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उंची उड़ान: भाग 2

उंची उड़ान: भाग 1

आखिरी भाग

आखिरकार रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर जय के परिवार वालों ने तृप्ति जो चाहती थी, वही कर दिया. उन्होंने उसे चिखली के साईं अपार्टमेंट घरकुल सोसायटी में एक किराए का फ्लैट ले कर दे दिया. अब तृप्ति पूरी तरह से आजाद थी. उस के मन में जो आता, वह करती थी. अनापशनाप खर्चा, पार्टी और सहेलियों दोस्तों के साथ कंपीटिशन करना उस की आदत में शुमार हो गया.

इस बीच वह एक बच्चे की मां भी बन गई थी. फिर भी उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया था. वह जब तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो वह यह कह कर उसे चुप करा देती कि भगवान ने जिंदगी दी है तो ऐश करो.

तृप्ति का मन घर के कामों के बजाए सोशल मीडिया पर अधिक लगता था. वह फेसबुक, वाट्सऐप पर अपने नएपुराने मित्रों के साथ चैटिंग में लगी रहती थी.

पति से नईनई फरमाइश करती थी. नहीं मिलने पर उस से झगड़ा करती थी. लाचार जय किसी तरह उस की मांगें पूरी करता. पैसे न होने पर वह दोस्तों से पैसे उधार लेता. इस के लिए कर्जदार भी हो गया. लाखों रुपए का कर्जदार होने के बावजूद भी तृप्ति के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था.

हर रोज नएनए फैशनपरस्त कपड़े पहन कर वह अलगअलग ऐंगल से फोटो खींच कर उन्हें फेसबुक और वाट्सऐप पर डालती और यह दिखाने की कोशिश करती कि वह भी किसी से कम नहीं है.

इस के लिए जब पति मना करता तो वह जय से झगड़ा कर के मारपीट पर उतर आती थी. इतना ही नहीं, वह पति पर व्यंग्य कसते हुए कहती, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे दोस्त और सहेलियां भिखारी नहीं हैं. वे सब मेरे फोटो लाइक करते हैं. मुझ से फेसबुक और वाट्सऐप पर बातें करते हैं. देशविदेश की सैर करते हैं. वहां के खूबसूरत फोटो भेजते हैं. तुम ने आज तक मेरे लिए क्या किया है? देशविदेश तो छोड़ो, कभी पुणे तक में नहीं घुमाया. पता नहीं मेरे मांबाप ने तुम में क्या देखा था. मेरी तो किस्मत ही फूट गई है. तुम में मेरे शौक पूरे कराने की भी हैसियत नहीं है.’’

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‘‘तृप्ति जब तुम यह सब जानती हो तो हैसियत से बड़े सपने क्यों देखती हो? हमारी आर्थिक स्थिति तुम्हारे दोस्तों जैसी नहीं है. मैं एक मामूली इंसान हूं. तुम्हारे लिए मैं लाखों रुपए का कर्ज तो पहले ही ले चुका हूं. अब और कर्ज नहीं ले सकता.’’ जय तेलवानी बोला.

इस बात पर तृप्ति को इतना गुस्सा आया कि उस ने अपने पति के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘चुपचाप रहो, मूर्ख इंसान. तुम क्या जानो सपना क्या होता है?’’

तृप्ति के इस व्यवहार से जय सन्न रह गया. उसे तृप्ति से ऐसी आशा नहीं थी. उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कड़वा घूंट समझ कर पी गया. उस ने सोचा बात बढ़ाने से क्या फायदा, बदनामी उस की ही होगी.

लेकिन उस की इस चुप्पी से तृप्ति का हौसले बुलंद हो गए. वह आए दिन जय से छोटीछोटी बातों को ले कर उलझ जाती थी. इतना ही नहीं, वह सोशल मीडिया पर अपने पति की बुराई कर सहानुभूति बटोरती थी.

उस ने और ज्यादा सहानुभूति पाने के लिए अपना टिकटौक एकाउंट खोला और उस पर नईनई वीडियो बना कर अपलोड करने लगी. बिना यह सोचे कि आगे चल कर इस का क्या नतीजा निकलेगा.

तृप्ति का सोशल मीडिया पर इतना ज्यादा एक्टिव होना जय और उस के परिवार वालों को बुरा लगता था. तृप्ति पति पर बुरी तरह हावी थी. ऊपर से सोशल मीडिया में जय की जो बदनामी हो रही थी, वह अलग बात थी. जय ने जबजब पत्नी को समझाने की कोशिश की, तबतब वह भड़क जाती थी. कहती थी कि क्या अच्छा है, क्या बुरा मैं सब समझती हूं. मैं जो कर रही हूं करने दो. तुम लोग हमारे बीच में मत पड़ो. नहीं तो मैं कुछ कर लूंगी तो पछताओगे.

तृप्ति की आत्महत्या करने की धमकी से जय और उस का पूरा परिवार डर गया था. तृप्ति अपने दोस्तों के साथ नएनए वीडियो तैयार करती और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देती. इस से उसे सहानुभूति तो मिलती ही थी, एकाउंट में अच्छाखासा पैसा भी आ जाता था. जिन्हें वह अपने शौक और यारदोस्तों के साथ पार्टियों में खर्च करती थी.

घर और परिवार की बदनामी से तृप्ति का कोई लेनादेना नहीं था. हद तो तब हो गई जब एक दिन तृप्ति ने जय से बड़ी रकम की मांग कर दी. उस ने पैसे देने में असमर्थता जताई तो तृप्ति ने योजना बना कर अपने पति पर एक वीडियो बनाई.

उस वीडियो में उस ने पति को ब्लड कैंसर का मरीज बताया. फिर उस वीडियो में उस ने किसी दूसरे की आवाज डाल कर के सोशल मीडिया पर डाल दिया. साथ ही उस ने आर्थिक मदद करने का भी अनुरोध किया.

इस से तृप्ति को ढेर सारी सहानुभूति तो मिली ही, साथ ही उस के एकाउंट में काफी पैसा भी आया. लेकिन इस से जय को जिस मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पाया. उस की सारे दोस्तों और नातेरिश्तेदारों में काफी बदनामी हुई.

पत्नी के इस कृत्य से वह अपनों से नजरें नहीं मिला पा रहा था, क्योंकि अब वह लोगों की नजरों में कैंसर का ऐसा मरीज बन गया था, जो लोगों से इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. लोग उसे सहानुभूति की नजरों से देखते और धीरज बंधाते थे.

वह उस बीमारी को ले कर जी रहा था, जिस का उसे पता ही नहीं था. वह तृप्ति के व्यवहार से बुरी तरह टूट गया था. अंतत: उस ने एक दिन दिल दहला देने वाला निर्णय ले लिया. अपने मांबाप से फोन पर बात करने के बाद जय ने मौत को गले लगा लिया.

जय तेलवानी के परिवार वालों की शिकायत और सोशल मीडिया की जांचपड़ताल कर एसआई रत्ना सावंत ने तृप्ति से पूछताछ कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे यरवदा जेल भेज दिया गया.

