फिल्मकार का काम होता है कि वह सरकार का पिछलग्गू बनने या सरकारी नीतियों का महिमा मंडन करने की बनिस्बत समाज में जो कुछ घटित हो रहा है, उसे सिनेमाई परदे पर चित्रित करे, मगर जब फिल्मकार इस नियम के विरुद्ध जाता है तो वह अनजाने ही अपनी रचनात्मक शक्ति खो बैठता है. उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके में बाहुबलियों का बोलबाला है. इन बाहुबलियों ने अपने ताकत व बंदूक की नोक पर ऐसा भौकाल बना रखा है, जिस के चलते आम जनता के साथ साथ राजनेता भी इन के गुलाम सा बने हुए हैं.

धीरेधीरे यह बाहुबली राजनेता बन विधानसभा व संसद में पहुंचने लगे. इसी परिप्रेक्ष्य में करण अंशुमन और पुनीत कृष्णा ने मिल कर एक आपराध, रोमांचक व एक्शन प्रधान सीरीज ‘मिर्जापुर’ की रचना की थी, जो कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल के बाहुबलियों की कहानी पर आधारित था.

रितेश सिद्धवानी और फरहान अख्तर निर्मित यह सीरीज 16 नवंबर 2018 से अमेजन प्राइम वीडियो पर जब स्ट्रीम होनी शुरू हुई थी तो देखते ही देखते ही 9 एपीसोड की इस सीरीज में कालीन भईया के किरदार में पंकज त्रिपाठी का भौकाल दर्शकों के सिर पर चढ़ कर बोलने लगा था. इसे जबरदस्त लोकप्रियता मिली. उस के बाद ‘अमेजन प्राइम वीडियो’ पर ही इस का ‘मिर्जापुर सीजन’ दो आया, मगर इस में पहले वाली धार नहीं थी. क्योंकि इस के लेखक व निर्देशक बदल चुके थे. यह दूसरा सीजन 23 अक्टूबर 2020 से स्ट्रीम होना शुरू हुआ था, उस वक्त कोविड महामारी का वक्त भी था, जिस के चलते इसे लोगों ने काफी देखा. इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कई बाहुबलियों का मटियामेट कर डाला.
खैर, अब पूरे 4 साल बाद ‘मिर्जापुर’ का सीजन तीन 5 जुलाई से ‘अमेजन प्राइम वीडियो पर ही स्ट्रीम हो रहा है. इस बार अपूर्व धर बडगैयन, अविनाश सिंह तोमर, विजय नारायण वर्मा और अविनाश सिंह लेखक तथा गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर निर्देशक हैं.इस बार भी यह सीरीज अपराध,हिंसा, खून खराबा, गाली गलौज के साथ ही सत्ता के इर्दगिर्द घूमता है, मगर इस बार फिल्मकार सत्ता परस्त हो कर ‘भयमुक्त’ (वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी भी प्रदेश को ‘भयमुक्त’ बनाने के लिए बाहुबलियों के खात्मे की बातें कर रहे हैं.) प्रदेश बनाने की बात करने वाला यह तीसरा सीजन ले कर आए हैं और इस में कालीन भईया या मुन्ना का भौकाल गायब है. गुड्डू पंडित व गोलू अपने ढर्रे पर हिंसा व खून खराबा को अंजाम दे रहे हैं, मगर प्रदेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव ‘भयमुक्त’ प्रदेश बनाने के लिए प्रयासरत हैं, जिस के चलते शरद शुक्ला, दद्दा व छोटे त्यागी के किरदार काफी शिथिल कर दिए गए हैं, जिस से दर्शक इत्तफाक नहीं रख पाता और वह बोर हो जाता है. यह सीरीज काफी निराश करती है. यदि लेखक, निर्देशक व निर्माता सरकार परस्त काम करना चाहते हैं तो उन्हें सरकार की सोच को ले कर डाक्यूमेंट्री बनानी चाहिए. मजेदार बात यह है कि इस सीरीज में प्रदेश की मुख्यमंत्री माधुरी यादव अपने राज्य के गृहमंत्री को विश्वास में लिए बगैर उन के मंत्रालय का काम भी खुद करते हुए नजर आ रही है. क्या ऐसा ही कुछ हमारे देश में नहीं हो रहा है.

तीसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पर सीजन दो खत्म हुआ था. सीजन दो के अंत में हम ने देखा था कि अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ कालीन भैया (त्रिपाठी) और उन का बड़ा बेटा मुन्ना (दिव्येंदु) दोनों पर हमला होता है. मुन्ना ( द्विवेंदु शर्मा ) मारा गया था, मगर किसी ने कालीन भईया (पंकज त्रिपाठी ) को बचा लिया था. तीसरे सीजन के पहले एपीसोड में लगभग 6 मिनट में अब तक का रीकैप ही है. जिस से पता चलता है कि कालीन भईया को बचा कर शरद शुक्ला (अंजुम शुक्ला ) अपने साथ ले जा कर दद्दा त्यागी (लिलिपुट) के अड्डे पर छिपाया है और वहीं पर उन का इलाज शुरू करवाया गया है.

फिलहाल वह कोमा में हैं. डाक्टर उन्हें कोमा से बाहर लाने के लिए प्रयासरत हैं पर कालीन भैया (पंकज त्रिपाठी) कहां हैं, इस की खबर किसी को नहीं. माधुरी (ईशा तलवार) अपने पति मुन्ना की चिता को आग देने के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश को भयमुक्त बनाने और अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए अपने राजनीतिक हथकंडे अपना रही है. उधर गुड्डू पंडित व गोलू ने खुद को गद्दी पर बैठा लिया है. बीना त्रिपाठी (रसिका दुग्गल), और गुड्डू पंडित (अली फज़ल) मान चुके हैं कि कालीन भईया की मौत हो गई है. पर गोलू (श्वेता त्रिपाठी शर्मा) अभी भी कालीन भईया की तलाश में लगी हुई है.
दूसरी तरफ बाहुबलियों के युद्ध का मैदान अब सिर्फ पूर्वांचल तक सीमित न रह कर पूरे प्रदेश तक फैल गया है. पश्चिम, पूर्वांचल से अधिक देने को तैयार है, इसलिए पश्चिम के बाहुबली बार बार बैठक कर पूर्वांचल पर भी अपना हक जताना चाहते हैं. यानी कि ‘नया कौन बनेगा बाहुबली’ का गेम बहुत पुरानी बात हो गई है.
शरद शुक्ला (अंजुम शर्मा) पिता का सपना पूरा करने के लिए मिर्जापुर की गद्दी हथियाने के लिए राजनीति और बाहुबल जोड़ने में लगे हुए हैं. वह मुख्यमंत्री माधुरी से भी हाथ मिला रहे हैं. दद्दा का भी साथ लिए हुए हैं. शरद हर हाल में गुड्डू को हटाना चाहते हैं, जो कि अपनी सनक और डर के दम पर मिर्जापुर की गद्दी पर बने हुए हैं. अब कहानी किस अंजाम पर पहुंचती है, इस के लिए 10 लंबे एपीसोड देखने पड़ेंगें.

अपराध, रोमांच व एक्शन प्रधान सीरीज में रोचकता बनाए रखने के लिए आवश्यकता पाशविकता क्रूरता व दुष्टता तो प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करती है. मगर जब शीतयुद्ध जैसे हालात हों तो क्या होगा? कहानी के केंद्र में बाहुबली अपनी ताकत दिखाने की बजाय शतरंजी चालें चलने में मगन हैं. इस सीजन में लेखक व निर्देशक वर्तमान राज्य सरकार के मुख्यमंत्री के एजेंडे को चलाने के लिए जिस तरह से कहानी को गढ़ा, उस ने ‘मिर्जापुर’ के भौकाल को ही मटियामेट कर डाला. मिर्जापुर की गद्दी पर बैठने के बाद गुड्डू पंडित का किरदार कई दृष्यों में बचकाना सा लगता है.
जब ‘एनीमल’ और ‘किल’ जैसी हिंसात्मक फिल्में दर्शकों के सामने हैं, तो इन फिल्मों के मुकाबले ‘मिर्जापुर सीजन तीन’ काफी कमजोर हो गई है. लेखकों ने तीसरे सीजन में किरदार तो भर दिए, पर किसी भी किरदार का सही ढंग से चरित्र चित्रण नहीं कर पाए. परिणामतः कहानी भी भटकी हुई लगती है. माना कि सीरीज में राजनीति, धोखा, विद्वेष, वासना और ह्यूमर सब कुछ है पर जो रोचकता होनी चाहिए थी उस का घोर अभाव है.

