पिछले साल संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के न्यायविदों के सामने एक चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना और कमजोर वर्गों के नागरिकों को जेल में लम्बे साल तक रखा जाना बहुत चिंताजनक है.

राष्ट्रपति की उसी चिंता पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने एक साल बाद 26 नवम्बर को संविधान दिवस के अवसर पर बोलते हुए कहा, “मैं राष्ट्रपति को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं कि कानूनी प्रक्रिया आसान और सरल हो जाए ताकि नागरिक अनावश्यक रूप से जेलों में बंद न रहें.”

न्याय तक सभी की पहुंच को सुगम बनाने के लिए पूरी न्याय प्रणाली को नागरिक केंद्रित बनाने की जरूरत है. न्याय पाने की राह में होने वाला खर्च और भाषा न्याय चाहने वाले पीड़ित लोगों के लिए बहुत बाधाएं हैं.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कार्यक्रम में मौजूद आम लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा आप के लिए हमेशा खुले रहे हैं और आगे भी खुले रहेंगे. लोगों को कभी भी कोर्ट आने से डरने की जरूरत नहीं है और इसे अंतिम उपाय के रूप में नहीं देखना चाहिए. न्यायपालिका के प्रति लोगों की आस्था हमें प्रेरित करती है. शीर्ष अदालत शायद दुनिया की एकमात्र अदालत है जहां कोई भी नागरिक सीजेआई को पत्र लिख कर उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक तंत्र को गति दे सकता है.

चीफ जस्टिस की बातें सुनने में तो बड़ी मधुर और राहत देने वाली लगती हैं लेकिन जमीन पर रहने वाले गरीबों को देश का न्याय तंत्र कितना न्याय देता है यह कोई छुपी हुई बात नहीं है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...