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उंची उड़ान: भाग 1

समाज में ऐसी औरतों और ऐसे पुरुषों की कमी नहीं है, जो जीवनसाथी को खिलौना समझ बैठते हैं. हालांकि वक्त आने पर उन्हें इस की सजा भी जरूर मिलती है. तृप्ति ऐसी ही औरत थी जो पहले पति से खेलती रही और फिर उसे कैंसर रोगी साबित कर के…

घटना 13 नवंबर, 2018 की है. तृप्ति जय तेलवानी जिस समय अपने 3 साल के बेटे के साथ पुणे शहर के थाना चिखली पहुंची, उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था. महिला एसआई रत्ना सावंत उस समय किसी पुराने मामले की फाइल देख रही थीं. घबराई और रोती हुई तृप्ति जब उन के पास पहुंची तो वह समझ गई कि इस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है.

उन्होंने तृप्ति को सामने कुरसी पर बैठा कर उस से इत्मीनान से बात की. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मैडम मेरा नाम तृप्ति जय तेलवानी है. मैं चिखली के घरकुल इलाके की साईं अपार्टमेंट सोसायटी में पति के साथ रहती हूं.’’ कह कर तृप्ति फिर से रोने लगी.

एसआई रत्ना सावंत ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप रोइए मत. आप के साथ जो भी हुआ है, मुझे विस्तार से बताएं ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

रत्ना सावंत की सहानुभूति पर तृप्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैडम, मैं बरबाद हो गई हूं. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. मेरे पति ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.’’

तृप्ति की बात सुन कर एसआई रत्ना सावंत चौंकी. वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मौके की ओर रवाना हो गईं. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

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एसआई रत्ना सावंत अपनी टीम के साथ जब मौके पर पहुंचीं तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. मृतक जय तेलवानी के मातापिता और अन्य लोग भी वहां मौजूद थे.

पुलिस जब बैडरूम  में पहुंची तो बैड पर जय तेलवानी का शव पड़ा था. मांबाप और अन्य लोग उस के शव के साथ लिपट कर रो रहे थे. एसआई रत्ना सावंत ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर फंदे का निशान देख कर उन्हें पहली नजर में मामला आत्महत्या का लगा.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक की पत्नी तृप्ति जय तेलवानी से इस संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अपनी लाइलाज बीमारी से परेशान थे. इन्हें ब्लड कैंसर था. आज सुबह जब मैं 11 बजे अपने बच्चे को लेने स्कूल गई तो ये ठीक थे, लेकिन जब स्कूल से लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

कई बार कालबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, न कोई आहट हुई तो मैं घबरा गई. मैं ने दूसरी चाबी ला कर दरवाजा खोला तो मेरी चीख निकल गई. जय गले में साड़ी बांध कर पंखे से लटके हुए थे.

चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोसी फ्लैट में आ गए. उन्होंने पति को नीचे उतार कर बैड पर लिटा दिया और अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस भी मंगा ली, लेकिन तब तक उन की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की जांच में आत्महत्या के निशान तो मिल रहे थे, लेकिन आत्महत्या का कारण समझ नहीं आ रहा था. तृप्ति तेलवानी अपने बयान में जिस लाइलाज बीमारी की बात कह रही थी, उस बीमारी के संबंध में वह यह भी नहीं बता सकी कि जय का किस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. जब मृतक को ब्लड कैंसर था तो उस का किसी अस्पताल में इलाज क्यों नहीं कराया. और फिर बिना जांच कराए यह कैसे पता चला कि जय को ब्लड कैंसर है. उसी दौरान थानाप्रभारी बालाजी सोनटके मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने मृतक के घर वालों से इस बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालाजी सोनटके ने मौके की काररवाई पूरी कर के जय तेलवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई रत्ना सावंत को सौंप दी.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक जय तेलवानी की कैंसर की बीमारी के संबंध में आसपड़ोस के लोगों से बात की. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें वाट्सऐप मैसेज द्वारा ही जानकारी मिली थी कि जय तेलवानी को ब्लड कैंसर है. लेकिन यह बात जय तेलवानी ने नहीं बताई, वह तो एकदम स्वस्थ दिखता था.

अगले दिन पुलिस के पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैंसर जैसी घातक बीमारी का कोई जिक्र नहीं था. इस का मतलब यह था कि सोशल मीडिया पर जय तेलवानी को कैंसर रोगी होने की बात किसी ने एक सोचीसमझी साजिश के तहत फैलाई थी. यह बात फैला कर किसे लाभ हो सकता है, पुलिस इस की जांच में जुट गई.

इसी दौरान जय तेलवानी के मातापिता पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी बालाजी सोनटके को बताया कि उन के बेटे की आत्महत्या की जिम्मेदार उन की बहू तृप्ति है. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख तृप्ति की तरफ मोड़ दिया.

तृप्ति पर नजर रख कर जांच अधिकारी उस वीडियो की तलाश में जुट गईं जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस वीडियो में जय तेलवानी को कैंसर रोगी बता कर आर्थिक सहायता की मांग की गई थी.

बताया जाता है कि यह वीडियो देख कर जय तेलवानी मानसिक रूप से परेशान हो गए थे. चूंकि वह भलेचंगे स्वस्थ थे और किसी ने उन का कैंसर रोगी का वीडियो बना लिया. वह वीडियो क्लिप जांच अधिकारी रत्ना सावंत को को भी मिल गई थी.

पुलिस की आईटी टीम ने जब उस वीडियो की जांच की तो पता चला कि तृप्ति ने ही उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटौक पर अपलोड किया था. तृप्ति के खिलाफ सबूत मिल गया तो पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. वीडियो के आधार पर जब तृप्ति तेलवानी से पूछताछ की गई तो पहले तो वह साफ मुकर गई, लेकिन बाद में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

21 वर्षीय तृप्ति तेलवानी ने बताया कि अपनी महत्त्वाकांक्षा और ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उस ने सोशल मीडिया का सहारा लिया था. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि वह पुणे के छोटे से गांव की रहने वाली थी लेकिन उस के सपनों की उड़ान ऊंची थी. उस ने अपने दोस्तों और सहेलियों के बीच अपना एक क्रेज बना कर रखा था.

कालेज समय में नित नए फैशन के कपड़े पहनना, दिल खोल कर पैसे खर्च करना उस का शौक बन गया था. उस के इस अनापशनाप खर्च और मांग पर मांबाप परेशान रहते थे.

उन्हें चिंता इस बात की भी थी कि आगे चल कर इस लड़की का क्या होगा. वह तृप्ति को समझाने की काफी कोशिश करते थे पर तृप्ति ने मांबाप की सलाह को कभी गंभीरता से नहीं लिया.

तृप्ति के लक्षणों को देखते हुए मांबाप ने 16 साल की उम्र में ही उस की शादी पिपरी चिचवड़, पुणे के रहने वाले देवीदास तेलवानी के बेटे जय तेलवानी के साथ कर दी. यह 2017 की बात है. जय तेलवानी उस परिवार का एकलौता बेटा था.

25 वर्षीय जय तेलवानी सीधासादा युवक था. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने एक रिश्तेदार के प्लंबिंग बिजनैस में सहयोगी था.

तृप्ति को बहू के रूप में पा कर देवीदास और सभी घर वाले खुश थे. उन्हें क्या पता था कि तृप्ति के सुंदर चेहरे के पीछे उस की कितनी गंदी सोच छिपी है. इस का एहसास उन्हें धीरेधीरे होने लगा था.

