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आठ सौ करोड़ का ट्विन टावर और संदेश

सुपरटेक बिल्डर्स की एपेक्स और सियान नाम की सौ मीटर ऊंची इमारतें अवैध घोषित करके देश के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर अंततः ध्वस्त हो गई. यह एक ऐसा ऐतिहासिक मौका था जो देश के इतिहास में दर्ज हो गया है. यह मामला कई संदर्भों में इतिहास का हिस्सा बन गया है, ऐसा बहुत कम होता है जब लगभग 800 करोड की प्रॉपर्टी को समूल नष्ट करने की प्रक्रिया को आंखों से देखने का मौका मिले.

यही कारण है कि ट्विन टावर की इमारतों को अपनी आंखों से गिरते हुए मिट्टी में मिलते हुए देखने के लिए लगभग 1 लाख लोगों का हुजूम आ जुटा था. जिसमें  आगरा , कानपुर, मैनपुरी से आए हुए लोग भी थे.

ट्विन टावर तो जमींदोज  हो गया मगर इसके साथ अनेक सवाल अपने पीछे छोड़ गया है, जिसका प्रतिउत्तर अभी तक नहीं मिला है.

आइए देखिए कुछ ऐसे प्रश्न जिन्हें पर समझ करके आप भी इस संपूर्ण मसले को इसकी गंभीरता को समझ सकते हैं.

प्रथम प्रश्न –

300 करोड़ की लागत से बने ये  टावर अगर नियमों को अनदेखी कर बनाए गए तो इसके दोषियों को जेल कब भेजा जाएगा .

दूसरा प्रश्न –

ट्विन टावर लगभग 18 वर्ष पूर्व बनना प्रारंभ हुआ इस बीच कई अधिकारियों ने जो इसे रोक सकते थे या जिन्होंने मंजूरी दी उन्हें न्यायालय में क्या सजा मिलेगी.

तीसरा प्रश्न –

सौ प्रश्नों का एक प्रश्न क्या ट्विन टावर को ध्वस्त करना अपरिहार्य था एक गरीब देश विकासशील देश में और आठ सौ करोड़ रुपए की संपत्ति को राजसात करके उसका सदुपयोग नहीं किया जा सकता था.

निर्माण के ध्वंस को देख कर के देश के लोगों में तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं, कयास लगाए जा रहे हैं. निसंदेह यह एक ऐसा ज्वलंत मसला है जिस पर देश को गंभीरता से विचार करना ही चाहिए ताकि आगामी समय में ऐसी गलतियां दोबारा ना हो.

सवाल दोषियों की सजा का

घटनाक्रम के बाद सबसे उत्तर प्रदेश सरकार से महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए ताकि यह संदेश जाए कि नियमों का उल्लंघन कतई बर्दाश्त नहीं होगा.

घर मकान खरीददारों की संस्था फोरम फार पीपल्स कलेक्टिव एफर्ट्स (एफपीसीई) ने नोएडा में सुपरटेक के जुड़वां इमारत गिराए जाने को फ्लैट खरीदारों के लिए एक बड़ी जीत माना है. संस्था के मुताबिक – इस कदम से बिल्डरों और विकास प्राधिकरणों का अहंकार भी ध्वस्त हुआ है.

एफपीसीई ने कहा कि इस मामले में विकास प्राधिकरणों की जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए. करीब 100 मीटर ऊंचे जुड़वां इमारत, एपेक्स और सियान को ढहाने का आदेश पहले पहल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था फिर सुप्रीम कोर्ट ने करीब एक साल पहले दिया था.    उच्चतम न्यायालय के फैसले के बावजूद यह हुआ कि प्राधिकरण के जो लोग इसमें शामिल थे, फिलहाल उनकी पहचान और जिम्मेदारी तय नहीं की गई है. साथ ही उन लोगों की भी जिम्मेदारी अभी तय नहीं हो सकी है, जो बिल्डरों के कहने पर उन्हें प्रभावित कर रहे थे. इसके लिए सीबीआइ जांच कराए जाने की जरूरत है, ताकि जिन लोगों ने लाखों रुपए खर्च करके ट्विन

टावर में इन्वेस्ट किया और लगातार परेशान हुए उन्हें पूरी तरह से न्याय मिल सके.

कब, क्या और कैसे हो गया

2004: नोएडा प्राधिकरण ने सुपरटेक को भूखंड आबंटित किया, 10 मंजिला इमारत बननी थी.

2006: मानचित्र में बिल्डर ने पहलासंशोधन कराया.

2009: पुनः संशोधन कर 24 मंजिल मंजूर कराई.

2012: 24 मंजिला इमारत की ऊंचाई बढ़ाकर संशोधन के

जरिए 40 मंजिल कराई गई .

2012 : ‘एमराल्ड कोर्ट आरडब्लूए ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की

2014: हाईकोर्ट ने इमारत गिराने का आदेश दिया गया .

2021 : 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया, नवंबर 2021 तक जुड़वां इमारत गिराने का आदेश दिया.

2022: फिर 22 मई नई तारीख तय की गई.

2022:20 फरवरी को ‘एडिफिस और जेट डिमोलिशन’ ने स्थल को अपने कब्जे में लिया

2022: 10 अप्रैल को परीक्षण विस्फोट किया गया 2022 : ध्वस्तीकरण के लिए 21 अगस्त को नई तारीख दी गई.

आखिरकार 28 अगस्त2022 को इमारतें ध्वस्त हो गई.

सीयूईटी का थोपना

जैसी आशा थी, उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए सरकार की खुराफाती सीयूईटी (सैंट्रल यूनिवर्सिटी एंट्रैस टैस्ट) में लगातार अफरातफरी और कुप्रबंध की शिकायतें मिल रही हैं और टैस्ट देने वालों को बारबार परीक्षाओं में बैठना पड़ रहा है जबकि अभी तो शुरुआत है. जल्दबाजी में शुरू की गई अंगूठा काटने की द्रोणाचार्य के षड्यंत्र जैसी जटिल परीक्षा का उद्देश्य एक तरफ कोचिंग व्यवस्था को एक नई जान देना है तो दूसरी तरफ मनचाहे क्षेत्रों में छात्रों के लिए उच्च केंद्रीय व चुनिंदा संस्थानों को ही प्रवेश के लिए खुला रखना है.

यूजीसी के चेयरमैन जगदीश कुमार ने माना कि परीक्षा केंद्रों पर प्रश्नपत्र समय पर तुरंत डाउनलोड नहीं हुए. कुछ केंद्रों ने प्रश्नपत्र पहले ही डाउनलोड़ कर लिए और उन्हें बाजार में बेच दिया गया. दोबारा परीक्षा ली जाएगी पर यह बताने पर कि पिछली परीक्षा क्यों नहीं दी जा सकी. कुछ जगह तो पिछली परीक्षा के दिन पर्यवेक्षक पहुंचे ही नहीं.

बात यह नहीं है कि इस बड़ी परीक्षा के प्रबंध में चूक क्यों रही, बात तो यह है कि 12वीं की बोर्ड की परीक्षा लेने के बाद यह परीक्षा लेने की आवश्यकता क्यों? यह क्यों थोपी गई है. इस से जो शिक्षा सत्र जुलाई में शुरू होना था, अभी सितंबर में उस में प्रवेश प्रक्रिया भी शुरू नहीं हो सकी. इस में नुकसान न तो मोदीशाह जोड़ी का होगा, न नीति आयोग का, न यूजीसी का. यूजीसी के चेयरमैन जगदीश कुमार कह रहे हैं कि सीयूईटी की परीक्षा में जानबूझ कर षड्यंत्र के तहत गड़बड़ी की गई. यह कैसे संभव है जब सर्वज्ञाता, सर्वज्ञानी, उच्चवर्गीय, योग्य, राष्ट्रप्रेमी लोगों ने दिव्य दृष्टि से इस परीक्षा की कल्पना की थी और इसे एक अतिरिक्त परीक्षा के रूप में लाखों छात्रों पर इस वर्ष और आने वाले हर वर्ष के लिए थोपा गया? इस परीक्षा प्रणाली के लिए न संसद में चर्चा की गई, न व्यापक विचार लिए गए. कृषि कानूनों, नोटबंदी और अग्निपथ योजनाओं की तरह इस का संदेश स्वयं ईश्वर ने, वेदों की तरह, ज्ञानियों को दिया और अब इस पर सवाल उठाने वाला हर कोई षड्यंत्रकारी, देशद्रोही हो गया.

छात्रों की जो मानसिक वेदना इस परीक्षा के कारण हुई है, जिस तरह उन्हें सैंटर से सैंटर भटकना पड़ा है, इस परीक्षा में होगा क्या, यह जानने के लिए न जाने क्याक्या कयास लगाने पड़े. इन का अंदाजा छात्र, उन की मांएं और पिता ही लगा सकते हैं, शीर्ष सत्ता में बैठे लोग नहीं क्योंकि उन्हें तो विपक्षी सरकारें गिराने से फुरसत नहीं है.

