अयोध्या जा कर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने का समय आ गया है. बेहतर जीवन जीने लायक कामधाम रहा नहीं. नौकरियों की इच्छा वैसे ही देश के युवा पहले ही छोड़ चुके हैं, सो अब उन्होंने काम के लिए बाहर निकलना भी बंद कर दिया है. सोशल मीडिया पर धर्म के मैसेज, ‘मातारानी पाप लगाएगी अगर आगे 10 लोगों को फौरवोर्ड नहीं किया तो..’ के डर से युवाओं में पहले ही पूरे दिन व्यस्तता बनी रहती है, इसलिए धार्मिक मैसेज ठेलनेठिलाने का काम जोरों पर है. सुहागा यह कि मंदिरमसजिद के धार्मिक विवादों ने हर दंगाई हाथ को सशक्त करने का काम किया है और वे रोजगार संपन्न सा महसूस कर रहे हैं.

भई, टीवी पर धर्म की बहस से दालरोटी न सही, नफरत तो भरपूर मिल ही रही है. इस आध्यात्मिक मन को और चाहिए भी क्या? भूखप्यास तो भौतिक सुख हैं, इस से तो ध्यान भटकता है, असल जरूरत तो धर्म है, जो जातिवाद सिखाएगा, नफरत सिखाएगा, भेदभाव सिखाएगा, हिंसा सिखाएगा. अब बताओ अपनी संस्कृति न सीखें? इसलिए बहुत से युवा दंगाई बने फिर रहे हैं और बहुत उसी राह पर हैं. मानो तो 45 डिग्री की इस गरमी में मोटा कंबल ओढ़ो और सोचो कि ठंड पड़ रही है, क्योंकि भारत के युवाओं को इस बेरोजगारी युग में दंगाई वाले रोजगार का अभ्यास और आभास हर दिन हो रहा है.

आप पूछेंगे कि धर्म को ले कर इतनी मीठी बातें क्यों कही जा रही है? भई, हम कुछ नहीं कह रहे, रोजरोज के ऊलजलूल विवाद आप के सामने हैं. हम तो मुद्दे पर बात करेंगे. मुद्दा यह है कि भारतीय रेलवे ने बीते 6 सालों में 72 हजार से अधिक पदों को ख़त्म कर दिया है. उपलब्ध दस्तावेजों के हिसाब से ख़त्म किए गए पद ग्रुप सी और डी के हैं. रेलवे का कहना है कि इन पदों को समाप्त किया गया क्योंकि अब आधुनिक तकनीक आ गई है, इसलिए अब इन पदों पर लोगों की जरूरत नहीं है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...