Loksabha Election 2024 : चुनावी माहौल का कुछ लोग जमकर लुत्फ भी उठा रहे हैं. उन्हें समझ आ गया है कि जब तुक की कोई बात होनी ही नहीं है तो क्यों न अपन भी बहती गंगा में हाथ धोते अपने उसूलों व लैवल की बेतुकी बातें करें. यह और बात है कि ऐसे लोगों को विधर्मी, नास्तिक, अर्बन नक्सली और वामपंथी करार दे कर धकिया जाता है. लेकिन इस के बाद भी वे पूरी मजबूती यानी बेशर्मी से मौजूद हैं तो उन की इच्छाशक्ति भी भगवान टाइप के लोगों और भक्तों से उन्नीस नहीं. इकलौता लोचा तादाद का है, तो ‘नाई नाई बाल कितने’ की तर्ज पर वह भी 4 जून को सामने आ ही जाना है.

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इधर गौर करने लायक एक और बात यह भी है कि ब्रैंडेड कथावाचक बागेश्वर बाबा, देवकीनंदन खत्री, मोरारी बापू और तो और कुमार विश्वास तक भी अघोषित और अनिश्चितकालीन अवकाश पर हैं. वे अपने एयरकंडीशंड आश्रमों में गरमी गुजार रहे हैं कि कब इन की कथा खत्म हो तो हम अपनी दुकान खोलें. वैसे भी, ये लोग सालभर प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष भाजपा के लिए ही वोट मांगते रहे हैं. अब जिस को वोट चाहिए वह राष्ट्रीय चौमासा कर रहा है. कहीं भी बड़ी धार्मिक रामकथा नहीं हो रही है क्योंकि जब सब से बड़ा कथावाचक हवाई जहाज से घूमघूम कर देशभर में राजनीतिक रामकथा बांच रहा हो तो इन छुटभइयों की जरूरत भी नहीं. इतना तो इन्होंने भी राम नाम की कृपा से जमा कर रखा है कि सात पुश्तें बिना हाथपांव हिलाए इत्मीनान से बैठ कर खा लें. फिर महीनेदोमहीने के घाटे को क्या रोना-झींकना.

नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए चुनाव, चुनाव कम राम नाम को भुनाने का कर्मकांड ज्यादा है. इस के गवाह उन के भाषण, एजेंडा और ट्वीट भी हैं. आइए कुछ का सेवन करते हैं. रामनवमी को तो उन्होंने ‘ट्वीट नवमी’ की तरह मनाते ट्वीट पर ट्वीट किए मसलन-

