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GHKKPM: विराट के साथ काम करेगी सई, सौतन को देगी करारा जवाब

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों ट्विस्ट और टर्न आ गया है, इस सीरियल को देखने के लिए फैंस इंतजार लगाएं बैठे हुए हैं. यह सीरियल लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. शो लगातार टीआरपी में आने के लिए मेहनत कर रहा है.

बीते दिनों इस सीरियल में दिखाया गया है कि विराट का एक्सीडेंट हो जाता है, जिसकी मदद के लिए विराट सई को अपने साथ लेकर जाता है, इसके अलावा सीरियल में ऐसे ट्विस्ट और टर्न आने वाले हैं जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

आगे दिखाया जाएगा कि सई पुलिस की मदद करने की कोशिश करेगी उसी बीच उसके पैर में चोट लग जाएगी, उसका चलना फिरना बंद हो जाएगा. ऐसे में विराट तुरंत उसकी मदद के लिए सामने आएगा. फिर उसे गोद में उठाकर लेकर जाएगा.

सई पुलिस यूनिट की बहुत अच्छे से इलाज करती है, जिसे देखकर पुलिस कमिश्नर खुश हो जाएगा, उसे पुलिस डिपार्टमेंट में नौकरी देने को तैयार हो जाएगा. वह विराट से पूछेगा कि क्या उसके डिपार्टमेंट में सई काम करेगी.

दूसरी तरफ सई विराट के साथ काम नहीं करना पसंद करेगी, वहीं दूसरी तरफ पाखी कमिश्नर सर की बात सुन लेती है और दोनों के हाथ पैर फूलने लगते हैं.

सई और विराट की नजदीकियों से वह परेशान हो जाती है, इतना ही नहीं वह विराट से कहती है कि पाखी को दिए गए ऑफर को कमिश्नर सर ठुकरा दें.

अनुपमा ने शुरू कर दी है बेटे की शादी की तैयारी, जमकर होने वाला है तमाशा

सीरियल अनुपमा में इन दिनों जमकर तमाशा हो रहा है, निमृत और डिंपल के चलते शाह परिवार की शांति भंग हो गई है, बीते दिनों दिखाया गया है कि इस सीरियल में कुछ गुंडें अनुपमा पर हमला करने की कोशिश कर रहे हैं.

अगर बात कि जाए डिंपल की तो वह जल्द समर के साथ सात फेरे लेने वाली है, ऐसे में सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो शेयर किया गया है जिसे देखने के बाद से साफ हो गया है कि जल्द ही इस सीरियल में बवाल होने वाला है.

 

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वहीं इस सीरियल के देखने के बाद से फैंस समर की शादी के इंतजार में जुटे हुए हैं. वहीं आगे दिखाया जाएगा कि अनुपमा डिंपल को अपने घर लेकर आती है, और उसे साथ रखने का फैसला करती है. अनुपमा के इस कदम से घरवालें खुश हो जाते हैं.

वहीं डिंपल के घर आने के फैसले से वनराज नाराज हो जाते हैं, उनको अनुपमा का यह फैसला बिल्कुल पसंद नहीं आएगा. इन दोनों को लगता है कि अनुपमा का यह फैसला एक मुसीबत घर में ला सकता है.

वहीं अनुपमा अपने फैसले से पीछे नहीं हटने वाली है, वह भी अपने जिद्द पर अड़ी रहेगी. देखते हैं आगे क्या होगा सीरियल में. वहीं जल्द डिंपल शादी करके शाह परिवार की बहू बनने वाली है. शाह परिवार के कुछ सदस्य इस फैसले से खुश हैं तो वहीं इस फैसले से परिवार के कुछ सदस्य नाराज हैं.

विंटर स्पेशल : जानें कैसे सेहत का हाल बताती है आपकी स्किन

खिला चेहरा और घने लहराते बाल जहां हमें खूबसूरत दिखाते हैं, वहीं त्वचा और बालों से संबंधित समस्याएं जैसे बाल झड़ने शुरू हो जाना, फटे होंठ, मुंहासे व झुर्रियां हमारी खूबसूरती में ग्रहण भी लगा देते हैं. मगर क्या आप जानती हैं कि ये हमें बहुत सी शारीरिक बीमारियों के भी संकेत देते हैं? दरअसल, आप की त्वचा पर नजर आने वाली कोई भी समस्या यों ही नहीं होती उस का कोई न कोई कारण जरूर होता है, इसलिए उसे कभी नजरअंदाज न करें.

त्वचा

– अगर आप की त्वचा पर अचानक अलगअलग जगहों पर तिल नजर आने लगें तो उन्हें मेकअप कर के छिपाने की गलती न करें, क्योंकि यह स्किन कैंसर का लक्षण भी हो सकता है.

– डर्मावर्ल्ड स्किन क्लिनिक के डर्मैटोलौजिस्ट डा. रोहित बत्रा का कहना है कि कई ऐसे लोग होते हैं जो पूरी तरह केयर करने के बाद भी बारबार होंठों के फटने से परेशान होते हैं. ऐसा कई बार इन्फैक्शन और ऐलर्जी से होता है, साथ ही यह रोगप्रतिरोधक क्षमता में आई कमी को भी दर्शाता है.

