भारत और चीन अर्थव्यवस्था के मामले में एक समय साथसाथ चल रहे थे. मगर राम मंदिर आंदोलन के बाद से, देश की जीडीपी चीन के मुकाबले पिछड़ती चली गई, जहां चीन ने धर्म को सत्ता से दूर रखा वहीँ भारत ने इसे केंद्र में.
धर्म दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था को लील रहा है. जिन देशों में सरकारें धर्म को प्रोत्साहित कर रही हैं, वहां की अर्थव्यवस्था बरबादी की ओर जा रही हैं. पाकिस्तान, अफगानिस्तान ही नहीं, कुछ अरब देशों सहित अमेरिका और ब्रिटेन तक धर्म के नशे में शामिल हैं. सरकारों की शह से धार्मिक कट्टरपंथी तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं, धर्म को प्रश्रय और प्रोत्साहन की सरकारी नीति भी देशों की गर्त की ओर ले जा रही है.
भारत की दशा भी कुछ वर्षों से ऐसी ही हो रही है. सरकारें विकास के चाहे कितने ही गाल बजा लें, आंकड़ें और हकीकत दुर्दशा की गवाही दे रहे हैं.
जिन देशों ने धर्मों के नागों को नाथ कर रखा, वो देश प्रगति के फर्राटे भर रहे हैं. उन में चीन एक प्रमुख देश है. कम्युनिस्ट नास्तिक होने के बावजूद चीन में बौद्ध, ताओइज्म, ईसाई, इस्लाम आदि धर्म मौजूद हैं और ये शासन सत्ता को दबा झुका कर अपनी मनमर्ज़ी चलाने के हरसंभव प्रयास करते रहते हैं लेकिन सरकार है कि वह उन्हें सिर चढ़ाने के बजाय उन पर उलटे कौड़े बरसाती दिखाई देती है. क्योंकि चीन की कम्युनिस्ट सरकार सत्ता के लिए धर्मों की मुहताज नहीं है.
दरअसल 1989 के बाद से चीन के मुकाबले भारत की जीडीपी लगातार पिछड़ती रही है. भारत में जब से राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ, देश की अर्थव्यवस्था पर ग्रहण शुरू हो गया. शुरू में कहा गया कि 21वीं सदी भारत की होगी लेकिन बाजी तो चीन मार ले गया. अपनी विशाल जनसंख्या का फायदा वह अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में कामयाब दिखाई दे रहा है. इधर भारत अपनी सारी ऊर्जा अयोध्या में मंदिर निर्माण, काशी, मथुरा, केदारनाथ, उज्जैन की परिक्रमा, धारा 370, समान नागरिक संहिता, जैसे कामों में ही लगाता रहा है.
देश में अनगिनत मंदिर और तीर्थस्थल हैं जिन से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हैं. इसी आस्था का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए भाजपा ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन शुरू किया. आस्था के केंद्र से सियासत के समीकरण बनाए गए. जनता को लुभाने के लिए तरहतरह के नारे गढ़े गए.
राम के जीवन दर्शन के लिए सरकार ने रामायण सर्किट बनाया. साथ ही चार धाम रोड प्रोजैक्ट भी तैयार किया गया है. बुद्ध सर्किट को भी सरकार ने और मजबूत बनाया है. इस के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही कायाकल्प के बाद केदारधाम का लोकार्पण किया और बद्रीधाम का भी कायाकल्प किया जा चुका है. यही नहीं, जम्मू कश्मीर में सरकार करीब 50 हजार मंदिरों का जीर्णोद्धार कर रही है. मुसलिम देश में भी हिंदू मंदिर बनाया जा चुका है.
उधर चीन ने धर्मों पर अंकुश रखा है. हालांकि धर्मों ने सत्ता पर वर्चस्व की कोशिशें कीं लेकिन सरकारी नीतियों ने उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. चीन ने अपनी विशाल आबादी का इस्तेमाल देश की प्रगति में किया है.
राम मंदिर आंदोलन के बाद से देश निकम्मेपन, बेकारी की ओर बढ़ने लगा. बेकारों की फौज में बढ़ोतरी होने लगी.
राम मंदिर आंदोलन का देश की उत्पादकता, अर्थव्यवस्था से कोई संबंध नहीं रहा. हालांकि सरकारों ने दावे किए कि इस से पर्यटन बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था की रफतार बढ़ेगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता. राम मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय देश के लगभग एक दर्जन शहरों से सीधे अयोध्या के लिए फ्लाइटें संचालित की गईं लेकिन खबरें आ रही हैं कि अब वे सभी फ्लाइटें बंद हो चुकी हैं.
