खोल दिए हैं पलकों के द्वार

उड़ा दिए सपनों के पाखी

चुने थे कहांकहां से

ढूंढ़ यहांवहां से

 

बादल की नीली शाखों

तारों की स्वप्निल आंखों में

नानीदादी की लोरी

या प्रकृति की बोरी में

 

अब सूखा आस का चारा

उम्मीदों का रिक्त भंडारा

प्रेम की धारा सूखी

मन की धरती रूखी

 

धूमिल दूषित आकाश

तमस से हारा प्रकाश

सांस की पूंजी चुकने को

जीवन की गति रुकने को

 

जर्जर पिंजरा दिया छुड़ाए

सपने पाखी दिए उड़ाए

मुक्त हुए नैनों के वासी

बाकी, बस एक उदासी.

जसबीर कौर

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