– वैसे तो उम्र के साथसाथ झुर्रियां आना एक सामान्य लक्षण है, लेकिन अगर आप की उम्र कम है और फिर भी आप को झुर्रियों की समस्या हो रही है, तो ऐसा औस्टियोपोरोसिस के कारण भी हो सकता है.

– आप की त्वचा अचानक बहुत अधिक रूखी लगने लगी है और उस पर सफेद रंग के धब्बे भी नजर आने लगे हैं तो यह डीहाइड्रेशन या फिर डायबिटीज की संभावना को दर्शाता है.

बाल

– अगर अचानक ही आप के बाल बहुत ज्यादा झड़ने लगें तो हो सकता है कि आप को थायराइड की समस्या हो. इसलिए इसे नजरअंदाज न करते हुए फौरन डाक्टर से संपर्क करें.

– अगर आप के बाल सिर के बीच से झड़ रहे हैं, तो ऐसा बहुत अधिक तनाव में रहने से भी होता है. कई बार इस का कारण दवा का रिएक्शन या फिर हारमोनल बदलाव भी हो सकता है.

– कई बार यह देखा जाता है कि कुछ लड़कियों को अचानक ही शरीर के अलगअलग हिस्सों पर बाल उग आते हैं, जिस का कारण पीसीओएस नाम की बीमारी भी हो सकती है, जो इन्फर्टिलिटी का कारण भी बनती है.

नाखून

– अगर आप के नाखूनों में पीलापन है या फिर उन की रंगत गुलाबी न हो कर सफेद सी है तो हो सकता है आप को ऐनीमिया यानी खून की कमी हो.

– अगर आप के नाखूनों पर लाल या भूरे रंग के धब्बे हैं, तो उन को हलके में न लें, क्योंकि इस का कारण रक्त संक्रमण या फिर ऐसा दिल से संबंधित बीमारियों के कारण भी हो सकता है.

– अगर आप के नाखून नीले रंग के नजर आते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप की उंगलियों तक ब्लड ठीक से सर्कुलेट नहीं हो पा रहा है.

 – डा. विवेक मेहता, पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट

दूसरा पिता-भाग 1 : क्या कमलकांत को दूसरा पिता मान सकी कल्पना

वह यादों के भंवर में डूबती चली जा रही थी. ‘नहीं, न वह देवदास की पारो है, न चंद्रमुखी. वह तो सिर्फ पद्मा है.’ कितने प्यार से वे उसे पद्म कहते थे. पहली रात उन्होंने पद्म शब्द का मतलब पूछा था.

वह झेंपती हुई बोली थी, ‘कमल’.

‘सचमुच, कमल जैसी ही कोमल और वैसे ही रूपरंग की हो,’ उन्होंने कहा था.

पर फिर पता नहीं क्या हुआ, कमल से वह पंकज रह गई, पंकजा. क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? दूसरी औरत जब पराए मर्द पर डोरे डालती है तो वह यह सब क्यों नहीं सोचा करती कि पहली औरत का क्या होगा? उस के बच्चों का क्या होगा? ऐसी औरतें परपीड़ा में क्यों सुख तलाशती हैं?

हजरतगंज के मेफेयर टाकीज में ‘देवदास’ फिल्म लगी थी. बेटी ने जिद कर के उसे भेजा था, ‘क्या मां, आप हर वक्त घर में पड़ी कुछ न कुछ सोचती रहती हैं, घर से बाहर सिर्फ स्कूल की नौकरी पर जाती हैं, बाकी हर वक्त घर में. ऐसे कैसे चलेगा? इस तरह कसेकसे और टूटेटूटे मन से कहीं जिया जा सकता है?’

लेकिन वह तो जैसे जीना ही भूल गई थी, ‘काहे री कमलिनी, क्यों कुम्हलानी, तेरी नाल सरोवर पानी.’ औरत का सरोवर तो आदमी होता है. आदमी गया, कमल सूखा. औरत पुरुषरूपी पानी के साथ बढ़ती जाती है, ऊपर और ऊपर. और जैसे ही पानी घटा, पीछे हटा, वैसे ही बेसहारा हो कर सूखने लगती है, कमलिनी. यही तो हुआ पद्मा के साथ भी. प्रभाकर एक दिन उसे इस तरह बेसहारा छोड़ कर चले जाएंगे, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. पर ऐसा हुआ.

उस दिन प्रभाकर ने एकदम कह दिया, ‘पद्म, मैं अब और तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहता. अगर झगड़ाझंझट करोगी तो ज्यादा घाटे में रहोगी, हार हमेशा औरत की होती है. मुझ से जीतोगी नहीं. इसलिए जो कह रहा हूं, राजीखुशी मान लो. मैं अब मधु के साथ रहना चाहता हूं.’

पति का फैसला सुन कर वह ठगी सी रह गई थी. यह वही मधु थी, जो अकसर उस के घर आयाजाया करती थी. लेकिन उसे क्या पता था, एक दिन वही उस के पति को मोह लेगी. वह भौचक देर तक प्रभाकर की तरफ ताकती रही थी, जैसे उन के कहे वाक्यों पर विश्वास न कर पा रही हो. किसी तरह उस के कंठ से फूटा था, ‘और हमारी बेटी, हमारी कल्पना का क्या होगा?’

