आज के युवा नेता शौर्टकट से सफलता पाना चाहते हैं. देश और समाज को ले कर उन की स्पष्ट सोच नहीं है. ये नेता देश के भविष्य के बेहतर होने की जगह अपना लाभ देखते हैं. इस वजह से देश और समाज को युवाशक्ति का लाभ नहीं मिल पा रहा. व्लादिमीर इलीइच उल्यानोव, जिन को लेनिन कहा जाता है, ने कहा था, ‘मु?ो केवल एक पीढ़ी के युवा दे दो, मैं पूरी दुनिया को बदल दूंगा.’ लेनिन मार्क्सवादी विचारधारा के थे. उन के राजनीतिक सिद्धांत लेनिनवाद के नाम से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं.

अगर दुनिया के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि आंदोलन और बदलाव में युवाओं की भूमिका कितनी अहम होती है. कार्ल मार्क्स के राजनीतिक सिद्धांतों में भी युवाओं के विषय में कहा गया है, ‘युवा अपनी जिंदगी के मालिक खुद बनें. दूसरे की सोच के आधार पर अपना भविष्य तय न करें.’ आज के दौर में भारत के युवा नेताओं में भविष्य की सोच का अभाव दिखता है. वह आज भी हजारों साल पुरानी पौराणिक कथाओं की तरफ देख कर अपना भविष्य तय करने की कोशिश कर रहा है. इस वजह से वह ही नहीं पूरा देश पिछड़ता जा रहा है. आज के युवा नेताओं से बेहतर सोच 2 पीढ़ी पहले के युवा रखते थे. महात्मा गांधी ने भारत को आजाद कराया.

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उन्होंने भारत में अंगरेजों के खिलाफ जो आंदोलन किया, उस की नींव दक्षिण अफ्रीका में रखी थी. महात्मा गांधी ट्रेन के उस डब्बे में चढ़ गए थे जो अंगरेजों के लिए रिजर्व था. उस में से उन को उतार दिया गया. देखें तो यह सामान्य सी बात थी. आज भारत आजाद है, उस के बाद भी किसी न किसी नियमकानून के तहत भेदभाव होता है. लेकिन इस व्यवस्था के खिलाफ युवा अपनी आवाज उठाने की जगह सम?ाता कर लेते हैं. कई युवा तो भारत में व्यवस्था के खिलाफ लड़ने की जगह विदेशों में पलायन कर वहां बस जाते हैं. महात्मा गांधी की उम्र उस समय केवल 24 साल थी. उन को सम?ा आ गया कि दक्षिण अफ्रीका की इस रंगभेद नीति के खिलाफ आवाज उठानी जरूरी है. महात्मा गांधी ने वहां पर ‘नेटल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना की. इस के बाद दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी. इस से बहुत सारे लोगों को लगा कि कोई उन के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहा है.

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