5 जुलाई को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में सेना के शहीद अंशुमन सिंह को कीर्ति सम्मान दिया जा रहा था. उन की मां मंजू सिंह और पत्नी स्मृति सिंह यह सम्मान ले रही थी. बेटे को याद कर मां मंजू सिंह की आंखों में आंसू थे. राष्ट्रपति भवन में सत्ता और विपक्ष के सभी नेताओं के साथ नेता विपक्ष राहुल गांधी भी थे. राहुल ने शहीद अंशुमन की मां को ढांढस बंधाते कहा, ‘मैं आप के साथ हूं. आप मुझ से अपना दर्द कह सकती हैं.’ इस के बाद राहुल ने मंजू सिंह का नंबर लिया. मंजू सिंह अपने पति रवि प्रताप सिंह के साथ लखनऊ चली आई.

मंजू सिंह का अपनी बहू से विवाद था. इस से वह दुखी थी. 2 दिन बाद राहुल गांधी के औफिस से कौल आई. जिस में उन को राहुल गांधी ए मिलने के लिए बुलाया गया. मंजू सिंह ने कहा कि वह तो लखनऊ आ गई है. अब दिल्ली इतनी जल्दी पहुंच पाना मुश्किल है. तब राहुल के औफिस वालों ने बताया कि 2 दिन बाद राहुल गांधी रायबरेली जा रहे हैं तो आप लोग वहां मिल सकते हैं.

मंजू अपने पति के साथ रायबरेली गई. राहुल गांधी से मुलाकात हुई. मंजू सिंह और उन के पति रवि प्रताप ने अपनी मुश्किलों के बारे में बताया. राहुल ने जब मंजू की बात सुनी, कहा कि ‘वह सेना और रक्षा विभाग से बात करेंगे.’ राहुल गांधी के बात करने के बाद मीडिया में चर्चा शुरू हो गई. मंजू सिंह जो मुद्दा उठाना चाहती थी कि शहीद के पेरैंट्स के अधिकारों की रक्षा की जाए. वह उठ गया.

राहुल गांधी देश में प्रधानमंत्री के समान अधिकार वाले नेता हो गए हैं. नेता प्रतिपक्ष होने के नाते उन की बात को प्रशासन सुनने लगा है. अगर कहीं कोई परेशानी है और राहुल गांधी वहां खड़े हैं तो अब उन की बात को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. इस से जनता को राहत मिलने लगी है. विपक्ष के रूप में राहुल जहां पहुंचते हैं सरकार को उन की बात सुननी पड़ती है. उत्तर प्रदेश के हाथरस में जब भगदड़ में 121 लोग मरे तो राहुल घटना स्थल तक गए. मुआवजे के लिए कहा. सरकार ने बात मानी.

पारपंरिक राजनीति को बदल रहे राहुल गांधी

एक तरह से देखें तो नेता विपक्ष भी सरकार का हिस्सा होता है. प्रशासन और मीडिया को उस की कही बात को सम्मान देना ही पड़ता है. इस से वह भी जनता की मदद करने की ताकत रखता है. राहुल गांधी ने पारपंरिक राजनीति को बदलने का काम किया है. इस वजह से भले ही कांग्रेस में वह अकेले दिखते हों पर वह अकेले नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ उन का गठबंधन है. 2017 में जब राहुल अखिलेश की जोड़ी विधान सभा चुनाव में उतरी तो उनको सफलता नहीं मिली.

इस के बाद राहुल अखिलेश की जोड़ी का मजाक उड़ाया गया. 2 लड़कों की जोड़ी को 2 शहजादों की जोड़ी कहा गया. अपनी आलोचना को भूल राहुल गांधी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साथ चुनाव लड़ा. राहुल अखिलेश की जोड़ी ने भाजपा को 33 सीटों पर रोक दिया. सपा नम्बर एक की पार्टी बनी. काग्रेस ने भी आपेक्षा से अधिक सफलता हासिल कर ली. मुलायम सिंह यादव ने भले ही कांग्रेस के साथ कभी सीधा गठबंधन नहीं किया. अखिलेश और राहुल ने पारपंरिक राजनीति को छोड़ कर अलग रास्ता बनाया. अब यह जोड़ी उत्तर प्रदेश से बाहर मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी साथसाथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

राहुल गांधी कहते हैं, ‘मैं जनता के साथ हूं. जहां मेरी जैसे जरूरत पड़ेगी मैं पीड़ित पक्ष के साथ खड़ा रहूंगा. मैं देश में नफरत वाली राजनीति जनता को हिंदूमुसलमान में बांटने वाली राजनीति को खत्म करूंगा. अपने साथ इसी तरह के लोगों को का गठबंधन होगा जो समाज को तोड़ने वाली व्यवस्था को खत्म करने में सहयोग करेंगे’.