‘मेरी नहीं, वह तुम्हारी बेटी है, तुम जानो,’ प्रभाकर जैसे रस्सी तुड़ा कर छूट जाना चाहते थे, ‘स्कूल में नौकरी करती हो, पाल लोगी अपनी बेटी को. इसलिए मुझे उस की बहुत फिक्र नहीं है.’

पद्मा हाथ मलती रह गईर् थी. प्रभाकर उसे छोड़ कर चले गए थे. अगर चाहती तो झगड़ाझंझट करती, घर वालों, रिश्तेदारों को बीच में डालती, पर वह जानती थी, सिवा लोगों की झूठी सहानुभूति के उस के हाथ कुछ नहीं लगेगा.

समझदार होने पर कल्पना ने एक दिन कहा था, ‘मां, आप ने गलती की, इस तरह अपने अधिकार को चुपचाप छोड़ देना कहां की बुद्धिमत्ता है?’

‘बेटी, अधिकार देने वाला कौन होता है?’ उस ने पूछा था, ‘पति ही न, पुरुष ही न? जब वही अधिकार देने से मुकर जाए, तब कैसा अधिकार?’

पद्मा ने बहुत मुश्किल से कल्पना को पढ़ायालिखाया. मैडिकल की तैयारी के लिए लखनऊ में महंगी कोचिंग जौइन कराई. जब वह चुन ली गई और लखनऊ के ही मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया तो पद्मा बहुत खुश हुई. उस का मन हुआ, उन्नाव जा कर प्रभाकर को यह सब बताए, मधु को जलाए, क्योंकि उस के बच्चे तो अभी तक किसी लायक नहीं हुए थे. वह प्रभाकर से कहना चाहती थी कि वह हारी नहीं. उन्नाव जाने की तैयारी भी की, पर कल्पना ने मना कर दिया, ‘इस से क्या लाभ होगा, मां? जब अब तक आप ने संतोष किया, तो अब तो मैं जल्दी ही बहुतकुछ करने लायक हो जाऊंगी. जाने दीजिए, हम ऐसे ही ठीक हैं.’

पद्मा अकेली हजरतगंज के फुटपाथ पर सोचती चली जा रही थी. जया वहीं से डौलीगंज के लिए तिपहिए पर बैठ कर चली गई थी. उसे मुख्य डाकघर से तिपहिया पकड़ना था.

जया और वह एक ही स्कूल में पढ़ाती थीं. पद्मा अकेली फिल्म देखने नहीं जाना चाहती थी. लड़की की जिद बताई तो जया हंस दी, ‘चलो, मैं चलती हूं तुम्हारे साथ. अपने जमाने की प्रसिद्ध फिल्म है.’

 

गेहूं फसल में निमेटोड: पहचान और बचाव

लेखक-डा. ऋषिपाल

निमेटोड बहुत ही छोटे आकार के सांप जैसे जीव होते?हैं, जिन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता. ये माइक्रोस्कोप से ही दिखाई देते हैं. ये अधिकतर मिट्टी में रह कर पौधों को नुकसान पहुंचाते?हैं. इन के मुंह में एक सुईनुमा अंग स्टाइलेट होता?है. इस की सहायता से ये पौधों की जड़ों का रस चूसते हैं, जिस के कारण पौधे भूमि से खादपानी पूरी मात्रा में नहीं ले पाते. इस से इन की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है. बीज गाल (पिटिका) निमेटोड (एंगुनिया ट्रिटीसाई) : इस निमेटोड की मादा 6 से 12 दिनों के अंदर 1,000 अंडे नए गाल (पिटिका) के अंदर देती है. जब फसल पकने वाली होती है, तो पिटिका भूरे रंग की हो जाती है. दूसरी अवस्था वाले लार्वे पिटिका में भर जाते हैं.

दूसरी अवस्था के लार्वे 28 साल पुरानी बीज पिटिका में जीवित अवस्था में पाए गए हैं. फसल की कटाई के समय स्वस्थ बीज के साथ पिटिका से ग्रसित बीज भी इकट्ठा कर लिए जाते हैं. जब अगले साल की फसल की बोआई की जाती है, तो अगला जीवनचक्र फिर शुरू हो जाता है. 1 बीज पिटिका में तकरीबन 3,000 से 12,000 दूसरी अवस्था वाले लार्वे पाए गए हैं. जब ये लार्वे नमी वाली भूमि के संपर्क में आते हैं, तो नमी सोखने के कारण मुलायम हो जाते हैं. ये पिटिका को फाड़ कर बाहर निकल आते?हैं. लार्वे की दूसरी अवस्था हानिकारक होती?है इस अवस्था के लार्वे भूमि से 10 से 15 दिनों में बाहर आ जाते हैं और बीज के जमने के समय हमला कर देते हैं.