जांच करना, नए सिरे से परीक्षाएं लेना, दोषियों को सजा देना कहना आसान है पर जो जख्म इस बेसिरपैर की परीक्षा ने छात्रों को दिए हैं, उन की व्यापकता का अनुमान भी लगाना कठिन है. सरकार को इस की चिंता नहीं है क्योंकि वह तो वाहवाही के शोर में सुन नहीं सकती और तालियां बजाने के लिए लाखों कोचिंग संस्थान हैं जिन्हें अतिरिक्त आय बैठेबिठाए इस साल में इस परीक्षा के कारण मिलनी शुरू हो गई है. जैसे पिंडदान में खुशी दान लेने वाले को होती है, कुछ वैसे ही शासन और कोचिंग संस्थान मृतकों के संबंधियों के दुख में अपना सुख देख रहे हैं. जो इस परीक्षा प्रणाली के खिलाफ बोलेगा वह नए भारत के निर्माण में अड़चन डालने का पापी है.

केले की व्यावसायिक खेती की ओर बढ़ रहे कदम

किसानों को काबिल बनाने में जुटे हैं डा. आरएस सेंगर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथसाथ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके डा. आरएस सेंगर  ने  किसानों को प्रशिक्षित कर उन को और्गैनिक केला उत्पादन की तरफ मोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया है.

तकरीबन 27 साल से शिक्षा शोध और प्रसार के काम में लगे डा. आरएस सेंगर ने अनेक लेख लिखे, लघुकथाएं, विज्ञान के चमत्कार को रोचक हिंदी भाषा में लिख कर और विज्ञान साहित्य को सरल और सुबोध भाषा हिंदी में लिख कर आम जनता तक पहुंचाने का काम किया है.

डा. आरएस सेंगर औरैया जिले के एक छोटे से गांव आयाना में पैदा हुए. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही हासिल की, जहां पर खेती को पास से देखा, खेती की समस्याओं को सम झा और उन को करीब से महसूस किया.

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड से साल 1993 में अपनी नौकरी की शुरुआत की थी, जहां पर रह कर उन्होंने पाया कि किसानों के खेतखलिहान और उन के द्वार तक किसानों को तकनीकी जानकारी पहुंचाने के लिए काफी काम किया. किसानों के बीच जा कर उन को मुफ्त प्रशिक्षण देने का काम भी उन्होंने किया.

उन्होंने टिशु कल्चर विधि से केले के रोगरहित पौधों को बना कर न्यूनतम दाम पर किसानों को उपलब्ध कराने का प्रयास किया. साथ ही, छात्रों व किसानों को प्रशिक्षित किया, ताकि वे अपने खेतों पर अधिक से अधिक केले की खेती कर सकें.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान गन्ने की खेती करते थे. इस के अलावा वह कोई अन्य खेती नहीं करना चाहते थे, लेकिन डा. आरएस सेंगर के प्रयासों के बाद किसानों ने केले

की खेती का महत्त्व सम झा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी केले की खेती शुरू की. उसी का नतीजा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब लगभग 200 से 300 किसान केले की खेती कर रहे हैं.

केले की खेती के फायदे

केले की खेती काफी फायदेमंद है, क्योंकि केला हमेशा बाजार में उपलब्ध रहता है और 12 महीने इस की अच्छी कीमत मिल जाती है. केले में पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में बीमारी व नुकसान होने का डर भी कम रहता है.

एक एकड़ में तकरीबन 1,300 से 1,400 पौधे लगाए जाते हैं और एक एकड़ में हर वर्ष तकरीबन 3 से साढ़े 3 लाख रुपए की आमदनी आसानी से हासिल की जा सकती है.

मिले हैं कई पुरस्कार

डा. आरएस सेंगर ने भारत में ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है. साल 1993 से ले कर आज तक कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सोसाइटियों के द्वारा सराहनीय काम करने के लिए तकरीबन 30 पुरस्कारों से भी अधिक बार सम्मानित किया जा चुका है.

शुरू की टैली एग्रीकल्चर

कोरोना महामारी के दौरान पूरा देश परेशान था. ऐसी हालत में भारतीय खेती भी काफी प्रभावित हुई थी. किसानों के सामने तकनीकी जानकारी को पहुंचाने की दिक्कत थी, तो उसी बीच टैली एग्रीकल्चर की शुरुआत डा. आरएस सेंगर द्वारा की गई.

किसानों को ह्वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से  जोड़ा और पौधों पर लगने वाली विभिन्न बीमारियों, कीटों और फसलों में आने वाली कई और समस्याओं के अलावा कैसे सुरक्षित रखें फसल को और कटाई के उपरांत अनाज को सुरक्षित भंडारण के लिए जैसी तमाम समस्याओं की जानकारी टैली एग्रीकल्चर के माध्यम से किसानों को पहुंचाई गईं, जिस से खेती पर दुष्प्रभाव कम पड़े और लोगों की तकनीकी जानकारी के प्रति जागरूकता बढ़े.

काफी किसान टैली एग्रीकल्चर से जुड़े और आगे आए. साथ ही, लौकडाउन के दौरान अपनी खेती से संबंधित समस्याओं को भेज कर उन का समाधान तुरंत हासिल किया, जिस से उन के समय और पैसे की बचत हुई.

तकनीकी जानकारी से किसानों की आमदनी बढ़ी

तकनीकी जानकारी पहुंचाने के लिए

डा. आरएस सेंगर के 1,000 से अधिक लेख हिंदी पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, जिस से देश के किसानों को फायदा हुआ.

उन्होंने अनेक कृषि पत्रिकाओं का संपादन कर किसानों को कृषि की तकनीकी जानकारी पहुंचाने का काम किया है. इस के अलावा आकाशवाणी, दूरदर्शन के साथ ही कई अन्य चैनलों के माध्यम से कृषि की जानकारी, केले की खेती की जानकारी पहुंचाने का काम किया है. इन दिनों वे किसानों को ड्रोन तकनीकी उपयोगिता के बारे में प्रशिक्षित कर रहे हैं.

तीज 2022: झूठा सच- शादी के बाद कंचन के साथ क्या हुआ?

जीवनलाल ने अपने दोस्त गिरीश और उस की पत्नी दीपा को उन की बेटी कंचन के लिए उपयुक्त वर तलाशने में मदद करने हेतु अपने सहायक पंकज से मिलवाया. दोनों को सुदर्शन और विनम्र पंकज अच्छा लगा. वह रेलवे वर्कशौप में सहायक इंजीनियर था. परिवार में सिवा मां के और कोई न था जो एक जानेमाने ट्यूटोरियल कालेज में पढ़ाती थीं. राजनीतिशास्त्र की प्रवक्ता कंचन की शादी के लिए पहली शर्त यही थी कि उसे नौकरी छोड़ने के लिए नहीं कहा जाएगा. स्वयं नौकरी करती सास को बहू की नौकरी से एतराज नहीं हो सकता था. यह सब सोच कर गिरीश ने जीवनलाल से पंकज और उस की मां को रिश्ते के लिए अपने घर लाने को कहा. अगले रविवार को जीवनलाल अपनी पत्नी तृप्ता, दोनों बच्चों-कपिल, मोना और पंकज व उस की मां गीता के साथ गिरीश के घर पहुंच गए.

‘‘मामा, चाचा, मौसा और फूफा वगैरा सब हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में. हैदराबाद आने के बाद उन से संपर्क नहीं रहा या सच कहूं तो पापा के रहते जिन रिश्तेदारों से हमारी सरकारी कोठी भरी रहती थी, पापा के जाते ही वही रिश्तेदार हम बेसहारा मांबेटों से कन्नी काटने लगे थे,’’ पंकज ने अन्य रिश्तेदारों के बारे में पूछने पर बताया, ‘‘इसलिए मैं मां को ले कर हैदराबाद चला आया और यहां के परिवेश में हम एकदूसरे के साथ पूर्णतया संतुष्ट हैं.’’

‘‘पंकज की शादी हो जाए तो मेरा परिवार भरापूरा हो जाएगा,’’ गीता ने जोड़ा.

‘‘आप कंचन को पसंद कर लें तो वह भी जल्दी हो जाएगा,’’ जीवनलाल ने कहा.

‘‘हम तो आप के बताए विवरण से ही कंचन को पसंद कर के यहां आए हैं लेकिन हम भी तो कंचन को पसंद आने चाहिए,’’ गीता हंसी.

‘‘कंचन की पसंद पूछ कर ही आप को यहां आने की तकलीफ दी है,’’ दीपा ने भी उसी अंदाज में कहा, ‘‘हमारी बेटी की एक ही शर्त है कि आप उसे नौकरी छोड़ने को न कहें.’’

‘‘नहीं कहूंगी लेकिन एक शर्त पर कि यह भी कभी मुझे नौकरी छोड़ने को नहीं कहेगी.’’

