किसी भी देश के विकास में उस की नीतियों की भूमिका अहम होती है. पड़ोसी देशों के साथ उन की नीतियां भी देश के विकास में सहायक होती हैं. भारत की घरेलू राजनीति का प्रभाव विदेश नीति पर भी पड़ रहा है. पड़ोसी देशों के साथ उस के संबंध खराब हो रहे हैं. ऐसे में दुश्मन ताकतवर हो रहा है. जैसे मालदीव के साथ भारत के रिश्ते खराब हुए तो वहां चीन ने अपना प्रभाव बढ़ा लिया, जो भारत के लिहाज से ठीक नहीं है. मालदीव में इंडिया आउट कैंपेन चलाने वाले राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी संसदीय चुनाव में अपना दबदबा कायम रखने में सफल हो गई है. 21 अप्रैल तक के चुनावी नतीजों में 93 सीटों पर हुए चुनाव में 86 सीटों के नतीजों में 66 सीटों पर मुइज्जू की पीपल्स नैशनल कांग्रेस जीती है. किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए 47 से ज्यादा सीटों की जरूरत थी. मुइज्जू की जीत भारत के लिए बड़ा झटका है.

भारत और चीन की इस चुनाव पर निगाहें थीं. दोनों रणनीतिक रूप से अहम मालदीव में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. मुइज्जू की पार्टी की जीत के बाद अब मालदीव में आने वाले 5 साल तक चीन समर्थक सरकार रहेगी. इसे भारत की नजर से सही नहीं माना जा रहा है. मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी को पिछले संसदीय चुनाव में मात्र 8 सीटें हासिल थीं. इस के चलते राष्ट्रपति होने के बावजूद मुइज्जू न तो अपनी पौलिसीज के मुताबिक बिल पास करा पा रहे थे और न ही बजट पास करा पाए. अब 66 सीटें जीतने के बाद विपक्षी पार्टी उन के रास्ते में कोई रुकावट पैदा नहीं कर सकेगी. भारत समर्थक मानी जाने वाली मालदीव डैमोक्रेटिक पार्टी की करारी हार हुई है. मुइज्जू भारतीय सैनिकों को देश से निकालने के वादे पर जीते हैं. मुइज्जू ने राष्ट्रपति चुनाव की तरह संसदीय चुनाव में भी भारतीय सैनिकों को मालदीव से निकालने के मुद्दे का सहारा लिया था.

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