  •  एक तरफ इकबाल अंसारी हैं जिन्होंने अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण खुशीखुशी स्वीकार किया तो दूसरी तरफ कांग्रेस और इंडी गठबंधन है जिस ने वोटबैंक के चलते इसे ठुकरा दिया.
  • जीवनभर हिंदुओं के खिलाफ रहने वाले अंसारी परिवार तक ने श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण स्वीकार किया लेकिन कांग्रेस ने ठुकरा दिया.
  • कांग्रेस ने वर्षों तक रामलला को टैंट में बैठा कर रखा, राम मंदिर के फैसले को लटका कर रखा.
  • 500 साल बाद हमारे राम लला ने अपना जन्मदिन भव्य मंदिर में मनाया.
  • कांग्रेस और इंडी गठबंधन वाले हमारी आस्था का अपमान करने में जुटे हैं.
  • ये लोग कहते हैं कि हमारा सनातन डेंगू-मलेरिया है.
  • अयोध्या में जो राम मंदिर बना है उस के भी ये घोरविरोधी हैं.
  • ये लोग भगवान श्री राम की पूजा को पाखंड बताते हैं.
  • इंडी गठबंधन वाले सनातन से घृणा करते हैं.
  • अभी मैं द्वारका गया और समुद्र में नीचे जा कर भगवान श्री कृष्ण की पूजा की.
  • लेकिन कांग्रेस के शहजादे कहते हैं कि समुद्र के नीचे पूजा करने योग्य कुछ है ही नहीं.
  • अनुपम दिन – राम नवमी.
  • अद्भुद प्रयोग – तकनीक और परंपरा का मेल.
  • अनूठी प्रस्तुति, दुर्लभ फोटो व चित्रों के साथ शीर्ष विभूतियों के लेख.
  • देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को भेंट की गई # सब के राम काफी टेबल पुस्तक की प्रथम प्राप्ति.
  • ऐसी पुस्तक जिसे आप पढ़ सकते हैं और हिंदी अथवा अंगरेजी में सुन भी सकते हैं.
  • रामनवमी के पावन अवसर पर सूर्य की किरणें आज देश के नए प्रकाश का प्रतीक बनी हैं.
  • नलबाड़ी की सभा के बाद मुझे अयोध्या में रामलला के सूर्यतिलक के अदभुत और अप्रितम क्षण को देखने का सौभाग्य मिला. श्रीराम जन्मभूमि का यह बहुप्रतीक्षित क्षण हर किसी के लिए परमानंद का क्षण है. यह सूर्यतिलक विकसित भारत के हर संकल्प को अपनी दिव्य ऊर्जा से इसी तरह प्रकाशित करेगा.
  • न्याय के पर्याय प्रभु श्रीराम का मंदिर भी न्यायपूर्ण तरीके से बना जिस के लिए मैं भारत की न्यायपालिका का आभार प्रकट करता हूं.
  • मुझे पूर्ण विश्वास है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन और उन के आदर्श विकसित भारत के निर्माण का सशक्त आधार बनेंगे. उन का आशीर्वाद आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को नई ऊर्जा प्रदान करेगा. प्रभु श्रीराम के चरणों में कोटिकोटि नमन.इस के एक दिन पहले उन्होंने बिहार दौरे की भूमिका बांधते ट्वीट किया था-
  • बिहार के लोग जानते हैं कि यह चुनाव दल का नहीं, देश का चुनाव है. आज एक और देश की संस्कृति पर गर्व करने वाले हम लोग हैं तो दूसरी ओर हमारी आस्था को नीचा दिखाने वाले लोग हैं.
    मजाक और बेचारगी की हद ही इसे कहा जाएगा कि एक तरफ अपने ट्वीट्स में वे आस्था और संस्कृति का हवाला देते साफतौर पर कहते हैं कि यह देश का चुनाव है तो दूसरी तरफ 12 अप्रैल के अपने ट्वीट में लिखते हैं-
  • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कोई चुनावी मुद्दा नहीं बल्कि यह 500 वर्षों की तपस्या का सुखद परिणाम है. ऐसे में राम लला की प्राणप्रतिष्ठा का बहिष्कार करने वाली कांग्रेस और इंडी गठबंधन से मैं पूछना चाहता हूं-
  • प्रभु श्रीराम की प्राणप्रतिष्ठा का निमंत्रण ठुकराने वालों को उत्तराखंड सहित देश की जनता इन चुनावों में कड़ा सबक सिखाने जा रही है.
    अब भला वोट विकास के नाम पर मांगा जा रहा है, राम और मंदिर के नाम पर नहीं, यह कोई कैसे कह सकता है. दूसरे विपक्ष को वोट न देने का आधार उस के प्राणप्रतिष्ठा में न जाने के फैसले को ले कर होना चाहिए क्या? जाहिर है, नहीं, क्योंकि किसी भी मंदिर या कहीं जानानजाना निहायत ही व्यक्तिगत बात है. इसे संवैधानिक तो दूर की बात है, किसी भी बाध्यता के तौर पर नहीं थोपा जा सकता.
    अच्छा तो यह रहा कि विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर मंदिरों में लाने की बात वे नहीं कर रहे लेकिन भविष्य में कभी करने लगें तो बात हैरानी की नहीं होगी. अभी तो नरेंद्र मोदी खुलेआम यह कह रहे हैं कि मैं ने मंदिर बनवाया और मैं प्राणप्रतिष्ठा में गया इसलिए मुझे वोट दो और उन्होंने निमंत्रण ठुकराया इसलिए उन्हें वोट मत दो. अगर इसी बिना पर चुनाव होना है और प्रधानमंत्री चुना जाना है तो 22 जनवरी को प्राणप्रतिष्ठा के बाद सोशल मीडिया के इस हंसीमजाक को चुनाव आयोग को गंभीरता से लेते उस पर अमल भी कर डालना चाहिए कि चुनाव की जरूरत क्या है, मोदीजी को सीधे ही शपथ दिला दी जाए.10 अप्रैल के ट्वीट में नरेंद्र मोदी ने फिर पुराना राग दोहराया था कि-
  • प्रभु श्रीराम के चरणस्पर्श से धन्य हुए रामटेक के साथ ही देशभर के मेरे परिवारजनों को इंडी गठबंधन को इसलिए सजा देनी है.
    इस के पहले 8 अप्रैल को उन्होंने ट्वीट कर कहा था कि,
  • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को ले कर प्रभु श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ के साथ ही पूरा देश खुश है लेकिन कांग्रेस और इंडी गठबंधन को यह रास नहीं आ रहा.
    हकीकत नरेंद्र मोदी भी बेहतर जानते हैं कि राम का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व अपनी जगह है लेकिन राम का आर्थिक और राजनीतिक महत्त्व ज्यादा अहम है. राम नाम की महिमा से पौराणिक साहित्य भरा पड़ा है. ये कथाएं सालों से सुनी और सुनाई जा रही हैं जिस से जाहिर है आम लोग इन्हें सच मानने लगे हैं. सच कुछ भी हो लेकिन इन का व्यावहारिकता और वास्तविकता से वाकई में कोई लेनादेना नहीं है. फिर क्यों लोग इन्हें सुनते हैं, इस का जवाब बेहद साफ है जो, बकौल कार्ल मार्क्स, अफीम का नशा है.
  • तो वे शहरशहर अफीम ले कर घूम रहे हैं जिस से लोग उनींदे, सुस्त, मद में चूर यह न सोचने लगें कि आखिरकार लोकतंत्र में सरकार चुनी क्यों जाती है. इस बारे में एक हास्य कवि संपत सरल ने एक जोरदार ताना उन पर कसा था कि, ‘विकास के एजेंडे के नाम पर सत्ता में आए थे तब से एजेंडे के विकास में लगे हैं.’पिछले 10 सालों में मंदिरों, राम नाम और पाखंडों का ही विकास हुआ है. एक एजेंडे के तहत राम नाम विकास का पर्याय बना दिया गया है. दरअसल, उपलब्धियों के नाम पर गिना कर वोट मांगने को उन के पास कुछ खास ऐसा है नहीं जिस से जनता उन्हें वोट देने को टूट पड़े. लिहाजा, सब से सस्ता और सुलभ रास्ता राम नाम ही है, जिस पर न उन्हें दिमाग पर ज्यादा जोर देना पड़ता है और न ही जनता को यह सोचने का मौका मिलता कि उसे सरकार से क्या चाहिए.अमरोहा की रैली में उन्होंने प्रमुखता से कहा कि, ‘हमारी हजारों वर्षों की आस्था को ये लोग (यानी विपक्षी, खासतौर से राहुल गांधी और अखिलेश यादव) सिर्फ वोटबैंक के लिए खारिज कर रहे हैं. बिहार और उत्तरप्रदेश में खुद को यदुवंशी कहने वाले नेताओं से मैं पूछना चाहता हूं कि आप भगवान श्रीकृष्ण और द्वारका का अपमान करने वालों के साथ कैसे समझौता कर सकते हो. आज जब पूरा देश राममय है तब समाजवादी पार्टी के लोग रामभक्ति करने वालों को पाखंडी कहते हैं. सपा और कांग्रेस दोनों ने प्राणप्रतिष्ठा का आमंत्रण ठुकरा दिया था. ये लोग आएदिन राम मंदिर और सनातन को गलियां दे रहे हैं. अभी रामनवमी पर प्रभु रामलला का भव्य सूर्यतिलक हुआ है.’अब भला इस बेहूदे और धूर्तताभरे सवाल और वक्तव्य का चुनाव से क्या लेनादेना और इस से देश की किस समस्या का क्या संबंध है, शायद ही कोई बता पाए. और जो कोई नहीं बता पाता, उसे ये बताते रहते हैं जो एक छलांग में अमरोहा से द्वारका वाया अयोध्या पहुंच जाते हैं. यह होती है असल रामकथा और संपूर्ण श्रीमदभागवत कथा, जिस की दक्षिणा में सनातन की रक्षा के नाम पर वोटों की भीख और सत्ता मांगी जाती है. पहले डर दिखाया जाता है कि देखो, धर्मविरोधी दल इकट्ठा हो गए हैं, अब ये देश को लूट खाएंगे जबकि यह हक तो हम सनातनियों का है, ये लोग तो पहले भी लूट-खा चुके हैं. अभी हमारा पेट नहीं भरा है, इसलिए तीसरा मौका और दे दो. रामजी तुम्हारा भला करेंगे. इतना सुनते ही सम्मोहित पूजापाठी पब्लिक अपनी जेबों से पैसा और वोट निकाल कर इन्हें दे देती है कि लो महाराज, जब लुटना ही हमारी नियति है तो आप ही लूट लो. क्योंकि आप राम-कृष्ण के नाम तो दिन रात लेते रहते हो. हो सकता है इसी से हमें मोक्ष और मुक्ति मिल जाए.यही प्रवचन अलगअलग शब्दों में वे मध्यप्रदेश में करते हैं, बिहार में भी और राजस्थान, गुजरात, हिमाचल वगैरह में भी लेकिन दक्षिण में आमतौर पर नहीं करते क्योंकि वहां उत्तर वाले राम-कृष्ण नहीं चलते और कम से कम चुनाव में तो बिलकुल नहीं चलते. दूसरे, उन्होंने भी अपनेअपने भगवान पहले से ही चुन रखे हैं जिन्हें बदलने का मूड उन का दिख भी नहीं रहा. सियासी पंडितों की भाषा में इसे कहते हैं कि दक्षिण में भाजपा कमजोर है और इंडिया गठबंधन मजबूत है, इसलिए इस बार टक्कर कांटे की है. हालांकि, आम चुनावों में टक्कर हमेशा कांटे की ही होती है, फूलों की तो मुद्दत से नहीं हुई. 400 पार का नारा लगा रहे भाजपाइयों को 225 ले जाने में भी पसीना छूट जाना है.ऐसा इसलिए कि कुछ लोग अब हकीकत समझने लगे हैं कि 10 वर्षों से यह रामायण सुने जा रहे हैं लेकिन होनेजाने के नाम पर कुछ हो नहीं रहा. रोजगार और महंगाई आस्था पर भारी पड़ने लगे हैं. कुछ लोग तो यह सोचने व पूछने की जुर्रत भी करने लगे हैं कि अखिलेश और राहुल पूजापाठ करें न करें, तो भी ढोंगी और सनातन के दुश्मन. पर जीतनराम मांझी जैसों का क्या जो खुलेआम राम और रामायण को कोसते रहे और आप उन्हीं के संग चुनाव लड़ रहे हैं. यह दोहरापन क्यों, इस में कुछ तो गड़बड़ है. यानी, वाशिंग मशीन वाला आरोप सच है. अब तो इस में आप ने ड्रायर भी लगा लिया. ईडी तक तो बात भौतिक और नश्वर संसार की थी पर अब यह धार्मिक और आध्यात्मिक कैसे हो गई, या तो जीतन राम मांझी जैसे अपनी जगह सही हैं या आप अपनी जगह गलत हैं.

