चर्चा में रहना चाहती हैं. कहने का अर्थ यह नहीं है कि सभी महिलाएं ऐसी ही होती हैं मगर हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि कभीकभी ऐसा हो भी सकता है. इसलिए सीधे तौर पर पुरुष को दोषी मान लेना उचित नहीं है. मामले की तह तक जाने के बाद ही हम किसी के प्रति कोई राय बना सकते हैं. सवाल यह भी उठता है कि 10 – 20 साल बाद की जा रही यौन शोषण की शिकायतों का औचित्य क्या है.

यदि किसी महिला के साथ कुछ गलत होता है तो उसे उसी समय कानून का सहारा लेना चाहिए या अपनी तकलीफ उजागर करनी चाहिए. तभी सत्य की जांच हो सकेगी और दोषी को आवश्यक सजा मिल सकेगी.

सालों पहले क्या हुआ था इस का पता नहीं लग सकता. हो सकता है कि उस समय खास परिस्थिति पैदा हुई हो. जो ऐसे हालात बने. उन परिस्थितिओं का आकलन इतने साल बाद करना संभव नहीं.

मी टू की आंधी ने निर्देशक विकास बहल, कौमेडियन उत्सव चक्रवर्ती, तन्मय भट्ट  एक्टर फिल्ममेकर रजत कपूर,  मशहूर लेखक चेतन भगत, सीनियर जर्नलिस्ट प्रशांत कुमार झा, एक्टर आलोक नाथ,  कैलाश खेर समेत कई नामचीनों को अपने लपेटे में ले लिया है.

इस आंधी ने विकास बहल की कंपनी बंद करा दी.  वे अपनी आने वाली फिल्म सुपर 30 के प्रमोशन से दूर हो गए.  वेब सीरीज से भी हटा दिए गए. तो वहीं कौमेडियन उत्सव चक्रवर्ती के वीडियो हटा दिए गए.  रजत कपूर और चेतन भगत ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी. नाना पाटेकर तनुश्री के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने को विवश हुए. रेप का आरोप लगने पर आलोक नाथ को ऐसा शौक लगा की उनकी तबीयत ही बिगड़ गई.

बौलीवुड और टीवी एक ग्लैमर वर्ल्ड है जहां काम कर रहे लोगों को काफी बिंदास और आजाद मिजाज माना जाता है. ऐसे में गुड और बैड टच के नाम पर कोई महिला किसी पुरुष पर आरोप लगाती है तो यह तय करना कठिन है कि उस वक्त किस माहौल में क्या घटना हुई थी. हो सकता है तथाकथित दोषी पुरुष ने जिस एक्टिविटी को सहजता से लिया वही मामला आज मीडिया में इतना तूल पकड़ रहा
है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...