‘‘तो फिर तो बात पक्की, मुंह मीठा करवाओ दीपा बहन.’’ तृप्ता के कहने पर दीपा मिठाई ले आई. चायनाश्ते के बाद जीवनलाल ने कहा कि अब सगाईशादी की तारीखें भी तय कर लो.

‘‘वह तो आप कब छुट्टी देंगे, उस पर निर्भर करता है, सर,’’ पंकज बोला, ‘‘इस पर भी कि वे स्वयं कब छुट्टी लेते हैं, क्योंकि सबकुछ उन्हें ही तो करना है.’’ गीता गिरीश और दीपा की ओर मुड़ी, ‘‘जिस तरह से उन्होंने यह शादी की बात चलाई है उसी तरह से तृप्ता भाभी और जीवन भैया, पंकज के अभिभावक बन कर बहू के गृहप्रवेश तक की सभी रस्में निबाहेंगे. आप अब क्या करना है या कैसे करना है, उन से ही पूछिएगा. रहा लेनदेन का सवाल तो मुझे बस आप की बेटी चाहिए और अब इस विषय में मुझ से कोई कुछ नहीं पूछेगा.’’ गीता आराम से सोफे से पीठ लगा कर बैठ गई.

‘‘पूछेंगे कैसे नहीं गीताजी, शादी में आने वाले रिश्तेदारों के बारे में तो बताना ही होगा,’’ दीपा ने प्रतिवाद किया, ‘‘शादी में रौनक तो उन लोगों के आने से ही आएगी.’’

‘‘रौनक की फिक्र मत करिए,’’ पंकज बोला, ‘‘मेरे बहुत दोस्त और सहकर्मी हैं, ज्यादा हंगामा चाहिए तो मम्मी के छात्रछात्राएं हैं.’’

‘‘मेरे छात्रछात्राओं की क्या जरूरत है?’’ गीता हंसी, ‘‘कंचन के ननददेवर हैं न मोना और कपिल, अपने दोस्त सहेलियों के साथ धूम मचाने को.’’ शादी बहुत धूमधाम और हंसीखुशी से हो गई. कंचन पंकज के साथ बेहद खुश थी. गीता से भी उसे कोई शिकायत नहीं थी. कोचिंग कक्षाएं तो सुबहशाम ही लगती हैं. सो, गीता सुबह से ही जाती थी और कंचन के कालेज जाने के बाद लौटती थी. दिनभर घर में रहती थी. सो, नौकरानी से सब काम भी करवा लेती थी. कंचन को घर लौटने पर गरम चायनाश्ता मिल जाता था. कुछ देर गपशप के बाद गीता फिर कालेज चली जाती थी और कंचन पूरी शाम पंकज के साथ जैसे चाहे बिता सकती थी. संक्षेप में, सास के संरक्षण का सुख बगैर किसी हस्तक्षेप या जिम्मेदारी के.

1 साल पलक झपकते गुजर गया. मांबेटे में रात को ही बात होती थी लेकिन कुछ रोज से कंचन को लग रहा था कि गीता कुछ असहज है. वह पंकज से अकेले में बात करने की कोशिश में रहती थी. कंचन के आते ही, बड़ी सफाई से बात बदल देती थी. कंचन ने यह बात अपनी मां दीपा को बताई. ‘‘पंकज के उस बेचारी का अपना सगा कोई और तो है नहीं जिस से कोई निजी दुखसुख या पुरानी यादें बांटे. तू खुद ही उन्हें अकेले छोड़ा कर, और पंकज से भी कभी मत पूछना कि मां उस से क्या कह रही थीं,’’ दीपा ने समझाया.

एक रात सब ने खाना खत्म ही किया था कि बिजली चली गई. पंकज और गीता बाहर बरामदे में बैठ गए और कंचन मोमबत्ती की रोशनी में मेज साफ कर के रसोई समेटने लगी. काम खत्म कर के उस ने बेखयाली में मोमबत्ती बुझा दी. स्ट्रीट लाइट की रोशनी में बरामदे का रास्ता नजर आ रहा था. वह धीरे से उसी के सहारे आगे बढ़ गई. तभी उसे बरामदे से मांबेटे की वार्तालाप सुनाई दी. पंकज कह रहा था, ‘‘कितनी भी सिफारिश लगवा लूं रेलवे से तो भी 3 बैडरूम वाला घर नहीं मिल सकता, मां. कई हजार रुपया किराया दे कर बाहर ही घर लेना पड़ेगा. सोच रहा हूं इतना किराया देने से बेहतर है अपना फ्लैट ही खरीद लें. गाड़ी के बजाय मकान के लिए ऋण ले लेता हूं.’’ ‘‘उस सब में समय लगेगा पंकज, हमें तो 3 कमरों का घर जल्दी से जल्दी चाहिए,’’ गीता के स्वर में चिंता थी, ‘‘किराए की फिक्र मत कर, जितना भी होगा मैं देने को तैयार हूं. तू बस इतना देख कि गैस्टरूम तुम्हारे व मेरे कमरे से अलग हो.’’ कंचन चौंक पड़ी. रेलवे की ओर से उन्हें 2 बैडरूम का कौटेजनुमा घर मिला हुआ था. सामने छोटा सा लौन था, पीछे किचन गार्डन और ऊपर खुली छत भी थी. नौकरानी भी पास के बंगले के आउट हाउस में रहती थी. सो, देरसवेर जब बुलाओ, वह आ जाती थी. ये सब छोड़ कर किराए के आधुनिक दड़बेनुमा फ्लैट में जाने की क्या जरूरत आ पड़ी थी? अपने 3 सदस्यों के परिवार के लिए तो यह घर काफी है. तो फिर क्या कोई मेहमान आ रहा है? मगर कौन?

‘‘हड़बड़ाओ मत, मां. बराबर वाले घर में विधुर चौधरीजी बेटे के साथ रहते हैं और बेटा अगले महीने विदेश जा रहा है. वे खुशी से हमें एक कमरा दे देंगे. आप अब इस बारे में न तो फिक्र करो और न ही बात,’’ पंकज ने कहा और पुकारा, ‘‘तुम अंधेरे और गरमी में अंदर क्या कर रही हो, कंचन?’’

‘‘हां, बेटी, यहां आ कर बैठ. बड़ी अच्छी हवा चल रही है,’’ गीता भी बोली. इस का मतलब था कि मां ने भी बात खत्म कर दी है. अब पूछने पर भी कोई कुछ नहीं बताएगा और वैसे भी पंकज ने फिलहाल तो मकान बदलना टाल ही दिया था. जयपुर में होने वाली अंतर्राज्यीय बैडमिंटन प्रतियोगिता में कंचन के कालेज की टीम चुनी गई थी. अपने समय में कंचन भी राज्य स्तर की खिलाड़ी रह चुकी थी और अभी भी छात्राओं के साथ अकसर बैडमिंटन खेलती थी. पिं्रसिपल और छात्राएं चाहती थीं कि कंचन भी टीम के साथ जयपुर जाए. कंचन ने पंकज और गीता से पूछा. दोनों ने सहर्ष अनुमति दे दी. लौटने वाले रोज उन सब की ट्रेन रात की थी. लड़कियां जयपुर घूमना और खरीदारी करना चाहती थीं. आयोजकों ने उन के लिए एक प्राइवेट टैक्सी की व्यवस्था करवा दी. ड्राइवर रामसेवक अधेड़ उम्र का संभ्रांत व्यक्ति था, उस ने बड़ी अच्छी तरह से लड़कियों को दर्शनीय स्थल दिखाए. दिनभर घूमने के बाद कंचन थक गई थी. सो, मिर्जा इस्माइल रोड पहुंचने पर उस ने कहा कि वह शौपिंग के बजाय गाड़ी में आराम करना चाहेगी.

‘‘इतनी गरमी में? हम आप को अकेले नहीं छोड़ेंगे, मैडम,’’ लड़कियों ने कहा.

‘‘मैं हूं न मैडम के पास, गाड़ी में एसी भी चलता रहेगा,’’ रामसेवक ने कहा. ‘‘आप लोग इतमीनान से जा कर खरीदारी कर लो.’’