    कहते हैं कलियुग में राम का नाम ही तार देता है. मांझी, अठावले और पासवान रामराम करें तो उन के सौ खून माफ लेकिन अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन जैसों को तो आप ने लगभग वैसी ही सजा दे दी जो बाली और शम्बूक को दी थी. नरेंद्र मोदी न्याय नहीं कर रहे, बल्कि सजा दे रहे हैं क्योंकि कई लोग उन की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहे.

    जाहिर है, जो उन का नहीं वह राम का भी नहीं. लिहाजा, ऐसे दुष्टों, जो लोकतंत्र और संविधान की दुहाई देते हैं, को उन की असल जगह जेल ही है लेकिन खतरा वे हैं जिन्हें जेल नहीं भेजा जा सक रहा. अब वही चुनौती बन गए हैं क्योंकि उन के पास 65 फीसदी के लगभग समर्थन है. इन के साथ, इस बार 35 कबाड़ने में दिक्कत जा रही है. सुकून देने वाली इकलौती बात यह है कि वह 65 इखराबिखरा है लेकिन सुकून छीनने वाली बात यह है कि उस में से 40 के लगभग इकट्ठा हो रहे हैं.

    ऐसे में राम ही काम आएंगे, सो, उन के सिवा कुछ न तो सूझ रहा और न ही सूट कर रहा. पहले चरण की 102 सीटों की वोटिंग का ट्रैंड डरा रहा है कि लोग राम को भूल रहे हैं. उन्हें खूब समझाया, बुझाया, बहलाया और फुसलाया भी था कि वोट सनातन की सलामती के नाम पर डालना वरना कहीं के नहीं रहोगे. लेकिन यह दांव उलटा पड़ने लगा है, लोग पूछने लगे हैं कि अभी हम कहां के रह गए. हम तो जहां 10 साल पहले खड़े थे वहां से भी 10 कोस पीछे खिसक गए. इस के बाद भी नरेंद्र मोदी हिम्मत नहीं हार रहे हैं तो यह उन की पौराणिक धारणा ही है कि रामजी पार लगाएंगे. पिछले 2 चुनाव इस के गवाह भी हैं. यह बात भी कम दिलचस्प नहीं कि जोर सिर्फ राम नाम पर दिया जा रहा है, वोट राम नाम पर मांगे जा रहे हैं हनुमान, शिव, कृष्ण, काली दुर्गा के नाम पर नहीं. मानो वे और उन के अनुयायी भी इंडी गठबंधन की तरह अछूत हों. आस्था की दुहाई देने वाले नरेंद्र मोदी आस्था का राजनीतिकरण कर उसे बहुत सीमित किए दे रहे हैं.

    अच्छा तो यह है कि अभी सभी लोग नहीं पूछ रहे कि रामराज यानी हिंदू राष्ट्र में अब बाकी क्या रह गया है. 370 हट ही गई, तीन तलाक भी खत्म हो गया और तो और मंदिर भी बन गया अब तो कुछ और बात करो. सहारा अब वे 12-15 करोड़ कट्टर वोटर हैं जिन के लिए यह खेल खेला गया था. बाकी 80 करोड़ में से कितने खाते में आए, यह 4 जून को पता चलेगा.

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