यही रिपोर्ट और उसके आंकड़े अगर तयशुदा वक्त यानि दिसंबर 2018 में जारी कर दिये जाते तो लोकसभा चुनाव नतीजों की तस्वीर कुछ और होती. लेकिन नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नीयत का खोट अब उजागर होने लगा है. कैसे उन्होंने बेरोजगारी जैसे अहम और संवेदनशील मुद्दे पर बेरोजगारों को गुमराह कर उनके वोट राष्ट्रवाद के नाम पर झटके. खुद सरकार द्वारा ही जारी रिपोर्ट में बड़ी मासूमियत से यह सच स्वीकार लिया है कि हां देश में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी है, और यह पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है .

गौरतलब है कि ये आंकड़े श्रम मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हैं . चुनाव के ठीक पहले यह भयावह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे औफिस यानि एनएसएसओ की एक रिपोर्ट में लीक हुआ था. जिस पर खासा हल्ला मचा था और सरकार द्वारा इन आंकड़ों को जारी न करने के विरोध में राष्ट्रीय संखियिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष सहित दो और सदस्यों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. लेकिन सत्ता लोलुप सरकार के कानों पर तब भी आज की तरह जूं नहीं रेंगी थी.

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इस सर्वे की एक और दिलचस्प लेकिन चिंतनीय बात या तथ्य यह है कि यह जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के बीच हुआ था यानि नोटबंदी के बाद, बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी. नोटबंदी को लेकर सरकार के तमाम दावे भोंथरे साबित हो चुके हैं मसलन न कालाधन वापस आया और न ही आतंकवाद खत्म हुआ. इस पर कई विशेषज्ञ भी वक्त-वक्त पर  हैरानी जाहिर कर चुके हैं कि आखिर नोटबंदी से किसे क्या हासिल हुआ और इसको लेकर सरकार के दावे कहां हवा हो गए.

कुछ हुआ न हुआ हो लेकिन नोटबंदी का फायदा भाजपा को उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में मिला था. क्योंकि सपा और बसपा पैसों की तंगी के चलते अपना प्रचार ढंग से नहीं कर पाये थे. बेरोजगारी के आंकड़े छिपाने का फायदा भी उसे ही लोकसभा चुनाव में मिला. सरकार ने सरासर यह रिपोर्ट दवा ली नहीं तो चुनाव में उसे वह कामयाबी नहीं मिल पाती जो कि मिली. इस रिपोर्ट ने पुलवामा हादसे और बालाकोट एयर स्ट्राइक को भी कटघरे में ला खड़ा कर दिया है. जिनके सबूत मांगने बालों को राष्ट्र द्रोही करार दे दिया जाता है यानि सरकार जो कह दे उसे सर झुकाकर सच मान लो नहीं तो पाकिस्तान चले जाओ. यानि मोदी सरकार अपने सियासी फायदे और खुद्गर्जी के लिए कुछ भी छिपा सकती है और कुछ भी उल्टा सीधा गिना सकती है . उसे बेरोजगारों और युवाओं के भविष्य से कोई लेना देना नहीं है.

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इस मसले पर सरकार से ज्यादा धन्य तो वे भारतीय युवा हैं जो चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रवाद का खंबा और झण्डा उठाए जय जय श्री राम का नारा बुलंद करते अपना गला यह सोचते फाड़ते रहे कि रोजगार से ज्यादा अहम देश और हिंदुत्व है रोजगार तो बाद की बात है. अब इन युवाओं के पास दो ही रास्ते हैं पहला तो यह कि वे अब भी नारे लगाते अपनी जवानी देश पर कुर्बान कर दें या फिर रिपोर्ट को गौर से पढ़कर अपना माथा फोड़ें. उम्मीद है उन्माद में डूबे युवा पहले रास्ते पर ही कायम रहेंगे क्योंकि मोदी है तो सब मुमकिन है.

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