इस साल जनवरी में चंडीगढ़ में शराब के एक ठेके व बार का उद्घाटन हुआ. बार के मालिक ने इस मौके पर पूजापाठ कराने के लिए धर्मगुरु बुला लिए. वे अपने धर्मग्रंथ समेत आए व पाठ कर के अपनी दानदक्षिणा ले कर चले गए.
तभी किसी ने धर्मस्थान के प्रबंधकों को खबर दे दी कि पवित्र ग्रंथ शराबखाने में रखा है जो उन के धर्म की बेइज्जती है. बस, फिर क्या था, वहां बवाल मच गया. बहुत देर बाद माफी मांगने पर मामला शांत हुआ.
धर्म के दुकानदार शराबियों के साथ होने से भी परहेज नहीं करते. वे बुराई में भी हिस्सेदारी निभाने के लिए धार्मिक कर्मकांड के जरीए मदद कर रहे हैं. ऐसी धार्मिकता किस काम की जो बुराई का साथ दे?
दरअसल, धर्म की किताबों में देवताओं द्वारा सुरापान करने का जिक्र भरा पड़ा है. काली व भैरव वगैरह के मंदिरों में शराब का भोग लगता है. प्रसाद में दारू बांटी जाती है, इसलिए चंडीगढ़ की घटना पहली या अकेली नहीं है. जहांतहां अकसर ऐसा होता रहता है. बरेली में भी अंगरेजी शराब की दुकान के उद्घाटन पर पूजापाठ हुआ था.
सच की खिलाफत
धर्म की दुकानदारी करने वाले पंडेपुरोहित नहीं देखते कि वे किस के बुलावे पर कहां और क्या करने जा रहे हैं. उन्हें सिर्फ अपनी दानदक्षिणा झटक कर जेब गरम करने से मतलब होता है.
धर्म के दुकानदार सत्य व अहिंसा की दुहाई तो देते हैं, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए. उन की बुनियाद तो गढ़े हुए भगवान के झूठ पर टिकी रहती है. अपने मतलब के लिए तो वे हिंसा करने से भी बाज नहीं आते हैं, इसलिए आएदिन बहुत सी चौंकाने वाली घटनाएं मीडिया में सुर्खियां बनी रहती हैं.