जूता है हिंदुस्तानी
सदियों से दलित और पिछड़े ब्राह्मणों के जूते खाते आ रहे हैं. एक बार फिर उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में ब्राह्मण के होते हुए एक गैरब्राह्मण ने सरकारी पैसा खा लिया तो खामखां बात का बतंगड़ बन गया जिस से याद आया कि वे भी क्या दिन थे जब दबेकुचले लोग बाभन देवता के जूते की मार भी भगवान का प्रसाद समझते श्रद्धा से ग्रहण कर लेते थे. धोखे से दौर अब लोकतंत्र का है, फिर भी ऊंची जाति वालों का जूता नीची जाति वालों पर सरेआम चल रहा है, तो इस कथित लोकतंत्र पर पुनर्विचार किया जाना जरूरी है.
हादसा बेहद छोटा और आम राजनीति के लिहाज से है कि भाजपा सांसद शरद त्रिपाठी ने अपनी ही पार्टी के विधायक राकेश सिंह बघेल पर एक मीटिंग में जूतों की बौछार कर दी, तुरंत ही इसे पुरानी दुश्मनी और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई से जोड़ दिया गया. इस से भी ज्यादा मनोरंजक बात शरद त्रिपाठी के जूता बरसाने की गति रही जिस पर अभी तक शोध हो रहे हैं कि क्या 6 सैकंड में 7 जूते मारे जा सकते हैं, जबकि शोध इस तथ्य पर होना चाहिए कि हमेशा जूता खाने वाला गैरब्राह्मण ही क्यों होता है.
पवार का पलायन
नेताओं के लिए उम्र बीजगणित की संख्या की तरह एक मजबूरी होती है, वरना हमारे देश के नेता कभी बूढे़ नहीं होते, जिस का गहरा ताल्लुक चुनाव लड़ने और न लड़ने से भी होता है. एनसीपी प्रमुख, कद्दावर मराठा नेता, 14 बार लोकसभा चुनाव लड़ चुके शरद पवार की चुनाव न लड़ने की घोषणा त्याग है, मजबूरी है या फिर कोई राजनीतिक चाल, यह तय कर पाना मुश्किल काम नहीं कि 78 साल के हो चुके शरद पवार अब थक चले हैं और उन्होंने मान लिया है कि अब वे कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे.
शरद पवार की राजनीतिक विरासत कोई भी संभाले, लेकिन वह उन के जैसा जमीनी और सर्वमान्य शायद ही साबित हो. जिन खास बातों और घटनाओं के लिए शरद पवार जाने जाते हैं उन में से एक सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर 1999 में उन का कांग्रेस छोड़ देना भी है. अब यह और बात है कि उन के भीतर का देसी मराठा कभी इस भूल पर कुछ कहेगा.
नायिकाओं के भरोसे दीदी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद भले ही देखने में सादगी की प्रतिमूर्ति लगती हों लेकिन इस चुनाव में ग्लैमर के जरिए वोट बटोरने के वास्ते उन्होंने थोक में 4 ऐक्ट्रैस को मैदान में उतार कर अपने इरादे जता दिए हैं कि वे अपने राज्य में भगवा घुसपैठ रोकने को कोई कसर नहीं छोड़ेंगी. टीएमसी की तरफ से चुनावी ताल ठोक रहीं ये अभिनेत्रियां हैं मुनमुन सेन, मिमी चक्रवर्ती, नुसरत जहां और घुंघराले बालों वाली शताब्दी राय.
अगर ममता का फैसला सही साबित हुआ तो लोकसभा की रौनक देखते ही बनेगी. ममता बनर्जी पहले भी कुछ खिलाडि़यों, कलाकारों और पत्रकारों को संसद में पहुंचा चुकी हैं. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को शायद इस चाल का अंदाजा था, इसलिए उन्होंने वरिष्ठ अभिनेत्री मौसमी चटर्जी को भाजपा में भरती कर लिया था. लोगों की दिलचस्पी अब इस बात में ज्यादा रहेगी कि कुल कितनी अभिनेत्रियां लोकसभा में जलवे बिखेरती दिखेंगी.
गुरुमंत्र
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चुनाव की घोषणा के पहले ग्वालियर में डेरा डाला तो अमित शाह सहित भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेताओं ने जा कर उन के दर्शन किए और लोकसभा चुनाव जीतने के तौरतरीकों की टिप्स लीं. चूंकि ऐसे गुरुमंत्र कान में दिए जाते हैं, इसलिए बात सार्वजनिक नहीं हो पाई कि
मोहन भागवत ने उन्हें किस तरह का आशीर्वाद दिया. जाहिर तौर पर जरूर उन्होंने हिंदुओं की अनदेखी की बात कही. वहीं उम्मीदवारों की लिस्ट भी थमा दी. अंदरखाने की सुगबुगाहट यह है कि इस बार आरएसएस के इस चिंतनमंथन में हीरेमोती कम, कंकरपत्थर ज्यादा निकल रहे हैं जिस से मोहन भागवत व्यथित भी हैं.