जिस तरह से राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ हैं उसी तरह से वह बिहार में तेजस्वी यादव के साथ हैं. केरल में पी. विजयन और तमिलनाडू में एमके स्टालिन राहुल गांधी में आपसी संबंध अच्छे हैं. पश्चिम बंगाल में भले ही टीएमसी नेता ममता बनर्जी कई बार कांग्रेस को झटका दे रही हों पर राहुल गांधी के साथ उन के संबंध मधुर हैं. राहुल गांधी अपनी टीम के साथ पूरे देश में समाज के बीच सहयोग और सम्मान का पुल बनाने का काम कर रहे हैं.

दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की राजनीति किसी तरह की विचारधारा वाली नहीं है. ऐसे में उन का अपना वोटबैंक नहीं है. वह विकल्प के रूप में कई बार चुनाव जीत जाते हैं. राजनीति में वह लंबी रेस का घोड़ा नहीं है. ऐसे में राहुल गांधी उन के साथ अपनी राजनीति को जोड़ नहीं पा रहे हैं. राहुल गांधी की सब से बड़ी कमजोरी यह है कि जहां कांग्रेस और भाजपा आमनेसामने है जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमांचल और छत्तीसगढ़ वहां वह कमजोर पड़ जा रहे हैं.

खत्म होगी बुलडोजर और बंदूक की राजनीति

अखिलेश और राहुल की जोड़ी का ही कमाल है कि अब उत्तर प्रदेश में बुलडोजर और बंदूक की राजनीति नहीं चलेगी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जनता की बात सुननी पड़ेगी. उन का तानाशाही फरमान नहीं चलेगा. इस का प्रभाव दिखने भी लगा है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोकसभा चुनाव के पहले अकबर नगर तोड़ दिया गया. कुकरैल नाले पर रिवर फ्रंट बनाने के लिए सरकार ने इस अवैध बस्ती को गिरा दिया. यहां पक्के घर थे. इन घरों में रहने वालों के पास राशन कार्ड, बिजली बिल, वोटर कार्ड सब थे. कोर्ट के आदेश का सहारा ले कर यह काम किया गया.

अवैध बस्ती के दूसरे हिस्से को तोड़ने की बारी आई तब तक चुनाव परिणाम आ चुके थे. जैसे ही इस बस्ती के रहने वालों ने विरोध किया यूपी सरकार ने बुलडोजर की कार्रवाई रोक दी. इस से बस्ती में सालोंसाल से रह रहे लोगों को राहत मिल गई. अपराधियों के एनकांउटर की घटनाएं अब नहीं हो रही हैं. उत्तर प्रदेश से सरकारी शिक्षकों ने डिजिटल अटेंडेंस के खिलाफ मुहिम चलाई तो सरकार ने जिद नहीं की. 2 माह के लिए इस आदेश पर रोक लगा दी.

इस की सब से बड़ी वजह उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. इन में से 3 भाजपा जीती थी. 2 उस के सहयोगी दलों ने. 5 सीटें समाजवादी पार्टी के पास थीं. अब भाजपा के लिए इन सीटों को जीतना कड़ी चुनौती है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी यह चुनाव मिल कर लड़ रहे हैं. राहुल और अखिलेश की जोड़ी एक बार फिर भाजपा के सामने खड़ी है. अगर इस उप चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहता है तो योगी सरकार संकट में फंसेगी. मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हिल सकती है.

भाजपा संगठन में भी बदलाव हो सकता है. अखिलेश यादव ने भाजपा को मानसून औफर देते कहा है कि ‘100 लाओ सरकार बनाओ.’ अखिलेश का यह औफर उपचुनाव के बाद ही लागू हो सकता है. राहुल और अखिलेश की जोड़ी 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बेहद ताकतवर हो गई है. वह जनता की परेशानियों को समझ कर सरकार को उस दिशा में सोचने को मजबूर कर सकते हैं. इस से जनता को लाभ होगा. सरकार मनमाने फैसले करने से बचेगी. उसे लगेगा कि विपक्ष के एतराज के बाद आदेश वापस लेने से अच्छा है कि सही आदेश हो. यह जनता के हित में रहेगा.

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