महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे की खुली बगावत के बाद राज्य की शिवसेना कांग्रेस व  एनसीपी की मिली जुली माहाविकास अघाडी सरकार पर संकट के बादल छा गए हैं. शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे अपने साथ कुछ शिवसेना व निर्दलीय विधायकों के साथ मंगलवार को सूरत पहुंचे गए थे. जहां उन्हे मनाने की शिवसेना अध्यक्ष व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने दूत भेजकर असफल कोशिश की.

मगर समस्या सुलझने की बजाय उलझती गयी और बुधवार की सुबह एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ सूरत से गौहाटी, आसाम पहुंच गए. महाराष्ट्र के  इस राजनीतिक उठापटक के घटनाक्रम को हल करने के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के अलावा कांग्रेस की तरफ से कमल नाथ भी मुंबई में सक्रिय हो चुके हैं. मगर बुधवार को देर रात जिस तरह के हालात निर्मित हुए हैं. उनसे एक बात साफ हो गयी कि अब एकनाथ शिंदे को मनाना उद्धव ठाकरे के वस की बात नहीं है. वैसे वह अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं. पर उनकी असली चिंता अपनी शिवसेना पार्टी को जीवंत रखने की है. जिसके लिए ही वह साम दाम दंड भेद हर तरह की चाल दो दिन से चलते आ रहे हैं. दो दिन के उनके व शिवसेना नेता संजय राउत के सारे प्रयास विफल होने पर बुधवार शाम साढ़े पांच बजे फेसबुक लाइव में आकर उद्धव ठाकरे ने सभी शिवसैनिकों से भावनात्मक संवाद भी किया, मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा.  महाराष्ट् राज्य में पैदा हुए इस राजनैतिक संकट के लिए शिवसेना या कांग्रेस या एनसीपी भले ही आज भाजपा को कोस रही हो मगर इसके लिए यह सभी कहीं न कहीं दोषी हैं. राजनैतिक गलियारे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि जब राजसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में इनके विधायकों ने वोट दिएएतब यह चुप क्यो रहे. इतना ही नहीं विधान परिषद के चुनाव में भी शिवसेनाए एनसीपी कांग्रेस तीनों दलों के विधायकों ने क्रास वोटिंग की. तब इस तरफ गहराई से मंथन करते हुए तुरंत कोई कदम क्यों नहीं उठाए गए. इतना ही नहीं इस राजनैतिक संकट के लिए राजनैतिक पंडित पहली कमजोर कड़ी के तौर पर उद्धव ठाकरे के पुत्र मोह के साथ ही दूसरी कमजोर कड़ी संजय राउत को मान रहे हैं.

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