लार्वे बीज के जमने वाले भाग से ऊपर पौधे के चारों ओर बढ़ने वाले क्षेत्र में और पत्ती की सतह में पानी की पतली परत के सहारे ऊपर चढ़ जाते हैं. ये पत्ती के बढ़ने वाले भाग से पत्ती की चोटी पर चढ़ जाते हैं. पौधे की बढ़वार अवस्था में फूल के बीज बनने वाले स्थान पर निमेटोड हमला करते?हैं और लार्वे फूल के अंदर चले जाते हैं. इस अवस्था में निमेटोड बीज बनने वाले भाग में रहते हैं और संख्या बढ़ने के कारण फूल पिटिका में बदल जाते?हैं. लार्वे 3 से 5 दिनों में फूलों पर आक्रमण कर के नर व मादा में परिवर्तित हो जाते?हैं. बहुत से नर व मादा हरी पिटिका में मौजूद रहते?हैं. नुकसान के लक्षण निमेटोड से ग्रसित नए पौधे का नीचे का भाग हलका सा फूल जाता?है.

इस के अलावा बीज के जमाव के 20-25 दिनों बाद नए पौधे के तने पर निकली पत्ती चोटी पर से मुड़ जाती है. रोग ग्रसित नए पौधे की बढ़वार रुक जाती है और अकसर पौधा मर जाता है. रोग ग्रसित पौधा सामान्य दिखाई देता?है. उस में बालियां 30-40 दिनों पहले निकल आती?हैं. बालियां छोटी व हरी होती हैं, जो लंबे समय तक सामान्य बाली के मुकाबले हरी रहती?हैं. बीज पिटिका में बदल जाते हैं. इस रोग का मुख्य लक्षण यह है कि बीज गाल यानी पिटिका में बदल जाते?हैं. गाल (पिटिका) छोटा व गहरा होता है, जो स्वस्थ बीज के मुकाबले भूरा और अनियमित आकार का हो जाता?है. गाल (पिटिका) के आकार के अनुसार एक गाल में 800 से 3,500 की संख्या में लार्वे पाए जाते?हैं. इस निमेटोड के कारण पीली बाल या टुंडा रोग हो जाता है. निमेटोड बीजाणु फैलाने का काम करते हैं.

इस रोग के कारण नए पौधों की पत्तियों व बालियों पर हलका पीला सा पदार्थ जमा हो जाता है. रोग ग्रसित पौधों से बालियां ठीक से नहीं निकल पातीं और न ही उन में दाने बनते हैं. रोकथाम बीज की सफाई?: टुंडा रोग या बाल गांठ रोग या निमेटोड से रहित बीज लेने चाहिए. बीजों को छन्नी से छान कर पानी में 20 फीसदी के बराइन घोल में डाल कर तैरते हुए बीज अलग कर लेने चाहिए. गरम पानी से उपचारित करना : बीजों को 4 से 6 घंटे तक?ठंडे पानी में भिगोना चाहिए. इस के बाद 54 डिगरी सैंटीग्रेड गरम पानी में 10 मिनट तक उपचारित करना चाहिए. फसल को हेरफेर कर बोना : निमेटोड को खेत से बाहर करने के लिए प्रभावित फसल की 2 या 3 सालों तक बोआई नहीं करनी चाहिए. रोगरोधी किस्म : निमेटोड अवरोधी प्रजातियां ही खेत में बोनी चाहिए. संक्रमित पौधे निकालना : निमेटोड से संक्रमित पौधे पता लगा कर अगेती अवस्था में ही नष्ट कर देने चाहिए. सूप से फटकना या हवा में उड़ाना : यह विधि भी सहायक गाल को बाहर करने के लिए कारगर है,

पर इस विधि से गाल (पिटिका) पूरी तरह से बाहर नहीं होते?हैं. सिस्ट गांठ निमेटोड (हेटरोडेरा एविनी) : यह गांठ निमेटोड नीबू के आकार की गांठ के अंदर अंडे देता है, जो कई सालों तक जीवित रहते हैं. ये गांठ से अलग हो कर भूमि में निकल आते हैं. मार्चअप्रैल और अक्तूबरनवंबर माह तक गांठ में तकरीबन 400 अंडे रहते हैं. इस समय अंडों में दूसरी अवस्था के लार्वे बेकार अवस्था में रहते हैं. फसल की अगली बोआई के समय नवंबर से जनवरी माह के दौरान रोग ग्रसित लार्वे गांठ से निकलने शुरू हो जाते हैं. एक सीजन में 50 फीसदी अंडे फूट जाते हैं और बाकी अगले सीजन तक महफूज रहते हैं. जब फसल 4 से 5 सप्ताह पुरानी व ताप 16 से 18 डिगरी सैंटीग्रेड हो जाता है, तब दूसरी अवस्था के लार्वे जड़ की चोटी से घुसते हैं. शरीर विकसित होने में 4 हफ्ते लगते हैं.

