1990 के दशक के अंत में गौरव सावंत एकाएक स्टर बन गए. वे रिटायर्ड ब्रिगेडियर के बेटे हैं. 1994 में वे इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े और जल्द ही रक्षा बीट देखने लगे.

1999 में सावंत ने कारगिल युद्ध कवर किया जो उनके करियर की सफलता के लिए निर्णायक रहा. कारगिल युद्ध पर अपनी किताब में पत्रकार संकर्षण ठाकुर, सावंत की हुंकार को कुछ इस तरह बयां करते हैं, “भाई लोग, क्या गजब बात है. एक के बाद एक मेरी 34वीं स्टोरी पहले पेज की हेडलाइन बनी है. ये मेरा सबसे अच्छा वक्त है.”

उसी वर्ष सावंत ने युद्ध मैदान में अपने 9 हफ्तों के अनुभव पर डेटलाई कारगिल नाम की प्रसिद्ध किताब लिखी. इंडिया टुडे में प्रकाशित किताब की समीक्षा में कहा गया है, “सावंत ने कारगिल अभियान का सारगर्भित ब्यौरा पेश किया है, युद्ध के मानवीय पक्ष को संवेदनशील तरीके से उकेरा है, भौंचक्की सेना के सामने पेश चुनौतियां और तीव्रता को शब्द दिए हैं.”

एमिटी विश्वविद्यालय में वर्ष 2002-2003 के अकादमिक सत्र में सावंत गेस्ट लेक्चरर थे. सावंत ने जिन्हें पढ़ाया उनमें से एक थीं विद्या कृष्णन. उस वक्त कृष्णन जिज्ञासू विद्यार्थी थीं जो अपने भविष्य के पेशे के लिए उत्साहित थीं. भोपाल में रहने वाले अपने मां-बाप के विरोध के बावजूद उन्होंने पत्रकारिता के डिपलोमा कोर्स में प्रवेश लिया था. उनके माता-पिता का मानना था कि मीडिया की नौकरी में कम पैसा है. कृष्णन इस पेशे में अपना नाम बनाने का पक्का इरादा रखती थीं और जवान और सफल सावंत उनके लिए एक रोल मॉडल की तरह थे. “हम लोगों के लेक्चर बहुत बोरिंग होते थे. और एक दिन अचानक यह जवान लड़का आता है तो जाहिर है कि बहुत सी बातें होंगी ही”, कृष्णन के एक बैचमेट ने बताया.

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