आजादी के साथ रहने वाली तृप्ति को ससुराल जेल की तरह लगती थी. वह वहां से बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगी तो सास ने उसे समाज की मर्यादा का पाठ पढ़ाया. उस ने सास की सीख न सिर्फ हवा में उड़ा दी बल्कि वह उन से झगड़ने भी लगी.

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बातबात पर वह जय तेलवानी के मांबाप और परिवार वालों से लड़ बैठती थी, जिसे ले कर जय परेशान हो जाता था. जब वह तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो उस का सीधा जवाब होता, ‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है, तुम्हारे मांबाप और परिवार वालों के साथ नहीं.’’

सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री: भाग 2

सुलझ न सकी परिवार की मर्डर मिस्ट्री: भाग 1

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आखिरी भाग

पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस यह सोच कर हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.

मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास भी किया गया.

फोरैंसिक लैब की जांच में पता चला कि बाथरूम में मिले 3 मोबाइलों में एक वाटरप्रूफ था, लेकिन उस पर पैटर्न लौक था, जिस से वह खुल नहीं सका. पुलिस को दूसरे दिन डा. प्रकाश के घर से 2 मोबाइल और मिले. ये मोबाइल भी बंद थे. इन को भी साइबर एक्सपर्ट के पास भेजा गया. उन के फ्लैट से मिले लैपटौप और आईपैड को जांच के लिए सीआईडी की साइबर लैब भेजा गया.

पुलिस ने अदिति के दोस्तों से भी अलगअलग पूछताछ की. उन्होंने बताया कि अदिति ने उन से नौकरी छूटने की वजह से पापा के तनाव में होने की चर्चा की थी. अदिति के दोस्तों से पुलिस को ऐसी कोई ठोस वजह पता नहीं चली जिस से इस मामले की गुत्थी सुलझने में मदद मिलती.

सन फार्मा कंपनी में पूछताछ में पता चला कि डा. प्रकाश ने स्वेच्छा से नौकरी छोड़ी थी. कंपनी में उन का पद और सैलरी पैकेज काफी अच्छा था. कंपनी में किसी से उन का कोई विवाद भी सामने नहीं आया.

डा. सोनू सिंह के बारे में पुलिस को पता चला कि उन का बौद्ध धर्म से जुड़ाव था. उन्होंने अपनी सोसायटी में बौद्ध धर्म के अनुयाइयों की कम्युनिटी भी बनाई हुई थी. इस कम्युनिटी की वह ग्रुप लीडर थीं. सोसायटी में सोनू सिंह को बोल्ड महिला माना जाता था जबकि प्रकाश सिंह सौम्य स्वभाव के थे.

तीसरे दिन भी काफी माथापच्ची और जांचपड़ताल के बावजूद पुलिस को इस मामले में कोई तथ्य हाथ नहीं लगा. यह जरूर पता चला कि सोनू सिंह, अदिति और आदित्य की हत्या में जिस चाकू का उपयोग किया गया था, वह करीब एक साल पहले डा. प्रकाश सिंह द्वारा ही खरीदा गया था.

अदिति ने उस समय सोप डायनामिक्स स्टार्टअप शुरू किया था. वह घर में कौस्मेटिक व कुछ विशेष साबुन बनाती थी. अदिति ने साबुन व अन्य सामान के टुकड़े करने के लिए यह चाकू पिता से मंगवाया था.

डा. प्रकाश के घर मिले 4 कुत्तों को ले कर भी विवाद हो गया. ये कुत्ते अदिति का दोस्त उस की याद के रूप में सहेज कर अपने पास रखना चाहता था जबकि दूसरी तरफ अदिति की मौसी सीमा अरोड़ा इन कुत्तों को अपने साथ ले जाना चाहती थीं.

विवाद बढ़ने पर यह मामला पीपुल फौर एनिमल संस्था के जरिए सांसद मेनका गांधी तक पहुंच गया. मेनका गांधी के हस्तक्षेप से चारों कुत्तों को पुलिस की निगरानी में नैशनल डौग शेल्टर होम भेज दिया गया.

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चौथे दिन नौकरानी जूली से पूछताछ में सामने आया कि सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद डा. प्रकाश अधिकांश समय घर पर रहते और यूट्यूब पर वीडियो देखते थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि डा. प्रकाश ने शायद यूट्यूब देख कर हत्याकांड की योजना बनाई होगी.

नौकरानी ने बताया कि कुछ दिन पहले फ्लैट में फरनीचर का काम हुआ था. उस दौरान कारपेंटर अपना एक हथौड़ा इसी घर में छोड़ गया था. संभवत: उसी हथौड़े से डा. प्रकाश ने परिवार के 3 सदस्यों की जान ली.

पांचवें दिन पुलिस ने दोनों पक्षों के रिश्तेदारों की मौजूदगी में डा. प्रकाश के घर की तलाशी ली. इस की वीडियोग्राफी भी कराई गई. घर की अलमारियों और लौकरों में रखे दस्तावेजों की भी जांच की गई. हालांकि पुलिस को तलाशी और जांचपड़ताल में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिस से डा. प्रकाश की परेशानी और इस हत्याकांड के पीछे के कारणों का पता चलता.

छठे दिन पुलिस को मोबाइल फोनों की जांच रिपोर्ट मिली. इस में बताया गया कि डा. सोनू व अदिति के मोबाइल में डेटा नहीं मिला. वाट्सऐप चैट व गैलरी से फोटो, वीडियो डिलीट थे. इस से यह नया सवाल खड़ा हो गया कि क्या डा. प्रकाश ने हत्या के बाद पत्नी व बेटी के मोबाइल का डेटा डिलीट किया था. अगर उन्होंने डेटा डिलीट किया था तो उस में ऐसे क्या मैसेज व फोटो थे. रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने इन मोबाइल फोनों के डेटा रिकवर करने के लिए साइबर एक्सपर्ट की मदद ली.

बाद में की गई जांच में पुलिस को ऐसा कोई तथ्य नहीं मिला, जिन से इस मामले में रहस्य की कोई परत उजागर हो पाती. इस बीच 8 जुलाई को डा. प्रकाश के परिजनों ने पुलिस उपायुक्त (पूर्व) सुलोचना गजराज को एक पत्र दे कर इस पूरे मामले को एक साजिश का परिणाम बताया और इस की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. परिजनों ने सुसाइड नोट की हस्तलिपि पर भी सवाल उठाए.

डा. प्रकाश की बड़ी बहन के दामाद कौशल का कहना था कि इस वारदात के पीछे जमीन का विवाद भी हो सकता है. इस का कारण है कि उन की मामीजी यानी सोनू सिंह के पिता की वाराणसी की जमीन को ले कर सोनू सिंह और उन की बहन के बीच विवाद था.

पलवल वाले स्कूल की जमीन को ले कर भी कुछ विवाद चल रहे थे. यह जमीन डा. प्रकाश ने अपनी बहन शकुंतला से पैसे उधार ले कर खरीदी बताई गई. परिजनों का यह भी कहना था कि डा. प्रकाश का 2 साल पहले मेदांता अस्पताल में बाइपास औपरेशन हुआ था. औपरेशन से उन की जिंदगी तो बच गई थी, लेकिन वे अंदर से पूरी तरह खोखले हो गए थे.