‘‘धन्यवाद, भैयाजी. नाम और बोलचाल से तो आप उत्तर भारत के लगते हैं, यहां कैसे आ गए?’’ कंचन ने पूछा. रामसेवक ने आह भरी, ‘‘अब क्या बताएं मैडम. हालात ही कुछ ऐसे हो गए कि रोटीरोजी के लिए घर से दूर आना पड़ गया.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘अपने घर में सभी पढ़ेलिखे और सरकारी नौकरी में हैं. हमें न पढ़ना पसंद था न नौकरी करना, गाड़ी चलाने का बहुत शौक था. सो, बाबूजी ने हमें टैक्सी दिलवा दी. हम भी सब के मुकाबले में कमा खा रहे थे कि हमारे बड़के भैया ने गड़बड़ कर दी. वे थे तो सरकारी अफसर मगर शबाब और शराब के शौकीन. ‘‘एक रोज नशे की हालत में एक मातहत की बीवी पर हाथ डाल दिया और पकड़े गए. जीजाजी के रसूख से किसी तरह छूट गए. भाभी के चिरौरी करने और बेटे के भविष्य का हवाला देने से कुछ साल तो संभल कर रहे लेकिन बेटे को रेलवे में नौकरी मिलते ही फिर पुराने रंगढंग चालू कर दिए और एक नेता की चहेती के साथ मुंह काला करते हुए पकड़े गए. नेता की चहेती थी, सो मामला तूल पकड़ गया और 7 साल की जेल हो गई.

‘‘परिवार की इतनी बदनामी हुई कि लोग मेरी टैक्सी में बैठने से भी डरने लगे. टैक्सी का धंधा तो शहर के होटल और अन्य संस्थानों से जुड़ने पर ही चलता है. सो उन के नकारे जाने पर यहां आ गया. मुझे ही नहीं, भाभी और उन के बेटे को भी अपना शहर छोड़ कर दूर जाना पड़ा.’’

कंचन की दिलचस्पी थोड़ी बढ़ी, ‘‘दूर कहां?’’

‘‘हैदराबाद. वहां रेलवे में इंजीनियर है हमारा भतीजा लेकिन हमारे ताल्लुकात नहीं हैं अब उन से,’’ उस ने मायूसी से कहा.

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘परिवार वाले उन से कन्नी काटने लगे थे. मांबेटे खुद्दार थे. सो, सब से दूर चले गए. अब तो भैया की सजा की अवधि भी खत्म होने वाली है, तब शायद वे लोग झांसी आएं.’’ तभी लड़कियां शौपिंग कर के आ गईं और ड्राइवर चुप हो गया. कंचन ने जितना भी सुना था उस से साफ जाहिर था कि वह किस की बात कर रहा था और क्यों गीता बड़ा मकान लेने के लिए व्याकुल थी. व्यभिचारी पति को न नकारना चाहती थी और न ही उस के साथ रहना. पंकज सदा की तरह मां की भावनाओं का ध्यान रख रहा था लेकिन कंचन की भावनाओं का क्या? परिवार का यह कलुषित सत्य तो उन्हें शादी से पहले ही बताना चाहिए था. शादी के बाद भी यह कहने वाला पंकज कि पतिपत्नी तो एकदूसरे के लिए खुली किताब होते हैं, कितना बड़ा झूठा था. झूठ की नींव पर टिकी शादी कितने रोज टिक सकेगी? मांबेटे के व्यवहार से तो लग रहा था कि वे उस बदचलन, सजायाफ्ता व्यक्ति को स्वीकार करने वाले थे. भले ही दूर रखें, देरसवेर तो उस से भी वास्ता पड़ेगा ही. फिर उस की अस्मत का क्या होगा? कंचन सोच कर ही सिहर उठी. सिरदर्द के बहाने वह पूरे रास्ते चुप रही और फिर अपने कमरे में जा कर फूटफूट कर रो पड़ी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? खैर, किसी तरह लंबा सफर तय कर के घर पहुंची.

‘‘शुक्र है तुम आ गईं, जिया ही नहीं जा रहा था तुम्हारे बगैर,’’ पंकज ने विह्वल स्वर में कहा.

‘‘अब तो मेरे बगैर ही जीना पड़ेगा क्योंकि मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं,’’ कंचन ने अलमारी में से अपने कपड़े निकालते हुए कहा.

‘‘मगर क्यों? जयपुर में पुराना प्रेमी मिल गया क्या?’’ पंकज ने चुहल की.

‘‘प्रेमी तो नहीं, हां चचिया ससुर रामसेवक जरूर मिले थे. मैं ने तो तुम्हें अपने जीवन के मूक प्रेम के बारे में भी बता दिया था जिस का ताना तुम ने मुझे अभी दिया है लेकिन तुम ने और मां ने अपने परिवार के उस घिनौने सच को छिपाया हुआ है जिस के लिए अपनों से मुंह छिपा कर तुम यहां रह रहे हो. झूठ की बुनियाद पर टिकी शादी का कोई भविष्य नहीं होता पंकज और इस से पहले कि वह भरभरा कर गिरे, मैं स्वयं ही यह रिश्ता खत्म कर देती हूं. तुरंत तलाक लेने के लिए सचाई छिपाने का आरोप काफी है. वैसे तो तुम्हें सजा भी दिलवा सकती हूं लेकिन अगर चुपचाप तलाक दे दोगे तो ऐसा कुछ नहीं करूंगी,’’ कंचन ने सूटकेस में सामान भरते हुए कहा.

पंकज हतप्रभ हो गया था, फिर भी संयत स्वर में बोला, ‘‘तुम ने जो सुना वह सच है लेकिन जो झूठ की बुनियाद वाली बात कही है वह सही नहीं है. इस शहर में किसी ने कभी भी हम से पापा के बारे में नहीं पूछा तो हम स्वयं आगे बढ़ कर क्यों बताते? तुम ने देखा होगा शादी के मंडप में दिवंगत मातापिता की तसवीर रखी जाती है. मगर हम ने तो नहीं रखी, न किसी ने रखने को कहा. तुम ने भी तो कभी नहीं पूछा कि घर में पापा की कोई तसवीर क्यों नहीं है या कभी उन के बारे में कोई और बात पूछी हो? मैं ने और मां ने यह फैसला किया था कि हम स्वयं पापा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएंगे मगर पूछने पर कुछ छिपाएंगे भी नहीं. अब किसी ने कुछ नहीं पूछा तो इस में हमारा क्या कसूर है? एक बात और, मां विधवा की तरह नहीं रहतीं. सादे मगर रंगीन कपड़े पहनती हैं और थोड़ेबहुत जेवर भी.’’

‘‘लेकिन सिंदूर या बिंदी तो नहीं लगातीं?’’ कंचन को पूछने के लिए यही मिला.

‘‘तुम लगाती हो, तुम्हारी मम्मी या तृप्ता आंटी?’’ पंकज ने पूछा, ‘‘कितनी सुहागिनें मांग भरती हैं या पांव में बिछिया पहनती हैं आजकल? हम ने सच को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया है कंचन?’’

‘‘अच्छा? और यह जो मुझे बगैर बताए लोन ले कर बड़ा मकान बनाने की योजना बना रहे हो, उसे क्या कहोगे?’’ कंचन ने व्यंग्य से पूछा. ‘‘योजना ही है, लिया तो नहीं? पापा के यहां आने का पक्का होने पर तुम्हें सब बताने की सोची थी क्योंकि पापा यहां आएंगे, यह अभी पक्का नहीं है. वे बहुत बदल चुके हैं और उन्हें संसार से विरक्ति हो गई है. केरल से कोई सज्जन जेल में सद्वचन देने आते हैं और पापा अपना शेष जीवन उन के त्रिचूर आश्रम में बिताना चाहते हैं…’’

‘‘तुम्हें कैसे मालूम?’’ कंचन ने उस की बात काटी.

‘‘क्योंकि मैं बगैर मां को बताए सरकारी काम का बहाना बना कर पापा से मिलने झांसी जेल में जाता रहता हूं. अदालत की पेशी के दौरान मैं ने पापा की आंखों में पश्चात्ताप देखा था, सो मैं ने उन्हें माफ कर दिया लेकिन मां पर मैं ने अपनी मंशा नहीं थोपी और न ही अभी से उन्हें यह बताना चाहता हूं कि पापा यहां नहीं रहेंगे. रिहाई के रोज मां मेरे साथ उन्हें जेल से लेने जाएंगी, तब कह नहीं सकता दोनों की क्या प्रतिक्रिया होगी. पापा को घर लाना चाहेंगी या स्वयं उन के साथ त्रिचूर जाना या पापा को अपने रास्ते जाने देना और स्वयं जिस रास्ते पर चल रही हैं उसी पर चलते रहना. मेरा यह मानना है कंचन, कि जिस को जो उचित लगता है वही करना उस का जन्मसिद्ध अधिकार है और उस में टांग अड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है.’’

‘‘यानी तुम्हें छोड़ने का फैसला मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है?’’ कंचन ने शरारत से पूछा.

‘‘बशर्ते कि तुम यह सिद्ध कर सको कि तुम से झूठ बोल कर तुम्हें धोखा दिया गया या नुकसान पहुंचाया गया.’’

‘‘वह तो सिद्ध नहीं कर सकती,’’ कंचन ने कपड़े अलमारी में वापस रखते हुए कहा, ‘‘क्योंकि झूठ तो तुम ने कभी बोला नहीं. बगैर कभी कुछ पूछे मैं ही अपने सोचे झूठ को सच समझती रही.’’