अयोध्या में लोगों ने व्यापार की दृष्टि से जमीनें खरीदीं व अन्य तरीकों से निवेश किया, इस उम्मीद से कि मंदिर निर्माण के बाद रामजी नए सिरे ने व्यापार में बढ़ोतरी करेंगे पर टांयटांय फिस्स हो गया.
अकेले राम मंदिर निर्माण में हजारों करोड़ रूपए लग गए. यह पैसा इस देश की जनता की मेहनत की कमाई का था. अगर वहां इतने ही पैसों के 20-30 कारखाने लग जाते तो वहां की गरीब जनता रामजी के लिए जलाए गए लाखों दीयों से तेल बटोरती हुई पुलिस के डंडे नहीं खाती.
मंदिरों का निर्माण हो, तीर्थों का विकास या कौरिडोर बनाने हों, इन में खर्च हजारों करोड़ रूपए सरकार और उस के अंधभक्तों की आत्मसंतुष्टि और पंडों के धंधे चमकाने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं लेकिन इस देश के आम लोगों के किसी काम के नहीं हैं.
1978 में जब से चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना और सुधारना शुरू किया, तब से जीडीपी वृद्धि औसतन 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है और लगभग 800 मिलियन लोग गरीबी से बाहर निकल आए हैं. इसी अवधि में स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सेवाओं तक पहुंच में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है. 1978 से सुधार के बाद यह दुनिया की चौथी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है. अविश्वसनीय रूप से चीन ने 30 वर्षों में सुधार, पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति के बराबर काम किया है. यह अविश्वसनीय है क्योंकि केवल तीन दशक पहले चीन इतना गरीब और अलगथलग था.
कभी हुआ करते थे बराबर
एक समय था जब भारत जीडीपी में चीन के करीब आ पहुंचा था. 1991 में भारत की जीडीपी करीब 0.27 ट्रिलियन डौलर थी. 28 साल में 11 गुणा बढ़ कर 2.88 ट्रिलियन डौलर हो गई. 1980 में चीन की जीडीपी भारत से सिर्फ 2.5 प्रतिशत अधिक थी जो 75 गुणा बढ़ कर 14.34 ट्रिलियन डौलर हो गई.
राम मंदिर आंदोलन को भी 3 दशक से अधिक समय हो गया. आंदोलन का नतीजा है कि इस दौरान गांवों, कस्बों, शहरों और महानगरों ने हजारों मंदिर, मस्जिद बन गए. ये इतने विशाल, भव्य हैं कि इस की चकाचौंध में लोग रोजीरोटी, शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दे भूल गए हैं.
इधर चीन की धार्मिक नीति बड़ी कठिन है. यहां धर्मस्थलों को सरकार से मंज़ूरी लेनी होती है. इस के साथ ही इन की गतिविधियों पर सरकार का नियंत्रण होता है. चीन में मुसलिम भी पाबंदियों के साथ जी रहे हैं.
चीन इतना ताकतवर है, लेकिन इस देश में धर्मों का संसार सब से लाचार है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के लगभग 8.5 करोड़ कार्यकर्ता हैं. इन्हें सख्त चेतावनी है कि वो किसी धर्म का पालन नहीं करेंगे. अगर पार्टी का कोई कार्यकर्ता किसी भी धर्म का अनुयायी पाया जाता है तो उसे सज़ा देने का प्रावधान है़.
प्रशासनिक मामलों में धर्म से दूरी
चीन में 6.7 करोड़ लोग ईसाई धर्म को मानते हैं. इन करोड़ों लोगों के लिए आधिकारिक चर्च के अलावा दूसरे चर्चों में प्रार्थना करना आसान नहीं है. चीन के पारंपरिक धर्म बौद्ध और ताओइज्म मानने वाले 30 से 40 करोड़ लोग हैं. चीन में धर्मों पर नियंत्रण का एक व्यावसायिक पहलू भी है. मंदिरों में स्थानीय सरकार लोगों की एंट्री पर शुल्क देने पर मजबूर करती है.
चीन में बौद्ध धर्म के बारे में कहा जाता है कि यह एकमात्र विदेशी धर्म है जिस की चीन में सब से ज़्यादा स्वीकार्यता है. चीन में बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में आया था. चीन के कई हिस्सों में वह एक महत्वपूर्ण ताकत है. ग्रामीण चीन में इस का ख़ास प्रभाव है. लेकिन सरकारों में दखलंदाजी से दूर दिखाई देता है.