कौशल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री को इस मामले में पत्र लिख कर सुसाइड नोट की हस्तलिपि और दस्तखतों पर भी सवाल उठाए. इस के लिए उन्होंने डा. प्रकाश की ओर से कुछ दिन पहले दिए गए एक चैक की फोटोप्रति भी संलग्न की.

कौशल के अनुसार, सुसाइड नोट पर किए हस्ताक्षर पर डा. प्रकाश के जैसे हस्ताक्षर बनाने का प्रयास किया गया है जबकि वे असली हस्ताक्षर नहीं हैं.

यह बात भी सामने आई कि डा. प्रकाश अपनी ससुराल वालों की वाराणसी की जमीन एकडेढ़ करोड़ रुपए में बेचना चाहते थे. इस जमीन पर सोनू सिंह की बहन भी दावा जता रही थीं. जमीन बेचने के सिलसिले में डा. प्रकाश जल्दी ही बनारस भी जाने वाले थे.

चर्चा यह भी है कि डा. प्रकाश पर बैंकों और रिश्तेदारों का काफी कर्ज था. इस कर्ज को ले कर वह तनाव में थे. गुरुग्राम के मकान की किस्तें भी समय पर नहीं चुकाने की बात सामने आई थी.

सन फार्मा की नौकरी छोड़ने के बाद वह अलग से तनाव में थे. हालांकि कहा यही जा रहा है कि उन की हैदराबाद की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में नई नौकरी की बात हो गई थी. इस के लिए वह 3 जुलाई को फ्लाइट से हैदराबाद भी जाने वाले थे, लेकिन इस से पहले ही यह मामला हो गया.

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डा. प्रकाश की मौत के बाद उन की संपत्तियों को ले कर अलगअलग दावे जताने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि औपचारिक रूप से तो किसी पक्ष ने दावे नहीं किए थे, लेकिन दोनों ही पक्षों के लोग अपनेअपने तरीकों से डा. प्रकाश और उन की पत्नी की संपत्तियों और कर्ज के बारे में पता लगा रहे थे.

कहा जा रहा है कि डा. प्रकाश की अधिकांश संपत्तियां उन की पत्नी सोनू सिंह के नाम से हैं. सोनू की बहन सीमा अरोड़ा ने डा. प्रकाश के कुछ स्कूल खोलने के लिए स्टाफ को कह दिया है.

बहरहाल, डा. प्रकाश सिंह का हंसताखेलता खुशहाल परिवार उजड़ गया. कथा लिखे जाने तक पुलिस को इस मामले में कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस के जरिए रहस्य का परदा उठ पाता. डा. प्रकाश ने अपनी जान से ज्यादा प्यारी बेटी और बेटे के अलावा पत्नी को मौत के घाट उतारने के बाद खुद आत्महत्या क्यों कर ली, यह रहस्य सा बन कर रह गया है.

पुलिस को कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं मिला. डा. प्रकाश के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों से भी पुलिस कोई सुराग नहीं लगा सकी. ऐसे भी कोई साक्ष्य नहीं मिले कि इस वारदात में किसी बाहरी व्यक्ति का हाथ हो. इन सभी कारणों से वैज्ञानिक प्रकाश के परिवार की हत्या और आत्महत्या का मामला फिलहाल मिस्ट्री बन कर रह गया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

शातिर बहू की चाल: भाग 2

शातिर बहू की चाल: भाग 1

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आखिरी भाग

सतनाम कौर ने पूरी बिरादरी में हरजोत और उस के बच्चों, जो कि उन के पोतापोती थे को बदनाम कर रखा था. इस घटना से 2 सप्ताह पहले हरजोत कौर यह शिकायत ले कर अपने मामा ससुर यानी सतनाम कौर के भाई राजिंदर सिंह के पास गई थी कि वह अपनी बहन को समझाएं.

वह उसे और उस के बच्चों को बेवजह बदनाम करना छोड़ दें. नहीं तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. राजिंदर सिंह ने सतनाम कौर को समझाया भी था, लेकिन सतनाम कौर अपनी आदत से बाज नहीं आई थीं. इसलिए हरजोत कौर ने अपनी सास को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली थी.

अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने ये सारी बातें विक्रमजीत को बताईं. विक्रम नशे का आदी था. सो थोड़ा सा नशा करने के बाद वह हरजोत का साथ देने के लिए तैयार हो गया. रिमांड के दौरान दिए गए अपने बयान में हरजोत ने बताया कि उस ने पति के जीवित रहते 2 साल पहले अपनी सास की कोठी की रेकी कर ली थी.

अब ताजा स्थिति में उस ने आदर्श नगर जा कर यह देखा था कि सतनाम कौर की कोठी तक पहुंचने के लिए रास्ते में किनकिन सीसीटीवी कैमरों का सामना करना पड़ सकता है. नए हिसाब से उस ने नई योजना तैयार की थी.

घटना वाले दिन 29 मार्च को वह अपनी एक्टिवा पर सवार हो कर विक्रम के साथ सतनाम पुरा पहुंची. विक्रम ने उस से 500 रुपए मांगे और पैसे ले कर पहले नशा किया. इस दौरान वह एक दुकान पर बैठ कर बर्गर खाती रही. इस के बाद दोनों सतनाम कौर की आदर्श नगर स्थित कोठी पर पहुंचे.

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सतनाम कौर उसे देखते ही भड़क उठी और दोनों को वहां से चले जाने को कहा, लेकिन कोई जरूरी बात करनी है. बोल कर दोनों सतनाम के बेडरूम में बैठ गए. फिर मौका पाते ही विक्रम ने अपने गले में डाला हुआ काले रंग का साफा सतनाम के गले में डाल दिया, फिर दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

आदर्शनगर, सतनामपुरा इलाके में सतनाम कौर कोठी नंबर 534 बी की ऊपरी मंजिल पर अकेली रहती थी. जबकि कोठी की नीचली मंजिल पर संदीप शर्मा व रामशरण 2 लोग किराए पर रहते थे. दिनांक 29 मार्च की सुबह किराएदार अपने काम पर चले गए थे, और देर रात घर लौटे थे. आ कर दोनों सो गए थे.

30 तारीख की सुबह जब किराएदार अध्यापक संदीप शर्मा ऊपर गया तो सतनाम कौर को आवाजें लगाने पर भी जब कोई आवाज नहीं आई, तो उसे शक हुआ. उस ने ऊपर जा कर देखा तो सतनाम कौर को मरा पाया और पुलिस को सूचना दे दी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर काले रंग का साफा बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने सतनाम कौर का गला घोंट कर हत्या की थी. पुलिस ने आननफानन में 24 घंटे के भीतर सतनाम कौर के हत्यारों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पर एक बात अभी तक पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि हरजोत कौर ने बिना किसी विरोध के साथ अपना अपराध स्वीकार कैसे कर लिया.

जबकि हत्या जैसा संगीन अपराध कोई भी आरोपी इतनी आसानी से कबूल नहीं करता. पुलिस ने पूरे मामले की दोबारा गहनता से जांच की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. 2 दिन बाद इस मामले में अचानक एक नया मोड़ आ गया.

पुलिस ने इस केस की एक और अभियुक्त  अंजू को हिरासत में ले लिया. पूछताछ के दौरान उस ने स्वीकार किया कि उस ने हरजोत के कहने पर विक्रम के साथ जा कर सतनाम कौर की हत्या की थी.

