हम उसूलों पर चले
दुनिया में शोहरत हो गई
अपने घर के लोगों में
बगावत हो गई


आंधियों में तेरी लौ से
जल गई उंगली मगर
ये तसल्ली है मुझे
तेरी हिफाजत हो गई


पहले उस का आनाजाना
इक मुसीबत सा लगा
रफ्तारफ्ता उस मुसीबत से
मोहब्बत हो गई


आज फिर दिल को जलाया
मैं ने उन की याद में
आज फिर उन की अमानत में
खयानत हो गई


जो गवाही से थे वाबस्ता
हुई उन की पकड़
और जो मुलजिम थे
सब की जमानत हो गई.


डा. बीना बुदकी

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