तीज 2022: स्नैक्स में बनाएं मसूर दाल मसाला पूरी और ओट्स ऐंड फ्लैक्स इडली

घर में कोई खास अवसर है और कुछ विशेष बनाना चाहते हैं तो चिंता मत कीजिए. हम आप के लिए लाए हैं लजीज स्नैक्स, जिन्हें छोटेबड़े सभी खाना पसंद करेंगे.

  1. ओट्स ऐंड फ्लैक्स इडली

सामग्री

– 1 कप ओट्स रेडी टु कुक

– 25 ग्राम अलसी के बीज

– 1 कप अधपके चावल

– 1/2 कप पके चावल

– 1/2 कप उरद दाल

– 1 छोटा चम्मच मेथीदाना

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 2 छोटे चम्मच नमक.

वैकल्पिक सामग्री

– 50 ग्राम पालक कटा

– 10 ग्राम अदरक कटा.

विधि

एक बरतन में उरद दाल और दूसरे बरतन में अधपके चावलों को मेथीदाने के साथ भिगो कर 4 घंटों के लिए रख दें. अब उरद दाल को अलग ग्र्राइंड करें और अधपके चावलों को पूरे पके चावलों के साथ अलग ग्र्राइंड करें. पेस्ट हलका और झागदार हो. फिर दोनों पेस्टों को मिला लें. अब ओट्स को 10 मिनट के लिए भिगो दें और फिर आधी मात्रा में अलसी के बीजों के साथ ओट्स को ग्र्राइंड कर के चावल व उरद दाल के मिश्रण के साथ मिला दें. इडली बनाने से पूर्व बैटर में नमक मिलाएं. तेल से इडली ट्रे को चिकना करें. घोल को ट्रे में डाल कर ऊपर से बचे अलसी के बीज बुरकें. 10 मिनट तक पकाने के बाद सांबर के साथ परोसें. वैरिएशन के लिए इडली को पालक और अदरक के साथ भी परोसा जा सकता है.

2. पास्ता इन स्पिनेच ग्रेवी

सामग्री : 1 कप उबला पास्ता, 1 कप पालक प्यूरी, 1/4 कप उबले कौर्न, 2 बड़े चम्मच प्याज बारीक कटा, 1 छोटा चम्मच कौर्नफ्लोर, 3 बड़े चम्मच दूध, नमक व मिर्च स्वादानुसार और 2 बडे़ चम्मच औलिव औयल.

विधि : एक नौनस्टिक पैन में प्याज पारदर्शी होने तक भूनें. उस में पालक प्यूरी डालें. दूध में कौर्नफ्लोर डालें. 1/2 कप पानी भी डालें. उबला पास्ता, नमक, मिर्च डालें. ऊपर से उबले कौर्न से सजा कर सर्व करें.

3. मसूर दाल मसाला पूरी

सामग्री : 1/2 कप धुली मसूर दाल भीगी व दरदरी पिसी, 1 कप आटा, 2 छोटे चम्मच हींग पाउडर, चुटकीभर धनिया, जीरा पाउडर मोटा कुटा, 2 छोटे चम्मच सौंफ पाउडर, नमक व मिर्च स्वादानुसार और पूरी तलने के लिए तेल.

विधि : मसूर दाल मिश्रण में सारी सामग्री मिला कर पूरी लायक आटा गूंध कर 15 मिनट ढक कर रखें. फिर छोटीछोटी लोइयां बेल कर सुनहरा होने तक तल लें. सब्जी अथवा अचार के साथ खाएं व खिलाएं.

तीज 2022: 9 टिप्स- पतिपत्नी के रिश्ते को ऐसे बनाएं मजबूत

पतिपत्नी और वो के बजाय पतिपत्नी और जीवन की खुशियों के लिए रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है. छोटीछोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं. मुश्किल समय में एकदूसरे का सहारा बनना पड़ता है. कुछ बातों का खयाल रखना पड़ता है:

  1. मैसेज पर नहीं बातचीत पर निर्भर रहें

ब्रीघम यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक जो दंपती जीवन के छोटेबड़े पलों में मैसेज भेज कर दायित्व निभाते हैं जैसे बहस करनी हो तो मैसेज, माफी मांगनी हो तो मैसेज, कोई फैसला लेना हो तो मैसेज ऐसी आदत रिश्तों में खुशी और प्यार को कम करती है. जब कोई बड़ी बात हो तो जीवनसाथी से कहने के लिए वास्तविक चेहरे के बजाय इमोजी का सहारा न लें.

2. ऐसे दोस्तों का साथ जिन की वैवाहिक जिंदगी खुशहाल है

ब्राउन यूनिवर्सिटी में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक यदि आप के निकट संबंधी या दोस्त ने डिवोर्स लिया है तो आप के द्वारा भी यही कदम उठाए जाने की संभावना 75% तक बढ़ जाती है. इस के विपरीत यदि आप के प्रियजन सफल वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं तो यह बात आप के रिश्ते में भी मजबूती का कारण बनती है.

3. पतिपत्नी बनें बैस्ट फ्रैंड्स

‘द नैशनल ब्यूरो औफ इकोनौमिक’ द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जो दंपती एकदूसरे को बैस्ट फ्रैंड मानते हैं वे दूसरों के मुकाबले अपना वैवाहिक जीवन दोगुना अधिक संतुष्ट जीते हैं.

4. छोटीछोटी बातें भी होती हैं महत्त्वपूर्ण

मजबूत रिश्ते के लिए समयसमय पर अपने जीवनसाथी को स्पैशल महसूस कराना जरूरी है. यह जताना भी जरूरी है कि आप उन की केयर करते हैं और उन्हें प्यार करते हैं. इस से तलाक की नौबत नहीं आती. आप भले ही ज्यादा कुछ नहीं पर इतना तो कर ही सकते हैं कि प्यारभरा एक छोटा सा नोट जीवनसाथी के पर्स में डाल दें या दिनभर के काम के बाद उन के कंधों को प्यार से सहला दें. उन के बर्थडे या अपनी ऐनिवर्सरी को खास बनाएं. कभीकभी उन्हें सरप्राइज दें. ऐसी छोटीछोटी गतिविधियां आप को उन के करीब लाती हैं.

वैसे पुरुष जिन्हें अपनी बीवी से इस तरह की सपोर्ट नहीं मिलती उन के द्वारा तलाक दिए जाने की संभावना दोगुनी ज्यादा होती है, जबकि स्त्रियों के मामले में ऐसा नहीं देखा गया है. इस की वजह यह है कि स्त्रियों का स्वभाव अलग होता है. वे अपने दोस्तों के क्लोज होती हैं. ज्यादा बातें करती हैं. छोटीछोटी बातों पर उन्हें हग करती हैं. अनजान लोग भी महिलाओं को कौंप्लिमैंट देते रहते हैं, जबकि पुरुष स्वयं में सीमित रहते हैं. उन्हें फीमेल पार्टनर या पत्नी से सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.

5. आपसी विवादों को करें बेहतर ढंग से हैंडल

पतिपत्नी के बीच विवाद होना बहुत स्वाभाविक है और इस से बचा नहीं जा सकता. मगर रिश्ते की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि आप इसे किस तरह हैंडल करते हैं. अपने जीवनसाथी के प्रति हमेशा सौम्य और शिष्ट व्यवहार करने वालों के रिश्ते जल्दी नहीं टूटते. झगड़े या विवाद के दौरान चिल्लाना, अपशब्द बोलना या मारपीट पर उतारू हो जाना रिश्ते में जहर घोलने जैसा है. ऐसी बातें इंसान कभी भूल नहीं पाता और वैवाहिक जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ता है.

एक अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है कि कैसे फाइटिंग स्टाइल आप की मैरिज को प्रभावित करती है. शादी के 10 साल बाद वैसे कपल्स जिन्होंने तलाक ले लिया और वैसे कपल्स जो अपने जीवनसाथी के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे थे, के बीच जो सब से महत्त्वपूर्ण अंतर पाया गया वह था शादी के 1 साल के अंदर उन के आपसी विवाद और झगड़ों को निबटाने का तरीका.वे कपल्स जिन्होंने शादी के प्रारंभिक वर्षों में ही अपने जीवनसाथी के साथ समयसमय पर क्रोध और नकारात्मक लहजे के साथ व्यवहार किया उन का तलाक 10 सालों के अंदर हो गया. ‘अर्ली इयर्स औफ मैरिज प्रोजैक्ट’ में भी अमेरिकी शोधकर्ता ओरबुच ने यही पाया कि अच्छा, जिंदादिल रवैया और मधुर व्यवहार रहे तो परेशानियों के बीच भी कपल्स खुश रह सकते हैं. इस के विपरीत मारपीट और उदासीनता भरा व्यवहार रिश्ते को कमजोर बनाता है.