हरजोत कौर तो मौकाएवारदात पर गई ही नहीं थी. दरअसल सीसीटीवी फुटेज को बारीकी से चेक करने पर पुलिस को पता चला था कि एक्टिवा पर सवार औरत की कद काठी और उस समय पहने हुए कपड़े हरजोत से मेल नहीं खा रहे थे.

जब हरजोत से दोबारा सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सब सच उगल दिया. वह और विक्रम अब तक पुलिस से झूठ बोलते आए थे. दरअसल, पुलिस को गुमराह करने और जांच की दिशा भटकाने के लिए यह हरजोत की चाल थी.

अंजू कई सालों से हरजोत के घर काम करती थी और उसी गांव की रहने वाली थी. हरजोत ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा कर इस काम के लिए राजी किया था. अंजू के अनुसार उस ने यह काम पैसों या किसी अन्य लालच में नहीं किया था.

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वह हरजोत को अपनी बड़ी बहन जैसी मानती थी. हरजोत ने इसी बात का फायदा उठाया था. घटना वाले दिन 29 मार्च को अंजू, विक्रम और हरजोत तीनों एक साथ सतनामपुरा आए थे. हरजोत बर्गर की एक दुकान पर रुक गई थी और अंजू विक्रम के साथ हरजोत की एक्टिवा पर घटना को अंजाम देने सतनाम कौर के घर पहुंच गई.

सतनाम की हत्या करने के बाद हरजोत की योजना अनुसार वे दोनों अपने गांव दादूवाल लौट गए थे. गांव पहुंच कर अंजू ने अपना पहना हुआ सूट जला दिया था. ऐसा करने के लिए उस से हरजोत ने ही कहा था. पुलिस ने अंजू की निशानदेही पर वह अधजला सूट भी बरामद कर लिया.

3 अप्रैल को अंजू, विक्रम और हरजोत को पुन: अदालत में पेश किया गया. उस दिन विक्रम और हरजोत का रिमांड समाप्त हो गया था, इसलिए उन दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि अंजू को 5 अप्रैल तक पुलिस रिमांड पर लिया गया.

बाद में रिमांड अवधि समाप्त होने पर अंजू को भी जेल भेज दिया गया. पुलिस जांच भटकाने के पीछे हरजोत का मकसद यह था कि जरूरत पड़ने पर वह यह साबित कर सकती है कि घटना के समय वह मौका ए वारदात पर मौजूद नहीं थी. और अगर वह पकड़ी भी गई तो उस के बच्चों की देखभाल अंजू कर लेगी. दोनों हालातों में एक औरत का बाहर रहना तय था, पर पुलिस जांच में हरजोत की पोल खुल गई और उस के साथ अंजू भी पुलिस की गिरफ्त में आ फंसी.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

समाज की दूरी से दो लोगों को फांसी: भाग 2

समाज की दूरी से दो लोगों को फांसी : भाग 1

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आखिरी भाग

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़नेलिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले आना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्लसूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

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संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए.

दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने गई थी.

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यह सुनते ही भूरा का माथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था.

शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है, वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा.’’

इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए.

कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद तो दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

समाज की दूरी से दो लोगों को फांसी : भाग 1

भाग 1

लोग पढ़लिख कर आधुनिक होने का कितना भी दम भर लें, लेकिन सोच उन की वही पुरानी ही है. भूरा राजपूत अपनी दकियानूसी सोच को दरकिनार कर अगर बेटी शैफाली की बात मान लेते तो शायद आज उन की बेटी जीवित होती.

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

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‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है.

भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा. संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे. भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त करा दीजिए.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया.

भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली. जिस से प्रेमी युगल ने फांसी लगाई थी.

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी.

इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

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भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाईलिखाई में तेज होने के कारण उस के नाजनखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थी.

दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपीकिताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी.

संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखतेदेखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरतफुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसीमजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमनासामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उस ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

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शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनोंदिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

क्रमश:

सौजन्य: मनोहर कहानियां

रातों का खेल: भाग 2

रातों का खेल: भाग 1

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आखिरी भाग

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौन्टैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उस के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था. जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस के काल को तीसरी स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दिया जाता था.

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यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है. राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

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कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

रातों का खेल: भाग 1

भाग:1

घटना 10 जून, 2019 की है. इंदौर साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह ने साइबर सेल के अफसरों और कुछ सहकर्मियों को अपने केबिन में बुला कर इंदौर के किसी क्षेत्र में छापा डालने के बारे में बताया. छापेमारी में कोई चूक न हो इस के लिए हर पुलिसकर्मी की शंका और उस के समाधान के बारे में 4 घंटे तक मीटिंग चली. इस के बाद एसपी जितेंद्र सिंह के निर्देश पर रात लगभग साढ़े 12 बजे 2 टीमें बनाई गईं.

इन टीमों में एसआई राशिद खान, आमोद राठौर, संजय चौधरी, विनोद राठौर, रीना चौहान, पूजा मुबेल, अंबाराम प्रधान व सिपाही आनंद, दिनेश, रमेश, विजय विकास, राकेश और राहुल को शामिल किया गया. इन टीमों को सी 21 माल के पीछे स्थित टारगेट पर धावा बोलना था. समय तय कर दिया गया था.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए टीमों के रवाना होने के बाद पुलिस अधीक्षक जितेंद्र सिंह बैकअप देने के लिए औफिस में ही बैठे रहे. उन्हें भेजी गई टीमों से मिलने वाली सूचनाओं का इंतजार करना था. साइबर एसपी जितेंद्र सिंह को 25 दिन पहले सी 21 माल के पीछे स्थित प्लाजा प्लेटनेम के 2 तलों पर संदिग्ध गतिविधियां संचालित होने की जानकारी मिली थी.

एसआई राशिद खान ने जो सूचना जुटाई थी, उस के अनुसार प्लेटनेम में 2 औफिस रात को 11 बजे खुलते थे और सुबह होते ही बंद हो जाते थे. लगभग सौ सवा सौ युवकयुवतियां रात 11 बजे औफिस में जाते थे. इस के बाद सुबह तक के लिए शटर बंद हो जाता था. वहां क्या होता है, इस का किसी को पता नहीं था. हां, इतना आभास जरूर था कि वहां जो भी होता है, वह कानून के दायरे के बाहर है.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में जो जानकारी जुटाई, उस में पता चला कि संदिग्ध औफिस के मालिक पिनकेल डिम व श्रीराम एनक्लेव में रहने वाले जावेद मेनन और राहिल अब्बासी हैं, जो रईसी की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग क्या काम करते हैं, इस की जानकारी किसी को नहीं थी.

एसपी जितेंद्र सिंह को सब से बड़ी बात यह पता चली कि इन औफिसों में काम करने वाले युवकयुवतियों में 80 प्रतिशत से अधिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हैं.

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जावेद ने इन लोगों को आसपास के इलाकों में किराए पर फ्लैट ले क र दे रखे थे. पूर्वोत्तर के नागरिक आसानी से इंदौर के लोगों में घुलमिल नहीं सकते थे, इसलिए साफ था कि ऐसे कर्मचारियों का चुनाव आमतौर पर तभी किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति अपने कार्यकलाप को गुप्त रखने की मंशा रखता हो.

