ताकतवर की ही समाज और राजनीति में जगह होती है. उसी के फैसले माने जाते हैं. मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस से गठबंधन का तालमेल बनता न देखकर लोकदल और जनता दल युनाइटेड ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में छोटे दलों का महागठबंधन बनाने का काम शुरू कर दिया है.

पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले इन दलों के साथ दलितों को जोड़ने का काम आरके चौधरी की पार्टी बीएसफोर भी करेगी. राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश कार्यालय में लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह, जदयू के अध्यक्ष शरद यादव और महासचिव केसी त्यागी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा में महागठबंधन की नींव रखी.

शरद यादव ने कहा कि हमने बिहार के विधानसभा चुनावो में महागठबंधन टूटने के बाद भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में साम्प्रदायिक ताकतों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का फैसला किया. सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने इसमें अपनी सहमति दी. सबने इसको आगे बढ़ने का काम किया. तब बिहार की ही तरह उत्तर प्रदेश के मुद्दे पर भी मुलायम पीछे हट गये. वह बोले की जिसको साथ चलना है वह सपा में विलय कर ले. शरद यादव कहते है बिहार चुनाव में हमने विलय ही कर लिया था. सभी दल सपा के साथ खड़े थे उसके बाद भी गठबंधन नहीं हो सका.

महागठबंधन क्यो नहीं हुआ इस बारे में महासचिव केसी त्यागी ने कहा, यह बात तो सपा के नेताओं के बयानों से ही साफ हो चुका है कि बिहार गठबंधन क्यों टूटा. उत्तर प्रदेश का अंदाजा भी उसी बात से लग सकता हैं. लोकदल प्रमुख अजित सिंह ने कहा हम अभी और दलों को भी एकजुट करने के प्रयास में है. अभी हमने कांग्रेस से कोई बात नहीं की है.

असल बात यह है कि लोकदल और जदयू का उत्तर प्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं है. समाजवादी पार्टी को पता है कि विधानसभा चुनावों के बाद अगर इन दलों के विधायक जीत कर आयेंगे तो जरूरत पड़ने पर अपने पक्ष में किया जा सकता है. लोकदल 2003 में मुलायम सरकार के साथ सरकार में रह चुकी है. लोकदल की अनुराधा चौधरी मुलायम सरकार में मंत्री बनी थीं. जदयू के पास ऐसा अवसर नहीं आया. मौका पड़ने पर वह भी सपा के साथ होगी.

जदयू और सपा के रिश्तों में लालू प्रसाद यादव का अहम रोल होता है. बिहार में लालू और जदयू साथ है पर दोनो दलों के बीच आपसी मतभेद भी है. लालू मुलायम के रिश्तेदार हैं. अब वह मुजालम के ही साथ रहेंगे. इस बात की घोषणा वह कर चुके है. लालू प्रसाद यादव की पार्टी सपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ेगी. ऐसे में सपा और जदयू के रिश्ते जुड़ नहीं पायेंगे.

लोकदल के नेता अजित सिंह को मुलायम ने हमेशा जरूरत के हिसाब से ही इस्तेमाल किया है. मुलायम अजित को भरोसेमंद नेता नहीं मानते. इन वजहों से सपा लोकदल-जदयू के महागठबंधन में शामिल नहीं हुई. बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन को बिना सपा के ही चुनावी सफर तय करना होगा. यहां लालू प्रसाद भी उनके साथ नहीं होंगे.

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