6. बातचीत का विषय हो विस्तृत

पतिपत्नी के बीच बातचीत का विषय घरेलू मामलों के अलावा भी कुछ होना चाहिए. अकसर कपल्स कहते हैं कि हम तो आपस में बातें करते ही रहते हैं संवाद की कोई कमी नहीं. पर जरा गौर करें कि आप बातें क्या करते हैं. हमेशा घर और बच्चों के काम की बातें करना ही पर्याप्त नहीं होता. खुशहाल दंपती वे होते हैं जो आपस में अपने सपने, उम्मीद, डर, खुशी और सफलता सबकुछ बांटते हैं. एकदूसरे को जाननेसमझने का प्रयास करते हैं. किसी भी उम्र में और कभी भी रोमांटिक होना जानते हैं.

7. अच्छे समय को करें सैलिब्रेट

‘जनरल औफ पर्सनैलिटी ऐंड सोशल साइकोलौजी’ में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक अच्छे समय में पार्टनर का साथ देना तो अच्छा है पर उस से भी जरूरी है कि दुख, परेशानी और कठिन समय में अपने जीवनसाथी के साथ खड़ा होना. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन पर मोनिका लेविंस्की ने जब यौनशोषण का आरोप लगाया तो उस वक्त भी हिलेरी क्लिंटन ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा. उन दिनों के साथ ने दोनों के रिश्ते को और मजबूत बना दिया.

8. रिस्क लेने से न घबराएं

पतिपत्नी के बीच यदि नोवैल्टी, वैराइटी और सरप्राइज का दौर चलता रहता है तो रिश्ते में भी ताजगी और मजबूती बनी रहती है. साथ मिल कर नईनई ऐक्साइटमैंट्स से भरी ऐक्टिविटीज में इन्वौल्व हों, नईनई जगह घूमने जाएं, रोमांचक सफर का मजा ले, लौंग ड्राइव पर जाएं, एकदूसरे को खानेपीने, घूमने, हंसने, मस्ती करने और समझने के नएनए औप्शन दें. कभी रिश्ते में नीरसता और उदासीनता को न झांकने दें. जिंदगी को नएनए सरप्राइज से सजा कर रखें.

9. केवल प्यार काफी नहीं

हम जिंदगी में अपने हर तरह के कमिटमैंट के लिए पूरा समय देते हैं, ट्रेनिंग्स लेते हैं ताकि हम उसे बेहतर तरीके से आगे ले जा सकें . जिस तरह  खिलाड़ी खेल के टिप्स सीखते हैं, लौयर किताबें पढ़ते हैं, आर्टिस्ट वर्कशौप्स करते हैं ठीक उसी तरह शादी को सफल बनाने के लिए हमें कुछ न कुछ नया सीखने और करने को तैयार रहना चाहिए. सिर्फ अपने साथी को प्यार करना ही काफी नहीं, उस प्यार का एहसास कराना और उस की वजह से मिलने वाली खुशी को सैलिब्रेट करना भी जरूरी है.

साइंटिफिक दृष्टि से देखें तो इस तरह के नएनए अनुभव शरीर में डोपामिन सिस्टम को ऐक्टिवेट करते हैं जिस से आप का दिमाग शादी के प्रारंभिक वर्षों में महसूस होने वाले रोमांटिक पलों को जीने का प्रयास करता है. एकदूसरे को सकारात्मक बातें कहना, तारीफ करना और साथ रहना रिश्ते में मजबूती लाता है.

तीज 2022: मुझे कबूल नहीं- रेशमा से उस के मंगेतर की क्या ख्वाहिश थी

अब्बाजान की प्राइवेट नौकरी के कारण 3 बड़े भाईबहनों की पढ़ाई प्राइमरी तक ही पूरी हो सकी थी. लेकिन मैं ने बचपन से ही ठान लिया था कि उच्चशिक्षा हासिल कर के रहूंगी.

‘‘रेशमा, हमारी कौम और बिरादरी में पढ़ेलिखे लड़के कहां मिलते हैं? तुम पढ़ाई की जिद छोड़ कर कढ़ाईबुनाई सीख लो,’’ अब्बू ने समझाया था.

मेरी देखादेखी छोटी बहन भी ट्यूशन पढ़ा कर पढ़ाई का खर्च खुद पूरा करने लगी. 12वीं कक्षा की मेरी मेहनत रंग लाई और मुझे वजीफा मिलने लगा. इस दरमियान दोनों बड़ी बहनों की शादी मामूली आय वाले लड़कों से कर दी गई और भाई एक दुकान में काम करने लगा. मैं ने प्राइवेट कालेजों में लैक्चरर की नौकरी करते हुए पीएचडी शुरू कर दी. अंत में नामचीन यूनिवर्सिटी में हिंदी अधिकारी के पद पर कार्यरत हो गई. छोटी बहन भी लैक्चरर के साथसाथ डाक्टरेट के लिए प्रयासरत हो गई.

मेरी पोस्टिंग दूसरे शहर में होने के कारण अब मैं ईदबकरीद में ही घर जाती थी. इस बीच मैं ने जरूरत कीचीजें खुद खरीद कर जिंदगी को कमोबेश आसान बनाने की कोशिश की. लेकिन जब भी अपने घर जाती अम्मीअब्बू के ज्वलंत प्रश्न मेरी मुश्किलें बढ़ा देते.

‘‘इतनी डिगरियां ले ली हैं रेशमा तुम ने कि तुम्हारे बराबर का लड़का ढूंढ़ने की हमारी सारी कवायद नाकाम हो गई है.’’

‘‘अब्बू अब लोग पढ़ाई की कीमत समझने लगे हैं. देखना आप की बेटियों के लिए घर बैठे रिश्ता आएगा. तब आप फख्र करेंगे अपनी पढ़ीलिखी बेटियों पर,’’ मैं कहती.

‘‘पता नहीं वह दिन कब आएगा,’’ अम्मी गहरी सांस लेतीं, ‘‘खानदान की तुम से छोटी लड़कियों की शादियां हो गईं. वे बालबच्चेदार भी हो गईं. सब टोकते हैं, कब कर रहे हो रेशमा और नसीमा की शादी? तुम्हारी शादी न होने की वजह से हम हज करने भी नहीं जा सकते हैं,’’ अम्मी ने अवसाद उड़ेला तो मैं वहां से चुपचाप उठ कर चली गई.

यों तो मेरे लिए रिश्ते आ रहे थे, लेकिन बिरादरी से बाहर शादी न करने की जिद अम्मीअब्बू को कोई फैसला नहीं लेने दे रही थी.

शिक्षा हर भारतीय का मूल अधिकार है, लेकिन हमारा आर्थिक रूप से कमजोर समाज युवाओं को शीघ्र ही कमाऊपूत बनाने की दौड़ में शिक्षित नहीं होने देता. नतीजतन पीढ़ी दर पीढ़ी हमारी कौम आर्थिक तंगी, सीमित आय में ही गुजारा करने के लिए विवश होती है. यह युवा पीढ़ी की विडंबना ही है कि आगे बढ़ने के अवसर होने पर भी उस की मालीहालत उसे उच्च शिक्षा, ऊंची नौकरियों से महरूम कर देती है.

उस दिन अब्बू ने फोन किया. आवाज में उत्साह था, ‘‘तुम्हारे छोटे चाचा एक रिश्ता लाए हैं. लड़का पोस्ट ग्रैजुएट है. प्राइवेट स्कूल में नौकरी करता है तनख्वाह क्व8 हजार है… खातेपीते घर के लोग हैं… फोटो भेज रहा हूं.’’

‘‘दहेज की कोई मांग नहीं है. सादगी से निकाह कर के ले जाएंगे,’’ भाईजान ने भी फोन कर बताया.

अब्बू और भाईजान को तो मुंहमांगी मुराद मिल गई. मैंने फोटो देखा. सामान्य चेहरा. बायोडाटा में मेरी डिगरियों के साथ कोई मैच नहीं था, लेकिन मैं क्या करती. अम्मीअब्बू की फिक्र… बहन की शादी की उम्र… मैं भी 34 पार कर रही थी… भारी सामाजिक एवं पारिवारिक दबाव के तहत अब्बू ने मेरी सहमति जाने बगैर रिश्ते के लिए हां कर दी.

सगाई के बाद मैं वापस यूनिवर्सिटी आ गई. लेकिन जेहन में अनगिनत सवाल कुलबुलाते रहे कि पता नहीं उस का मिजाज कैसा होगा… उस का रवैया ठीक तो होगा न… मुझे घरेलू हिंसा से बहुत डर लगता है… यही तो देख रही हूं सालों से अपने आसपास. क्या वह मेरे एहसास, मेरे जज्बात की गहराई को समझ पाएगा?