एसपी जितेंद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह समझते थे, इसलिए दबिश देने पर आपराधिक गतिविधियों का खुलासा हो सकता था. एसपी साहब ने इस मामले की सूचना पुलिस महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेश गुप्ता व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक अवस्थी को पहले दे दी थी. अब उन्हें परिणाम का इंतजार था.

उस समय रात का 1 बजा था, जब एसआई राशिद खान की टीम ने सी 21 माल के पीछे स्थित टारगेट के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर के इंतजार के बाद शटर उठाया गया तो एसआई राशिद खान पूरी टीम के साथ धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गए. औफिस में अंदर रखी करीब 20-22 टेबलों पर 60-70 कंप्यूटरों की स्क्रीन चमक रही थीं.

110-112 के आसपास युवकयुवतियां एक ही स्थान पर मौजूद थे. उस दिन किसी महिला कर्मचारी का जन्मदिन था, इसलिए औफिस का मालिक जावेद मेनन भी वहां मौजूद था. उस ने युवती का जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए खुद ही केक मंगवाया था.

पुलिस को आया देख वहां मौजूद सभी कर्मचारी घबरा गए. राशिद खान की टीम ने उन्हें केक काटने का समय दिया. इस के बाद वहां चल रहे कंप्यूटरों की जानकारी खंगाली गई तो टीम की आंखें फटी रह गईं. वास्तव में वहां की 2 मंजिलों पर 2 ऐसे कालसेंटर चल रहे थे, जो इंदौर में बैठ कर हाइटेक तरीके से अमेरिकी नागरिकों को ठगने का काम करते थे.

कालसेंटर के मालिक जावेद मेनन ने पहले तो पुलिस को अपने द्वारा किए जा रहे काम को लीगल ठहराने की कोशिश करते हुए वहां से खिसकने की सोची, लेकिन साइबर सेल की सतर्कता से उसे ऐसा मौका नहीं मिला.

इस दौरान हुए खुलासे की जानकारी मिलने पर एसपी जितेंद्र सिंह खुद भी मौके पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के बाद देर रात शुरू हुई काररवाई अगले दिन सुबह तक चली. इस काररवाई में जावेद मेनन और उस के राइट हैंड शाहरुख के साथ 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन में पूर्वोत्तर राज्यों की रहने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.

पुलिस टीम ने कालसेंटर से 60 कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन, सर्वर और अन्य गैजेट्स तथा लगभग 10 लाख अमेरिकी नागरिकों का डाटा बरामद किया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में स्थिति साफ होने पर उन के खिलाफ 468, 467, 471, 420, 120बी, आईपीसी और 66 डी आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया.

गिरफ्तार किए गए सभी 78 युवकयुवतियों को 2 चार्टर्ड बसों में भर कर अदालत ले जाया गया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, जहां से पुलिस ने पूछताछ के लिए जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन को रिमांड पर ले लिया, जबकि नगालैंड, मेघालय, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सहित 10 राज्यों के रहने वाले 75 युवकयुवतियों को जेल भेज दिया गया.

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जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन से पूछताछ के बाद उन के औफिस दिव्या त्रिस्टल, प्लैटिनम प्लाजा, घर पिनेकल डीम और श्रीराम एनक्लेव में छापा मारा गया. करीब 5 घंटे की तलाशी के बाद पुलिस ने वहां से फरजीवाड़े से संबंधित ढेरों सामग्री जब्त की.

इस के बाद पूछताछ में तीनों आरोपियों ने जो बताया, उस के आधार पर पता चला कि जावेद मेनन और उस का दोस्त राहिल अब्बासी मूलरूप से अहमदाबाद के रहने वाले थे. दोनों 2018 में इंदौर आए थे. यहां उन्होंने बीपीओ कंपनी की आड़ में कालसेंटर शुरू किए.

इंदौर में दोनों ने जिस कंपनी के नाम से किराए पर इमारतें लीं, वे विपिन उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड हैं. जबकि इस के वास्तविक मालिक जावेद और राहिल हैं. कंपनी विपिन के नाम थी, इसलिए इस कंपनी के नाम से ही किराए का एग्रीमेंट किया गया था.

विपिन को पूरी बात की जानकारी थी. इस के बदले वह जावेद और राहिल से अपना नाम इस्तेमाल करने का करीब 1 लाख रुपए महीना किराया लेता था.

जावेद और राहिल काफी शातिर दिमाग थे. दोनों जानते थे कि स्थानीय स्तर पर ठगी का कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा, इसलिए फरजी कालसेंटर के जनक माने जाने वाले सागर ठक्कर उर्फ शग्गी से प्रेरणा ले कर दोनों ने द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर अमेरिकी नागरिकों को ठगने की योजना बनाई. उन्होंने पहले अहमदाबाद, फिर पुणे में कुछ समय तक ठगी का कारोबार करने के बाद इंदौर का रुख किया.

इंदौर में दोनों 2018 से इस तरह के 2 कालसेंटर चला रहे थे. इस काम के लिए उन्होंने काफी हाइटेक उपकरण जमा कर रखे थे. अमेरिकी नागरिकों को झांसा देने के लिए जावेद ने पूर्वोत्तर राज्यों के युवकयुवतियों को नौकरी देने के नाम पर अपने साथ जोड़ लिया था. इस के 2 कारण थे, पहला तो यह कि इन राज्यों के युवकों की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होती है. दूसरे उन का अंगरेजी बोलने का लहजा अमेरिकी लहजे से काफी मिलताजुलता होता है.

इंदौर में जावेद और राहिल के 2 कालसेंटरों से जो 75 से ज्यादा युवकयुवती पकड़े गए, उन्हें जावेद रहनेखाने के खर्च के अलावा 22 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. सभी के रहने के लिए इंदौर की महंगी कालोनियों में 30 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिए गए थे. युवकयुवतियों को एक साथ रहने की सुविधा दी गई थी.

चूंकि ठगी अमेरिकी नागरिकों से की जाती थी, इसलिए जावेद का कालसेंटर रात 10 बजे खुलता था. वजह यह कि जब भारत में रात के 10 बजे होते हैं, तब अमेरिका में सुबह के लगभग 11 बजे का समय होता है. रात के 10 बजे शटर उठा कर सभी कर्मचारियों को अंदर कर शटर बंद कर दिया जाता था. जिस के बाद असली खेल शुरू होता था.

क्रमश:

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

हनी ट्रैप: छत्तीसगढ़ में भी एक ‘चिड़िया’ पकड़ी गई

छत्तीसगढ़  रायपुर में अश्लील वीडियो रिकौर्ड कर ब्लैकमेलिंग  प्रकरण में पुलिस ने बड़ा खुलासा किया है. 29 वर्षीय प्रीति  फेसबुक से दोस्ती कर अपने प्रेम जाल में फंसाकर 1 करोड़ से अधिक की नकदी और चार पहिया वाहन कारोबारी को ब्लैकमेलिंग कर वसूल चुकी थी.  छत्तीसगढ़ के कोरिया के मनेद्रगढ़ की रहने वाली डेंटल कौलेज से ड्राप आउट छात्रा प्रीति तिवारी को गिरफ्तार किया गया है. पुलिस ने एक दिन की रिमांड पर भी लिया है. उसके पास से 1 नग ब्रेज़ा कार, 1 हुंडई, सोने की ज्वेलरी समेत 47 लाख 50 हजार रुपए का मशरूका पुलिस ने जब्त किया गया है. एडिशनल एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अनुसार यह मामला भोपाल के बहुचर्चित हनी ट्रैप से बिलकुल अलग केस है, उससे इसके कोई लेना देना भी नहीं है. पुलिस का कहना कि पूछताछ में पता चला है कि आरोपी युवती बेहद शातिर है. इसके साथ और लोगों के  जुड़े होने की आशंका है.