प्रदेश में व्याप्त अराजकता के धूर्त राजनीतिक स्वर एक या दो बार सामने आते हैं, लेकिन कोई दंश नहीं है. कहानी व पटकथा के स्तर पर लेखक भ्रमित हैं. एक तरफ प्रदेश की मुख्यमंत्री ‘भयमुक्त प्रदेश’ बनाना चाहती हैं, तो दूसरी तरफ उन की नजर बाहुबली के गंदे पैसे यानी कि काले धन पर है. इसी तरह शरद शुक्ला के किरदार के साथ भी न्याय नहीं हो पाया. मिर्ज़ापुर की गद्दी का दावेदार बताने वाला शरद शुक्ला (अंजुम शर्मा) एक तरफ कालीन भइया के सामने खुद को उन का भरोसेमंद साबित करने पर तुला है तो दूसरी तरफ सत्ता के साथ भी तालमेल बिठा रहा है. पूरी सीरीज में पहले सीजन में जो कालीन भईया की साजिशें थी, उन का अभाव खलता रहा. दर्शक लगातार सोचता रहता है कि मुन्ना वापस आ जाए.

निर्देशकों ने इसे अधिक यथार्थवादी बनाने के लिए लोकेशनों का चुनाव काफी अच्छा किया है. फिल्मकार ने मिर्ज़ापुर ब्रह्मांड के विस्तारित मानचित्र और पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार और नेपाल में हुए रक्तपात को समझाने के लिए विस्तृत ग्राफिक्स का उपयोग किया है पर वह दर्शक के दिलों तक नहीं पहुंच पाते. फिल्म की साउंड डिजाइनिंग बहुत गड़बड़ है. इसे एडिटिंग टेबल पर कसने की भी जरुरत थी. पंकज त्रिपाठी के लिए 2024 का यह साल बहुत खराब ही जा रहा है. सब से पहले उन की फिल्म ‘मैं अटल हूं’ ने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा. फिर नेटफ्लिक्स ने उन की इमेज का फिल्म ‘मर्डर मुबारक’ में कचरा कर दिया और अब इस वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ के तीसरे सीजन ने तो उन की पूरी लुटिया ही डुबा दी. जब ‘मिर्जापुर’ का पहला सीजन आया था, तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि तीसरे सीजन में कालीन भईया इस गति में पहुंच जाएंगें.

इस सीजन में उन के हिस्से करने को कुछ रहा ही नहीं. वैसे पंकज त्रिपाठी निजी जीवन में अपनों के साथ जैसा कर रहे हैं वैसा अब उन के साथ परदे पर हो रहा है. अन्यथा बिस्तर पर पड़े हुए भी वह अपनी प्रतिभा का जलवा बिखेर सकते थे. गोलू पर निर्भर गुड्डू पंडित के किरदार में अली फजल के अभिनय का वह जलवा बरकरार नहीं रहा, जो उन्हे उत्कृष्ट बनाता है.
एक लड़की के प्यार या उस की बुद्धि या वीरता के तले दबे इंसान के चेहरे पर जो भाव गुड्डू पंडित के चेहरे पर आने चाहिए थे, वह लाने में अली फजल विफल रहे हैं. इस के लिए वह स्वयं दोषी हैं. पहले सीजन में शर्मीली लड़की से तीसरे सीजन में लेडी डान बन चुकी गोलू के किरदार में श्वेता त्रिपाठी भी खरी नहीं उतरती. बीना त्रिपाठी के किरदार में रसिका दुग्गल के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. प्यार और बदले के बीच फंसे हुए छोटे त्यागी के किरदार में विजय वर्मा कुछ दृष्यों में प्रभावित कर जाते हैं. शरद शुक्ला के किरदार में अंजुम शर्मा का अभिनय एक जैसा ही है, उस में कहीं कोई विविधता नजर नहीं आती. जबकि शरद शुक्ला के किरदार के कई आयाम हैं. मुख्यमंत्री माधुरी के किरदार में ईशा तलवार चुक गईं. रमाकांत पंडित के किरदार मे राजेश तैलंग, राउफ लाला के किरदार में अनिल जौर्ज अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं.

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