तीसरे ही दिन मंगेतर का फोन आ गया. पहली बार बातचीत, लेकिन शिष्टाचार, सलीका नजर नहीं आया. अब तो रोज का ही दस्तूर बन गया. मैं थकीहारी औफिस से लौटती और उस का फोन आ जाता. घंटों बातें करता… अपनी आत्मस्तुति, शाबाशी के किस्से सुनाता. मैं मितभाषी बातों के जवाब में बस जी… जी… करती रहती. वह अगर कुछ पूछता भी तो बगैर मेरा जवाब सुने पुन: बोलने लगता.

चौथे महीने के बाद वह कुछ ज्यादा बेबाक हो गया. मेरे पुरुष मित्रों के बारे में, रिश्ते की सीमाओं के बारे में पूछने लगा. कुछ दिन बाद एक धार्मिक पर्व के अवसर पर बात करते हुए मैं ने महसूस किया कि वह और उस का परिवार पुरानी निरर्थक परंपराओं एवं रीतिरिवाजों के प्रति बहुत ही कट्टर और अडिग हैं. मैं आधुनिक प्रगतिशील विचारधारा वाली ये सब सुन कर बहुत चिंतित हो गई.

यह सच है कि बढ़ती उम्र की शादी महज मर्द और औरत को एक छत के नीचे रख कर सामाजिक कायदों को मानने एवं वंश बढ़ाने की प्रक्रिया के तहत एक समझौता होती है, फिर भी नारी का कोमल मन हमेशा पुरुष को हमसफर, प्रियतम, दोस्त, गमगुजार के रूप में पाने की ख्वाहिश रखता है… मैं ऐसे कैसे किसी संवेदनहीन व्यक्ति को जीवनसाथी बना कर खुश रह सकती हूं?

एक दिन उस ने फोन पर बताया कि वह पोस्ट ग्रैजुएशन का अंतिम सेमैस्टर देने के लिए छुट्टी ले रहा है… मुझे तो बतलाया गया था कि वह पोस्ट ग्रैजुएशन कर चुका है… मैं ने उस के सर्टिफिकेट को पुन: देखा तो आखिरी सेमैस्टर की मार्कशीट नहीं थी… मेरा माथा ठनका कि इस का मतलब मुझे झूठ बताया गया. मैं पहले भी महसूस कर चुकी थी कि उस की बातों में सचाई और साफगोई नहीं है.

उस ने फोन पर बताया कि वह प्राइवेट नौकरी की शोषण नीति से त्रस्त हो चुका है. अब घर में रह कर अर्थशास्त्र पर किताब लिखना चाहता है.

‘‘किताब लिखने के लिए नौकरी छोड़ कर घर में रहना जरूरी नहीं है. मैं ने 2 किताबें नौकरी करते हुए लिखी हैं.’’

मेरे जवाब पर प्रतिक्रिया दिए बगैर उस ने बात बदल दी. अनुभवों और परिस्थितियों ने मुझे ठोस, गंभीर और मेरी सोच को परिपक्व बना दिया था. उस का यह बचकाना निर्णय मुझे उस की चंचल, अपरिपक्व मानसिकता का परिचय दे गया.

एक दिन मुझे औफिस का काम निबटाना था, तभी उस का फोन आ गया. हमेशा की तरह बिना कौमा, पूर्णविराम के बोलने लगा, ‘‘यह बहुत अच्छा हो गया… आप मुझे मिल गईं. अब मेरी मम्मी को मेरी चिंता नहीं रहेगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘क्योंकि मेरी तमाम बेसिक नीड्स पूरी हो जाएंगी.’’

सुन कर मैं स्तब्ध रह गई. मैं ने संयम जुटा कर पूछा.

‘‘बेसिक नीड्स से क्या मतलब है आप को?’’

उस ने ठहाका लगा कर जवाब दिया, ‘‘रोटी, कपड़ा और मकान.’’

मैं सुन कर अवाक रह गई. भारतीय समाज में पुरुष परिवार की हर जरूरत पूरा करने का दायित्व उठाते हैं. यह मर्द तो औरत पर आश्रित हो कर मुझे बैसाखियों की तरह इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है. इस से पहले भी उस ने मेरी तनख्वाह और बैंकबैलेंस के बारे में पूछा था जिसे मैं ने सहज वार्त्ता समझ कर टाल दिया था.

अपने निकम्मेपन, अपने हितों को साधने के लिए ही शायद उस ने पढ़ीलिखी नौकरीपेशा लड़की से शादी करने की योजना बनाई थी. आज मेरे जीवन का यह अध्याय चरमसीमा पर आ गया. मैं ने चाचा, अब्बू व भाईजान को अपनी सगाई तोड़ देने की सूचना दे कर दूसरे ही दिन मंगनी में दिया सारा सामान उस के पते पर भिजवा दिया. मेरा परिवार काठ बन गया.

मुझे खुदगर्जी के चेहरे पर मुहब्बत का फरेबी नकाब पहनने वाले के साथ रिश्ता कबूल नहीं था. छलकपट, स्वार्थ, दंभ से भरे पुरुष के साथ जीवन व्यतीत करने से बेहतर है मैं अकेली अनब्याही ही रहूं.

तीज 2022: हर पति-पत्नी के रिश्ते में पनपती हैं ये 5 शिकायतें

पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास और भरोसे का रिश्ता होता है. जिसमें जितना प्यार है उतनी ही नोक-झोंक भी. यह रिश्ता एक मजबूत बारीक डोर पर टिका होता है, जिसके टूटने का डर हमेशा बना रहता है. इसलिए इस रिश्ते में भरोसा होना बहुत जरूरी है.

हर पति-पत्नी के रिश्ते में कई पहलू होते हैं, लेकिन कुछ शिकायतें ऐसी होती हैं जो हर पति-पत्नी को एक-दूसरे से होती हैं. तो आइये जानते हैं इस रिश्ते की उन शिकायतों के बारे में.

तुम अब पहले जैसे नहीं रहे

शादी की शरुआत में बेइंतहा प्यार मिलने के बाद जब कुछ समय बीतने लगता है तो इन एक या दो सालों में ही प्यार की डोर कमजोर पड़ने लगती है. दूसरे शब्दों में कहें -तो ‘तुम्हारे दीदार से सुबह की शुरुआत हो, तुम्हारे पहलू में ही हर शाम ढले’ जैसे दावे धीरे-धीरे दम तोड़ते हुए दिखाई देने लगते हैं. क्योकि शादी के बाद धीरे धीरे घर-परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ने लगती है और एक दूसरे को पूरा समय ना देने के कारण उनके बीच नोकझोक का सिलसिला चालू होने लगता है.

तुम अब मुझे पहले जैसा प्यार नहीं करते

शादी के कुछ साल बीत जाने के बाद अक्सर दोनों के प्यार में कमी आने लगती है. जिससे एक दूसरे से शिकायत रहती है कि वो अब अपने पार्टनर को पहले जैसा प्यार नहीं करते. ऐसा क्यों होता है, इसका भी कारण है, रौबर्ट फ्रेयर के द्वारा किये गए शोध के अनुसार यह पाया गया है कि जब पति पत्नि एक दूसरे के करीब आते हैं तो उस दौरान शरीर में रासायनिक द्रव्य तेजी से विकसित होते हैं, जिसके कारण उनके बीच सिर्फ प्यार ही बना रहता है एक दूसरे के प्रति कोई भी खामियां नजर नहीं आती है. लेकिन यह रसायन हमेशा एक ही स्तर पर नहीं रहता.

कुछ समय के बाद शरीर में इसका स्तर कम होने लगता है और करीब 2 से 3 साल में इसका प्रभाव शरीर पर बिल्कुल खत्म हो जाता है. अतः इसके उतार-चढ़ाव का प्रभाव प्रेमियों के स्वभाव में भी साफ नजर आने लगता है. यानी जब प्रेम का उफान कम होने लगता है तो एक-दूसरे की खामियां सामने आने लगती हैं.

तुम से कुछ उम्मीद करना ही बेकार है

हर पति-पत्नी के बीच की शिकायतों में ये एक आम शिकायत है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि पति-पत्नी की एक-दूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें बनाये रखना. इसमें महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक आगे होती हैं. हर पुरुष अपनी पत्नी के साथ वैसा ही व्यवहार करता है, जैसा उसने अपने पिता का मां के प्रति देखा था, लेकिन पत्नी उसे एक अच्छे प्रेमी,अच्छे दोस्त के साथ एक जिम्मेदार पिता के रूप में देखना चाहती है. पत्नि चाहती है कि उसका पति भी उसे औफिस जाने से पहले किस करे, बार-बार फोन करके हाल चाल पूछे, मेसेज करे लेकिन पति की सोच होती है कि जब घर ही जाना है तो फोन करने की जरूरत ही क्या है.

तुम्हें तो मुझमें सिर्फ कमियां नजर आती हैं

अक्सर देखा जाता है कि शादी के कुछ समय बाद ही पति-पत्नी के बीच की नोक झोक काफी बढ़ने लगती है. क्योंकि आज के समय में महिलायें घर, बाहर औफिस, फायनांस से लेकर सारा कुछ एक साथ संभाल लेती हैं, और हर पति भी यही चाहता है कि मेरी बीबी बाहर के काम में फरफेक्ट और मार्डन रहे. लेकिन जब घर की बात आती है तो वो वैसी ही पारंपरिक पत्नी होने की बात करते हैं जैसी उनकी मां या दादी थीं.