भोजन लेने के बाद दूसरी अवस्था चौड़ाई में बढ़ती है. मादा नीबू का आकार लेती है और सफेद रंग की होती है. जड़ में घुसने के 4-5 हफ्ते बाद लार्वा को जड़ से बाहर निकलते देखा जा सकता?है. मादा तभी मर जाती है. उस के शरीर का कठोर व गांठ से भरा अवशेष अगले सीजन को संक्रमित करने के काम आता?है. नर वयस्क गोलाकार केंचुए जैसा होता?है. नर का विकास लार्वे में होता है. लार्वे वयस्क में बदलते?हैं. इन का जीवनचक्र 9 से 14 हफ्ते में पूरा होता?है और साल में 1 पीढ़ी पाई जाती?है. यह निमेटोड गेहूं और जौ में मोल्या रोग फैलाता है. नुकसान के लक्षण इस निमेटोड के लक्षण शुरू में खेत में टुकड़ों में दिखाई देते?हैं, जो 3-4 सालों में पूरे खेत में फैल जाते हैं.

इस के शुरुआती लक्षण फसल के जमाव के समय दिखने लगते हैं. इस की वजह से पौधों की जमीन से पोषक तत्त्वों को लेने की कूवत कम हो जाती?है और जड़ों में गांठें बन जाती हैं. इस के अलावा पौधों की बढ़वार रुक जाती है और रोगग्रस्त पौधे हरेपीले रंग के दिखाई देते हैं. ऐसे रोगग्रसित पौधों की बालियों में बहुत कम दाने बनते हैं. पौधों के आधार पर मूसला जड़ें विकसित हो जाती हैं. जड़ों पर फरवरी के मध्य में निमेटोड का आक्रमण दिखाई पड़ता?है. रेशे वाली जड़ें भूमि से आसानी खींची जा सकती हैं. इस के प्रकोप से रेतीली मिट्टी में 45 से 48 फीसदी नुकसान होता?है. रोकथाम कृषि क्रियाएं विधि : गांठ निमेटोड अवरोधी और सूखा न सहने वाला?है.

फसलचक्र व गरमी की जुताई से इस की रोकथाम की जा सकती है. पोषक अवरोधी फसलें जैसे सरसों, चना, कारिंडर, गाजर व फ्रैंचबीन वगैरह से इस की रोकथाम कर सकते?हैं. मईजून महीनों में 2-3 बार गरमी की जुताई करने पर निमेटोड की संख्या कम की जा सकती?है. गरमी के महीनों में गांठें कम हो जाती?हैं. गेहूं की अगेती बोआई करने पर नुकसान को कम किया जा सकता है.

अवरोधी प्रजातियां : भारत में गेहूं की निमेटोड अवरोधी प्रजातियां सीसीएनआरवी 1 व राज एमआर 1 उगाई जाती हैं. जौ की अवरोधी प्रजातियां राज किरन, आरडी 2035, आरडी 2052 और सी 164 संक्रमित क्षेत्र में उगाई जाती हैं. इन प्रजातियों में मादा के अंडे देने में असफल होने के कारण निमेटोड की तादाद कम हो जाती है. रासायनिक विधि : खेत में कार्बोफ्यूरान 3 फीसदी 65 किलोग्राम या फोरेट 10जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से निमेटोड पर काबू पाया जा सकता है. एकीकृत इलाज : मईजून के महीनों में गरमी की जुताई कर के और अवरोधी फसलों जैसे चना व सरसों की बोआई कर के निमेटोड की तादाद को कम करने में सफलता पाई जा सकती है.

मैं एक हिंदू युवक हूं और एक मुसलिम युवती से प्यार करता हूं, ऐसी सूरत में हमें क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं एक हिंदू युवक हूं और एक मुसलिम युवती से प्यार करता हूं. लड़की भी मुझे दिलोजान से चाहती है. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. मेरे घर वाले शुरू में थोड़ी आपत्ति करेंगे पर जानता हूं कि मैं उन्हें राजी कर लूंगा. दिक्कत लड़की के घर वालों की ओर से है. उस के घर वाले खासकर बिरादरी वाले किसी सूरत में हमारी शादी नहीं होने देंगे. उस के घर वाले मुझे पसंद करते हैं पर शादी के लिए अव्वल तो वे ही राजी नहीं होंगे और यदि हम उन्हें मनाने में कामयाब भी हो जाते हैं तो उन के बिरादरी वाले हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. यह बात स्वयं लड़की ने कही है. ऐसी सूरत में हमें क्या करना चाहिए?

जवाब

अंतर्जातीय विवाह भले ही मान्य होने लगे हैं पर हिंदुओं और मुसलिमों में रिश्ता होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है और फिर आप की गर्लफ्रैंड ने आप के सामने सारी वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी है, इसलिए आप को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए और विवाह करने की बात को भूल जाना चाहिए. अच्छा तो यह होगा कि अपने प्रेमप्रसंग को जल्दी विराम लगा दें. यह आप दोनों के ही हित में होगा, क्योंकि संबंध जितना लंबा होता जाएगा उतना ही प्रगाढ़ होगा और फिर एकदूसरे से अलग होना उतना ही मुश्किल होगा. फिर जो रास्ता मंजिल तक न पहुंचता हो उस पर चलते रहने का कोई लाभ नहीं.

