पटियाला, पंजाब में कुछ सप्ताह पहले ‘खालिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाने से पैदा हुए ?ागड़े पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए. ये ?ागड़े कब किस शक्ल में देशभर में होंगे या हो भी रहे हों जो सुर्खियां न बन रहे हों, कहना कठिन है. इतना जरूर है कि देश की एक बड़ी जनता को खाने की जगह माचिस की डब्बियां पकड़ा दी गई हैं और उसे सिखा दिया गया है कि जब कभी पेट की भूख सताए तो वह इस का इस्तेमाल कर ले और चाहे जैसे किसी का घर जला कर मजा ले ले.
राजनीतिक मंचों पर प्रधानमंत्री से ले कर भाजपा के निगम पार्षद और पंचायत सदस्य, हर धर्म समर्थक टीवी न्यूज चैनल, ट्विटर, फेसबुक, धार्मिक आयोजन, यात्राओं के लिए तैयारियां आदि सभी इन डब्बियों में तीलियां भर रहे हैं और जनता से कह रहे हैं कि यही तीलियां देश की अस्मिता हैं, सुरक्षा हैं, एकता हैं, अस्तित्व हैं. तीलियों से आग ही लगेगी, खाना नहीं पकेगा क्योंकि खाना तो तब ही मिलेगा जब बेरोजगारी दूर हो, महंगाई पर काबू हो.
यह आग समाज के विभिन्न वर्गों में लगने वाली है. हिंदूमुसलिम आग तो सब से ज्यादा लगाई जा रही है.
अब हिंदू-सिख शुरू हो गईर् है. हिंदुओं में अपर कास्ट बनाम लोअर कास्ट आग हर समय सुलगती रहती है. देश की व जनता की ख्याति, विशालता, बहुलता को यह आग नष्ट कर रही है. इसी आग पर धार्मिक पूरियां तली जा रही हैं, मेवे से भरा हलवा तैयार किया जा रहा है और छप्पन भोग लगाए जा रहे हैं.
पटियाला में जो हुआ वह उन काले दिनों की याद दिलाता है जब भिंडरांवाला के नेतृत्व में पूरा पंजाब एक छावनी बन गया था और गैरसिख को पंजाब में घुसने तक में डर लगता था. यह वह जमाना था जब दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच जो रास्ता पंजाब से गुजरता था उस तक पर लोग न जा कर 20-25 किलोमीटर अतिरिक्त चलने लगे थे कि हरियाणा में ही होते हुए वे चंडीगढ़ पहुंचें.
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