इस्लाम चीन में 7वीं शताब्दी में वहां के अरब के व्यापारियों के ज़रिए आया था. आज इस्लाम यहां अल्पसंख्यक है. एक अनुमान के मुताबिक चीन में डेढ़ करोड़ से ज्यादा मुसलिम हैं. राजनीतिक रूप से चीन में मुसलमानों को अहम भागीदारी है, क्योंकि चीन ने व्यापार के लिए इन का इस्तेमाल करना सीख लिया है. चीन का मुसलिम देशों से अच्छा संबंध है. यहां के लगभग मुसलिम सुन्नी हैं लेकिन इन पर सूफ़ियों का प्रभाव ज़्यादा है. यानी इन में कट्टरता नहीं है.
राम मंदिर आंदोलन के बाद से भारत में मुसलमानों और मुसलिम देशों के प्रति एक नफरत का माहौल बनाया गया, जिस का नुकसान भारत को आर्थिक और सामाजिक तौर पर उठाना पड़ रहा है. इस का असर जीडीपी पर पड़ना निश्चित था.
डेवेलपमैंट में आगे चीन
चीनी सरकार का मानना है कि धार्मिक आस्था वामपंथ को कमजोर करती है. पार्टी का मानना है कि धर्म विचारधारा के आड़े आता है. पार्टी कार्यकर्ताओं को हर नियम मानना पड़ता है. 1990 में चीनी अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में बड़ी थी. आज भी चीन की जीडीपी भारत से 5.46 गुना बड़ी है.
वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2021 में भारत की जीडीपी 3.1 ट्रिलियन डौलर थी और चीन की 17.7 ट्रिलियन डौलर. चीनी अर्थव्यवस्था को कैसे पीछे छोड़ेगी, यह चुनौती राम मंदिर सरकार के सामने है. इसे पीछे छोड़ने में भारत को ढाई दशक लग जाएंगे.
विश्व के बड़े अर्थशास्त्री इस मुद्दे पर बहस करना समय की बरबादी मानते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की आर्थिक सलाहकार परिषद में रहे स्टीव हैंके कहते हैं कि भारत समस्याओं से दबा हुआ हैं. ह्यूमन फ्रीडम इंडैक्स में 165 देशों में से भारत 150वें स्थान पर है. यह रैंक व्यक्तिगत, नागरिक और आर्थिक स्वतंत्रता को ले कर हैं. मिसाल के तौर पर कानून के शासन पर दिए गए स्कोर में भारत का रिकौर्ड दुनिया में सब से खराब देशों में से है.
भारत झूठे दावे करता रहा कि 21वीं सदी भारत की होगी लेकिन चीन इस सदी में दुनिया के सब से ताकतवर देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ. वह दुनिया का सब से बड़ा मैन्युफैक्चरर देश है. भारत में पिछले लगभग तीन दशक में धर्म को पैर पसारने का मौका मिला और ये पैर इस कदर पसारे कि सरकारों के सिर पर आ गए. सरकारें भी पैरों को परे पटकने की बजाय सहलाने लगी.
सरकार की शह से देश में कट्टरवादी ताकतें बेलगाम हो गईं. धर्म की निंदा करने वाले बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों और लोकतंत्र व सामाजिक सौहार्द के पक्षधर लोगों पर हमले शुरू हो गए. मौब लिंचिंग की घटनाएं होने लगीं. अनेक उद्योगपतियों का पलायन हुआ. इन सब कारणों से विदेशी निवेश गिरने लगा. पिछले 35 साल में सब से ज्यादा बेरोजगारी है. 30 लाख केंद्र में सरकारी पद खाली पड़े हैं. युवा, किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी परेशान हैं.
घरेलू बचत 35 वर्षों में सब से निचले स्तर पर है, जबकि घरेलू ऋण लगातार बढ़ कर 1970 से ले कर आजतक के सब से ऊंचे स्तर पर है. 1990 में चीनी अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में थोड़ी ही बड़ी थी. तब से भारत की जीडीपी चीन के मुकाबले लगातार गिर रही है.
कुछ समय पहले सरकार ने कहा था कि 25 करोड़ भारतीयों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला है. केंद्र सरकार 80 करोड़ गरीब लोगों को 5 किलो गेंहू दे रही है. इस का अर्थ देश में 105 करोड़ लोग गरीब हैं. वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2021 में भारत की जीडीपी 3.1 ट्रिलियन डौलर थी और चीन की 17.7 ट्रिलियन डौलर.