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे : भाग 2

“अरे नहींनहीं, भाभीजी. इस में संकोच की क्या बात है. शादीब्याह तो जीवन की एक प्रक्रिया है, सो, हो गई. बाक़ी आप को तो पता ही है, हम तो भगवान के भक्त हैं, भाभीजी. मैं आप को आधे घंटे में फोन करता हूं पंचांग देख कर कि कब का शुभमुहूर्त है.” पंडितजी ने जल्दी से बात समाप्त कर के फोन काट दिया और कमरे में खुश होते हुए इधरउधर चक्कर काटने लगे. चक्कर काटतेकाटते वे सोच रहे थे, हे प्रभु, तू कितना ध्यान रखता है अपने भक्तों का. इतने दिनों से बढ़िया खाना और वीआईपी ट्रीटमैंट के लिए तरस गया था मैं. यों तो आजकल पंडिताइन खाना बनाती है पर एक तो वह नई है, दूसरे घर में कुछ भी बनाओ, खर्चा तो अपना ही होना है. यजमान तो जीभर कर खिलाते ही हैं, साथ ही, पंडिताइन के लिए बांध भी देते हैं. तभी उन्हें ध्यान आया कि अभी तो भाभीजी को फोन भी करना है. कहीं भाभीजी अपना मन बदल न दें. सो, उन्होंने फटाफट मिसेज गुप्ता को फोन मिला दिया,

”भाभीजी, कल का मुहूर्त सब से अच्छा है. वैसे भी तीर्थ से आने के बाद शीघ्रातिशीघ्र कथा करवा लेना चाहिए तभी तीर्थयात्रा सफल होती है.”

“पर पंडितजी, इतनी जल्दी सब व्यवस्था कैसे हो पाएगी?’’ मिसेज गुप्ता ने कुछ चिंतित स्वर में कहा.

“अरे भाभीजी, मेरे रहते आप उस की जरा भी चिंता मत कीजिए. आप तो, बस, आदेश कीजिए. पूजा की समस्त सामग्री मैं ले आऊंगा. आप सिर्फ पूजावाला भोजन और भगवान का भोगप्रसाद बना लीजिएगा.”

“ठीक है पंडितजी, तो कल ही रख लेते हैं. वैसे भी हमें आए एक सप्ताह हो ही गया है और अधिक लेट नहीं करते. सो, कल आप आ जाइएगा और हां, कल आप का और पंडिताइनजी का भोजन हमारे यहां से ही रहेगा,” मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा.

“ठीक है, भाभीजी. मैं कल सुबह 10 बजे आ जाता हूं.”

“जी, पंडितजी.”

पंडितजी खुश होते हुए कल की तैयारी में लग गए. उन्होंने अपनी अलमारी खोली और पूजा में प्रयोग की जाने वाली समस्त सामग्री एक थैले में भर कर रख ली ताकि सुबह कोई हड़बड़ाहट न हो. कहते हैं न, मन चंगा तो कठौती में गंगा. सो, पंडितजी का मन आज तो बल्लियों उछाल ले रहा था, उस पर नईनवेली पत्नी बगल में हो तो फिर क्या कहने. सो, पंडितजी ने अपनी खूबसूरत पत्नी को खींच कर अपने सीने से लगाया और चैन की नींद सो गए.

अगले दिन सुबहसुबह बढ़िया कलफदार पीली धोती व पीला कुरता पहन, कंधे पर जरी के बौर्डर वाला गमछा डाल, बिना नाश्तापानी किए पंडितजी निकल पड़े अपने यजमान के घर. सत्यनारायन की कथा करा कर मिसेज गुप्ता ने डायनिंग टेबल पर पंडितजी के लिए थाली लगा दी. आहाहा, थाली में खीर, पूड़ी, हलवा, पनीर की सब्जी, बूंदी का रायता और पुलाव आदि देख कर तो पंडितजी की बांछें खिल गईं. तृप्त हो कर भोजन किया. मिसेज गुप्ता ने चलते समय एक टिफिन और बैग दिया और बोलीं, “पंडितजी, यह भाभीजी के लिए भोजन है. और यह चढ़ावे का सामान व आप दोनों के कपड़े हैं.”

पंडितजी ने ख़ुशीख़ुशी सामान लिया और मन ही मन भगवान को धन्यवाद दिया, हे प्रभु, तू ऐसे ही अपने इस भक्त की पुकार सुन लिया कर और हर दूसरेतीसरे दिन ऐसे ही यजमानों से अपनी मुलाकात करवा दिया कर तो अपनी घरगृहस्थी बढ़िया चलती रहेगी. अपनी शादी में मिली नई निकोर पल्सर बाइक पर पंडितजी ने अपना सामान बांधा और चल दिए. घर पहुंच कर तो उन के पास बैड पर लमलेट होने के अलावा कोई चारा ही न था क्योंकि महीनेभर बाद मिले इतने स्वादिष्ठ भोजन को पचाने के लिए अब विश्राम करना बेहद आवश्यक था. जैसे ही वे बैड पर लेटे, अचानक मन बरसों पहले अपने गांव खिलचीपुरजा पहुंचा जो मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की एक तहसील थी. जहां परिवार में उन के अलावा 5 भाईबहन और थे.

