देखा गया है- प्रियंका गांधी जब जब कुछ बोलती हैं तो सत्ता पक्ष के साथ विरोधी पार्टी के नेता सन्नाटे में आ जाते हैं फिर गौर से देखते हैं और हमला करते हैं. इसका सीधा सा अर्थ है कि प्रियंका गांधी की बातों में एक वजन होता है जिसका सीधा असर आम जनमानस पर देखा जाता है. कांग्रेस की नेता प्रियंका वाड्रा गांधी का देश में अपना एक वजूद है उनके आकर्षक व्यक्तित्व और बातों से आम मतदाता सीधा प्रभावित होता है. लगभग 10 वर्ष के राजनीतिक सफर के पश्चात अब आगामी समय में प्रियंका गांधी जो कह रही है उसका कुछ ज्यादा ही असर दिखाई दे रहा है, जैसे हाल ही में उन्होंने यह ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40% टिकटें देगी, इसके साथ ही राजनीतिक फिजा बदलने लगी है.

आइए! इस रिपोर्ट में हम देखते हैं प्रियंका वाड्रा गांधी के व्यक्तित्व और उनकी बातों का कितना असर आम जनमानस और राजनीतिक विपक्ष दलों पर देखा जा रहा है. दरअसल, महिला आरक्षण एक ऐसा मसला है जिसे देश के राजनैतिक दल न तो छोड़ना चाहते है और न ही लागू करना चाहते है. ऐसे मे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने वक्त की नब्ज पर हाथ रख उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर तुरूप का पत्ता फेंका है. एक तरह से सत्ता पक्ष भाजपा को मुख्यमंत्री आदित्य योगीनाथ को घेरते हुए प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में “महिलाओं के सशक्तिकरण” के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान कर दी है- “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” .
इसमे कोई दो मत नहीं कि प्रियंका वाड्रा गांधी का यह अंदाज भारत की राजनीति में आने वाले समय में एक प्रकाश स्तंभ बन सकता है और महिलाओं के लिए एक नई राह खुल सकती है.

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यह सच है कि राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर नेता महिलाओं का इस्तेमाल तो करते हैं मगर उन्हें सत्ता शीर्ष पर अथवा कुर्सी पर बैठना नागवार लगता है. प्रियंका गांधी का “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” पहल को राजनीति के धुरंधर मास्टर स्ट्रोक कह रहे है तो कोई आत्मघाती कदम. अन्य राजनीतिक दल इसको निराशा मे उठाया कदम मान रहे हैं. पर इस कदम से आने वाले समय में अन्य सियासी दलों को भी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. यह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है कि उप्र मे कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं है इसलिए वह यह दांव चल रही है.पर जहां सभी दल इस विषय पर मिल कर साझी सहमति बना कर महिलाओं को यथोचित हिस्सेदारी नहीं दे रहे हैं वहां पर प्रियंका गांधी का यह ऐलान संपूर्ण भारतीय राजनीतिक चरित्र को जाहिर करता है और आने वाले समय में राजनीति का चेहरा बदलने के लिए एक शुरुआत कहीं जा सकती है.

राजनीति में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान
महिलाओं का सक्रिय राजनीति मैं आवाज एक जगह से 20 वीं शताब्दी के आसपास से ही शुरू हो गया था. श्रीमती एनी बेसेंट इसका एक बड़ा उदाहरण है. इसके पश्चात जब महात्मा गांधी का युग आया तो उन्होंने अपने हर आंदोलन में एक तरह से महिलाओं को बहुत ज्यादा महत्व दिया उन्होंने महसूस किया कि आजादी की लड़ाई मे और समाज के उत्थान मे हम पचास प्रतिशत आबादी की उपेक्षा कर देश को नेतृत्व नहीं मिल सकता हैं. यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका का 1907 का सत्याग्रह हो या असहयोग आंदोलन हो अथवा ऐतिहासिक डांडी मार्च, उनके द्वारा लाई गई बुनियादी तालीम हो या भारत छोड़ो आन्दोलन, महात्मा गांधी ने हर एक मोर्चे पर महिला शाक्ति को देश के लिए संघर्ष में आगे आगे रखा.

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इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी से की थी, आगे जवाहरलाल नेहरू की मां, स्वरूप रानी नेहरू, सरोजनी नायडू,अरुणा आसफ अली, भीखाजी कामा, सुशीला नैयर, सुचेता कृपलानी, कमला नेहरु,प्रभावती देवी, कमला देवी चटोपाध्याय, राजकुमारी अमृत कौर जैसी असंख्य महिलाओं ने आजादी आंदोलन में अपना योगदान दिया और भारतीय राजनीति को दिशा दी. आजादी के बाद भी महिलाओं का राजनीति में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है अभी वर्तमान में भी अनेक महिला नेत्री ममता बनर्जी, मायावती, अंबिका सोनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. मगर आरक्षण से एक तरफ से महिलाओं के लिए नए दरवाजे खुल जायेंगे और भारतीय राजनीति का चित्र भी बदलने लगेगा.

पुरुष भयभीत है महिलाओं से!

हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों की बागडोर पुरुष नेताओं के हाथों में है यही कारण है कि प्रायः नाम मात्र ही महिलाओं को टिकट नहीं मिलती हैं . ममता बनर्जी की टीएमसी और नवीन पटनायक की बीजेडी जरुर अपवाद हैं जिन्होंने विगत विधानसभा चुनावों मे क्रमशः 40% और 37%महिलाओं को टिकट देकर के एक पहल की है आगे प्रियंका गांधी का यह आगाज महिलाओं को और भी ज्यादा राजनीति में महत्व दिलायेगा. यहां उल्लेखनीय है कि देश की कम्युनिस्ट पार्टीयों द्वारा जो सभी वर्गों को आगे लाने की बात करती हैं महिलाओं को टिकट देने के मामले में उनके रिकार्ड आश्चर्यजनक रूप से निराश करने वाला है. मुख्यमंत्री तो बहुत दूर की बात है, मंत्री भी गिनती की ही महिलाएं बन पाती हैं. ऐसे मे प्रियंका गांधी का कहना कि महिलाओं को आगे आने की ज़रूरत है क्योंकि महिलाएँ अपने सेवा भाव से तस्वीर बदल सकती हैं, महत्वपूर्ण है. इसे एक मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है.

महिला आरक्षण बिल, भूल गया देश

महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण से जुड़ा 108 वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2010 में राज्यसभा से पास होने के बाद अब तक लोकसभा मे भी पास हो गया होता. मगर पुरुष शासित राजनीतिक दल उसके नेता ऐसा नहीं करना चाहते हैं शायद आपको याद हो कि उस समय समाजवादी पार्टी ने महिला आरक्षण को लागू करने के लिए खुलकर विरोध किया था. यह भी देश ने देखा है कि अपने वेतन, भत्ते सुविधाओं की बढ़ोतरी,इलेक्ट्रोरल बान्डस और राजनीति मे धन और अपराधियों के संरक्षण जैसे मुद्दों पर जबरदस्त एकजुटता प्रदर्शित करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा महिला आरक्षण बिल को पास न करना उनकी हकीकत को सामने लाता है.प्रियंका गांधी ने महिला आरक्षण जैसे विषय पर पहल करके एक उथल-पुथल ला दी है प्रियंका वाड्रा गांधी का ऐलान “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ ” हर महिला के लिए है . और आने वाले भविष्य में इसके लाभ देश को दिखाई देने लगेंगे.

प्रियंका गांधी का “महिला आरक्षण” और राजनीतिक फिजां

देखा गया है- प्रियंका गांधी जब जब कुछ बोलती हैं तो सत्ता पक्ष के साथ विरोधी पार्टी के नेता सन्नाटे में आ जाते हैं फिर गौर से देखते हैं और हमला करते हैं. इसका सीधा सा अर्थ है कि प्रियंका गांधी की बातों में एक वजन होता है जिसका सीधा असर आम जनमानस पर देखा जाता है. कांग्रेस की नेता प्रियंका वाड्रा गांधी का देश में अपना एक वजूद है उनके आकर्षक व्यक्तित्व और बातों से आम मतदाता सीधा प्रभावित होता है. लगभग 10 वर्ष के राजनीतिक सफर के पश्चात अब आगामी समय में प्रियंका गांधी जो कह रही है उसका कुछ ज्यादा ही असर दिखाई दे रहा है, जैसे हाल ही में उन्होंने यह ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40% टिकटें देगी, इसके साथ ही राजनीतिक फिजा बदलने लगी है.

आइए! इस रिपोर्ट में हम देखते हैं प्रियंका वाड्रा गांधी के व्यक्तित्व और उनकी बातों का कितना असर आम जनमानस और राजनीतिक विपक्ष दलों पर देखा जा रहा है. दरअसल, महिला आरक्षण एक ऐसा मसला है जिसे देश के राजनैतिक दल न तो छोड़ना चाहते है और न ही लागू करना चाहते है. ऐसे मे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने वक्त की नब्ज पर हाथ रख उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 40 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर तुरूप का पत्ता फेंका है. एक तरह से सत्ता पक्ष भाजपा को मुख्यमंत्री आदित्य योगीनाथ को घेरते हुए प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में “महिलाओं के सशक्तिकरण” के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान कर दी है- “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” .
इसमे कोई दो मत नहीं कि प्रियंका वाड्रा गांधी का यह अंदाज भारत की राजनीति में आने वाले समय में एक प्रकाश स्तंभ बन सकता है और महिलाओं के लिए एक नई राह खुल सकती है.