तुम मुझे चैन से जीने क्यों नहीं देती?

शादी के बाद लगभग हर पुरुष की यही शिकायत होती है कि उनकी बीवी हर बात पर उन्हें टोकती है, शादी के बाद हर पति यही चाहता है कि मै पहले जैसा आजाद रहूं किसी की कोई दखलांदजी ना हो. जिसके कारण उन्हें बीबी के टोकने की बात बुरी सगने लगती है जो लड़ाई झगड़े का कारण बनती है.

तीज 2022: चरित्रहीन नहीं हूं मैं- मीनू और विकास के बीच क्या हुआ था?

सुबह के 7 बजे थे, पर उठने का मन नहीं कर रहा था. ज्यों ही विकास ने करवट बदली तभी पत्नी मीनू बोल उठी  “उठ जाइए, कब तक ऐसे लेटे रहेंगे.”

यह सुन कर गुड मॉर्निंग कहता हुआ विकास मुस्कराहट बिखेरते हुए बोला, ” यार मीनू, अब तो अच्छी तरह सो लेने दो. कहीं जाना थोड़े ही न है. ऑफिस बंद है. घर में भी बंद हैं. तुम घर से बाहर निकलने दे नहीं रही हो. बताओ, क्या करूं मैं?”

“करोगे क्या, पहले फ्रेश हो जाओ. चाय पी लो. उस के बाद थोड़ा साफसफाई कर दो, कुछ नहीं है तो छत पर ही टहल लो,” मीनू ने अपनी बात रखी और सलाह देते हुए कहा कि सुबह समय पर उठने से पूरे दिन  एनर्जी बनी रहती है.

पति विकास बोला, “एनर्जी तो तुम ही लो, मुझे बख्शो. साफसफाई तो हो रखी है. फिर क्या जबरदस्ती साफसफाई करूं?”

इस पर मीनू तुनकते हुए बोली,”अच्छा आया कोरोना…? इस ने तो घर में ही कुहराम मचा रखा है.”

“क्या कुहराम…?” पति झल्लाहट भरी आवाज में बोला.

“सुबहसुबह झल्लाने की जरूरत नहीं है, ” मीनू भी अपने तेवर दिखाते हुए बोली तो विकास नरम पड़ गया.

जैसे ही विकास फ्रेश हो कर आया, मीनू से गरमागरम चाय की मांग कर डाली. इस पर मीनू बोली, “जितना यह घर मेरा है उतना ही तुम्हारा भी है. क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आज चाय तुम बनाओ और मैं भी तुम्हारे साथ छुट्टियों का मजा लूं.”

यह सुन कर विकास के ऊपर घड़ों पानी पड़ गया. वह नरमी से बोला,”यदि ऐसी बात है तो आज तो बना देता हूं, पर हर रोज नहीं.”

“हर रोज की कह कौन रहा है,” मीनू भी नहले पर दहला मारते हुए बोली.

विकास किचन में चाय बनाने चला गया, पर न चीनी का पता था और न चाय की पत्ती का. जब पानी उबल गया तो किचन से ही आवाज लगाई,”मीनू, ओ मीनू, चाय की पत्ती कहां है?”

अब तो मीनू को भी बिस्तर से उठ कर किचन तक आना पड़ा. वह मुस्कराते हुए बोली,”रहने दो आप…? मैं बनाती हूं.”

चाय की महक से विकास के चेहरे पर मुस्कान तैर गई.

घर में टेलीविजन खोल कर देखा तो वहां भी कोरोना… कोरोना… को ले कर ही खबरें आ रही थीं.

ऐसी खबरें सुन विकास गुमसुम सा रहने लगा था, वहीं शराब की तलब भी उसे बेचैन कर रही थी.

अनजान बनते हुए मीनू बारबार हाल पूछती, पर वह टाल देता क्योंकि जब से लॉकडाउन हुआ है तब से उसे पीने को शराब नहीं मिल रही थी और न ही वे दोस्त मिल पा रहे थे जो शराब पीने के तलबगार थे.

दिन यों ही गुजरते जा रहे थे. शराब न पीने से विकास की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

तभी दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई. कालबेल बजी. विकास ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने उस का पड़ोसी राकेश खड़ा था.

कमरे में आते ही राकेश ने विकास की चालढाल देख कर पूछ लिया तो पता चला कि शराब न मिलने से तबीयत खराब हो रही है.

मीनू राकेश के लिए चाय बना कर लाई, तभी उस की नजर विकास की खूबसूरत पत्नी मीनू पर पड़ी. वह मन ही मन उस को पाने के ख्वाब देखने लगा.

राकेश और विकास ने चाय ली. कुछ देर इधरउधर की बात करने के बाद राकेश वहां से चला गया.

अगले दिन राकेश ने विकास को फोन किया और पूछ बैठा,”आज शाम क्या कर रहा है? क्या आज छत पर आ सकता है, कुछ प्रोग्राम करते हैं.”

विकास बोला,”चल ठीक है, पर किसी को बताना नहीं.”

राकेश भी मजाक करते हुए बोला,” भाभी को भी नहीं?”

“नहीं, नहीं, उसे भी नहीं,” विकास ने जवाब दिया.

“चल ठीक है, फिर शाम को मिलते हैं,” इतना कहने के बाद राकेश ने फोन काट दिया.

शाम को राकेश किसी जरूरी काम में फंस गया और छत पर नहीं पहुंचा. न ही विकास को खबर दी.

शाम को विकास छत पर आ गया. काफी देर राकेश का इंतजार भी किया, पर वह नहीं आया तो उस ने कई बार राकेश को फोन लगाए, पर उस ने उठाया ही नहीं. मन मार कर वह नीचे उतर आया.

रात में विकास की तबीयत बिगड़ने लगी. वह बारबार राकेश से बात करने की कह रहा था. मीनू ने रात में ही राकेश को फोन किया.

फोन सुन कर राकेश तभी शराब ले कर वहां पहुंच गया. राकेश को आया देख विकास खुश हो गया.

2 घूंट गले के नीचे उतरते ही विकास की बेचैनी कम हो गई, पर राकेश के ज्यादा जोर देने पर विकास ने उस रात जम कर शराब पी. कुछ देर बाद विकास बेसुध हो गया.

जब विकास को होश न रहा, तब मौका देख कर राकेश मीनू के पास आया और उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया और मनमानी कर के छोड़ा.

फिर चुपचाप मुंहअंधेरे अपने घर चला गया.

अब जब भी विकास को शराब पीने की तलब लगती, राकेश को फोन कर देता. राकेश शराब ले कर आ जाता और दोनों ही मिल कर पीते.

विकास तो पी कर नशे में धुत्त हो जाता, वहीं राकेश लिमिट में ही पीता और मीनू से अपनी जिस्मानी भूख शांत करता.

पर, एक दिन तो हद हो गई. मीनू और विकास के बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ. झगड़े की वजह राकेश ही था, क्योंकि वह हर दूसरेतीसरे दिन घर पर आ धमकता था और मीनू पर संबंध बनाने के लिए जोर डालता, इस से मीनू उकता चुकी थी.

राकेश का शराब ले कर इस तरह आना मीनू को बिलकुल भी पसंद नहीं था. मीनू नहीं चाहती थी कि राकेश घर आए, पर विकास चाहता था.

इस बात को ले कर मीनू और विकास  में जम कर झगड़ा भी हुआ. मीनू अब राकेश के सामने भी झगड़ने लगी थी.

एक दिन राकेश शराब लाया. नशे में धुत्त होने के बाद राकेश ने विकास को मीनू और अपने संबंध के बारे में बता दिया.

यह सुन कर विकास के पैरों तले जमीन खिसक गई. कभी वह मीनू की ओर देखता तो कभी राकेश की ओर. मीनू भी चुपचाप राकेश की बातें सुन रही थी. पर कुछ बोल नहीं पाई.

राकेश के सामने ही विकास ने मीनू की जम कर पिटाई की.

मौका देख राकेश ने वहां से जाने में ही अपनी भलाई समझी.

उस के जाते ही मीनू और विकास में फिर जम कर झगड़ा हुआ. विकास ने मीनू को चरित्रहीन कहा तो मीनू यह सुनते ही बिफर गई और चिल्ला कर बोली,” चरित्रहीन नहीं हूं मैं, चरित्रहीन तो तुम हो, जो लॉकडाउन में भी गलत तरीके से शराब मंगवा कर पी रहे हो. मैं तो सिर्फ तुम्हारे द्वारा किए गए नाजायज सौदे की नाजायज कीमत अदा कर रही हूं.”

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