परिवार के मुखिया यानी उन के पिता रामचरण एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थे. और क्लर्क की मामूली सी तनख्वाह में 5 सदस्यीय परिवार का गुजारा कर पाना परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए बेहद चुनौतीभरा था. मां सुरती देवी 8वीं पास थीं पर दिमाग के मामले में वे अच्छेखासे पढ़ेलिखे को भी मात दे दिया करती थीं. एक दिन कमजोरी की वजह से सुरती देवी बेहोश हो गईं. जब उन्हें होश आया तो पाया कि गांव वाले उन्हें घेर कर खड़े हैं, कोई थाल में दीपक लिए उन की पूजा कर रहा है तो कोई उन के चरण पूज रहा है. होश आने पर सुरती देवी असहज हो उठीं और सिर पर पल्ला रख कमरे की तरफ दौड़ पड़ीं. तभी बाहर से आतीं कुछ आवाजें उन के कानों में पड़ीं, ‘आज गुरुवार है और सुरती भाभी पर तो वैसे ही देवीजी का हाथ है आज तो माताजी ने सुरती के रूप में खुद दर्शन दे दिए. बोलो, जय मां भगवती की.’

देवी और वे, उन के रूप में देवी, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था. पर दिमाग बहुत तेजी से दौड़ रहा था. कुछ सोचविचार कर बेहोशी का परिणाम एक बार फिर देखने के लिए अगले गुरुवार को उन्होंने बेहोश होने की ऐक्टिंग कर डाली. यह क्या, इस बार तो आसपास के लोग ही उन के चारों तरफ जमा हो गए. पर इस बार होश में आने पर भी अंदर की तरफ दौड़ न लगा कर वे वहीं बैठीं रहीं. बस, अपने सिर का पल्ला थोड़ा ठीक कर लिया. पिछली बार की अपेक्षा इस बार देवी के रूप में उन के चरण छू कर कुछ मुद्रा भी लोगों ने चढ़ाई और कुछ फल आदि भी.

फिर क्या था, सुरती देवी पर हर गुरुवार देवी आने लगी. धीरेधीरे आसपास के गांवों से भी लोग देवी के दर्शन करने व अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आने लगे. और अब देवी की कृपा से घर की आर्थिक विपन्नता भी काफी हद तक काबू में आने लगी थी. घर वाले भी खुश और आने वाले भी खुश. पंडितजी को याद आया कि उस समय वे गांव के स्कूल में ही 12वीं कर रहे थे जब एक दिन उन की मां सुरती देवी ने उन्हें अपने पास बैठा कर कहा-

‘देख बेटा, बहुत ज्यादा तो हम तुझे पढ़ालिखा नहीं पाएंगे और न ही तू पढ़ पाएगा. मैं चाहती हूं कि तू अब से मेरी मदद कर दिया कर. इस से मुझे तो आराम मिलेगा ही, साथ ही, तू लोगों को डील करना और मानसिकता को समझना सीख जाएगा. कल को कभी नौकरी नहीं लगी तो भगवान की सेवा कर के अपनी गुजरबसर तो कर लेगा. आने वाले नवरात्र से मैं नौ दिनों तक मां का दरबार लगाऊंगी, तुम उस में मेरी मदद करो.’

‘पर मां, मैं तेरी क्या मदद कर पाऊंगा, मुझे तो कुछ भी पता नहीं है.’

‘तू उस की चिंता मत कर, मैं सब बता दूंगी.’

‘ठीक है, तू जैसा कहे,’ कह कर वे अपने दोस्तों के साथ चले गए थे. 10 दिनों बाद जब नवरात्र का प्रथम दिन आया तो घर का नजारा पूरी तरह बदल चुका था. घर के बाहरी कमरे में देवी मां की बड़ी सी मूर्ति स्थापित की गई. शाम को मां सुरती देवी ने नहाधो कर सुर्खलाल साड़ी धारण की और उन्हें भी गेरुए रंग का एक धोती कुरता पहनने को दिया और साथ में, एक कटोरी में कुछ ज्वार के दाने. कमरे में सुगंधित अगरबत्ती और धूपबत्ती जला दी गई. जब भक्तजन आने लगे तो मां ने मुख पर घूंघट डाले, पीठ तक खुलेबालों को आगे किए हुए सिर को गोलाई में घुमाते हुए कमरे में प्रवेश किया. पिताजी ने हाथ जोड़ कर ‘अम्बे माता की जय’ का जोरजोर से जयकारा लगाना शुरू किया. पिताजी ने मां को पकड़ कर एक चौकी पर बैठा दिया. भक्तजन एकएक कर आते और मां को अपनी समस्या बताते और मां ज्वार के 1-2 या 5 दाने उन के हाथ पर रख देती और वे मां द्वारा बताए वाक्य दोहरा देते. ‘6 माह में आप की समस्या हल हो जाएगी या फिर रोज नहा कर देवी जी को पानी चढ़ाइए, समस्या दूर अथवा 3 माह तक बाल खोल कर 6 मुंह वाला दीया जलाइए. फिर देखिए परिणाम, माता की कृपा बरसेगी’ आदिआदि. इस के साथ ही, वे भक्त को हाथ में बांधने के लिए कलावा और सिर पर लगाने को भभूत भी देतीं. इस सब को पा कर भक्त इतना अभिभूत हो जाता कि उसे लगता कि उस की आधी समस्या तो मां के पास आनेभर से दूर हो गई है.

