ख्वाहिश थी मेरी भी की इस दुनिया में खुद का परचम लहराऊं.

ख्वाहिश  थी मेरी भी की अपने सपने को हकीकत बनाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की दूसरों की खुशी के लिए कुछ कर दिखलाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की मां-बाप का सर गर्व से उठाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की दोस्तो के साथ झूमू और गाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की सात समुंदर पार जाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की इस जीवन में इतिहास रच आकाश में गुम हो जाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की जीवन के सारे रिश्तों को आखिरी दम तक निभाऊं .

ख्वाहिश थी मेरी भी की खुद जागकर औरों को सुकून से सुलाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की सब के चेहरे पर मुस्कान लाऊं.

ख्वाहिश थी मेरी भी की अपने भाई को रक्षा सूत्र बांध रक्षा कवच बनाऊं.

पर जीवन की ये ख्वाहिशो को पूरा करना मेरे बस में नहीं था क्योंकि नियति को कुछ और ही मंजूर था.

मेरा जीवन सबसे अलग और विपरीत था.

"इस दुनिया में मेरा वजूद बस मेरी मां की कोख तक ही सीमित था."

जिनसे मिलने के लिये मैं दिन गिन रही थी, आज उन्ही के हाथों मेरी बलि चढ़ रही थी.

यह देख मैं सिसक रही थी, कल तक जहां मेरे आने की खुशी थी वही आज मुझे मारने की साजिश चल रही थी.

किसी ने नहीं सोचा की मैं क्या चाहती थी, मैं भी अपने सपनों को हकीकत बनते देखना चाहती थी.

ममता की छाए में पापा के साये में, जीवन जीना चाहती थी, आगे बढ़ना चाहती थी.

जिनके कारण मैं ये ख्वाब देख पाई, आज उन्होंने इसे तोड़ने का बीड़ा उठाया था.

मां, तू तो मुझे समझती है. अपने अंश को खुद से जुदा ना करती.

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