यह सच है कि राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर नेता महिलाओं का इस्तेमाल तो करते हैं मगर उन्हें सत्ता शीर्ष पर अथवा कुर्सी पर बैठना नागवार लगता है. प्रियंका गांधी का “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” पहल को राजनीति के धुरंधर मास्टर स्ट्रोक कह रहे है तो कोई आत्मघाती कदम. अन्य राजनीतिक दल इसको निराशा मे उठाया कदम मान रहे हैं. पर इस कदम से आने वाले समय में अन्य सियासी दलों को भी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. यह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है कि उप्र मे कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं है इसलिए वह यह दांव चल रही है.पर जहां सभी दल इस विषय पर मिल कर साझी सहमति बना कर महिलाओं को यथोचित हिस्सेदारी नहीं दे रहे हैं वहां पर प्रियंका गांधी का यह ऐलान संपूर्ण भारतीय राजनीतिक चरित्र को जाहिर करता है और आने वाले समय में राजनीति का चेहरा बदलने के लिए एक शुरुआत कहीं जा सकती है.

राजनीति में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान
महिलाओं का सक्रिय राजनीति मैं आवाज एक जगह से 20 वीं शताब्दी के आसपास से ही शुरू हो गया था. श्रीमती एनी बेसेंट इसका एक बड़ा उदाहरण है. इसके पश्चात जब महात्मा गांधी का युग आया तो उन्होंने अपने हर आंदोलन में एक तरह से महिलाओं को बहुत ज्यादा महत्व दिया उन्होंने महसूस किया कि आजादी की लड़ाई मे और समाज के उत्थान मे हम पचास प्रतिशत आबादी की उपेक्षा कर देश को नेतृत्व नहीं मिल सकता हैं. यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका का 1907 का सत्याग्रह हो या असहयोग आंदोलन हो अथवा ऐतिहासिक डांडी मार्च, उनके द्वारा लाई गई बुनियादी तालीम हो या भारत छोड़ो आन्दोलन, महात्मा गांधी ने हर एक मोर्चे पर महिला शाक्ति को देश के लिए संघर्ष में आगे आगे रखा. इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी से की थी, आगे जवाहरलाल नेहरू की मां, स्वरूप रानी नेह

रू, सरोजनी नायडू,अरुणा आसफ अली, भीखाजी कामा, सुशीला नैयर, सुचेता कृपलानी, कमला नेहरु,प्रभावती देवी, कमला देवी चटोपाध्याय, राजकुमारी अमृत कौर जैसी असंख्य महिलाओं ने आजादी आंदोलन में अपना योगदान दिया और भारतीय राजनीति को दिशा दी. आजादी के बाद भी महिलाओं का राजनीति में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है अभी वर्तमान में भी अनेक महिला नेत्री ममता बनर्जी, मायावती, अंबिका सोनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. मगर आरक्षण से एक तरफ से महिलाओं के लिए नए दरवाजे खुल जायेंगे और भारतीय राजनीति का चित्र भी बदलने लगेगा.

पुरुष भयभीत है महिलाओं से!
हमारे देश में राजनीतिक पार्टियों की बागडोर पुरुष नेताओं के हाथों में है यही कारण है कि प्रायः नाम मात्र ही महिलाओं को टिकट नहीं मिलती हैं . ममता बनर्जी की टीएमसी और नवीन पटनायक की बीजेडी जरुर अपवाद हैं जिन्होंने विगत विधानसभा चुनावों मे क्रमशः 40% और 37%महिलाओं को टिकट देकर के एक पहल की है आगे प्रियंका गांधी का यह आगाज महिलाओं को और भी ज्यादा राजनीति में महत्व दिलायेगा. यहां उल्लेखनीय है कि देश की कम्युनिस्ट पार्टीयों द्वारा जो सभी वर्गों को आगे लाने की बात करती हैं महिलाओं को टिकट देने के मामले में उनके रिकार्ड आश्चर्यजनक रूप से निराश करने वाला है. मुख्यमंत्री तो बहुत दूर की बात है, मंत्री भी गिनती की ही महिलाएं बन पाती हैं. ऐसे मे प्रियंका गांधी का कहना कि महिलाओं को आगे आने की ज़रूरत है क्योंकि महिलाएँ अपने सेवा भाव से तस्वीर बदल सकती हैं, महत्वपूर्ण है. इसे एक मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है.

महिला आरक्षण बिल, भूल गया देश

महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण से जुड़ा 108 वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2010 में राज्यसभा से पास होने के बाद अब तक लोकसभा मे भी पास हो गया होता. मगर पुरुष शासित राजनीतिक दल उसके नेता ऐसा नहीं करना चाहते हैं शायद आपको याद हो कि उस समय समाजवादी पार्टी ने महिला आरक्षण को लागू करने के लिए खुलकर विरोध किया था. यह भी देश ने देखा है कि अपने वेतन, भत्ते सुविधाओं की बढ़ोतरी,इलेक्ट्रोरल बान्डस और राजनीति मे धन और अपराधियों के संरक्षण जैसे मुद्दों पर जबरदस्त एकजुटता प्रदर्शित करने वाले राजनीतिक दलों द्वारा महिला आरक्षण बिल को पास न करना उनकी हकीकत को सामने लाता है.प्रियंका गांधी ने महिला आरक्षण जैसे विषय पर पहल करके एक उथल-पुथल ला दी है प्रियंका वाड्रा गांधी का ऐलान “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ ” हर महिला के लिए है . और आने वाले भविष्य में इसके लाभ देश को दिखाई देने लगेंगे.

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