इन नौ दिनों में घर में साड़ी, रुपए, फल, मेवा आदि इतने आ जाते कि आगामी नवरात्र तक घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी न रहती. और इस प्रकार देवी मां की कृपा से घर की आर्थिक विपन्नता जाती रही और भगवन की कृपा से दोचार वर्ष में ही 2 कमरों का घर तीनमंजिला बन गया. घर के बाहरी हिस्से में भगवन का एक मंदिर बनवाया जहां पर रोज ही सुबहशाम पूजापाठ होता. साथ ही, प्रति गुरुवार और नवरात्र के नौ दिन तक मां सुरती देवी पर मां अम्बे की कृपा बरसती और उस कृपा से हम सब चैन की जिंदगी जी पाते.

मिसफिट: जब एक नवयौवना ने थामा नरोत्तम का हाथ

विजया- भाग 1: क्या हुआ जब सालों बाद विजय को मिला उसका धोखेबाज प्यार?

विजयकी समझ में नहीं आ रहा था कि  जया ने उस के साथ ऐसा क्यों किया? इतना बड़ा धोखा, इतनी गलत सोच, इतना बड़ा विश्वासघात, कोई कैसे कर सकता है? क्या दुनिया से इंसानियत और विश्वास जैसी चीजें बिलकुल उठ चुकी हैं? वह जितना सोचता उतना ही उलझ कर रह जाता. जया से विजय की मुलाकात लगभग 2 वर्ष पूर्व हुई थी. एक व्यावसायिक सेमिनार में, जोकि स्थानीय व्यापार संघ द्वारा बुलाया गया था. जया अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रही थी, जबकि विजय खुद की कंपनी का, जिस का वह मालिक था और जिसे वह 5 वर्षों से चला रहा था. विजय की कंपनी यद्यपि छोटी थी, लेकिन अपने परिश्रम से उस ने थोड़े समय में ही एक अच्छा मुकाम हासिल कर लिया था और स्थानीय व्यापारी समुदाय में उस की अच्छी प्रतिष्ठा थी, जबकि जया एक प्रतिष्ठित कंपनी में सहायक मैनेजिंग डाइरैक्टर के पद पर थी. जया का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था कि विजय उस के प्रति आकर्षित होता चला गया. उस के बाद दोनों अकसर एकदूसरे से मिलने लगे.

इसे संयोग ही कहा जाए कि अभी तक दोनों अविवाहित थे और उन के जीवन में किसी और का पदार्पण नहीं हुआ था. जया के पिता का देहांत उस के बचपन में ही हो गया था और उस के बाद उस की मां ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया था और ऐसे संस्कार दिए जिन से बचपन से ही अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त किसी अन्य चीज की ओर उस का ध्यान नहीं गया. उस ने देश के एक बड़े संस्थान से मैनेजमैंट की डिगरी हासिल की और उस के बाद एक अच्छी कंपनी में उसे जौब मिल गई. जया अपने परिश्रम, लगन और योग्यता के द्वारा वह उसी कंपनी में सहायक मैनेजिंग डाइरैक्टर के रूप में कार्यरत थी.

बढ़ती उम्र के साथ जया की मां को उस की शादी की चिंता सताने लगी थी,

परंतु जया ने इस दिशा में ज्यादा नहीं सोचा था या यों कहें कि कार्य की व्यस्तता में ज्यादा सोचने का अवसर ही नहीं मिला. अपने कार्य में इतना मशगूल थी कि उस ने कभी इस बात की चिंता नहीं की और शायद यही उस की सफलता का राज भी था. ऐसा नहीं था कि किसी ने उस से मिलने या निकट आने की कोशिश नहीं की हो, लेकिन जया ने किसी भी को एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने दिया. वह एक आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी, उस से जो भी मिलता उस के निकट आने का प्रयास करता, परंतु जया हमेशा एक दूरी बना कर रखती.

दूसरी ओर विजय एक अच्छे और संपन्न परिवार से संबंध रखता था. उस के पिता एक प्रतिष्ठित व्यापारी थे. एक ऐक्सीडैंट में उस ने अपने मातापिता दोनों को खो दिया था. एक छोटी बहन है जो अभी कालेज में पढ़ रही है. विजय एक हंसमुख स्वभाव का, लेकिन गंभीर युवक था. पिता के देहांत के बाद उस ने खुद की अपनी कंपनी बनाई जिस का वह खुद सर्वेसर्वा था. कई लड़कियों ने उस से निकटता स्थापित करने की कोशिश की, परंतु वह अपनी कंपनी के काम में इतना व्यस्त रहता था कि किसी को अवसर ही नहीं मिला. कोई दोस्त या रिश्तेदार उस से शादी की बात करना भी चाहता तो उस का छोटा सा उत्तर होता कि पहले बहन रमा की शादी, फिर अपने बारे में सोचूंगा.

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