अपार्टमैंट में रहने वालों के बीच आपसी संबंध और समझदारी पहले के मुकाबले अब अधिक बढ़ती जा रही है. वहां जाति व धर्म की दूरियां भी कम हो रही है. एकदूसरे के साथ संवाद और संबंध दोनों पहले से अधिक मजबूत हो रहे हैं. ऐसे में अपार्टमैंट अब नए परिवार की तरह से लगने लगे हैं.

हर शहर में रहने के लिए अपार्टमैंट्स की संख्या बढ़ती जा रही है. भारतीय लोगो में कुछ साल पहले तक अपार्टमैंट में रहने को ले कर एक हिचकिचाहट फील होती थी. धीरेधीरे लोग अब अपार्टमैंट में रहने के लिए खुद को तैयार कर चुके हैं. जिस तरह वे अपनी गली व महल्लों में हिलमिल कर रहते थे उसी तरह अब वे अपार्टमैंट में भी हिलमिल कर रहने लगे हैं. अपार्टमैंट में रहने वालों में जाति और धर्म की ही नहीं बल्कि बोली और क्षेत्र की दूरियां भी खत्म होती महसूस की जा रही है. अपार्टमैंट्स में रहने वाले 2 तरह के लोग होते हैं. पहले, जिन के अपने फ्लैट हैं, दूसरे, जो लोग किराए पर रह रहे हैं. कुछ अपार्टमैंट्स सरकारी विभागों द्वारा बनाए गए हैं. ज्यादातर अपार्टमैंट्स निजी बिल्डर्स ने बनाए हैं.

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सरकारी विभागों द्वारा बनाए अपार्टमैंट्स के रखरखाव की जिम्मेदारी रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी देखती है. निजी बिल्डर्स द्वारा बनाए गए अपार्टमैंट्स में बिल्डर्स खुद ही इस व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं. इस के एवज में वे वहां रहने वालों से एक तय रकम लेते है. रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी बनने के बाद वहां के रहने वालों में आपसी तालमेल बढ़ने लगा है. इस के साथ ही, महिलाओं की किट्टी पार्टियों, त्योहारों पर होने वाले दूसरे आयोजनों, जैसे दीवाली पार्टी, होली पार्टी, क्रिसमस पार्टी में भी एकदूसरे के मिलने व उन को जानने का अवसर मिलता है. कई बार रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी भी अपने सदस्यों के लिए ऐसे आयोजन करती है.

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