सेक्स के लिए  बाध्य करती थी!

रायपुर में पुलिस द्वारा पकड़ी गई प्रीति नामक युवती के संबंध में पुलिस बताती है कि वो युवक को सेक्स करने के लिए उत्प्रेरित करती  और कहती  कि शिकार उसे संतुष्ट करें. दबाव में आकर युवक युवती के साथ एक-दो बार सेक्स करता रहा. लेकिन इसी बीच खुफिया कैमरे में युवती अश्लील वीडियो बना लेती है. फिर बाद में वीडियो दिखाकर उसे सेक्स केस में फंसा देने और समाज में बदनाम करने की धमकी देकर पैसे वसूलती है. ब्लैकमेल कर उससे करोड़ों रुपए उगाही की. बाद में उसे डरा धमका कर मुंबई औऱ जगदलपुर घुमाने भी लेकर गई.

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पुलिस सूत्रों  के मुताबिक 2012 में फेसबुक के जरिए प्रीति तिवारी ने कारोबारी चेतन शाह से चैट कर दोस्ती किया और उसका विश्वास जीत लिया. कुछ दिनों की दोस्ती के बाद वह चेतन से मिलने रायपुर भी आई. फिर इसके बाद कभी रायपुर कभी बिलासपुर में मुलाकात होती रही. इस बीच युवती के परिवार वाले राजधानी रायपुर में शिफ्ट हो गए. अपने खूबसूरती की जाल में फंसाने की कोशिश करती है. युवक को अपने जाल में फंसाकर उससे प्यार करने की बात कहती है. पुलिस के अनुसार यह अपने आप में एक अजीबोगरीब मामला प्रकाश में आया है आरोपी के खिलाफ शिकायत होने पर इसकी जांच की गई और तथ्यों के आधार पर आरोपी युवती को पुलिस हिरासत में लेकर खुलासा किया गया है.

ब्लैक मेल की लंबी दास्तां

इतना ही नहीं प्यार का इजहार करते हुए प्रीति द्वारा शादी करने की बात युवक से कही जाती  है. लेकिन युवक आपने आप को शादी शुदा बताकर शादी करने से इंकार कर देता है तब प्रीति ने चेतन को फोन से एस एम एस  कर ब्लैकमेल कर पैसों की मांग शुरू कर दी. पुलिस में रिपोर्ट, सामाजिक भय व परिवार न टूटे इस कारण से अपने बैंक से पैसा निकालकर व्यापारी दोस्तों से, रिश्तेदारों से उधार लेकर, करीब 90 लाख नकद रूपए युवक ने युवती को दिए. मकान बेचकर उसने जो रकम दोस्तों से उधार लेकर दी थी, उधारी की रकम दोस्तों को वापस की. धमकी देकर एसएमएस के माध्यम से की वह विदेश चली जायेगी, वीजा बनवाने के नाम से, कभी विदेश में आने वाले पढ़ाई के खर्च के नाम से बड़ी-बड़ी रकम 30 लाख, 11 लाख, 3 लाख, 11 लाख, 20 लाख, 12 लाख, 3 लाख यानी कुल 46 लाख ब्लैगमेल कर लिए. फिर से खाते में 17 हजार, 15 हजार, 1 हजार, 23 हजार, 20 हजार, 25 हजार, 20 हजार, 20 हजार, 30 हजार, 30 हजार, 15 हजार, 15 हजार, 10 हजार कर कुल मिलाकर 1 करोड़ 38लाख 51 हजार रुपए ब्लैकमेल कर लिए औऱ क्रेटा कार भी युवती ले ली.

पुलिस ने मामले में आरोपी प्रीति तिवारी को गिरफ्तार कर लिया है. उसके साथ देने वालों की जांच चल रही है. आरोपिया के पास से 1 नग ब्रेज़ा कार, 1 हुंडई कार, सोने की ज्वेलरी समेत 47 लाख 50 हजार रुपए का मशरूका जब्त किया है. फिलहाल पुलिस पूरे मामले की जांच चल रही है.

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प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुलहन का हश्र: भाग 2

प्रेमी प्रेमिका के चक्कर में दुल्हन का हश्र: भाग 1

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इधर नेहा कुंवरपाल के शादी के फैसले से बौखला उठी. उस का प्रेमी कायर निकला, यह सोचसोच कर वह उबल रही थी. पर चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकती थी. नेहा ने तय कर लिया कि बेशक कुंवरपाल ने शादी कर ली है लेकिन वह उसे कभी भी छोड़ेगी नहीं. वह उस की दुनिया नहीं बसने नहीं देगी. जिस व्यक्ति ने उस की भावनाओं से खिलवाड़ किया, वह उसे भी चैन से नहीं जीने देगी.

कुंवरपाल की शादी के बाद रामकिशोर और उस के रिश्तेदारों ने सुख की सांस ली कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. पर नेहा अपने आशिक दिल का क्या करती, जो मान ही नहीं रहा था.

शादी के 4 दिन बाद नेहा की मुलाकात कुंवरपाल से हुई तो उस ने कहा, ‘‘तुम ने तो अपनी दुनिया बसा ली, अब मेरा क्या होगा?’’

‘‘तुम भी शादी कर लो. नेहा, लगता है कि होनी को यही मंजूर था.’’ कह कर कुंवरपाल ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन नेहा को कुंवरपाल की यह दलील पसंद नहीं आई. उस ने साफ कह दिया कि चाहे जो हो, वह उसे नहीं छोड़ सकती.

कुंवरपाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अगर उस की पत्नी पूनम को उस के संबंधों के बारे में पता चला तो वह परेशान हो जाएगी.

पूनम को पति की आशिकी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. वह तो अपने मांबाप की दी हुई शिक्षा के अनुसार अपनी ससुराल में आदर्श बहू बनने की कोशिश कर रही थी.

घर में सब पूनम से खुश थे. संतोष अपनी बेटी की शादी के बाद निश्चिंत हो गया था, पर उसे नहीं मालूम था कि उस के जीवन में कितना बड़ा तूफान आने वाला है.

पहली जुलाई, 2019 को सोरों थाना क्षेत्र के फरीदनगर स्थित एक खेत में सुबहसुबह कुछ लोगों ने एक लड़की और एक लड़के का शव देखा तो तुरंत पुलिस को सूचित किया.

कुछ ही देर में कोतवाली इंचार्ज रिपुदमन सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि मृत युवक की पैंट और बेल्ट एक ओर पड़ी थी. वहां सल्फास के कुछ पाउच और पानी की बोतल भी पड़ी थी. लड़के की तलाशी में उस की जेब से भी सल्फास का एक पैकेट मिला.

