उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले देवरिया की रहने वाली स्मिता मिश्रा के पिता पेशे से टीचर थे. वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढलिख कर आगे बढे. स्मिता बचपन से ही बेहद समझदार थी . उन्हें बचपन से ही ज़रूरतमंद और बेसहारा लोगों की सहायता करना अच्छा लगता है . बचपन में जो भी पैसा मिलता था उसे गुल्लक में रखती थी और दीपावली के त्यौहार मॆ इकट्ठा किए गए पैसों को गरीब बच्चों में बांट देती थी. 12 वीं की पढाई के बाद स्मिता मिश्रा ने वाराणसी और इलाहाबाद से आगे की पढाई पूरी की. वह अपने पिता की तरह ही टीचर बनकर समाज की सेवा करना चाहती थी. अपनी शिक्षा पूर्ण कर प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उच्च शिक्षा में अर्थशास्त्र विषय मे असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित होकर वर्तमान में आजमगढ जिले के श्री अग्रसेन महिला महाविद्यालय में लडकियों को पढाने का काम कर रही है. लडकियों की शिक्षा और समाज की हालत पर पेश  है स्मिता मिश्रा के साथ एक खास बातचीत:--

आमतौर पर लड़कियां अर्थशास्त्र जैसे विषय में पढाई कम ही करती है. आपको यह शौक़ कैसे हुआ ?

- मेरे पिता टीचर से रिटायर हुये है. उनका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव रहा है. उनका मानना था कि लडकियों को अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ ही साथ आत्मनिर्भर होना चाहिये. लडकियां जब खुद आत्मनिर्भर होगी तो उनको कोई आगे बढने से रोक नहीं पायेगा. वह अपने पसंद के फैसले खुद कर सकती है.मेरा भी यही मानना है.हर लड़की को शिक्षित होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना बहुत आवश्यक है .

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