धर्म की राजनीति ने डुबोई लुटिया
दरअसल भाजपा ने 1989 में अपने पालमपुर, हिमाचल प्रदेश संकल्प में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का वादा किया. उसी साल दिसंबर में हुए आम चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण की बात अपने चुनावी घोषणापत्र में पहली बार कही. नतीजा यह हुआ कि 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा ने 1989 के चुनाव में 85 सीटें जीत लीं. अब भाजपा का पूरा फोकस राम मंदिर आंदोलन पर हो गया.
भाजपा के पूर्व नेता लालकृष्ण आडवाणी राम रथ यात्रा के रास्ते हिंदुत्व विचारधारा को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में ले आए. उन्होंने देश के बदलते हुए मूड को भांप लिया था. राम जन्मभूमि के आंदोलन ने बिखरे हुए राष्ट्रवाद को धर्म से जोड़ कर इसे एक हिंदू राष्ट्रवाद के राजनीतिक आंदोलन में बदल दिया.
इस से मुसलिम अल्पसंख्यकों पर हिंसक हमले बढ़ गए. मुसलिम विरोधी बयानबाजी, राजनीति और नीतियां हिंदुत्व नेताओं, खासकर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होने लगी. यह उभरते हुए हिंदू राष्ट्रवाद की शुरुआत थी लेकिन भारत की सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था के लिए घातक थी.
मंदिर मुद्दे पर पार्टी की बढ़ती हुई लोकप्रियता व आडवाणी के बढ़ते कद से तब की जनता दल की सरकार घबरा गई. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भाजपा के बढ़ते असर को कम करने के लिए 1990 में मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा कर दी. मंदिर बनाम मंडल की जंग में जीत भाजपा की हुई. आडवाणी ने सितंबर 1990 में रथयात्रा निकाली ताकि कारसेवक 20 अक्टूबर को राम मंदिर के निर्माण में हिस्सा ले सकें.
1991 में संसद के लिए मध्यावधि चुनाव हुआ तो भाजपा ने 120 सीटें हासिल कीं जो पिछले चुनाव की तुलना में 35 सीटें ज़्यादा थीं. उसी साल उत्तर प्रदेश में पार्टी पहली बार सत्ता में आई. 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के तोड़े जाने के बाद कल्याण सिंह की सरकार तो गिर गई लेकिन राम मंदिर के मुद्दे से पार्टी को सियासी लाभ मिल चुका था.
इसी दौरान पार्टी की केंद्र में सरकार बनी जिस से पार्टी का मनोबल बढ़ा और अब उसे मंदिर मुद्दे की जरूरत महसूस नहीं हुई. इसीलिए नारे गढ़ने में माहिर भाजपा ने 2004 के चुनाव में इंडिया शाइनिंग का नारा दिया और विकास की बात की. पार्टी चुनाव हार गई. 2009 में पार्टी ने राम मंदिर का मुद्दा फिर सामने रखा.
2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद भाजपा शासित कई राज्य सरकारों ने धर्म परिवर्तन और गौ हत्या विरोधी जैसे कानून लागू किए. समान नागरिक संहिता, धारा 370 हटाने जैसी धार्मिक कवायदों पर ही अधिक ध्यान दिया गया.
इस दौरान देश में हिंसा के अनेक नए रूप सामने आए. अंतरधार्मिक शादियों और पशुओं की तस्करी रोकने के लिए डराना, धमकाना और यहां तक कि लिंचिंग करना. ये सब भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी बाधाएं साबित हुईं.
धर्मतंत्र से पिछड़ा भारत
दरअसल धर्म पर खर्च किए गए पैसे का संबंध आर्थिकी कार्य, उत्पादन, सर्विस, उपभोग करने के व्यावहारिक कार्य व्यापार से नहीं है. मंदिरों पर किया गया अधिकांश धन ब्लौक हो जाता है. न सरकारों के पास टैक्स के रूप में जा पाता है, न आम जनता के पास रोटेशन हो पाता. यह पूंजीवाद भी नहीं है. धर्मों पर खर्च पूंजी ऐसी आर्थिक प्रणाली नहीं है जिस का लक्ष्य उत्पादन के माध्यम से असीमित लाभ अर्जित किया जा सके.
असल में यह परलोक सुधारने के लिए धूल में फेंक दिया गया धन है, यह निवेश नहीं है जिस से भविष्य में धन कई गुणा बढ़ सके. दुनिया भर की सरकारों के लिए यह सबक हो सकता है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में वहां की सरकार की धार्मिक नीति की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. यह बात सरकारों और राजनीतिक दलों को तो समझ में नहीं आएगी लेकिन जनता को जरूर समझ लेनी चाहिए ताकि उसे अपने देश में कैसी सरकार चाहिए, उस पर सही फैसला कर सके. इस में चीन का कोई सानी नहीं है.