पुलिस को पहली जांच में मामला प्रेमी युगल की खुदकुशी का लगा. सूचना मिलते ही सीओ गवेंद्रपाल गौतम भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

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धीरेधीरे भीड़ बढ़ने लगी. भीड़ में से कुछ लोगों ने दोनों मृतकों को पहचान लिया. दोनों होडलपुर गांव के थे. लड़के की पहचान कुंवरपाल पुत्र डालचंद के रूप में हुई. जबकि लड़की नेहा रामकिशोर की बेटी थी. मौके पर पुलिस को शराब की बोतल और नमकीन का पैकेट भी मिला.

खबर मिलने पर कुछ देर बाद दोनों के घर वाले भी वहां पहुंच गए. वे एकदूसरे पर हत्या का आरोप लगाने लगे. लेकिन पुलिस को अभी तक मामला आत्महत्या का ही लग रहा था. यानी असफल प्रेमियों द्वारा अपनी जिंदगी खत्म कर देना.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई करने के बाद लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों पक्षों को थाने बुलाया तो थाने में भी दोनों पक्ष एकदूसरे पर आरोप लगाने लगे.

नवविवाहिता पूनम को जब पता चला कि उस का सुहाग उजड़ गया है तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस का रोरो कर बुरा हाल हो गया. 50 दिन पहले ही उस की शादी हुई थी. पति ने उसे जरा भी भनक नहीं लगने दी थी कि वह किसी और से प्यार करता है.

वह तो पति को भरसक प्यार देने की कोशिश कर रही थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि बीती रात जब कुछ लोग उसे बुलाने आए तो वह उसे बिना कुछ बताए उन के साथ चला गया और अगले दिन उस की लाश मिली.

अगले दिन दोनों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि दोनों मृतकों के शरीर पर चोट के निशान थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से केस का रुख ही बदल गया. यह आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का मामला निकला.

इस के बाद कुंवरपाल के पिता डालचंद ने डा. कृष्णकुमार, उस के भाई राजेश, रामकिशोर, रमेश आदि के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के घर दबिश दी, जिस में रामकिशोर और उस का छोटा भाई रमेश पुलिस के हत्थे चढ़ गए जबकि अन्य आरोपी फरार हो गए थे.

थाने ला कर जब उन दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने दोनों हत्याएं करने की बात स्वीकार कर ली. इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कुंवरपाल की शादी के बाद नेहा के घर वालों ने सोचा था कि अब नेहा संभल जाएगी और वह उस के लिए कोई अच्छा सा घरवर खोज कर उस के हाथ पीले कर देंगे. पर नेहा का आक्रामक रुख उन्हें परेशान कर रहा था.

वह बागी हो गई थी. उस ने पिता से साफ कह दिया था, ‘‘आप परेशान न हो, मैं कुंवरपाल को अपनापति मान चुकी हूं. उस के अलावा अब किसी के साथ अपनी दुनिया नहीं बसा सकती. भले ही उस ने शादी कर ली है लेकिन वह उसे उस की बेवफाई महसूस जरूर कराएगी.’’

लड़की पागल हो गई है, जब इस की शादी हो जाएगी, तब सब ठीक हो जाएगा. यह सोच कर पिता ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. पर बागी बन चुकी नेहा को घरपरिवार वाले सब दुश्मन नजर आ रहे थे.

नेहा के तेवर परेशान करने वाले थे, इसलिए घर वालों ने मान लिया कि कुंवरपाल की वजह से ही उन के घर की बदनामी हो रही है. इसलिए उन्होंने कुंवरपाल को ही ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया.

पूरी योजना के बाद 30 जून, 2019 की रात 11 बजे कुछ बात करने के बहाने रामकिशोर ने कुंवरपाल को अपने घर बुलाया. कुंवरपाल जब रामकिशोर के घर पहुंचा तो वहां कई लोग मौजूद थे.

कुंवरपाल के पहुंचते ही उन लोगों ने उसे पीटना शुरू कर दिया. तब नेहा अपने प्रेमी को बचाने के लिए आ गई. लेकिन घर वालों ने नेहा को एक तरफ धकेल कर कुंवरपाल की जम कर पिटाई की. मारपीट के दौरान कुंवरपाल को गंभीर चोटें आईं, जिस से उस की वहीं मौत हो गई.

कुंवरपाल की मौत नेहा की आंखों के सामने हुई थी. उस के परिवार वालों ने उस के सामने ही उस के प्यार को मार डाला था. नेहा की रहीसही उम्मीद भी अब खत्म हो गई थी. उस ने तमक कर कहा, ‘‘तुम ने कुंवरपाल को मार डाला. क्या सोचते हो कि तुम लोग बच जाओगे. मैं पुलिस को सब कुछ बता दूंगी. हत्यारे हो तुम लोग.’’

नेहा के तेवर देख कर सब घबरा गए. उसे सभी ने समझाने की बहुत कोशिश की पर नेहा ने साफ कह दिया कि उस की दुनिया उजाड़ने वालों को वह कतई माफ नहीं कर सकती.

नेहा के तेवरों के सामने सब को फांसी का फंदा दिखाई देने लगा.  अत: उन्होंने नेहा को एक कमरे में बंद कर दिया और सोचने लगे कि अब क्या करें.

इस के बाद घर वालों ने फैसला किया कि नेहा को भी खत्म करना ठीक रहेगा वरना यह जिद्दी लड़की सभी को फंसा देगी. यह भी नहीं रहेगी तो सारी कहानी खत्म हो जाएगी. फिर कमरे से नेहा को निकाला गया और उसे भी पीटपीट कर मार डाला गया. इस के बाद योजना बनाई गई कि कुछ ऐसा किया जाए कि 2 हत्याओं का यह मामला आत्महत्या लगे.

योजना दोनों के शव फरीदनगर रेलवे लाइन के पास ले जा कर रेलवे ट्रैक पर फेंकने की थी, पर तब तक सुबह हो गई थी और लोगों का उधर आनाजाना शुरू हो गया था. सल्फास के पाउच और शराब की बोतल का इंतजाम किया गया और पुलिस को भ्रमित करने की कोशिश की गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सारी पोल खोल दी.

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रामकिशोर और रमेश से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के हिस्से में 50 दिन का वैवाहिक जीवन आया था. उस की खुशियां, उस के सपने सब नाकाम आशिकी की भेंट चढ़ गए, जो उस के पति और नेहा के बीच थे.

पूनम को सब से ज्यादा अफसोस इस बात का था कि पति ने उस का विश्वास तोड़ा था. यदि वह बता देता कि उस की आशिकी के कारण गांव में दुश्मनी हो गई है तो वह पति के साथ कहीं और चली जाती. पर अब विधवा होने का जो दाग उस के जीवन पर लग गया, उस का वह क्या करे.

पूनम के सामने अभी तो पहाड़ सी सारी उम्र पड़ी है. उस की समझ में नहीं आ रहा कि यह उम्र कैसे कटेगी.

पूनम के ससुराल वाले कुंवरपाल के छोटे भाई रामनरेश के साथ पूनम को चादर ओढ़ाने को तैयार हैं यानी वह रामनरेश के साथ पूनम की शादी करने को राजी हो गए हैं. पर ये निर्णय लेना अभी पूनम के लिए आसान नहीं है. अभी तो जख्म ताजा है, जब वह संभलेगी तब सोचेगी कि क्या करना है.

कहानी सौजन्य: मनोहर कहानी

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