मैडिकल टर्मिनैशन व प्रैगनैंसी ऐक्ट यानी एमटीपी कानून को सुरक्षित गर्भपात के लिए बनाया गया था. यह काफी असरदार भी साबित हुआ था. अचानक मादाभ्रूण हत्या को रोकने के नाम पर साल 1994 में गर्भधारणपूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीकी पीसीपीएनडीटी ऐक्ट बना दिया गया.
इस ऐक्ट में इतने नियमकानून बन गए कि सुरक्षित गर्भपात के लिए काम करने वालों को मुसीबतों का सामना करना पङने लगा. ऐसे में सुरक्षित गर्भपात प्रभावित होने लगा.
पीसीपीएनडीटी ऐक्ट से बचने के लिए जो रास्ता अपनाया जाने लगा वह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होता जा रहा है. हमारे समाज में गर्भपात और सैक्स पर बातचीत व सलाह नैतिकता का विषय भी बन जाता है.
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आफत में जान
19 साल की रीना शादी के बाद ही गर्भवती हो गई. शादी के बाद भी वह अपनी पढाई पूरी कर रही थी. गर्भवती होने से उस के सामने परेशानी उठ खडी हुई. रीना को लगा कि गर्भवती होने के बाद उस का स्कूल जाना और पढ़ाई करना मुश्किल हो जाएगा. इस के बाद बच्चा हो जाएगा तो तब तक दिक्कत होगी जब तक बच्चा छोटा रहेगा. ऐसे मे उस के 2 से 3 साल बेकार हो जाएंगे.
रीना जानती थी कि उस की सास और बाकी परिवार के लोग चाहते हैं कि वह बच्चा पैदा करे. सास का मानना था कि कि अगर किसी औरत का पहला गर्भपात हो जाता है तो वह औरत आगे बांझ हो सकती है.
ऐसे में रीना को किसी तरह की मदद की उम्मीद परिवार से थी नहीं.